Wednesday 31 October 2007

चलो अन्तरिक्ष घूम आयें

अन्तरिक्ष पर्यटन का एक भरापूरा उद्योग उभर रहा है? दरअसल, इस उद्योग के आकर्षण ढेरों हैं - एक अनिर्वचनीय, अविस्मरणीय और नायाब अनुभव के साथ ही अन्तरिक्ष से जीवन प्रसूता नीली धरती को अपलक निहारने का आनन्द, अन्तरिक्ष यात्री बनने का अनूठा `स्टेटस सिम्बल´ और भारहीनता की विलक्षण अनुभूति. भारतीय हिन्दू मिथकों में `सशरीर´ स्वर्ग की यात्राओं को त्रिशंकु, युधििष्ठर, अर्जुन , सावित्री, नचिकेता आदि पात्रों के जरिये विस्तार से दर्शाया गया है। हाँ , भारतीय सोच अमूमन मृत्यु के बाद ही आत्मा द्वारा स्वर्ग के सैर की है, `सशरीर´ स्वर्गारोहण - अन्तरिक्ष भ्रमण आज तक महज अपवाद के रुप में ही यथोक्त भारतीय कथा कहानियों में वर्णित हुआ है- किन्तु अब अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों ने सशरीर तथा सकुशल वापसी वाले अन्तरिक्षीय सैर सपाटे के नये युग का शंखनाद कर दिया है।अमेरिकी नागरिक और व्यवसायी डेनिस टीटो ने पहला अन्तरिक्ष प्रयाण किया और `इन्टरनेशनल स्पेस स्टेशन´ पर दस दिनों के रैन बसेरे (28 अप्रैल- 6 मई 2001) के बाद सकुशल धरती पर आ लौटे।कम्प्यूटर उद्योगपति मार्क शटल वर्थ ने भी उनके `नभ चिन्हों´ का अनुसरण कर 25 अप्रैल से 5 मई 2002 तक अन्तरिक्ष में विराम किया।ग्रेगरी ओल्सेन तीसरे अन्तरिक्ष पर्यटक बने और 2005 में इन्टरनेशनल स्पेस स्टेशन पर पहुंच 1 अक्टूबर से 11 अक्टूबर 2005 तक उन्होंने कई प्रयोग परीक्षण भी किये।अनोऊशेह अन्सारी (18 सितम्बर से 29 सितम्बर 2006) तथा हंगेरिया में में जन्में कम्प्यूटर साफ्टवेयर व्यवसायी चाल्र्स सिमोन्यी (7 अप्रैल से 21 अप्रैल, 2007) नेchauthe और पांचवे अन्तरिक्ष पर्यटक बनने का अपना ख्वाब पूरा कियाभारतीय सैलानियों के लिए भी एक खुशखबरी है। ब्रितानी मूल के अन्तरिक्ष व्यवसायी रिचर्ड ब्रैंसन ने स्पेसशिप-1 से अन्तरिक्ष की देहरी तक सैर सपाटे के लिए भारतीय पर्यटकों को दो लाख डालर-तकरीबन 80 लाख रुपये के एक किफायती `स्पेस टूर´ पैकेज का शुरूआती आफर दिया है। यह किफायती पैकेज उनकी निजी कम्पनी वर्जिन गैलेिक्टक की भारतीय शाखा `स्पाजियो´ के जरिये मुहैया होगी। बुकिंग शुरु भी हो गयी है। विर्जिन गैलेिक्टक इन अन्तरिक्ष पर्यटकों को विधिवत प्रशिक्षण भी देगी। लाइन में लगे सौ लोग प्रशिक्षण प्राप्त भी कर चुके हैं। आप भी ज्यादा सोच विचार न कीजिए यदि टेंट में माल हो तो जीवन के इस एक बारगी अनुभव के लिए अभी से लाइन में लग लीजिए। कौन जाने आपका नम्बर आते आते किसी भारी किफायती पैकेज का लाभ ही आपको मिल जाये!

Friday 12 October 2007

ॐ शांति ॐ शांति -पर्यावरण पर नोबेल शांति सम्मान

शांति पृथ्वी ..शांति वनस्पत्य्हा ..शांति औषध्यः ..ॐ शांति शांति ..कभी पर्यावरण से/में शांति की कामना करने वाले भारतीय मनीषियों के ही स्वर को बुलंद करते हुये इस बार का शांति नोबेल पुरस्कार पर्यावरण के क्षेत्र मे दिया गया है ।
..नोबेल शांति पुरस्कार का ट्रेंड बदल सा गया है ,पिछले वर्ष सूक्ष्म वित्तीयन [माइक्रो फिनेंसिंग ] के लिए यह सम्मान बंगलादेशी मुहम्मद यूनुस को मिला था और इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र के संगठन आईपीसीसी (इंटरगर्वन्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) और जलवायु परिवर्तन के मामले में दुनिया भर में अभियान चलाने वाले अमरीका के पूर्व उप राष्ट्रपति अल गोर को संयुक्त रुप से नोबेल शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. भारत के पर्यावरण वैज्ञानिक आरके पचौरी आईपीसीसी के अध्यक्ष हैं और वे संगठन की ओर से यह सम्मान ग्रहण करेंगे.
नोबेल सम्मान समिति मानती है कि जलवायु परिवर्तन इस समय दुनिया की एक बहुत बड़ी समस्या है. वह चाहती है कि दुनिया का ध्यान जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या की ओर खींचा जाए और नुक़सान पहुँचाए बिना विकास हो सके. विकासशील देशों को सोचना होगा कि वे किस हद तक विकसित देशों के ढर्रे पर चल सकते हैं और किस हद तक उनकी ग़लतियों को दोहराने से बच सकते हैं.आर के पचौरी ने कहा की उन्होंने नहीं सोचा था कि आईपीसी को यह सम्मान मिलेगा. यह उनकी अतिशय विनम्रता है . संयुक्त राष्ट्र की संस्था आईपीसीसी में जलवायु परिवर्तन से जुड़े तीन हज़ार से अधिक वैज्ञानिक काम करते हैं.
अल गोर ने राजनीति से संन्यास लेने के बाद अपना पूरा ध्यान जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित कर रखा है .बिल क्लिंटन के कार्यकाल में वे उप राष्ट्रपति थे, उन्होंने 2001 में जॉर्ज बुश के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे.. मेघालय में बसने वाली खासी जनजाति ने उन्हें जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए पहले ही सम्मानित करने का फ़ैसला ले लिया था . खासी पंचायत के नेताओं ने उन्हें ग्रासरूट डेमोक्रेसी अवार्ड देने की घोषणा की थी .खासी जनजाति पंचायत का मानना है कि वे अल गोर की डाक्युमेंट्री 'द इनकन्विनिएंट ट्रुथ' से बहुत प्रभावित हुए हैं और उन्हें सम्मानित करना चाहते हैं. डाक्युमेंट्री मे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को बहुत अच्छी तरह समझाया गया है. यह सम्मान 'दरबार ' यानी जनता की संसद में छह अक्तूबर को प्रदान किया जाना था मगर गोर पहुँच नही पाये , इसका आयोजन उस जंगल में किया गया जिसे खासी जनजाति पवित्र मानती है और उसे 700 वर्षों से पूरी तरह सुरक्षित रखा है. सम्मान के रूप में स्थानीय कलाकृतियाँ और 'मामूली धनराशि' भेंट की जानी थी .[स्रोत साभार :बी बी सी हिंदी सेवा ]

Wednesday 3 October 2007

साइब्लाग की भूमिका नंबर दो-धर्म और विज्ञान

धर्म और विज्ञान पर किसी भी चर्चा को शुरू करने के पहले महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन के इस कथन को उधृत कर देने का लोभ संवरण कर पाना मुश्किल हो जाता है कि "धर्म के बिना विज्ञान लंगडा है और विज्ञान के बिना धर्म अंधा " आख़िर वह कौन सी सोच रही होगी जिसके तहत आइन्स्टीन ने उक्त विचार व्यक्त किए. साइब्लाग की भूमिका नंबर दो मे इसका थोडा विश्लेषण किया जाए .पहले ,धर्म के बिना विज्ञान के अंधा होने की बात .दरअसल विज्ञान सत्य की खोज तो करता है किंतु वह सत्य मानव का हित साधक है या अहितकारी इससे विज्ञान का कुछ लेना देना नही है . जबकि हमारी प्रबल मान्यता सत्यम शिवम सुन्दरम की रही है .यह एक धार्मिक सोच है -सत्य वह हो जो सुंदर हो ..शिव हो यानी मंगलकारी हो -बहुजन हिताय बहुजन सुखाय हो .विज्ञान हमे कोई जीवन दर्शन अभी तक नही दे सका है ,शायद यह इसकी प्रकृति मे नही है या कह सकते हैं कि जीवन दर्शन देना विज्ञान का धर्म नही है -और यही वह पहलू है जो विज्ञान को अधूरा बनाता है ,लंगडा कर देता है- इस अर्थ मे कि वह मानवता के व्यापक हित मे नही है . यहीं धर्म का मार्गदर्शन जरूरी हो जाता है -वह धर्म जो अच्छे बुरे का संज्ञान देता हो ,आदर्श जीवन की रूपरेखा बुनता हो .मानव मानव के बीच प्रेम सदभाव और भाईचारे का बीज बोता हो ,विज्ञान की खोजों का बहुजन हिताय मार्ग बताता हो .एक आदर्श और उपयुक्त जीवन की आचार संहिता बुनता हो .विज्ञान के साथ इस तरह का धर्म अगर जुड़ जाय तो बस बात बन जाए.

आईये अब सिक्के के दूसरे पहलू पर .धर्म बिना विज्ञान के अंधा क्यों है ? इसलिए की आज धर्म के जिस रूप से हम परिचित हैं वह अद्यतन नही है ,एक अवशेष है ,रूढ़ हो चला है .धर्म के शाश्वत मानवीय मूल्यों जो जन जन के हित की बात सर्वोपरि रखता है -परहित सरिस धर्म नही भाई के बजाय हम सभी उसके पोंगापन्थी स्वरूप को बनाए रखना चाहते हैं -हम अभी भी लोगों को स्वर्ग नरक के चक्कर मे अपने निहितार्थों के चलते फंसाये रहते हैं .धर्म के नाम पर मार काट तक मचा देते है .आज जरूरत एक संशोधित धर्म की है जो तार्किकता और विज्ञान के आलोक मे एक नया जीवन दर्शन दे, अपने अच्छे शाश्वत मूल्यों को बनाए रखते हुए भी .आज विज्ञान की आंखें उसका मार्गदर्शन कराने को तत्पर हैं .

विज्ञान और धर्म का समन्वय काल की सबसे बड़ी पुकार है .