पशु पक्षियों के प्रणय याचन में प्रजाति पहचान का मामला भी बड़ा जटिल है -जहाँ एक सरीखे ही असंख्य प्राणी प्रजातियाँ हों ,यह कैसे सुनिश्चित हो कि प्रेम की अभिव्यक्ति अपनी ही प्रजाति के जोड़े से हो पायेगी ? इसलिए कुदरत ने प्रजातियों को विशेष पहचान चिह्न और प्रणय याचन के तौर तरीकों की अलग सौगात सौंपी है -जिससे कोई भूल चूक न हो और सही जोड़े ही प्रणय संसर्ग कर सकें अन्यथा विपरीत प्रजाति सयोगों से वंश बेलि बढ़ नही पायेगी ! इस कुदरती व्यवस्था के चलते क्या मजाल कि कोई एक प्रजाति किसी दूसरी प्रजाति से जोड़ा गान्ठने लगे !
जैव विदों ने उन तौर तरीकों जिनसे किन्ही अलग थलग प्रजातियों में यौनिक संसर्ग न होने पाये -प्रजनिक पृथक्करण प्रलाणी ( reproductive isolation mechanism ) कहा है और इनमें प्रणय याचन के अलग अलग तरीके ,अलग अलग प्रणय काल (ब्राडिंग पीरियड ) , शारीरिक बनावट आदि शामिल है । विकास की सीढी पर कई निचली श्रेणी के प्राणियों में यद्यपि प्रजनिक पृथक्करण प्रणाली थोड़ी ढीली ढाली सी है -मतलब उनमें विभिन्न गैर प्रजातियों में भी कभी कभार आकस्मिक संकरण हो जाता है ! ऐसा इसलिए भी है की कई निचले स्तर के प्राणियों में बाह्य निषेचन होता है आंतरिक गर्भाधान नहीं.जैसे जब मछलियों की कुछ प्रजातियाँ एक साथ प्रजनन करती हैं तो उनके अंडे और शुक्राणुओं की विशाल फौज जल धाराओं में गुत्थम गुत्था होती रहती हैं और गैर प्रजातियों के शुक्राणु और अंडे आपस में टकरा जाते हैं -सारी बोलने के बजाय वे निषेचन को तरजीह दे देते हैं ,इसलिए प्रकृति में रोहू ,कतला ,नैन मछली प्रजातियों के विभिन्न संकर रूप भी देखने को मिल जाते हैं -ऐसे उदाहरण दूसरे प्राणियों - जानवरों में भी हैं .मगर ऊँची प्रजातियों में गैर प्रजातीय यौन संसर्ग अपवाद हैं -गोरिल्ला और चिम्पांजी के वर्ण संकर नहीं मिलते !
इसी तरह नर मादा के बीच परस्पर पहचान के लैंगिक संकेत भी मुखर होते हैं -मगर यहाँ भी कई प्रजातियों में जैसे कई पक्षी प्रजातियों में लैंगिक पहचान बहुत गौण होती है जहां नर मादा की पहचान मुश्किल है -अब जैसे बुजेरिगर पक्षी (जिसे लव बर्ड कहने का प्रचलन है ) में नर के चोंच के ऊपर का हिस्सा -सेरे ,गहरा नीला होता है जबकि मादा में यही भाग भूरा होता है ! मगर यदि किसी नर की चोंच के इस ऊपरी हिसे को पेंट से भूरा कर दिया जाता है तो दूसरे नर उसी को मादा समझ कर यौन याचन और संसर्ग के प्रयास शुरू कर देते हैं और मादा के भूरे हिस्से को गहरा नीला पेंट कर देने पर नर उसकी ओर से बेरुखी अख्तियार कर लेते हैं !
बुजेरिगर -बाएँ मादा ,दायें नर (चोंच के ऊपर के सेरे से पहचाने ,जो मादा में भूरा और नर में नीला है !)
कई दूसरे लैंगिक संकेत गैर वयस्कों और वयस्कों के बीच फर्क करते हैं जैसे जेब्रा फिंच पक्षी के अवयस्क सदस्यों की चोंच काली होती है और मादा तथा वयस्कों की गहरी लाल -जब इन अवयस्कों की काली चोच लाल नेल पालिश से लाल कर दी गयी तो नर पक्षी यहाँ तक की खुद उनके पिता उनसे यौन संसर्ग पर उतारू हो गए ! उनकी जान फिर से नेल पालिश रिमूवर से लाल रंग हटाने के बाद ही छूटी !
जेब्रा फिंच पक्षी की वयस्क मादा की चोंच लाल होती है और अवयस्क की भूरी
विकास वाद के अनुसार सभी प्राणी एक दूसरे से गहरे सम्बन्धित हैं और उनमें व्यवहार का विकास भी पृथक तौर पर नहीं बल्कि एक क्रमिक रूप में हुआ हैं -ऊपर के अध्ययनों के मानवीय संदर्भ में क्या फलितार्थ /निहितार्थ हैं , अनेक व्यवहार शास्त्री ,समाज जैविकी विद इसे जानने समझने में जुटे हुए हैं !
जारी ......