Science could just be a fun and discourse of a very high intellectual order.Besides, it could be a savior of humanity as well by eradicating a lot of superstitious and superfluous things from our society which are hampering our march towards peace and prosperity. Let us join hands to move towards establishing a scientific culture........a brave new world.....!
Thursday, 31 July 2008
अब आ पहुंचे हैं नारी की खूबसूरत टांगो तक ......
Wednesday, 30 July 2008
एक क्रांतिकारी विचार के १५० वर्ष !
Tuesday, 29 July 2008
नासा के जन्मदिन की अर्धशती !
नासा से मेरा भी एक संवेदना का रिश्ता रहा है .अन्तरिक्ष यानों में रोगाणुओं का यात्रियों पर क्या असर पड़ सकता है इस अभियान में मेरे सगे चाचा जी डॉ .सरोज कुमार मिश्रा का भी योगदान रहा .उनका यह साझा शोध पत्र पेटेंट के लिए भी संस्तुत हुआ .नासा ने गोपनीय कारणों से एक ,करग नेशनॅशनल का गठन किया और उसी के जरिये कई शोध कार्य कराये जिसमे डॉ सरोज कुमार मिश्रा का उद्धृत शोध पत्र ,उसी के सौजन्य से था .अब चाचा जी नासा में नही हैं -उन्होंने वहाँ से त्याग पत्र दे दिया -पर क्यों ,मुझे यह उन्होंने गोपनीय रखने को कहा है .और मैं विवश हूँ -भले ही असहज महसूस कर रहा हूँ ।
जो कुछ भी हो नासा की उपलब्धियों से मैं प्रभावित हूँ और इस जश्ने अन्तरिक्ष में मैं भी शामिल होता हूँ -थ्री चीयर्स के साथ .....
Monday, 28 July 2008
प्रेम के इस प्रतीक चिह्न से कौन अपरिचित है ?
Saturday, 26 July 2008
नारी-नितम्बों तक आ पहुँची सौन्दर्य यात्रा !
फिर भी नारी नितम्बों का सौन्दर्य पक्ष अनदेखा नहीं किया जा सकता। नितम्बों का आकार एक सशक्त कामोद्दीपक नारी अंग की भूमिका निभाता है और हमारे उस पशु अतीत की ध्यान दिलाता रहता है, जब कामोन्मत्त नर कपि रति क्रीड़ाओ हेतु मादा के पृष्ठ भाग पर आरोही हो रहे थे। पुरुष की तुलना में नारी के नितम्ब भारी और अधिक उभार वाले होते हैं। इतना ही नही नारी कूल्हों के ``मटकाने´´ के गुणधर्म के चलते नारी-नितम्बों का यौनाकर्षण बढ़ जाता है। इस तरह नारी नितम्ब की तीन प्रमुख विशेषताए¡-अधिक चर्बी , उभार और मटकाने (अनडुलेशन) की स्टाइल उसे पुरुष के लिए एक अत्यन्त प्रभावशाली यौनाकर्षण का केन्द्र बिन्दु बना देती हैं।
प्रख्यात व्यवहार शास्त्री डिज्माण्ड मोरिस तो यहाँ तक कहते हैं कि अतीत की नारी के नितम्ब यौनाकर्षण की अपनी भूमिका में इतने बड़े और भारी होते गये कि रति क्रीडा का मूल उद्देश्य ही बाधित होने लगा । लिहाजा मानव को सामने से यौन संसर्ग (फ्रान्टल कापुलेशन) का विकल्प चुनना पड़ा। कालान्तर में नारी स्तनों ने नितम्बो के `सेक्स सिग्नल´ की वैकल्पिक भूमिका अपना ली और तब कहीं जाकर नारी नितम्बो के बढ़ते आकार पर अंकुश लग सका।
किन्तु आज भी एक जैवीय स्मृति शेष के रूप में विश्व की कई आदिवासी संस्कृतियों में नारी नितम्बों को बहुत उभार कर दिखाने की प्रथा है। अफ्रीका की ``वुशमेन´´ आदिवासी´´ औरतें अपने नितम्बों को एक विशेष पहनावे के जरिये बहुत उभार कर ``डिस्प्ले´´ करती हैं।
Thursday, 24 July 2008
छत्तीस के नहीं हैं कूल्हे और कमर के रिश्ते-सौन्दर्य के अगले पड़ाव पर !
Wednesday, 23 July 2008
नाभि अलंकरण :नख शिख सौन्दर्य यात्रा का अगला विराम
Tuesday, 22 July 2008
दोहरी भूमिका में हैं नारी के वक्ष -भाग 2
Sunday, 20 July 2008
दोहरी भूमिका में हैं नारी के वक्ष ...1
भई गति कीट भृंग की नाई..... !!
Saturday, 19 July 2008
अब बारी है सुराहीदार गरदन की ....
Thursday, 17 July 2008
ये होंठ है या पंखुडिया गुलाब की -नख शिख सौन्दर्य ,अगला पड़ाव !
Wednesday, 16 July 2008
कामोद्दीपक भी हैं नारी के कान ...मनोरम यात्रा का नया पड़ाव ....
साभार :istockphoto
Monday, 14 July 2008
"मैं शर्म से हुई लाल ...."बात है गालों की लाली की ...
Sunday, 13 July 2008
नाक ऊंची या नीची -फ़र्क पङता है !
Friday, 11 July 2008
अब आँखें हैं नया पड़ाव !
उन संस्कृतियों में भी जहाँ नारी शरीर की सभी इन्द्रियों /ज्ञानेिन्द्रयों ,यहाँ तक कि मुंह को ढ़क कर रखने का रिवाज है, आंखों को खुला रखने की आजादी है। नारी के आंखों की तुलना में नर की आँखें जरा बड़ी होती हैं। हाँ ,नारी की आंखों की सफेदी ज्यादा जगह घेरती है। बहुत से समुदायों में नारी की अश्रुग्रिन्थया¡ काफी सक्रिय पायी गयी हैं। किन्तु ऐसा वहाँ के सांस्कारिक परिवेश की देन है। (जिसमें नर को बचपन से ही कम भावुक होने की हिदायत दी जाती है)आंखों आंखों के बीच होने वाले कुछ संकेत/इशारे उल्लेखनीय है जैसे आंखों की पलकों को चौड़ा कर विस्मय प्रगट करना।
भारतीय नृत्यांगनाओं में इस भाव को मेकअप के जरिये और भी उभार दिया जाता है। इसी तरह एक आँख का दबाना (आँख मारना) एक भेद भरा संकेत है, जिसका आदान-प्रदान घनिष्ठ लोगो-प्रेमी या मित्रों के बीच ही किया जाता है। इस संकेत का मतलब है कि `उन दोनों में कुछ ऐसा है जिससे दूसरे बेखबर हैं´´। किसी अनजान विपरीत सेक्स (पुरुष) की ओर इस संकेत के सम्प्रेषण का मतलब विपरीत लिंगी आकर्षण की मूक किन्तु स्पष्ट स्वीकारोक्ति भी हो सकती है। इसी भांति आँखें चार होना वह स्थिति है जिसमें प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे की आ¡खों में खोये हुए रह सकते हैं। पर इस संकेत का आदान-प्रदान दो घृणा करने वाले लोगों के बीच भी हो सकता है। वे भी काफी देर तक एक दूसरे को घूरते रह सकते हैं।
आंखों के ``मेकअप´´ में पलकों की विभिन्न शेड भी शामिल है- ताकि चेहरे के पूरे भूगोल में उनका प्रभुत्व विशेष रूप से बना रहे। जिससे लोग बरबस ही ऐसी आंखों और उसकी स्वामिनी की ओर आकिर्षत हो जाय। आंखों की सुन्दरता बढ़ाने के लिए आंखों में कुछ रसायनों (बेलाडोना) के प्रयोग का भी प्रचलन रहा है। इन रसायनों के प्रभाव में आंखों की पुतलिया¡ फैल जाती हैं, जो इन्हे और भी आकर्षक बनाती है।
प्रयोगों में यह स्पष्ट रूप से पाया गया है कि फैली/बड़ी पुतलियों वाले नारी चित्रों ने सिकुड़ी हुई पुतलियों वाले नारी चित्रों की तुलना में अधिक लोगों को आकिर्षत किया। यह भी देखा गया है कि ``प्यार की दृष्टि´ के दौरान महिलाओं की आंखों की पुतलिया¡ कुदरती तौर पर फैल जाती है और उनके आकर्षण में इजाफा करती हैं- आकर्षक दिखने के लिए इससे अच्छा और मुफ्त नुस्खा भला व दूसरा क्या होगा--बस ``देखिए मगर प्यार से ........."
Thursday, 10 July 2008
अब आता है नारी सुन्दरता का अगला पडाव -भौहें !
मन के भावों की मूक अभिव्यक्ति में भौहें अपनी भूमिका बखूबी निभाती हैं। भारत की कई नृत्य शैलियों में भौहों के क्षण-क्षण बदलते भावों को आपने देखा सराहा होगा। तनी भृकुटि और चंचल चितवनों की मार से भला कौन घायल नहीं हुआ होगा। भौहों के जरिये कई तरह के अभिप्राय पूर्ण इशारे किये जाते हैं- जिसमें प्रेम, क्रोध, घृणा जैसे मनोभावों की अभिव्यक्ति शामिल हैं।
पुरुषांें की तुलना में नारी भौहें (आईब्रोज) कम बालों वाली होती हैं। नारी के इसी प्रकृति प्रदत्त विशेष लक्षण को चेहरे के `सौन्दर्य मेकअप´ में उभारा जाता है- भौहों को सफाचट करके या फिर कृत्रिम भौहे बनाकर। ऐसा इसलिए ताकि नारी सुलभ कुदरती गुण/सौन्दर्य को बनावटी तरीके से ही सही और उभारा जा सके- नारी सुन्दरता में चार-चा¡द लगाया जा सके। किन्तु पश्चिम में खासकर हालीवुड की अभिनेत्रियों में अब भौहों को सफाचट करने का फैशन नहीं रहा, कारण वे अब पुरुषोंचित गुणों की बराबरी में आना/दिखना चाहती हैं। वहा¡ अब ``आई ब्रो पेिन्सलें` वैनिटी बैंगों में ढ़ूढे नहीं मिलतीं। कभी इंग्लैण्ड में भौहों के कुदरती बालों को साफ कर चूहों की चमड़ी चिपकाने का भी अजीब रिवाज था और यह सब महज इसलिए की नारी सौन्दर्य में इजाफा हो सके।
Tuesday, 8 July 2008
इस जुल्फ के क्या कहने .........!
Monday, 7 July 2008
व्यवहार विज्ञानी निरख रहे हैं नारी का सौन्दर्य !
नारी सौन्दर्य-नख से शिख तक एक मनोरम यात्रा
Sunday, 6 July 2008
"इस साँप का काटा सुबह की रोशनी नही देखता "
"इस साँप का काटा सुबह की रोशनी नही देखता " जैसी धारणा संभवतः करैत साप को लेकर ही है .यह एक सुस्त साँप है जो गाँव के कच्चे मकानों में े प्रायः घर के अन्दर बिलों में अपना डेरा जमाता है .
मैं समझता हूँ कि यही वह सांप है जिसके डसने से आदमी का बचना मुश्किल है ,हाँ समय से एंटीवेनम मिल जाय तो जान बच सकती है .यह रात को ही असावधान रहने पर या चारपाई पर पहले से ही मौजूद रहने पर सोते में काट सकता है .मुश्किल यह है कि इसके काटने पर कोई ज्यादा या कभी कभी तो बिल्कुल सूजन ही नही होती .और विषदंत भी कोबरा की तुलना में महीन होते हैं ,जिससे ये भी प्रमुखता से नही दिखते.अब यह पहचान मुश्किल हो जाती है कि किसी विषैले साँप ने काटा भी है या नही .
हाथ ,पैर का बेजान पडना एक लक्षण है जो थोडा विलंब से शुरू होता है लेकिन जल्दी ही गंभीर रूप ले लेता है .नतीजतन जिसे यह रात में काट ले और एंटीवेनम न मिले तो समझिये काम तमाम !
इसका मात्र ६ माईक्रोग्राम ही किसी की जान लेने में पर्याप्त है .
इस साँप से सबसे अधिक सावधान रहने की जरूरत है .ऊपर के चित्र में इसे पहचान लें यह काले रंग का नीली आभा लिए होता है और शरीर पर सफ़ेद धारियाँ दिखती हैं -कभी कभी वोल्फ स्नेक[संखारा या कौडिसाप] जो विषैला नही होता है को लोग भ्रम से करैत मान लेते हैं -दरअसल वोल्फ स्नेक भूरापन लिए होता है और पालतू बन जाता है .
एंटीवेनम को रखने के लिए किसी लाईसेंस की जरूरत नही है .बड़े मेडिकल स्टोरों पर यह मिल जायेगा .यह पाउडर फार्म में होता है और डिस्टिल्ड वाटर के साथ मिला कर घोल बना कर इंजेक्ट होता है .इसे यहाँ से भी प्राप्त किया जा सकता है -
Serum Institute of
Poona-४११००१
हिमाचल प्रदेश में भी सोलन जिले के कसौली नामक स्थान पर सर्पविष शोध और निर्माण संस्थान है .
मेरी कामना है कि किसी की भी सर्प दंश से मौत न हो ....आप भी कृपा कर सापों के बारे में लोगो में जागरूकता लायें .......
अब इस दहशत भरे माहौल से आपको बाहर लायें .....ईथोलोजी पर एक सौन्दर्यपरक श्रृखला की प्रतीक्षा करें -
नारी -नख शिख सौन्दर्य -नारी सौन्दर्य -व्यवहार विदों की नजर में ।
प्रतीक्षा करें ...........
Saturday, 5 July 2008
सर्पदंश: बचाव और उपचार
सर्पदंश: बचाव और उपचार
यदि आप गावों में रहते हैं तो टॉर्च या पर्याप्त रोशनी के साथ ही बाहर जाएँ ,बरसात में ख़ास तौर पर .पैरों को गम बूट ज्यादा सुरक्षा देते हैं मगर नही है तो ऐसा जूता रहे जो पैर को ऊपर तक अच्छी तरह ढक सके .साथ में एक डंडा और गमछा भी रखें .
यह सापों का प्रणय - प्रजनन काल भी है -ख़ास तौर पर नाग -कोबरा का .यह एक आक्रामक साँप है .यह अपनी टेरिटरी बना कर रहता है यानी एक ऐसा क्षेत्र जिसमें किसी को भी आने पर इसे नागवार लगता है .यदि प्रणय काल में कोई इस क्षेत्र से गुजरता है तो यह आक्रमण कर सकता है .इस पर पैर पड़ जाय तो यह काट ही लेगा .अगर किसी की अचानक नाग से भेट हो जाय तो वह अपना गमछा या कोई भी कपडा तुरत फुरत निकाली हुयी शर्ट या गंजी उस पर फेक दें.यह आदतन उससे उलझ लेगा और वह रफू चक्कर हो सकता है .कोबरा को लाठी से मारना ज़रा अभ्यास का काम है .लाठी तभी इस्तेमाल में लायें जब मरता क्या न करता की पोजीशन हो जाय .क्योंकि ऐसा देखा गया है कि निशाना यदि उसके मर्म स्थल [फन और इर्दगिर्द का हिस्सा ]पर नही पडा और आदतन लाठी मारने वाले ने लाठी उठायी तो वह उसके शरीर पर आ गिरेगा .और फिर वह क्रोध में काटेगा और विष भी ज्यादा निकालेगा .
विषैले सापों में दो विषदंत आगे ही ऊपर के जबड़े में होता है और २ विष की थैली इसी से दोनों और जुडी रहती हैं
खुदा न खास्ता साँप काट ही ले तो -
धैर्य रखें ,दौड़ कर न जाएँ -भागें न ,इससे विष रक्त परिवहन के साथ जल्दी ही पूरे शरीर में फैल जायेगा .रूमाल ,गमछा से जहाँ दंश का निशान है उसके ऊपर के एक हड्डी वाले भाग यानी पैर में काटा है तो जांघ में और हाथ में काटा है तो कुहनी के ऊपर बाँध दे ,बहुत कसा हुआ नही .पुकार कर किसी को बुलाएं या धीरे धीरे मदद के लिए आस पास पहुंचे .और तुंरत एंटीवेनम सूई के लिए पी एच सी पर या जिला अस्पताल पर पहुंचे .यह सूई अगर आसपास किसी बाजार हाट के मेडिकल स्टोर पर मिल जाय तो इंट्रामस्कुलर भी देकर अस्पताल तक पहुंचा जा सकता है -जहाँ आवश्यकता जैसी होगी चिकित्सक फिर इंट्रा वेनस दे सकता है . अगर आप के क्षेत्र में साँप काटने की घटनाएँ अक्सर होती है तो पी एच सी के चिकित्सक से तत्काल मिल कर एंटी वेनम की एडवांस व्यवस्था सुनिशचित करें - मेडिकल दूकानों पर भी इसे पहले से रखवाया जा सकता है . अगर शरीर में जहर ज्यादा उतर गया है तो एंटीवेनम के ५-१० वायल तक लग सकते हैं . एंटीवेनम १० हज़ार लोगों में एकाध को रिएक्शन करता है -कुशल चिकित्सक एंटीवेनम के साथ डेकाड्रान/कोरामिन की भी सूई साथ साथ देता है -बल्कि ऐसा अनिवार्य रूप से करना भी चाहिए .
कोबरा के काट लेने के लक्षण क्या हैं -काटा हुआ स्थान पन्द्रह मिनट में सूजने लगता है .यह कोबरा के काटे जाने का सबसे प्रमुख पहचान है .ध्यान से देखें तो दो मोटी सूई के धसने से बने निशान -विषदंत के निशान दिखेंगे .
प्राथमिक उपचार में नयी ब्लेड से धन के निशान का चीरा सूई के धसने वाले दोनों निशान पर लगा कर दबा दबा कर खून निकालें .और किसी के मुहँ में यदि छाला घाव आदि न हो तो वह खून चूस कर भी उगल सकता है .
विष का असर केवल खून में जाने पर ही होता है यदि किसी के मुंह में छाला पेट में अल्सर आदि न हो तो वह सर्पविष बिना नुकसान के पचा भी सकता है .
कोबरा का १२ माईक्रो ग्राम आदमी को मार सकता है मगर वह एक भरपूर दंश में ३२० माईक्रोग्राम विष तक मनुष्य के शरीर में उतार सकता है .मगर प्रायः लोग पावों को तेज झटक देते हैं तो पूरा विष शरीर में नही आ पाता .इसलिए कोबरा का काटा आदमी ५-६ घंटे तक अमूमन नही मरता .और यह समय पर्याप्त है एंटी वेनम तक पहुँच जाने के लिए।
करैत सुस्त साँप है मगर इसका ६ मिक्रोग्राम ही मौत की नीद सुला सकता है .यानी कोबरा के जहर की केवल आधी ही मात्रा .इसके बारे में कल ......