tag:blogger.com,1999:blog-33627954562910727952024-03-03T16:25:46.243-08:00साईब्लाग [sciblog]Science could just be a fun and discourse of a very high intellectual order.Besides, it could be a savior of humanity as well by eradicating a lot of superstitious and superfluous things from our society which are hampering our march towards peace and prosperity. Let us join hands to move towards establishing a scientific culture........a brave new world.....!Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger301125tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-53855067895191224442015-10-24T07:18:00.000-07:002015-10-24T07:18:49.721-07:00अंतरिक्ष की महायात्रा में मानव के लिए मंगल बनेगा मील का पत्थर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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नई हालीवुड फिल्म <b>मार्शियन</b> (मंगल ग्रह के निवासी) में दर्शया गया है कि लाल ग्रह रहने के लिए किस तरह एक अत्यंत भयानक जगह है। मंगल की सतह घातक विकिरण के कारण असुरक्षित है। यहाँ माइनस 60 डिग्री फारेनहाइट के नीचे औसत तापमान रहता है ,इस लिहाज से मंगल ग्रह की तुलना में अंटार्कटिका पिकनिक के लिए एक अच्छी जगह है। यही नहीं यहाँ 96% कार्बन डाइऑक्साइड है, और इस माहौल में साँस नहीं लिया जा सकता। </div>
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इस सब के बावजूद मंगल ग्रह पर मानव बस्तियों की संभावना है। हाल ही में इस ग्रह पर पानी बहने के पुख्ता प्रमाण भी मिल गए हैं। हालांकि यह पानी विषैला है। 2027 तक नासा द्वारा इस ग्रह पर एक दर्जन तक मानव के अवतरण का प्लान है.पहली प्राथमिकता वहां तक के निरापद परिवहन की है। परिवहन तंत्र स्थापित हो जाने के बाद, बस्तियों बसाने का काम बहुत पीछे नहीं रह जाएगा। 25 करोड़ मील दूर एक प्रतिकूल वातावरण में जीवित रहने के लिए क्या क्या पापड़ बेलने होंगे? </div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhliXUEhhqrfhko92d0zAAmbo2_FHJXal6pyyI8nrErzLmmB2PxSzG-xZ8BqwgD8N_anZ0caIaj1WsXDc_eztEcKV-McXy4_GaK4xhOhZpZU9wJh4DHHqtpq__SPcahyphenhyphenR4eD4MqO5d6vSQ/s1600/mars-780x488.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhliXUEhhqrfhko92d0zAAmbo2_FHJXal6pyyI8nrErzLmmB2PxSzG-xZ8BqwgD8N_anZ0caIaj1WsXDc_eztEcKV-McXy4_GaK4xhOhZpZU9wJh4DHHqtpq__SPcahyphenhyphenR4eD4MqO5d6vSQ/s320/mars-780x488.jpg" width="320" /></a></div>
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<b> एक अंतरिक्ष युगीन मंगलवासी गुफा मानव की कल्पना </b></div>
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और भोजन क्या होगा? आईये सबसे पहले, भोजन पर ही विचार करें। पहले कुछ दशकों के लिए तो शीत शुष्कन (फ्रीज़ ड्राईड) विधि से तैयार भोजन समय समय पर पृथ्वी से ही फेरी ( ferried ) किया जाएगा। पता चला है कि ताजा सब्जियों के उगाने के लिए मंगल ग्रह की मिट्टी एक अच्छा माध्यम हो सकती है, हालांकि, हाईड्रोपोनिक्स ( airponics ) - हवा में पौधों के उगाने के तरीकों को चुनना होगा।पानी के लिए नासा एक dehumidifier की तरह तकनीक का इस्तेमाल करने पर शोध कर रहा है। वहां WAVAR (जल वाष्प सोखने वाला रिएक्टर),भी स्थापित किया जा सकता है। यह ध्रुवों पर बर्फ के रूप में जमे, धूल की परत के नीचे ग्लेशियरों में, मिट्टी में जमे हुए और सोतों और भूमिगत जलाशयों से पानी का निष्कर्षण कर सकेगा । </div>
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हम पृथ्वी पर ब्रह्मांडीय किरणों से घने वातावरण तथा चुंबकीय क्षेत्र द्वारा सौर विकिरण से सुरक्षित हैं, किन्तु यह सुरक्षा मंगल ग्रह पर गायब है। विकिरण को ब्लॉक करने के लिए एक तरह से आश्रय भवनों के चारों ओर मिट्टी ढेर लगाना (मंगल ग्रह पर regolith कहा जाता है) होगा। मोटी ईंट की दीवार सरीखा निर्माण भी किया जा सकता है. एक सरल रास्ता गुफाओं को खोजने का भी हो सकता है। ज्वालामुखियों द्वारा बनाये गए निष्क्रिय लावा ट्यूब, विशेष रूप से उपयोगी हो सकते हैं। </div>
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मंगल ग्रह पर बहुत कम दबाव है, इसलिए विशेष दबाव वाले कपड़े(स्पेस स्यूट ) अनिवार्य है, इसके बिना मानव शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जैसे त्वचा और आंतरिक अंगों का भुरभुरा होना। कम दबाव के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने की जुगतों पर विचार हो रहा है और नए अनुसंधान प्रगति पर हैं जिससे मनुष्य सहज दबाव में जीवन यापन कर सके। और, ज़ाहिर है, हमें श्वसन के लिए आक्सीजन भी लेनी है । मशीनें इसमें मदद कर सकती हैं । नासा के परीक्षण में 2020 में मंगल ग्रह के लिए <b>Moxie </b>नामक एक प्रयोगात्मक डिवाइस भेजने की योजना है। यह मंगल ग्रह के वातावरण से रॉकेट ईंधन और श्वसन दोनों के लिए बाहर से ऑक्सीजन मुहैया कर सकता है। </div>
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सुदूर भविष्य के मंगल ग्रह के सैलानियों को रोजमर्रा की कठिनाइयों से निजात पाने के लिए उसे पृथ्वी की तरह बनाने की कोशिश (टेराफोर्मिंग) पर जोर होगा। ध्रुवों के तापमान का कुछ ही डिग्री के परिवर्तन से तो परिदृश्य बहुत बदल जाएगा । सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करने के लिए मंगल की कक्षा में विशाल दर्पण की तरह सौर पालों की व्यवस्था करनी होगी। ऐसी प्रौद्योगिकी मंगल ग्रह को एक ग्रीनहाउस गैस चक्र में प्रवेश कराएगी। जिससे दशकों के भीतर, तरल पानी मध्यवर्ती क्षेत्रों के आसपास समशीतोष्ण क्षेत्रों में प्रवाहित हो सकता है। यह जलीय ऑक्सीजन को तोड़ने , कुछ पौधों को विकसित करने के लिए अनुकूल होगा । जल वाष्प से अधिक विकिरण भी ब्लॉक होगा।</div>
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हम अपने ही जीन में परिवर्तन करने के लिए वायरस संचालित नयी तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं अर्थात खुद को मंगल ग्रह के लिए अनुकूलित (Pantropy) कर सकेगें। अधिक कार्बन डाइऑक्साइड युक्त साँस लेने और विकिरण को सहन करने के लिए मनुष्यों की नयी कोटि उत्पन्न की जा सकती है ।यह सब बहुत काल्पनिक लग सकता है किन्तु मानव के अंतरिक्ष में बस्तियां बसाने के अभियानों की यह तो बस शुरुआत है। मंगल मानवीय संभावनाओं का मील का पत्थर होगा !</div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-17740944781194993052015-08-29T19:40:00.000-07:002018-09-04T21:16:08.587-07:00बच्चों को दें वैज्ञानिक मनोवृत्ति का संस्कार <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b> बच्चों को दें वैज्ञानिक मनोवृत्ति का संस्कार </b><br />
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<b> अरविन्द मिश्र </b></div>
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<b>मेघदूत मैंशन, चूडामणिपुर </b></div>
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<b>तेलीतारा,बख्शा </b></div>
<b> जौनपुर -222102, उत्तर प्रदेश </b><br />
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आधुनिक ज्ञान विज्ञान की वैश्विक भाषा अंग्रेजी की एक मशहूर हिदायत है -कैच देम यंग। अर्थात उनमें किसी भी जीवनपर्यन्त सीख को बचपन से ही अंकुरित करें. बच्चों का मानस पटल एक अनलिखी स्लेट है. उनका खुला दिमाग, उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति दरअसल विज्ञान के प्रति उनकी अभिरुचि जगाने के लिए बहुत अनुकूल है. वे प्रश्न पर प्रश्न पूंछते रहते हैं. कभी ऐसे सवालों का जवाब हमारे आदि मनीषी तत्कालीन उपलब्ध सीमित ज्ञान के जरिये दिया करते थे। यमुना का पानी नीलापन लिए क्यों है? सवाल हुआ तो जवाब कालिया मर्दन के जरिये दिया गया -जिस नाग के विष के जरिये यमुना का पानी नीला हो गया -बालमन की जिज्ञासा शांत हो गयी। </div>
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ऐसे कई कथानक हैं जिनसे हमारा पौराणिक कथा साहित्य समृद्ध हुआ है। हिमालय क्यों इतना ऊँचा है और विंध्याचल नीचे बिखरा हुआ। अगस्त्य के दक्षिणायन होने की कथा का सूत्रपात हुआ। समुद्र का पानी खारा क्यों है -ऋषि निःसृत मूत्र प्रवाह का रोचक कथानक सृजित हुआ। सवाल दर सवाल आये- नित नूतन कथाओं का सृजन हुआ। मगर आज इन कहानियों की पुनर्रचना की आवश्यकता है और नए सवालों के जवाब बालमन को छूने वाली शैली में दिए जाने की जरुरत है। </div>
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<b>विज्ञान कथाओं के जरिये वैज्ञानिक मनोवृत्ति का प्रसार </b></div>
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आशय यह है कि भारत में सदियों से कहानी कहने सुनने का प्रचलन है...दादा, दादी की कहानियाँ दर पीढ़ी बच्चों ने सुनी है, भले ही उनमें ज्यादातर परीकथाएँ भी रही हों मगर वे अपने समय की मजेदार कहानियाँ रही हैं.. तब मानव का विज्ञान जनित प्रौद्योगिकी से उतना परिचय नहीं हुआ था. नतीजन परी कथाओं में पौराणिक तत्वों , फंतासी और तिलिस्म का बोलबाला था मगर वैज्ञानिक प्रगति के साथ ही नित नए नए गैजेट, आविष्कारों, उपकरणों, मशीनों की लोकप्रियता बढ़ी, लोगों के सोचने का नजरिया बदला और बच्चों को भी अब यह आभास हो चला है कि परियाँ, तिलस्म, जादुई तजवीजें सिर्फ कल्पना की चीजे हैं। आज आरंम्भिक कक्षाओं के बच्चों को भी यह ज्ञात है कि चन्द्रमा पर कोई चरखा कातने वाली बुढि़या नहीं रहती बल्कि उस पर दिखने वाला धब्बा दरअसल वहां के निर्जीव गह्वर और गड्ढे हैं. अपनी धरती को छोड़कर इस सौर परिवार में जीवन की किलकारियां कहीं से भी सुनायी नहीं पड़ी हैं.</div>
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आज मनुष्य अन्तरिक्ष यात्राएं करने लग गया है और सहसा ही अन्तरिक्ष के रहस्यों की परत दर परत हमारे सामने खुल रही है। बच्चों को इस नए परिवेश के अनुसार विज्ञान गल्पों के सृजन की बड़ी जरुरत है. आइसक आजिमोव ने कई बार बच्चों की कक्षा में विज्ञान कथा के जरिये उन्हें विज्ञान की बुनियादी बातें बताने की वकालत की है। अब अगर बच्चों को चाँद के बारे में बताना है तो क्यों नहीं शुरुआत जुले वर्न की ट्रिप टू मून किया जाय। भारतीय विज्ञान कथाकारों की भी हिन्दी में कई कथाएं हैं जिन्हे बालकक्षाओं में शामिल किया जा सकता है। इस और शिक्षाविदों के ध्यानाकर्षण की जरुरत है. </div>
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<b>विज्ञान की पत्रिकाएं और ऑनलाइन सामग्री </b></div>
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हिन्दी की कई विज्ञान पत्रिकाएं हैं खासकर विज्ञान प्रगति और विज्ञान जो हर घर में होनी चाहिए। मुझ जैसे अनेक लोगों की विज्ञान की ओर झुकाव का मुख्य कारण बचपन से घर में इन पत्रिकाओं का नियमित आना रहा है। मल्टीमीडिया के जरिये अब शिक्षण का युग शुरू हो गया है। इसके जरिये बच्चों को घर में और कक्षा में भी विज्ञान के प्रति अभिरुचि उत्पन्न की जा सकती है। आज ऑनलाइन पत्रिकाओं के संस्करण की शुरआत हो चुकी है। विज्ञान कथा पत्रिका ऑनलाइन उपलब्ध है. विज्ञान प्रगति और विज्ञान आपके लिए भी ऑनलाइन उपलब्ध। इनके ग्राहक भी स्कूल कालेज बन सकते हैं. ये पत्रिकाएं ऑफ़लाइन ग्राहक बनने पर मुफ्त ही ऑनलाइन पढ़ी जा सकती हैं. आशय यही है कि बच्चों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति लिए विज्ञानमय परिवेश उनमें विज्ञान के प्रति एक सहज अनुराग का संस्कार डालेगा। </div>
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<b>विज्ञान की पद्धति का प्रसार </b></div>
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विज्ञान के मूल में जिज्ञासा प्रश्न और संशय का होना है। बच्चों में इन प्रवृत्तियों को निरंतर प्रोत्साहित करते रहना चाहिए। यह वैज्ञानिक पद्धति से विवेचन की उनकी क्षमता को समृद्ध करेगा। लेकिन इसके लिए भी उनमें परिवेश और प्रकृति का सतत और सूक्ष्म अवलोकन करने के भाव को उकसाना चाहिए। वह जितना ही निरखे परखेगा उतने ही सवाल मन में कौंधेगें। और एक खोज /अन्वेषण का मार्ग प्रशस्त होता जाएगा। अवलोकन से प्रश्न और उनके कई संभावित जवाब ,फिर एक बुद्धिगम्य संकल्पना और उसकी जांच /परीक्षण /सत्यापन फिर निष्कर्ष -यही तो है विज्ञान की पद्धति हम तथ्य और सिद्धांतों तक जा पहुंचते है -अन्वेषण हो पाते हैं। इस वैज्ञानिक पद्धति का संस्कार बच्चे में डाला जाना जरूरी है. अन्यथा हम वैज्ञानिक मनोवृत्ति का व्यापक प्रसार करने में कभी सफल नहीं हो पायेगें! </div>
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<b>प्रकृति निरीक्षण </b></div>
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हमारी मौजूदा शिक्षा प्रणाली में प्रकृति निरीक्षण के लिए कोई स्थान नहीं रह गया है। बच्चों में पशु पक्षी अवलोकन, प्राकृतिक इतिहास (नेचुरल हिस्ट्री कलेक्शन ) व्योम विहार जैसे शौक की ओर उन्मुख करने का कोई प्रयास नहीं रहा है। आज के स्कूली छात्र हमारे चिर परिचित परिंदों पशुओं तक नहीं पहचानते। एक ब्रितानी बच्चे का अपने प्रमुख पशु पक्षियों को लेकर सामान्य ज्ञान बहुत अच्छा है। आज हमारा वन्य जीवन तेजी से विनष्ट हो रहा है.पशु पक्षी विलुप्त हो रहे हैं -चीता भारतीय जंगलों से कबका विलुप्त हो चुका है। अगर हम बच्चों में इन विषयों के प्रति जागरण नहीं लाते तो उनसे अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि आगे चलकर वे वन्य जीवों की रक्षा के प्रति जिम्मेदारी उठायेगें! </div>
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<b>ज्वलंत मुद्दों के प्रति संवेदीकरण </b></div>
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आरंभिक कक्षाओं से ही बच्चों को स्थानिक एवं वैश्विक मुद्दों के प्रति संवेदित करने के लिए उनके पाठ्य पुस्तकों में सरल अध्याय होने चाहिए -गद्य और पद्य दोनों विधाओं में। पर्यावरण ,बढ़ती जनसँख्या, मौसम में बदलाव, घटते संसाधन और बढ़ती ऊर्जा जरूरते, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत, कृत्रिम बुद्धि आदि विषय हैं जिनमें बच्चों को संवेदित होना जरूरी है ताकि इन मुद्दों पर उनकी चिंतन प्रक्रिया आरम्भ हो सके. बांग्लादेश में अभी विगत अगस्त माह में बच्चों को बीमारियों और मौसम के बदलाव विषय पर जानकारी देकर उनके ज्ञान परीक्षण की रिपोर्ट प्लास वन ऑनलाइन पत्रिका में छपी (http://journals.plos.org/plosone/article?id=10.1371/journal.pone.0134993)है। उनके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के अनुसार कक्षा दस के लिए मैनुअल तैयार कर बच्चों पढ़ाया गया। उन्हें भविष्य के लिए तैयार किया जा रहा है। </div>
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भारत के लिए इसी तरह ज्वलंत मुद्दों पर पाठ्यक्रम तैयार किये जा सकते हैं और विज्ञान संचार को समर्पित विज्ञान परिषद जैसी संस्थाओं को इस ओर शिक्षाविदों,विज्ञान संचारकों के सहयोग से पहल करनी चाहिए। </div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-8448905101023789612015-06-10T17:45:00.000-07:002015-06-10T17:51:48.251-07:00नीली गोली के बाद अब गुलाबी गोली को हरी झंडी! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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पुरुषों के बेहतर प्रदर्शन के लिए मददगार विख्यात नीली गोली (वियाग्रा) के बाद अब अमेरिकन महिलाओं को भी जल्द ही महिला यौन रोग के उपचार के नाम पर पहली बार " गुलाबी वियाग्रा ' मुहैया हो जाएगी जिसे कामेच्छा बढ़ाने की (विवादास्पद गोली ) का खिताब मिल जाएगा। एफडीए के एक पैनल द्वारा इसे फिलहाल ट्रायल की मंजूरी दे दी गयी है। 18-6 वोट से , खाद्य एवं औषधि प्रशासन के विशेषज्ञों के एक पैनल ने इस प्रयोगात्मक दवा <a href="http://en.wikipedia.org/wiki/Flibanserin"><b>फ्लिबेनसरिन </b>( flibanserin) </a>को हरी झंडी दे दी है.मगर इसके प्रयोग से निम्न रक्तचाप , चक्कर आना और बेहोशी आदि के आनुषंगिक प्रभावों से बचने के लिए सावधानियां भी सुझाई गयी हैं।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4jfEuXkxVdVFeLqoIqhJzpoINRElnm7OgAiXIOJPGxbXSpSWQz_6jX5Walprui6qXYFvny5BpN2Zv0-RVyZ7DyCgVUray_R5EZmuEqH-0YTCPZcOp1G5wXXzFU0vruIrV_El7lTHGOvU/s1600/05DRUG-master675.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="232" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4jfEuXkxVdVFeLqoIqhJzpoINRElnm7OgAiXIOJPGxbXSpSWQz_6jX5Walprui6qXYFvny5BpN2Zv0-RVyZ7DyCgVUray_R5EZmuEqH-0YTCPZcOp1G5wXXzFU0vruIrV_El7lTHGOvU/s320/05DRUG-master675.jpg" width="320" /></a></div>
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जैसे पुरुषों में वियाग्रा से यौनक्रिया के प्रदर्शन में सुधार हुआ उसी तरह से यह गोली महिलाओं के सेक्स जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि कर सकती है। <b>लेकिन एक मूल अंतर यह है जहां वियाग्रा पुरुष अंग में रक्त प्रवाह को बढ़ाकर यौन क्रिया के निष्पादन क्षमता एवं समय को मात्र "हाइड्रॉलिक" तरीके से बढ़ाता है 'गुलाबी गोली' महिला कामुकता में अप्रत्यक्ष तरीके से प्रभाव डालती है. यह मस्तिष्क के कुछ रसायनों के स्रवण को प्रभावित करती है।</b> विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार महिला को सोते समय एक 100 मिलीग्राम की गोली लेनी होगी। इससे सुखमूलक रसायन डोपामाइन का स्रवण जहां बढ़ेगा वही संतुष्टि के रसायन सेरेटोनिन का स्रवण कम हो जाएगा!<br />
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इस दवा की मालिक कंपनी - उत्तरी कैरोलिना स्थित एक फार्मास्यूटिकल्स के लिए यह बड़ी जीत है। अमेरिका के महिला राष्ट्रीय संगठन के अध्यक्ष टेरी ओ 'नील ने कहा कि <b>"मुझे लगता है कि यह गोली महिलाओं की कामुकता की बेहतर समझ और एक स्वस्थ तरीके से उनके द्वारा अपनी कामुकता के नियमन की दिशा में एक बड़ा कदम है.</b>" वैज्ञानिकों और दवा कंपनियों में ब्लॉकबस्टर दवा वियाग्रा की सफलता के पश्चात महिलाओं की यौन समस्याओं का इलाज करने के लिए एक गोली के विकास और विपणन पर वर्षों से प्रयास चल रहे थे. <br />
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फ्लिबेनसरिन के समर्थकों द्वारा पुरुषों के लिए वियाग्रा सहित कई यौन - रोग दवाओं को मंजूरी देने किन्तु कामेच्छा की कमी से पीड़ित अमेरिकी महिलाओं की एफडीए द्वारा लगातार उपेक्षा की शिकायत की जाती रही है. आलोचकों द्वारा यौन बराबरी के बजाय दुहरे मानदंड का भी आरोप लगाया जा रहा था। जबकि दवा के विरोधियों का दावा था कि एक भावनात्मक मुद्दे के नाम पर दवा कंपनी एक अनावश्यक गोली बाज़ार में उतार कर मुनाफा कमाना चाहती है। </div>
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यद्यपि अभी गुलाबी गोली को व्यापक स्तर पर इस्तेमाल की अंतिम मंजूरी नहीं मिली है किन्तु ऍफ़ डी ए के अनुमोदन के उपरान्त यह महिलाओं में रजोनिवृत्ति के पहले <b>हीन यौनेच्छा एवं अन्य यौन विकारों </b> के उपचार में कारगर होगी जैसा की अमेरिका की लगभग ४८ लाख महिलायें इसकी शिकार हैं. महिला स्वातंत्र्य की दिशा में भी इस कदम को देखा जा रहा है! </div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-67051191577821987522015-05-22T07:56:00.002-07:002015-05-22T08:01:48.171-07:00भारतीय भूकम्पों का यहाँ छुपा है राज! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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नेपाल के भूकम्प ने वैज्ञानिकों में भारतीय महाद्वीप के खिसकने में एक नयी नई अभिरुचि उत्पन्न कर दी है। भूवैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा अभी <b> 4 मई 2015 के जर्नल नेचर जियोसाइंस </b>में प्रकाशित एक अध्ययन में भारत के महाद्वीप के 8 करोड़ साल पहले यूरेशिया की ओर इतनी तेजी से चले जाने एक विवरण दिया गया है. </div>
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<b>इस चित्रकार -कृति में दुनिया १४ करोड़ वर्ष पहले कैसी थी यह दर्शाया गया है जब भारत एक विशाल भूभाग गोंडवाना का हिस्सा था-दाहिनी ओर आज की दुनिया है। आभार: <a href="http://earthsky.org/earth/mystery-of-indias-rapid-continental-drift-eurasia?utm_source=EarthSky+News&utm_campaign=6699228d97-EarthSky_News&utm_medium=email&utm_term=0_c643945d79-6699228d97-393714041">अर्थस्काई </a></b></div>
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14 करोड़ से भी अधिक वर्ष पहले, भारत दक्षिणी गोलार्ध के गोंडवाना नामक एक विशाल महाद्वीप का हिस्सा था। लगभग 12 करोड़ साल पहले भारत का इंगित हिस्सा अलग हो गया और प्रति वर्ष लगभग पांच सेंटीमीटर की रफ़्तार से उत्तर की ओर पलायन करना शुरू कर दिया। फिर, 8 करोड़ साल पहले, इसने अचानक प्रति वर्ष लगभग 15 सेंटीमीटर की रफ़्तार पकड़ी और 5 करोड़ साल पहले यूरेशिया से आ टकराया जिसने हिमालय को जन्म दिया। </div>
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भूवैज्ञानिकों ने इस तीव्र रफ़्तार की व्याख्या की पेशकश की है जिसके अनुसार भारत दो सबडक्शन जोन के संयोजन के खिंचाव से उत्तर की ओर खींच लिया गया था - यह टेक्टोनिक प्लेटों पर दुहरे खिंचाव के कारण हुआ । भूवैज्ञानिकों ने इस नए मॉडल में हिमालय से प्राप्त मापों को भी शामिल किया है जिससे एक "डबल सबडक्शन" प्रणाली के होने का पुष्ट प्रमाण मिला है जिससे यही कोई 8 करोड़ साल पहले भारतीय भूभाग के यूरेशिया की ओर उच्च गति पर बहाव का आधार मिल गया। </div>
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भूगर्भिक रिकार्ड के आधार पर, इस खिंचाव से भारत गोंडवाना से अलग हो 12 करोड़ वर्ष पहले टूटना शुरू हुआ. फलतः भारत टेथिस महासागर में भटकते हुए ऊपर उठता गया । 8 करोड़ साल पहले, यह अचानक प्रति वर्ष 150 मिलीमीटर की दर से ऊपर उठा और यूरेशिया से टकरा गया. अफ्रीका मेडागास्कर और ऑस्ट्रेलिया से अलग होने के बाद भारत बहुत तेजी से ऊपर बढ़ा था .. यूरेशिया की ओर!</div>
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अभी यह खिसकाव चल ही रहा है ! मतलब भूकम्पों का अाना अभी थमेगा नहीं! </div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-74188236529527149932015-05-06T19:17:00.000-07:002015-05-25T04:23:04.854-07:00 बेकरारी से इंतज़ार है उस आदिम गंध की!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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आस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी कॉमनवेल्थ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल आर्गनाइजेशन (<a href="http://www.csiro.au/en/About">CSIRO</a>) ने कई अविष्कार अपने खाते में दर्ज किये हैं.जिसमें वाई फाई भी एक है। और एक "पेट्रिकोर" भी है -यह नाम पहले कभी सुना? आईये हम आपका ज्ञानार्जन करते हैं. आपने बरसात की बूंदों के साथ ही धरती से निकलती एक आदि गंध का अहसास किया है न? आखिर कौन इस ख़ास गंध से अपरिचित होगा? वह भीनी भीनी सी गंध जो बरसात होते ही नथुनो में आ समाती है और तन मन को एक आंनददायक अनुभूति से भर देती है। यही पेट्रीचोर है. जी हाँ इस गंध का यही नामकरण वैज्ञानिकों ने किया है। </div>
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दरअसल यह एक तैलीय गंध है जो तप्त धरती से बरसात की पहली आर्द्रता से जन्मती है। और इसके निकलने के ठीक बाद भरपूर वर्षा शुरू हो जाती है. मनुष्य में इस आदिम गंध के प्रति एक गहन लगाव है जो उसे उसके पूर्वजों से जैवीय विरासत के रूप में मिली है। वर्षा पर आजीविका- निर्भर हमारे पूर्वज के लिए यह गंध किसी जीवनदान से कम नहीं थी। शब्द पेट्रीचोर यूनानी भाषा के पेट्रा (पत्थर) और एचोर (मिथकीय देवों का रक्त ) से मिलकर बना है। मगर "पत्थरों में देवों के रक्त" की इस यूनानी कथा का वैज्ञानिक पक्ष क्या है? </div>
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सबसे पहले आस्ट्रेलिया की उक्त एजेंसी के वैज्ञानिक इसाबेल ज्वाय बीयर और रिचर्ड थॉमस थॉमस ने ७ मार्च 1964 को "Nature of Argillaceous Odour" शीर्षक से नेचर में छपे अपने शोध पत्र में इसकी चर्चा की थी। यह ख़ास और मनभावन गंध तो पहले से ही लोगों को पता थी मगर इसके उत्पन्न होने की क्रियाविधि क्या थी लोग अनभिज्ञ थे। यह "प्रथम वर्षा की गंध" थी या फिर मिट्टी की गंध, कयास लगाये जाते थे।</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPRz5_qkXxhFOTx27fSnyLhIa4_2p_5H4lKOB229F7I6aRsaeub-GVRohINr4XSkEtMJOLNHmmkhFm_sJ0nExgaVAStIHsbCvcRwF6lYJrKb4lDdGG9A2aX5CzxKzAcwZxkyIWdw79dzY/s1600/richard-thomas-e1429215020306.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPRz5_qkXxhFOTx27fSnyLhIa4_2p_5H4lKOB229F7I6aRsaeub-GVRohINr4XSkEtMJOLNHmmkhFm_sJ0nExgaVAStIHsbCvcRwF6lYJrKb4lDdGG9A2aX5CzxKzAcwZxkyIWdw79dzY/s1600/richard-thomas-e1429215020306.png" width="254" /></a></div>
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<b>ज्वाय बीयर के साथ रिचर्ड थॉमस -पेट्री</b><b>कोर पर चर्चा </b></div>
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चित्र सौजन्य: <a href="http://www.csiro.au/en/About">कॉमनवेल्थ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल आर्गनाइजेशन (CSIRO)</a></div>
<b>आपको ताज्जुब होगा यह जानकर कि भारत के इत्र व्यवसाय को इसकी अच्छी खासी खोज खबर थी। यही नहीं यहाँ "मिट्टी का अतर" इत्र के शौकीनों में मुंहमांगे दामों पर बिकता था. मगर इसके विज्ञान से लोग अपरिचित थे। हमारी इत्र इंडस्ट्री इसका संघनन कैसे करती रही होगी इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है।हाँ उनके द्वारा इस गंध को चन्दन के तेल में जज्ब कराकर रखा जाता था। </b>और अब भी यह इत्र भारत में मिलता है जानकारी नहीं हो पा रही है। हो सकता है आपमें से किसी को पता हो! अगर है तो कृपया बतायें जरूर!<br />
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प्रसन्नता की बात है कि कॉमनवेल्थ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल आर्गनाइजेशन ऑस्ट्रेलिया ने अब प्रयोगशाला में तैयार सफलता पाई है। गर्म तप्त चट्टान के टुकड़ों के आसवन से एक पीले तैलीय पदार्थ को प्राप्त किया गया और यही पेट्रीकोर है और यही इस ख़ास गंध का स्रोत है. बेहद तप्त चट्टानें जब मौसम की आर्द्रता अवशोषित करती हैं तभी यह तैलीय पदार्थ संघनित होने लगता है और गंध वातावरण में तिर उठती है। यह वर्षा की सूचक है.<br />
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इस तेल के उदगम में आइरन आक्साईड की भूमिका है। अन्य विवरण <a href="http://earthsky.org/earth/whats-that-smell-in-the-air-when-its-about-to-rain">यहाँ</a> देख सकते हैं! <br />
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-9886485687687300812015-04-04T08:15:00.002-07:002015-04-04T08:15:29.826-07:00रक्तिम चन्द्रग्रहण चौकड़ी का तीसरा चाँद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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जब सिलसिलेवार चार खग्रास चंद्रग्रहण यानि पूर्ण चंद्रग्रहण का अवसर आता है तो इसे चन्द्र चौकड़ी के नाम से जाना जाता है। पिछले वर्ष माह अप्रैल में पूर्ण चंद्रग्रहणों की चौकड़ी का आरम्भ हुआ था ,फिर सितम्बर माह और अब आज कड़ी का तीसरा चंद्रग्रहण दिखा जो इस सदी का सबसे अल्प अवधि का पूर्ण चन्द्र ग्रहण है। अगला पूर्ण चंद्रग्रहण आगामी सितम्बर माह में दिखेगा। इस बार बस पाँच मिनट की पूर्णता और कुछ ही समय में मोक्ष भी.</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEje0V5M6jTszu8Hwr_QqM3UIw25-L0Cq5700bZCtxoQn7PX_w0JvAAXLY_v2GL4iaDgSmdYD1NWHBLKemqsum4KE0-w0xVYSoeNsFcayt1CjfTMy_8jHDSEOUqBlk-31fa6k20SdsaNxlk/s1600/eclipse-lunar-2004-Fred-Espenak.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEje0V5M6jTszu8Hwr_QqM3UIw25-L0Cq5700bZCtxoQn7PX_w0JvAAXLY_v2GL4iaDgSmdYD1NWHBLKemqsum4KE0-w0xVYSoeNsFcayt1CjfTMy_8jHDSEOUqBlk-31fa6k20SdsaNxlk/s1600/eclipse-lunar-2004-Fred-Espenak.jpg" height="320" width="320" /></a></div>
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<b> ऑस्ट्रेलिया में ऐसा दिखा रक्त चन्द्र </b></div>
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हालांकि भारत में यह अरुणांचल प्रदेश में अच्छी तरह दिखा लेकिन भारत के शेष पूर्वी और कुछ पश्चिमी भागों में भी यह आंशिक ही दिख पाया। दरअसल चंद्रोदय के समय ही यह आंशिक ग्रहण लिए दिखा। ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के पश्चिमी प्रांतों में पूर्ण ग्रहण दिखा है।अमेरिका के पश्चिमी प्रांतों में यह तड़के सूर्योदय के पहले और ऑस्ट्रेलिया,न्यूजीलैंड और पूर्वी एशियाई देशों -भारत सहित शाम को चंद्रोदय ही ग्रहण के साथ हुआ हालांकि यह आंशिक विमोचन की अवस्था का ग्रहण था। </div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRzfMQoVrk8uN1St6bByDMJB2JDiovRGH79o1xnxR26qwT7otKSftraxkWvIMzRaYqS1DWkUYwy8d7TAPOvzu9p2hJahYVLq8DcUMZ_J46FSuet3odQKV4vbYxKeJ8O_LfjxAO_29Zh-k/s1600/lunar-eclipse-penumbra-umbra.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRzfMQoVrk8uN1St6bByDMJB2JDiovRGH79o1xnxR26qwT7otKSftraxkWvIMzRaYqS1DWkUYwy8d7TAPOvzu9p2hJahYVLq8DcUMZ_J46FSuet3odQKV4vbYxKeJ8O_LfjxAO_29Zh-k/s1600/lunar-eclipse-penumbra-umbra.jpg" /></a></div>
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<b> जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथ्वी आती है तो होता है सम्पूर्ण चंद्रग्रहण </b></div>
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जब पूर्ण चंद्रग्रहण होता है तो सूरज की रोशनी का रक्तिम अंश ही धरती के वातावरण जो चौतरफा 80 किमी की ऊंचाई लिए होता है से छन और परावर्तित होकर चन्द्रमा तक पहुचती है और इसलिए चाँद ताम्बई लालिमा लिए दीखता है. इसे ब्लड मून का नामकरण पादरियों ने दिया है जो इसे किसी बड़ी घटना की आशंका मानते हैं जबकि खगोलविद इसे एक सामान्य खगोलीय घटना ही मानते हैं! </div>
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ग्रहणों से कई तरह के अन्धविश्वास जुड़े हुए हैं जैसे ग्रहण दो दैत्यों द्वारा राहु केतु द्वारा सूर्य और चन्द्रमा का भक्षण कर लेने के कारण होता है। इस अवधि में कुछ खाना पीना नहीं चाहिए। मगर ऊपर का चित्र यह स्पष्ट करता है की ग्रहण एक सामान्य खगोलीय घटना है बस! </div>
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चित्र आभार:<a href="http://earthsky.org/tonight/shortest-total-lunar-eclipse-of-the-century-on-april-4-2015">अर्थस्काई </a></div>
</div>
<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-11300110948071132382015-03-16T06:52:00.000-07:002015-03-16T08:13:39.119-07:00सोलर इम्पल्स 2: मनुष्य के आकांक्षाओं की अंतहीन उड़ान! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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राईट बंधुओं द्वारा गैस संचालित विमान की पहली उड़ान के सौ साल से भी अधिक समय के बाद फिर एक युगांतरकारी घटना घटी है. स्विस अन्वेषियों ने पूरी तरह सौर ऊर्जा से संचालित वायुयान को आसमान की उंचाईयों में ले जाने में ही सफलता नहीं पायी बल्कि इससे वे विश्व भ्रमण पर भी निकल चुके हैं। इस समय जबकि ये पंक्तियाँ लिखी रही हैं <b>ऐंड्रे बोस्चबर्ग </b>की कप्तानी में यह विमान भारत में आ पहुंचा है और अहमदाबाद के एयरपोर्ट से वाराणसी के बाबतपुर एयरपोर्ट के लिए रवाना होने वाला है .यहां अचानक मौसम ख़राब हो जाने और बादलों से आच्छादित आसमान के चलते सौर ऊर्जा चालित इस विमान का सहज संचालन बाधित हुआ है किन्तु मनुष्य की जिजीविषा को भला कौन पराजित कर पाया है! ऐसी सम्भावना है कि यह सौर विमान नाम <b>सोलर इम्पल्स 2</b> है मंगलवार यानी 17 मार्च 2015 को वाराणसी एअरपोर्ट पर पहुंचेगा।</div>
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<br /></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOBuQ1P5cRfh8Xvi6By43aZgxjDc1oitjyHEE_745maKQXwSFg2CFv_X4aqU7LfBCwbiJV2M5Zx3gmD2ndQ9JPzKY90lGHGu3IWDwrUmWFIvJ-1kIebWxW0PqmEbcnYGkJYCXszuUaZkI/s1600/News-Map-SolarImpulse-Flight.adapt.768.1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOBuQ1P5cRfh8Xvi6By43aZgxjDc1oitjyHEE_745maKQXwSFg2CFv_X4aqU7LfBCwbiJV2M5Zx3gmD2ndQ9JPzKY90lGHGu3IWDwrUmWFIvJ-1kIebWxW0PqmEbcnYGkJYCXszuUaZkI/s1600/News-Map-SolarImpulse-Flight.adapt.768.1.jpg" height="388" width="640" /></a></div>
<br />
<div style="text-align: center;">
<b> सौर यान का मार्ग </b></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
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यह ओमान से उड़कर २८हजार फ़ीट की ऊँचाई तक जा पहुंचा और अहमदाबाद एअरपोर्ट पर अपनी मौजूदगी दर्ज की। यहाँ से बनारस और फिर चीन तथा फिर प्रशांत महासागर के ऊपर से कई दिनी यात्रा करके हवाई द्वीप पहुंचेगा। यह पूरी तरह पारम्परिक ईधन रहित है. चार इंजिन है जो विद्युत संचालित हैं और देने सोलर पैनल से युक्त हैं जहाँ से दिन की यात्रा के समय सौर ऊर्जा इनके जरिये बैटरियों में संचित होती रहती है और आवश्यकतानुसार विद्युत में तब्दील होती रहती है. पूरी यात्रा पांच महीने की है और इस दौरान यह अद्भुत यान <span itemprop="body">33,800 किमी की यात्रा तय कर लेगा। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span itemprop="body">सौर विमान के स्वप्नद्रष्टा बर्ट्रेंड पिकार्ड मनोविज्ञानी भी हैं और वे अक्सर भविष्य को वर्तमान तक खींच लाने की सोच में रहते हैं। उन्हें ईधन रहित सौर संचालित विमान की सूझ तब कौंधी जब वे सह पायलट ब्रायन जोन्स के साथ गुब्बारों से कई द्वीपों और शहरों के ऊपर से गुज़र रहे थे बिल्कुल जूल्स वेर्ने के "फाइव वीक्स इन अ बैलून" की ही तर्ज पर। किन्तु ईधन संचालित यात्राओं में ईधन की आवश्यकता उन्हें एक बड़ा अवरोध लगा। उन्हें लगा कि ईधन पर निर्भरता मनुष्य के विकास की एक बड़ी बाधा है। फिर क्या था वे एक ऐसे विमान के अन्वेषण में जुट गए कोई भी पारम्परिक ईधन इस्तेमाल न हो। सौर विमान के रूप में उनकी कल्पना साकार हो उठी है। </span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2ImqxyUUz2PrpOacJoIcHfElEn_p21XQgWHgQoyTBymMU4agS0I1ep9N0ITCiOqxMy2i4JkV85NdmQ7CvoPfVRcuFi3A-hbz0-TBzVoGA3gJMK-_MbewYpehbLaf5AUsBqxFDy3ZhOlM/s1600/Graphic_SolarImpulse_white600.adapt.768.1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2ImqxyUUz2PrpOacJoIcHfElEn_p21XQgWHgQoyTBymMU4agS0I1ep9N0ITCiOqxMy2i4JkV85NdmQ7CvoPfVRcuFi3A-hbz0-TBzVoGA3gJMK-_MbewYpehbLaf5AUsBqxFDy3ZhOlM/s1600/Graphic_SolarImpulse_white600.adapt.768.1.jpg" height="640" width="502" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span itemprop="body"><b>सोलर इम्पल्स 2 : एक रेखाचित्र </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span itemprop="body">अपने अभियान में पिकार्ड को <b>स्विस फ़ेडरल इंस्टीच्यूट आफ टेक्नलॉजी </b>से मदद मिली। अभियान से जुड़े इंजीनियरों को जल्दी ही समझ में आ गया कि सौर ऊर्जा संचालित विमान का आकार सोलर पैनलों की जरुरत के मुताबिक़ बहुत बड़ा होना चाहिए किन्तु वजन बहुत कम। विमान हर सूर्योन्मुखी सतह पर सोलर सेल लगाये जाने की जुगत समझ में आयी -कुल १७ हजार सोलर सेल्स मनुष्य के बाल की मोटाई के बराबर लगाये गए। डैनों की लम्बाई इस तरह २३६ फ़ीट जा पहुँची जो बोइंग </span><span itemprop="body"><span itemprop="body">787-8 से भी अधिक है</span>। यान बहुत हलके तत्व का है किन्तु अकेले बैटरियों के </span><span itemprop="body"><span itemprop="body">235 किलो भार सहित कुल यान का भार </span></span><span itemprop="body">2,268 किलो है। यह अपेक्षानुसार हल्का तो नहीं है किन्तु फिलहाल कामचलाऊँ है. </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6gE7R0CyUMkh-ortFQTT5SpIdqTSkIlA4XbvxUpa8DGvfUwuFlKpjkm39-360H4P5oGt9v2dAQHBlkY9SHlOSPesax3sr9losce7_FF87UePcPddhRxhvDwgUVX3WbdGI1rQDY2KBSZE/s1600/89167.adapt.768.1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6gE7R0CyUMkh-ortFQTT5SpIdqTSkIlA4XbvxUpa8DGvfUwuFlKpjkm39-360H4P5oGt9v2dAQHBlkY9SHlOSPesax3sr9losce7_FF87UePcPddhRxhvDwgUVX3WbdGI1rQDY2KBSZE/s1600/89167.adapt.768.1.jpg" height="265" width="400" /></a></div>
<span itemprop="body"><b> सौर ऊर्जा संचालित विमान के साथ हैं स्विस खोजकर्ता बेरट्रैंड पिकार्ड (बाएं) और ऐंड्रे बोर्श्चबर्ग </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span itemprop="body">मनुष्य के आकांक्षाओं की यह नयी उड़ान पंख पसार </span></b><span itemprop="body"><b><span itemprop="body">अब </span>आसमान की ऊंचाइयां छू रही है! </b></span></div>
<span itemprop="body"><span style="background-color: magenta;"><b> <span style="background-color: cyan;">चित्र सौजन्य: <a href="http://news.nationalgeographic.com/2015/03/150308-solar-impulse-flight-pilot-circumnavigate-world-piccard-swiss/?utm_source=NatGeocom&utm_medium=Email&utm_content=pom_20150315&utm_campaign=Content">नेशनल जियोग्राफिक </a></span></b></span> </span><br />
<span itemprop="body"> </span> </div>
<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-83321938446608545532015-02-05T05:08:00.000-08:002015-02-05T05:50:01.093-08:00खसरे का खौफ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
अमेरिका में खसरा लौट आया है जो उन सभी देशों के लिए चेतावनी हैं जहाँ से अमेरिका में लोगों की काफी तादाद में आवाजाही बनी रहती है. 13 अन्य कैलिफोर्निया में रोगियों की संख्या 100 पहुँच गयी है. खसरे को हम छोटी माता के रूप में जानते पहचानते हैं. आईये देखते हैं यह कैसे इतनी तेजी से फैल रहा है, और क्यों यह इतना संक्रामक है?</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitib8NAh-xnKMAe4HcJ53AqqRgMfoLLZgblQK3bzHbC6fyABbx48HOoeukqRoPgH_eAjzwyv1G2iKEKJy0aZWNU4wnATtVRG05f1WaJTYZyvENa_ZS5TTQFw1JVFzA76NWnDldWODjl50/s1600/measles2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitib8NAh-xnKMAe4HcJ53AqqRgMfoLLZgblQK3bzHbC6fyABbx48HOoeukqRoPgH_eAjzwyv1G2iKEKJy0aZWNU4wnATtVRG05f1WaJTYZyvENa_ZS5TTQFw1JVFzA76NWnDldWODjl50/s1600/measles2.jpg" height="320" width="317" /></a></div>
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<b> ऐसा दिखता है खसरे का वायरस </b><br />
डॉ रॉबर्टो कैटानिओ , जैव रसायन और आणविक जीव विज्ञान के एक प्रोफेसर हैं जो 30 साल से खसरा वायरस पर अध्ययन कर रहे हैं । उनके अनुसार - "यह हम जानते हैं कि सबसे अधिक संक्रामक वायरस है," । खसरा इन्फ्लूएंजा की श्रेणी का ही एक श्वसन वायरस है। यह वायरस प्रकार के फेफड़ों के सतह (epithelia) पर आक्रमण करता है। फेफड़ों के बाद, यह प्रतिरक्षा सेल पर काबू करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली में घुसपैठ कर जाता हैं। "यह वहाँ प्रतिकृतियां बनाता चलता है और पैशाचिक तरीके से खाँसी के साथ बाहर आता है।" "खसरा वायरस श्वासनली का उपयोग एक लांचिंग पैड की तरह करता है और खांसी या छींक के जरिये बड़ी मात्रा में हवा के माध्यम से खसरा वायरस फैलता है । मेजबान से बाहर जाने के बाद, खसरा वायरस दो घंटे के लिए जीवित रहता है । अगर यह एक व्यक्ति को हुआ और अगर,कारगर बचाव नहीं कर रहे हैं, जो आस-पास के 90% लोग भी संक्रमित हो जाएगा।<br />
<b>अमेरिका में खसरे के लौटने का मुख्य कारण है वहां बहुत से माता पिता का बच्चों को टीका न लगवाकर उनमें कुदरती प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने देने की मानसिकता का होना! चूँकि यह एक विषाणु जनित रोग है अतः टीका ही इसका सर्वोत्तम कारगर उपाय है। बच्चों को खसरे का टीका अनिवार्य रूप से लगवाएं। </b><br />
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-72456782685448083882014-11-15T21:01:00.000-08:002014-11-15T21:01:07.094-08:00अरबों किमी दूर धूमकेतु पर मानव की विजय पताका -मानव इतिहास का एक महान पल! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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तमाम अनिश्चितताओं को लेकर जब यूरोपीय अंतरिक्ष मिशन का रोसेटा( Rosetta) अभियान दस वर्ष पहले दिक्काल की अंनंत गहराईयों में उतरा था तो किसे पता था कि यह मानव इतिहास की इबारत में एक महान पल जोड़ेगा। रोसेटा एक परिक्रमा स्पेसक्राफ्ट और एक लैंडर मॉड्यूल Philae दोनों के साथ धूमकेतु 67P / Churyumov-Gerasimenko (67P) का एक विस्तृत अध्ययन करने के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा बनाया गया एक रोबोट अंतरिक्ष यान है।रोसेटा धूमकेतु की कक्षा के परिभ्रमण लिए पहला अंतरिक्ष यान का उपक्रम है जो एक एरियन -5 रॉकेट पर 2 मार्च 2004 को शुरू किया गया था।<br /><br />यह एक धूमकेतु के सबसे विस्तृत अध्ययन के लिए डिज़ाइन किया गया है जो जर्मनी में यूरोपीय अंतरिक्ष संचालन केन्द्र (ESOC) से नियंत्रित किया जाता है। यह अंतरिक्ष यान धूमकेतु और आरंभिक सौर प्रणाली की बेहतर समझ विकसित करेगा ऐसी आशा की जाती है।अंतरिक्ष यान पहले 2007 में मंगल ग्रह के गुरुत्व से झटका खाकर ( स्विंग से - flyby) अंतरिक्ष की अनंत गहराई में छलांग लगा बैठा था और अपने रास्ते के दो क्षुद्र ग्रहों के गुरुत्व से निकलते ( flyby ) हुए आगे बढ़ा.. पुनः 2867 सितंबर में क्षुद्रग्रह स्टीनस ,पुनः 2008 और जुलाई 2010 में ल्यूटेटिया से गुजरा। 20 जनवरी 2014 को 31 महीने की हाइबरनेशन मोड से बाहर ले जाया गया था। इस अभियान में 2,000 लोगों ने में मिशन में सहायता प्रदान की है। </div>
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<b> Philae लैंडर का अवतरण </b></div>
<br /> रोसेट्टा के Philae लैंडर यानि अवतरण मॉड्यूल सफलतापूर्वक १२ नवंबर 2014 को धूमकेतु 67P, के नाभिक पर उत्तर गया हालांकि यह पूर्व निश्चित स्थल से दूर उतरा और उतरने में दो बार उछाल (बाउंस) लिया और एक ऊंची पहाड़ी के पीछे जाकर स्थिर हुआ। जिससे इसका सोलर पैनल पहाड़ी की चोटी की छाया में आ गया और बैटरी रिचार्ज में दिक्कत आ गयी है। मगर तबतक इसने जरूरी आंकड़े धरती तक भेज दिए हैं जिनका विश्लेषण हो रहा है। खगोलविद एलिजाबेथ पियर्सन के अनुसार Philae लैंडर का भविष्य अनिश्चित है, मगर परिक्रमा कर रहा मिशन यान सक्रिय रहेगा। <br /><br />चार अरब किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक इस मानव निर्मित अंतरिक्ष का जा पहुंचना और अपने मिशन में कामयाब होना मानवता की एक बड़ी सफलता है। अगले वर्ष जिस धूमकेतु पर अवतरण हुआ है वह हमारे सौर मंडल में नजदीक आ जाएगा। विज्ञान कथाओं में धूमकेतुओं को अंतरिक्ष के उड़न खटोलों की संज्ञा दी गयी है जो बिना खर्चे ही सौर मंडल के आख़िरी छोर तक आगामी समानव अंतरिक्ष भ्रमण का मार्ग सुझायेगें। <br /></div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-3344537725567823062014-10-06T06:02:00.002-07:002014-10-06T06:04:52.670-07:00इबोला के बारे में वैज्ञानिकों ने यह बोला <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>लक्षण:</b> यदि कोई वायरस के संपर्क में आ गया है तो लक्षण दो से 21 दिनों के बीच सकता है. जो है बुखार, मांसपेशियों में दर्द, सिर दर्द, गले में खराश, उल्टी और दस्त। <br />
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<b>संक्रामकता</b> : उपर्युक्त लक्षण जिस बोला ग्रसित मरीज में प्रगट होगा तभी वह संक्रामक होगा . यदि वायरस से संक्रमित व्यक्ति में उक्त लक्षण प्रगट नहीं है तो वायरस दूसरे व्यक्ति को संक्रमित नहीं कर सकता भले ही उसके रक्त में वायरस की मौजूदगी हो। एक ही हवाई जहाज या रेल बर्थ पर होने के बावजूद भी यदि लक्षण प्रगट नहीं है तो दूसरे सहयात्री संक्रमित नहीं हो सकते जिसका अर्थ है कि लक्षण प्रगट होने के पहले वायरस अन्य व्यक्ति को संक्रमित नहीं कर सकता.<br />
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<b>संक्रामक</b> <b>क्षमता</b> आर जीरो (R0) :यह वह फार्मूला है जिसका अर्थ है कि अमुक वायरल बीमारी की संक्रामकता क्षमता क्या है या उसके फैलने की तीव्रता क्या है जिसे आर शून्य कहा जाता है जिसका एक सूत्र है "संक्रामक रोगों के लिए अनुमानित प्रजनन संख्या.". इबोला का आर ओ 2 है मतलब इसके फैलने की तीव्रता कम है -और स्पष्ट कर दूँ यह बताता है कि किसी एक इबोला रोगग्रस्त से दो लोगों तक ही यह बीमारी पहुँच सकती है जबकि खसरा R0 18 है.</div>
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<b> विभिन्न वायरल बीमारियों के फैलाव की क्षमता (आर जीरो ) </b></div>
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<b> आभार:<a href="http://www.npr.org/blogs/health/2014/10/02/352983774/no-seriously-how-contagious-is-ebola">SHOTS </a></b><br />
<b>संक्रमित की खोज :</b> यह एक श्रमसाध्य कार्य है। इसके लिए स्वास्थ्य कर्मियों को इबोला रोगी के संपर्क में आये लोगों की खोजबीन की जाती है। इसके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है जो यह जानकारी लिए दायित्व निभाता है कि इबोला ग्रस्त व्यक्ति कब किसके संपर्क में कहाँ आया और कहाँ कहाँ गया किसके साथ उठा बैठा पश्चिम अफ्रीका में, यह कार्य सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षित स्थानीय स्वयंसेवकों द्वारा किया जा रहा है.<br />
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<b>सीधा संपर्क:</b> इसके अंतर्गत एक रोगी के परिवार के सदस्यों और दोस्तों के संपर्क की सबसे अधिक बारीकी से जाँच की जाती है . ऐसे लोग जो एक रोगी के शरीर के तरल पदार्थ (खून बलगम आदि) के सीधे संपर्क में आते हैं, और इसलिए सबसे अधिक संभावना उनमें वायरस के संक्रमण का होता है लक्षित समूह होते हैं । <br />
<br />
<b>अप्रत्यक्ष संपर्क:</b> इस समूह में उदाहरण के लिए, एक रोगी के साथ, एक कार्यस्थल या स्कूल में संपर्क किया गया हो सकता है ऐसे लोग शामिल हैं. ये रोगी के शरीर के तरल पदार्थ के संपर्क में न होने से कम खतरा उठाते हैं। <br />
<br />
<b>संगरोध:</b> एक संक्रमित व्यक्ति के लिए एक कानूनी आदेश कि वह उपचार होने तक एक स्थान तक परिवार सहित सीमित हो जाय जरूरी है . रोगी के परिवार के सदस्यों को उनके घर के बाहर तैनात एक कानून प्रवर्तन अधिकारी के साथ, संगरोध में रखा जा सकता है। </div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-4966719064920065522014-09-22T06:28:00.000-07:002014-09-22T06:37:16.191-07:00सर्पदंश के प्राथमिक उपचार में आशा की किरण <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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अब तक सर्पदंश की एकमात्र भरोसेमंद कारगर इलाज एंटीवेनम इंजेक्शन है जो सांपों के विष से ही तैयार होता है। विषरोधक एंटीवेनम वर्तमान में मरीजों में इंजेक्ट किया जाता है.प्रयोगशाला परीक्षण में एक आशाजनक परिणाम से पता चला है एंटीवेनम गोली को भी सीधे सर्प के काटने के बाद लिया जा सकता है। इंजेक्शन की सुविधा अक्सर कई मील दूर पर उपलब्ध हो पाती है और मरीज के वहां पहुंचने तक देर हो चुकी रहती है। अस्पताल तक पहुंचने से पहले सर्प के काटने से मरने वाले मरीजों में से तीन चौथाई की यही गति होती है। </div>
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इस समस्या से निजात पाने की पहल कलकत्ता विश्वविद्यालय की एक शोधकर्ता <b>रोशनआरा मिश्रा</b> ने अपने अनुसन्धान के जरिये किया है और एक सर्वसुलभ प्रतिविष गोली की ईजाद में सफलता पाई है। इसके तहत एंटीवेनम को चीनी से बने एक सस्ते और गैर विषैले गोंद जैसा पदार्थ अल्जीनेट में लेपित करके गोली का रूप दिया गया है जो प्राथमिक उपचार के रूप में तत्काल दिया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने इस चूहों से ली गई आंतों में इस गोली के प्रयोग से पाया कि इनका पाचन नहीं होता और इसतरह इन्हे पचाया नहीं जा सकता और यह सर्प विष को निष्क्रिय करने में प्रभावी रहा। यह शोध "PLOS Neglected Tropical Diseases" के सात अगस्त २०१४ के अंक में छपा है। </div>
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<b>भारत में विषैले सर्पदंश की वार्षिक दर एक लाख से ऊपर है (स्रोत : विकिपीडिया ) </b></div>
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संयुक्त राज्य अमेरिका, कैलिफोर्निया अकादमी में एक <b>शोधकर्ता मैथ्यू लेविन</b> कहते हैं कि : " अल्जीनेट के लेप में विषरोधक को खिलाने का एक अच्छा विचार है. लेविन सर्पदंश पीड़ितों के इलाज के लिए एक सस्ते antiparalytic नाक स्प्रे विकसित किया है. देखिये यह गोली पूर्ण रूप से निरापद होकर कब बाज़ार आती है। </div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-16892448132878016122014-08-18T08:51:00.001-07:002014-08-18T09:14:30.652-07:00इबोला ने धावा बोला! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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इबोला यानि ई वी डी(<b>Ebola virus disease) </b> -इबोला हीमोरजिक फीवर नर वानर समुदाय का रोग है जो इबोला विषाणु से होता है। विषाणु के संक्रमण के बाद दो दिन अथवा तीन सप्ताह के बाद भी लक्षण उभर सकते हैं। लक्षणों में इन्फ्लुएंजा जैसा बुखार, गले में खरास , मांसपेशियों में दर्द और सरदर्द हैं. कुछ भी निगलने में कठिनाई भी हो सकती है। तत्पश्चात वमन (उल्टी /कै) दस्त और शरीर पर चकत्ते होते हैं और लीवर और गुर्दे ठीक से काम नहीं करते। खून की उल्टियाँ भी होती हैं. मरीज के शरीर के भीतर और बाहर भी रक्तस्राव शुरू हो जाता है। यह जानलेवा है।<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><br />
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इस विषाणु का संक्रमण पहले से ही संक्रमित मुख्यतः कपि वानरों या दूसरे जानवरों या मनुष्य के रक्त सम्पर्क या शारीरिक द्रव से संपर्क से हो सकता है। मनुष्य से मनुष्य में यह फ़ैल रहा है, अभी तक अफ्रीका में इसका ज्यादा कोप है मगर अब यह विश्वव्यापी बीमारी का स्वरुप लेता जा रहा है. कहा जा रहा है कि चमगादड़ों की एक प्रजाति (फ्रूट बैट ) बिना इससे प्रभावित हुए इसे फैला रही है। चूंकि मलेरिया, हैजा और अन्य विषाणु जनित रोगों के लक्षणों से इबोला के लक्षण मिलते जुलते हैं अतः इसके निर्णायक निदान /पहचान के लिए वाइरल प्रतिपिण्डों की जांच रक्त सैम्पल से की जाती है।<br />
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बचाव ही इसका कारगर उपाय है क्योकि अभी तक इसका प्रभावी टीका और शर्तिया इलाज सुलभ नहीं है.मांसभोजी मांस को छोटे वक्त हाथों पर दास्ताने पहने और अच्छी तरह उसे पकाएं। और किसी मरीज के आस पास या संपर्क में होने पर हाथों को साबुन से अच्छे ढंग से साफ़ करते रहे।अभी तक मृत्यु दर 50 से 90 के बीच देखी जा रही है। यह सबसे पहले सूडान और कांगो से पहचाना गया -और वर्ष 1976 से ही सहारा अफ्रीका के क्षेत्रों में देखा जाता रहा है। लगभग दो हजार लोग इसके चपेट में आ चुके हैं। इस समय यह महामारी का रूप ले चुका है और पश्चिमी अफ्रीका के गुएना, सिएरा लियोन और लाबेरिया तथा नाइजेरिया में कहर बरपा रहा है। एक हजार से अधिक लोग अब तक मर चुके हैं। वैक्सीन को विकसित करने के प्रयास युद्ध स्तर पर हैं मगर कोई कारगर सफलता नहीं मिल सकी है।</div>
<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-56799332709527190572013-11-26T16:17:00.000-08:002013-11-26T16:17:02.051-08:00यादों की आंखमिचौली-झूठीं यादों का गड़बड़झाला! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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सावधान! नए वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि कुछ यादें झूठी भी हो सकती हैं। अर्थात आप कुछ ऐसा याद किये हुए हो सकते हैं जो आपके जीवन में घटा ही न हो। फिर भी आप शान से अपने संस्मरण में किसी ख़ास घटना और दृश्य का जिक्र कर सकते हैं और शेखी बघारते रह सकते हैं.ऐसी क्षद्म स्मृतियों की जन्म प्रक्रिया अभी ठीक से नहीं समझी जा सकी है मगर वैज्ञानिकों ने पुष्टि कर दी है कि इनका वजूद है और इनके चलते विषम स्थितियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। अब किसी घटना के अगर आप कोर्ट में चश्मदीद गवाह बने जो वस्तुतः आपके सामने घटी ही नहीं मगर आपको पूरा भरोसा है कि आपने उसे देखा है तो आपकी गवाही किसी को जेल के सींखचों में डाल सकती है या निकाल भी सकती है।</div>
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दिमाग का एक हिस्सा <b>एमयिगडेला </b>स्मृतियों को सहेजने का काम करता है.अभी हाल में ही <a href="http://www.pnas.org/">प्रोसीडिंग्स आफ नेशनल अकादेमी आफ साइंसेज </a>में छपे अध्ययन से यह साफ़ पता लगता है कि सामान्य और और तेज याददाश्त वाले दोनों तरह के लोगों में यह स्मृति दोष समान रूप से पाया जाता है। कुछ लोगों की याददाश्त बहुत अच्छी होती है जिन्हे "highly superior autobiographical memory -HSAM" कहा जाता है। प्रयोगों में पाया गया है कि इनकी याददाश्त भी इनके साथ आँख मिचौली कर सकती है -वे झूठे स्मृति प्रतिरूपों को भी याद रख सकते हैं , यह पूरा अध्ययन अभी हाल में ही <a href="http://science.time.com/2013/11/19/remember-that-no-you-dont-study-shows-false-memories-afflict-us-all/?xid=newsletter-asia-weekly">टाईम पत्रिका में प्रकाशित</a> हुआ है।स्मृति विभ्रम या विकृति के इस अध्ययन को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के <b>मनोविज्ञानी लारेंस पैथीस</b> के नेतृत्व में किया गया है। </div>
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मजे की बात यह है कि चूहों पर किये गए अनुसन्धान में ऐसी छदम स्मृतियों को उत्पन्न करने में सफलता मिली है और ऐसे स्मृति पैटर्न को एक से दूसरे चूहे के दिमाग में भी आरोपित कर पाना सम्भव हुआ है। </div>
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मेमोरी के लिए जिम्मेदार कोशायें/ द्रव्य (मेसेंजर आर एन ऐ आदि ) ट्रांसफर एक से दूसरे चूहों में करना सम्भव हो गया है और इससे किसी छद्म स्मृति प्रतिरूप को भी एक चूहे से दूसरे चूहे तक में अंतरित किया जा सकता है। यह अध्ययन भी प्रसिद्ध शोध पत्रिका <a href="http://www.sciencemag.org/">साईंस</a> के एक हालिया अंक में विस्तार से प्रकाशित हुआ है। स्मृति आरोहण के ऐसे अध्ययन मानवीय संदर्भ में कई सम्भावनाओं को जन्म देते हैं जिनमें जहाँ स्मृति दोषों को ठीक किया जा सकेगा ,बहुत बुरे अनुभवों की याद को हटाया जा सकेगा वहीं इस तकनीक का बहुविध दुरुपयोग भी हो सकता है। </div>
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अब हो सकता है कि आप अपनी यादों की हकीकत को भी एक बार फिर से परखना चाहें। सम्भव है कि कोई कटु या मधुर याद जिसे आप सजोये हुए हैं वह अनायास ही एक वहम के रूप में आपकी धरोहर बनी हुयी हो। </div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com6Uttar Pradesh, India25.3241665257384 82.985229492187525.094516025738397 82.6625059921875 25.5538170257384 83.3079529921875tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-67950123983671725652013-11-04T18:30:00.001-08:002013-11-04T19:04:23.208-08:00धड़कते दिल से मंगलयान आरोहण का इंतज़ार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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भारत जैसे गरीब देश के लिए अरबों रुपयों का यह तमाशा या वैज्ञानिक आतिशबाजी क्या शक्ति प्रदर्शन का हेतु लिए महज दिखावा हैं। यह सवाल कई लोगों के जेहन में कौंध रहा है .नहीं नहीं यह मौका है भारत को अपनी तकनीकी क्षमता का स्व -आकलन का ,खुद को साबित करने का .</div>
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आज नहीं तो निकट भविष्य में ही मानुषों का मंगल पलायन होना ही है -बिना मंगल पर पहुंचे मानवता का मंगल नहीं है यह तथ्य अब विज्ञानी और विज्ञान कथाकार अच्छी तरह समझ गए हैं . हमारे संस्रोत तेजी से ख़त्म हो रहे हैं ,जनसख्या बढ़ रही है -उन्नत देश गरीब देशों को अंगूठा दिखा मंगल पर मंगल मनाने की जुगत में है -ऐसे में भारतवासियों का हर वक्त अपने गरीबी के अरण्य रोदन के बजाय इस मंगल मुहिम को प्रोत्साहित करना चाहिए -यह पूरी मानवता के (भविष्य के ) अस्तित्व के लिए करो या मरो का प्रश्न है . </div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDaGPC4c5gvi2UfOOZL5wAQZXKbO5k5ZtTqcofY7VldTeGaWKPFJc1sVUXHWTxCDv3-lUSqvCDaG0MmjsGCWBTId4QehJJsp9eDgVu9wm2cYZkzOWuU1hMceoTg8eFqKYGenX0fWYGNwk/s1600/isro-india.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDaGPC4c5gvi2UfOOZL5wAQZXKbO5k5ZtTqcofY7VldTeGaWKPFJc1sVUXHWTxCDv3-lUSqvCDaG0MmjsGCWBTId4QehJJsp9eDgVu9wm2cYZkzOWuU1hMceoTg8eFqKYGenX0fWYGNwk/s320/isro-india.jpg" width="203" /></a></div>
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मुझे लगता है कि चन्द्र बस्तियां बसे न बसे किन्तु मंगल पर मानव बस्तियां निश्चय ही एक हकीकत बनेगीं . मार्स - <a href="http://en.wikipedia.org/wiki/Mars_One">1</a> <a href="http://en.wikipedia.org/wiki/Mars_2">2</a> प्रोजेक्ट तो ऐसी किसी सम्भावना को एक दशक के भीतर ही पूरा करने के अभियान पर है . आज मंगल आरोहण पर जाने वाले मंगलयान यानि मार्स आर्बिटर मिशन (मॉम ) का एक मकसद है लाल ग्रह पर मीथेन की उपस्थिति का पता लगाना जो कार्य पहले किसी ने नहीं जांचा परखा . अगर मीथेन की उपस्थिति वहाँ पायी जाती है तो निश्चय ही यह जैवीय पर्यावास के लिए एक शुभ संकेत होगा . चंद्रयान ने जैसे चन्द्रमा पर पानी की पुष्टि का अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत किया है वैसे ही मीथेन की उपलब्धता की मगल पर पुष्टि इस अभियान का एक बड़ा हेतु है .हमारा पड़ोसी चीन अपने मंगल अभियान में अब तक असफल रहा है मगर उसकी कोशिशें जारी है। अपने मगलयान को मंगल पर पहुँचने में दस माह का समय लगेगा . वहाँ पहुँच कर यह उसकी परिक्रमा करता रहेगा और इसके खोजी यन्त्र तथा कैमेरे जरूरी सूचनाएं मुहैया कराते रहेगें .</div>
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आज सुबह सुबह ही जब <b> स्वप्निल भारतीय </b>ने अमेरिका से मुझे फेसबुक पर एक तुरंता सन्देश भेजा कि <a href="http://www.muktware.com/author/swapnil">उनके लेख के लिए</a> मैं अपनी त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करूं तो मुझे लगा कि समूची दुनिया भारत के इस अभियान को बड़ी व्यग्रता से देख रही है . याहू के <a href="http://in.groups.yahoo.com/group/indiansciencefiction/">इंडियन साईंस फिक्शन ग्रुप </a>ने भी इस अभियान पर एक चर्चा छेड़ दी है .<br />
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<b>शुभकामनाएं भारत -कर दो साबित खुद को! </b></div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-83596880834119880752013-10-11T06:55:00.002-07:002013-10-11T07:32:43.548-07:00स्त्री यौनिकता और मदन लहरियां:अचंभित करने वाले तथ्य!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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बात उन्नीस सौ पच्चास -साठ के दौरान की है जब <b>वाशिंगटन युनिवेर्सिटी, सेंट लुइस के विलियम मास्टर्स और विरजीनिया जान्हसन</b> के सेक्स विषयक शोध परिणामों ने तहलका मचाया था . उन्होंने ख़ास तौर पर स्त्री यौनिकता पर कई ऐसे शोध परिणाम उजागर किये कि लोग सकते में आ गए और बहुत हो हल्ला मचा .सारी दुनियां में <b>मास्टर्स और जान्हसन </b>के दावे चर्चा का विषय बन गए . तमाम दीगर बातों में उनका यह भी रहस्योद्घाटन था कि स्त्रियाँ में चरमानन्द( )की अनुभूति मदन लहरियों(multiple orgasm) के रूप में होती है -मतलब पुरुष जहाँ स्खलन के साथ मात्र एक ही चरम आंनंद उठाता है, नारियां इस मामले में उनसे समृद्ध हैं।तब से आज तक पुरुष -नारी की यौनिकता पर अनेक अध्ययन हो चुके हैं ,मगर एक नये अध्ययन की चर्चा टाईम पत्रिका ने अपने हाल के अंक में(<a href="http://healthland.time.com/2013/10/04/lets-talk-12-surprising-facts-about-sex-and-women/">एशिया एडीशन, अक्तूबर 07, 2013</a>) की है जो डॉ इडेन फ्रामबर्ग और नाओमी वोल्फ के शोध पर आधारित है. <br />
उनके नए अध्ययन में मुझे तो कोई ख़ास बात नहीं नज़र आती मगर टाईम ने इसे बारह 'अचंभित करने वाले तथ्य' का शीर्षक दिया है . जबकि सच तो यह है कि इनमें सदमाकारी कुछ भी नहीं है . यह सच है कि ज्यादातर भारतीयों को उनकी सहचरियों/संगिनी को आर्गेज्म मिलाता है या नहीं इस के बारे में शायद ही पता हो . बहुतों को बस खुद से मतलब रहता है संगिनी की परवाह ही नहीं रहती . यह बहुत संभव भी हो सकता है क्योकि भारत में सेक्स एक टैब्बू ही बना रहा है और लोग इस मुद्दे पर ठीक से शिक्षित प्रशिक्षित नहीं होते -यह 'काम' पूरी तौर पर बस कुदरत के हवाले ही हो रहता है . अनेक यौन ग्रंथियां फलस्वरूप जीवन भर रह जाती हैं . <br />
आईये नए अध्ययन की एक बानगी लेते हैं . नया अध्ययन भी स्त्री यौनिकता के कई पहलुओं पर से पर्दा उठाने की बात करता है . जैसे उसके अनुसार कभी बहुत पहले स्त्रियों के ऋतु धर्म का चक्र चन्द्रकलाओं से पूरा तारतम्य रखता था .अँधेरे पक्ष में ऋतुस्राव और पूर्णिमा को ही प्रायः अंड स्फुटन होता था . मगर सभ्यता की रोशनी ने यह चक्र बेतरतीब कर दिया .शयन कक्ष के लट्टुओं में उस आदिम प्रक्रिया की लय टूट ही गयी . हाँ कुछ नए प्रयोग चंद्रकला से फिर से जुड़ने के हैं जिसे 'ल्यूनासेप्शन' कहा जा रहा है . एक और खुलासा यह है कि संसर्ग के पांच से आठ दिन बाद तक भी कतिपय मामलों में शुक्राणु जीवित रह सकता है और गर्भ ठहर सकता है . शुक्राणु गर्भमुख के पास के योनि श्लेष्मा में सुरक्षित रह सकता है जबकि प्रायः शुक्राणु संसर्ग हो उठने के कुछ घंटे ही जीवित रहते हैं . <br />
यह एक रोचक बात यह भी बताता है कि 'हाई हील' सैंडल नारी आर्गेज्म पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है . इससे श्रोणि मेखला की कुछ नर्व्स दबती हैं जो आर्गेज्म पर बुरा प्रभाव डालती हैं . सबसे महत्वपूर्ण खुलासा यह हुआ है कि आर्गेज्म लेने वाली स्त्रियाँ ज्यादा कर्मठ और सृजनशील होती है. और यह एक फीडबैक प्रक्रिया है -मतलब ज्यादा आर्गेज्म ज्यादा कर्मठता और सृजन और यह पुनः समुचित आर्गेज्म के लिए उकसाता है . यह भी कि गर्भ निरोध गोलियां कामोत्तेजना को घटाने वाली पाई गयीं हैं . एक रोचक बात यह भी उभरी कि कुछ ढंग की कुर्सियों पर बैठना प्यूदेंडल नर्व को संवेदित कर यौन उत्तेजन को उकसा सकती है . और देर तक बैठना उसे दबा भी सकती है . नहाने के बाद स्त्रियाँ बेहतर आर्गेज्म पाती हैं .<br />
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बाकी के शोध परिणाम बस पुराने शोध अध्ययनों के पिष्ट पेषण भर हैं जैसे नारी शरीर के कामोद्दीपक क्षेत्र -भगनासा ,कुचाग्र ,जी स्पाट ,गर्भ द्वार(opening of the cervix) हैं , चरम आनंद के समय होने वाली सिरहनों का कारण गर्भाशय का शुक्राणुओं के बटोरने में होने वाला संकुचन है . अध्ययन यह भी बताता है कि सभी नारियां चरम आनंद पा सकती हैं मगर यह कैसे मिले यह सभी को ठीक से पता नहीं होता .</div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-82209848355457815862013-09-29T07:16:00.000-07:002013-09-29T07:22:51.783-07:00जलजला जजीरा - समुद्र में अचानक यह क्या उभर आया ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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अभी पिछले हप्ते (24,सितम्बर 13 ) पाकिस्तान में जो एक भीषण भूकंप आया (जलजला ) आया था उसके चलते समुद्र में एक नया जजीरा बन गया -यहाँ के मीडिया में इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुयी . मगर अमेरिकी भूगर्भ शास्त्रियों ने इसमें ख़ास रूचि दिखायी हैं . लोगों ने मजाक में यह भी कहा कि चलो अमेरिका को एक नया नौसैनिक अड्डा मिल गया है . अमेरिकी भूगर्भ शास्त्री <b>बिल बर्न्हार्ट</b> के अनुसार यह मिट्टी बालू गाद और पत्थरों का एक जखीरा है और यहाँ समुद्र पंद्रह से बीस मीटर गहरा है यानि यह समुद्र तट से ज्यादा दूर नहीं है .मजे की बात है कि इस नए मड आईलैंड के बनते ही सैलानियों की आवाजाही भी शरू हो गयी है। यह जजीरा ग्वादर की पश्चिमी खाड़ी पड्डी जिर्र के समीप है . <br />
<b>बिल बर्न्हार्ट</b> के मुताबिक़ यह गाद समुद्र की तलहटी से भूकंप के दौरान ऊपर उठ आयी जबकि भूकंप का केंद्र यहाँ से तीन सौ अस्सी किलोमीटर दूर है . उनके अनुसार भूकम्पों के समय जमीन में गहरे दबी मीथेन गैस,कार्बन डाई आक्साईड भूगर्भीय परतों के हिलने से दबाव मुक्त होकर बाहर निकल पड़ती हैं और अपने साथ भारी मात्रा में समुद्री गाद को ऊपर ढकेल देती हैं। यह नया जजीरा ऐसे ही बना है . अभी भी यहाँ से मीथेन गैस का चल रहा है जो ज्वलनशील है . नया जजीरा मकरान खाड़ी में पिछले सौ सालों में निकलने वाले सैकड़ों जजीरो में से एक है . </div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpag2aNVdrU8XhGJNRiZdSsRbJBxCNNWY2DLK2PvISDYJBgxX3m_gmgFpegEz4XYMamLhMnDTYjmUy3Aclxowbx8OxKOKLzfup9QRFM4oT4g3iVgnF5RjCOqm53AhrXNR4X8lgXDGRY-k/s1600/island-people-BBC-Facebook.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpag2aNVdrU8XhGJNRiZdSsRbJBxCNNWY2DLK2PvISDYJBgxX3m_gmgFpegEz4XYMamLhMnDTYjmUy3Aclxowbx8OxKOKLzfup9QRFM4oT4g3iVgnF5RjCOqm53AhrXNR4X8lgXDGRY-k/s1600/island-people-BBC-Facebook.jpg" /></a></div>
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<b> लो जी जलजले जजीरे पर सैलनियों का जमघट भी शुरू हो गया </b></div>
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दरअसल यह पूरा क्षेत्र अरेबियन टेकटानिक प्लेटों के उत्तर दिशा में और नीचे की ओर बढ़ने तथा यूरेशियाई प्लेटों के नीचे जाने की हलचलों से व्याप्त है -इस प्रक्रिया में अरेबियन प्लेट की मिट्टी और गाद खुरच उठती है और इसके चलते दक्षिण पश्चिमी पाकिस्तान औरदक्षिणी पूर्वी इरान के समुद्री छोरों पर कई नए जजीरे बनते जा रहे हैं .पाकिस्तान के भूगर्भ शास्त्री <b>आसिफ इनाम </b>का कहना है कि इन जजीरों से समुद्री परिवहन में बाधा उत्पन्न होती है . </div>
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दरअसल यह पूरा क्षेत्र अरेबियन टेकटानिक प्लेटों के उत्तर दिशा में और नीचे की ओर बढ़ने तथा यूरेशियाई प्लेटों के नीचे जाने की हलचलों से व्याप्त है -इस प्रक्रिया में अरेबियन प्लेट की मिट्टी और गाद खुरच उठती है और इसके चलते दक्षिण पश्चिमी पाकिस्तान और दस्क्स्हीं पूर्वी इरान के समुद्री छोरों पर कई नए जजीरे बनते जा रहे हैं .पाकिस्तान के भूगर्भ शास्त्री आसिफ इनाम का कहना है कि इन जजीरों से समुद्री परिवहन में बाधा उत्पन्न होती है . नया जजीरा मगर ज्यादा टिकने वाला नहीं है और कुछ माहों या वर्ष के भीतर समुद्र के सतह के भीतर छुप जाएगा . यह खबर सैलानियों के उत्साह को ठंडा कर सकती है .</div>
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<a href="http://earthsky.org/earth/view-from-space-earthquake-island-before-and-after?utm_source=EarthSky+News&utm_campaign=bf9adeb6ea-EarthSky_News&utm_medium=email&utm_term=0_c643945d79-bf9adeb6ea-393714041"><b>फोटो और सामग्री प्रभार -अर्थस्काई </b></a></div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-66452220937818966532013-08-19T20:15:00.000-07:002013-08-19T20:27:55.980-07:00कन्हैया किसको कहेगा तू मैया? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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वैज्ञानिकों के एक नए प्रयोग ने एक बार फिर असमंजस कि स्थिति पैदा कर दी है . ऐसे एक और प्रायोगिक "कन्हैया" की किलकारियां गूंजने वाली हैं जिसके एक पिता और दो माएं होंगी। आईये वैज्ञानिकों के इस नए प्रयोग की एक झलक लें। सामान्य तौर पर तो हर बच्चे की एक माँ और एक पिता होते हैं जो बराबर बराबर का आनुवंशिक पदार्थ -गुणसूत्र उस तक अंतरित करते हैं। गुणसूत्रों का अंतरण हमारी जनन कोशाओं -अंड और शुक्राणु के सम्मिलन से होता है जो एक प्रक्रिया जिसे अर्धसूत्रण (मियासिस ) कहते हैं के जरिये आधे आधे भाग में मां और पिता से बच्चे में पहुँच कर पूर्णता पाते हैं।मनुष्य की कोशिका के केन्द्रक में ये आनुवांशिक पदार्थ होते हैं। खैर यह तो हाईस्कूल स्तर की बायलाजी है जो आपमें बहुतों को पता होगी। </div>
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जो बात बहुतों को पता नहीं है वह यह है कि मनुष्य की कोशिकाओं के केन्द्रक के अलावा/बाहर के जीवनद्रव्य (साईटो प्लास्म ) की माईटोकांड्रिया में भी आनुवंशिक पदार्थ मिलने की जानकारी काफी बाद में हुई और उसका भी आनुवंशिक अंतरण पीढी दर पीढी होता जाता है -मगर सबसे रोचक बात यह है कि ये माईटोकांड्रियल जीन महज माँ से अंतरित हो बच्चे तक पहुंचाते हैं। माईटोकांड्रिया वैसे तो कोशिका का 'पावर हाउस' कहा जाता है जो शरीर के लिए ऊर्जा देने का काम करता है। मगर आश्चर्यजनक रूप से पाया गया कि इसमें भी कुल सैंतीस जीन मिलते हैं हालांकि मनुष्य के कोशिका -केन्द्रक में तकरीबन तेईस हजार जीन पाए गए हैं। अब भले ही माईटोकांड्रियल जीन की ये संख्या बहुत कम है मगर इनमें किसी भी विकार से कई आनुवंशिक रोग होते देखे गए हैं। जिसमें से एक तो पेशियों की समस्या (माईटोकांड्रियल मायोपैथी ) और आप्टिक न्यूरोपैथी है जो स्थायी अन्धता तक उत्पन्न कर सकती है। </div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1ODUee6A0AofwcO05hdhUjsuIRQdHGyLENec2LikGLH2cf7PYLi6KqAOLGJf0wH4Emx-80VekH07RN-uz1o78oX06Bp8ztqECgMrvxnaheKWy3gq2VIF1mFnQAU6JXuePn68HlPtpmPM/s1600/human-cell.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1ODUee6A0AofwcO05hdhUjsuIRQdHGyLENec2LikGLH2cf7PYLi6KqAOLGJf0wH4Emx-80VekH07RN-uz1o78oX06Bp8ztqECgMrvxnaheKWy3gq2VIF1mFnQAU6JXuePn68HlPtpmPM/s1600/human-cell.jpg" /></a></div>
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<b> माईटोकांड्रियल जीन केवल मां से ही बच्चों तक पहुंचता है</b></div>
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जैसा मैंने बताया माईटोकांड्रियल जीन केवल मां से ही बच्चों तक पहुंचता है। अब अगर किसी मां के माईटोकांड्रियल जीन डिफेक्टिव हों तो? फिर तो बच्चा ऊपर वर्णित बीमारियों से ग्रस्त हो जाएगा ? फिर क्या किया जाय ? वैज्ञानिकों ने ऐसे मामले में यह जानकारी हो जाने पर कि किसी मां के माईटोकांड्रियल जीन में खराबी है -निषेचित अंड के जीवन द्रव्य (साईटोप्लास्म) को स्वस्थ मां के जीवनद्रव्य से प्रत्यारोपण की तकनीक विकसित कर ली है। मतलब विकारग्रस्त माईटोकांड्रियल जीन को ही हटा दिया जाना और उसके स्थान पर स्वस्थ मां के माईटोकांड्रियल जीन को स्थापित कर दिया जाना। ऐसा करने का सबसे आसान तरीका यह पाया गया है की विकारग्रस्त माँ के निषेचित अंड के नाभिक को सामान्य स्वस्थ मां की अंड कोशिका में प्रत्यारोपित कर दिया जाय। मतलब अब सम्बन्धित/संभावित बच्चे की दो माएं और एक पिता होंगें। एक मां का नाभिकीय आनुवंशिक पदार्थ ,दूसरे का स्वस्थ माईटोकांड्रियल जीन. यह तकनीक क्लोनिंग तकनीक से इस मायने में भिन्न है कि जहाँ निषेचित नाभिक एक धाय मां (सरोगेट मदर ) के निषेचित नाभिक रहित अंड कोशिका में प्रत्यारोपित होता( <b>nuclear transfer cloning</b>) है। </div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-20144056453805520102013-06-18T08:39:00.000-07:002013-06-18T08:39:38.920-07:0023 जून को निकलेगा बड़का चाँद,देखना मत भूलियेगा! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आगामी 23 जून की पूर्णिमा को एक नयनाभिराम आकाशीय नज़ारा देखने को तैयार रहिये .इस दिन इस वर्ष का बडका चाँद निकलेगा बोले तो सुपर डुपर मून . आसन्न पूर्णिमा को चाँद धरती के सबसे निकट (<em>perigee</em> ) रहेगा और इसलिए इस वर्ष दिखने वाले सबसे बड़े चाँद का खिताब हासिल करेगा . धरती के इतना करीब चाँद फिर एक साल के इंतज़ार के बाद अगस्त 2014 में ही दिखेगा . वैसे तो सारे देश में मासूम सक्रिय हो गया है और बादल छाये की संभावना ज्यादा है मगर हो सकता है कुछ लोगों के बादलों से लुकाछिपी चाँद नज़र आ ही जाय . पिछली बार जब मार्च 19, 2011 को धरती के सबसे निकट यानी 'पेरिगी' का चाँद दिखा था तो इसे सुपर मून का नामकरण दे दिया गया था। अभी पिछले महीने 24-25 मई का चाँद भी एक छोटा सुपर मून ही था .इस नामकरण का भी एक रोचक मसला है.<br />
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मजे की बात है कि सुपर मून का नामकरण किसी आधुनिक ज्योतिर्विद (एस्ट्रोनामिस्ट ) द्वारा न देकर एक फलित ज्योतिषी द्वारा दिया गया है मगर अब इसे सब ओर मान्यता मिल गयी है . फलित ज्योतिषी रिचर्ड नोले ने अपने अपने वेब साईट <a href="http://www.astropro.com/features/articles/supermoon/" target="_blank">astropro.com</a> पर 1979 में यह नामकरण किया था . जिसके अनुसार सूर्य ,पृथ्वी और चन्द्रमा के एक सीध में आने पर और चन्द्रमा के धरती के सबसे निकट आने की अवस्था में सुपरमून का वजूद होता है और ऐसी स्थिति वर्ष में चार -छह बार आ सकती है . इस २3 जून 2013 को धरती से चाँद की दूरी बस केवल 356,991 किलोमीटर रहेगी! इसके दो सप्ताह बाद सात जुलाई को ही चाँद अपनी कक्षा में धरती से सबसे दूर चला जाएगा जिसे एपोजी (<em>apogee) </em> कहते हैं और तब चाँद धरती से 406,490 किमी दूर होगा .<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhldOGFk3pLhZ5_pfiFX6fjZVwd9tdVMXpjqVjwEcV3yCESeReahB8VYu2B7XJwqAMUUkJzo3EwIHxTAvEtxMjj3X24HCPabglRbB5nTWMqWIMdtm0ldo2iwzOWiZl8Dfw11EenW-WpcTs/s1600/Supermoon-size-difference-alec-jones-e1369511419664.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="282" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhldOGFk3pLhZ5_pfiFX6fjZVwd9tdVMXpjqVjwEcV3yCESeReahB8VYu2B7XJwqAMUUkJzo3EwIHxTAvEtxMjj3X24HCPabglRbB5nTWMqWIMdtm0ldo2iwzOWiZl8Dfw11EenW-WpcTs/s400/Supermoon-size-difference-alec-jones-e1369511419664.jpg" width="400" /></a></div>
इस चित्र से पूर्ण चन्द्र और बडके चंद्र का फर्क समझा सकता है (सौजन्य:<a href="http://earthsky.org/tonight/is-biggest-and-closest-full-moon-on-june-23-2013-a-supermoon">अर्थस्काई</a> ) <br />
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खगोलविदों की गड़ना के अनुसार नवम्बर 2016 का बड़का चाँद धरती के इतने निकट होगा कि उतना निकट फिर नवम्बर 25, 2034 को आयेगा . <a href="http://earthsky.org/tonight/is-biggest-and-closest-full-moon-on-june-23-2013-a-supermoon">अर्थस्काई</a> वेबसाईट ने विगत सुपरमूनों (2011-2016) का एक विवरण दिया है। दो पूर्णिमा के बीच का वक्त एक चान्द्रमास कहलाता है यानी 29.53059 दिन का औसत समय. सुपर मून साल भर में के चौदह चान्द्र्मासों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करते हैं .क्या इस बार के सुपर मून से धरती पर और भी प्रबल ज्वार भाटे आयेगें ? इस बड़के चाँद से तो और भी बड़े ज्वार आने की संभावना है .अगर इसके साथ मौसमी तूफ़ान का भी संयोग हो गया तो बड़े ज्वार की संभावना बनेगी . समुद्र तट के किनारे बसे लोगों को थोडा चौकस सहना चाहिए<br />
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<table border="0" style="height: 194px; width: 205px;"><tbody>
<tr><td valign="top"><br /></td><td valign="top"><br /></td><td valign="top"></td></tr>
<tr><td style="text-align: justify;"></td><td style="text-align: justify;"><br /></td><td style="text-align: justify;"><br /></td>
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</tbody></table>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-52504209662435824192013-06-02T05:02:00.000-07:002013-06-02T19:12:31.692-07:00साईंस ब्लागिंग:बढ़ते कदम! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
विगत दिनों साईंस ब्लागिंग पर <b><a href="http://www.dst.gov.in/about_us/ar07-08/st-socio-dev-ncstc.htm">राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद</a> </b>,नई दिल्ली और <b><a href="http://www.scientificworld.in/">तस्लीम</a> </b>के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित साईंस ब्लागिंग के <a href="http://www.scientificworld.in/2013/05/blogging-workshop_27.html">एक कार्यशिविर </a>में भाग लेने का अवसर मिला . इस आयोजन में अन्य महानुभावों के साथ ही राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद ,नई दिल्ली के निदेशक <a href="http://dst.gov.in/scientific-programme/s-t_ncstc-bio-off.htm"><b>डॉ. मनोज पटैरिया</b> </a>भी उपस्थित हुए .हिन्दी में साईंस ब्लागिंग की शुरुआत <b>आशीष श्रीवास्तव ने </b> <a href="http://vigyan.wordpress.com/2006/08/24/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80/">ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति </a> अगस्त ,2006 से <b>और </b><a href="http://unmukt-hindi.blogspot.in/search/label/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8"><b>उन्मुक्त</b> </a>ने साईंस और साईंस फिक्शन पर वर्ष 2006 से ही कई बेहतरीन विज्ञान विषयक पोस्ट लिख कर किया. इस ब्लॉग ने इस विधा की संभावनाओं को देखते हुए तदनंतर भारत में साईब्लाग के नामकरण से नियमित <b><a href="http://indianscifiarvind.blogspot.in/2007/09/blog-post.html">साईंस ब्लागिंग की नीव</a> </b> भी तभी रख दी थी जब दुनिया के और विकसित देश इंटरनेट से जुड़े अन्य संभावनाओं में विज्ञान संचार का भविष्य तलाश कर रहे थे . </div>
<div style="text-align: justify;">
इस पहल का ही यह परिणाम था कि भारत में दुनियां का पहला <a href="http://blog.scientificworld.in/"><b>साईंस ब्लॉगर असोशिएसन </b></a>भी वजूद में आ गया जो <b>सोसाईटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 </b>के तहत पंजीकृत है और इसका एक वैधानिक स्टेटस है. खुशी की बात है कि इन सद्प्रयासों का फल अब संगठित रूप लेता दिख रहा है .विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत हमारे कई मित्र अभी भी इस विधा को लेकर कई तरह के प्रश्न करते हैं जिनका जवाब मैं सहर्ष देता हूँ और आज यहाँ भी उन सवालों को उत्तर सहित रखना चाहता हूँ -<br />
<b>प्रश्न -साईंस ब्लागिंग(विज्ञान चिट्ठाकारिता ) की परिभाषा क्या है ?</b><br />
उत्तर -वह अंतर्जालीय विधा जो ब्लॉग के जरिये विज्ञान का संचार /लोकप्रियकरण करती है साईंस ब्लागिंग कही जाती है .<br />
<b>प्रश्न- कौन कर सकता है साईंस ब्लागिंग ? </b><br />
उत्तर : वैज्ञानिक (अपने विषय विशेष से सम्बन्धित ), विज्ञान पत्रकार , साईंस के छात्र मुख्यतः ग्रेजुएट -पोस्ट ग्रेजुएट ,विज्ञान शोधकर्ता और पर्यावरण -वन्यजीवन विशेषज्ञ /सक्रियक और विज्ञान कार्यकर्ता/सक्रियक आदि साईंस ब्लागिंग कर सकते हैं .<br />
<b>प्रश्न -साईंस ब्लागिंग का प्रतिपाद्य क्या है अर्थात इसके अधीन विज्ञान के किन विषयों को लिया जा सकता है ? </b><br />
उत्तर -वे सभी विषय जिन्हें लक्ष्य वर्ग या आम जनता तक ले जाया जाना हो. <br />
प्रश्न-<b>विज्ञान ब्लागिंग का लक्ष्य वर्ग क्या है ? </b><br />
उत्तर -यह निर्भर करता है कि साईंस ब्लॉगर कौन है ? यदि वह शोधरत वैज्ञानिक है तो वह अपने समवयी (पीयर )/ समान क्षेत्र में शोधरत वैज्ञानिकों को शोध की प्रगति और समस्याओं को अवगत कराने के लिए साईंस ब्लागिंग का सहारा ले सकता है . अगर वह विज्ञान का शैक्षणिक क्षेत्र का प्रोफ़ेसर है तो छात्रों को विषय की सरल सहज समझ के विकास को लक्षित कर साईंस ब्लागिंग कर सकता है ,यदि कोई पर्यावरण या वन्य जीवन का सक्रियक है तो आम लोगों तक इनसे जुड़े मुद्दों को उन तक पहुंचाने और इस तरह जन जागरण के लिए विज्ञान ब्लागिंग को जरिया बना सकता है . विज्ञान पत्रकार विज्ञान से जुड़े अनेक समाचारों , रपटों को संचारित कर सकता है . इस तरह विज्ञान ब्लागिंग का क्षेत्र बहुत व्यापक है और इसके तहत कई लक्ष्य वर्ग आ सकते हैं। <br />
प्रश्न -<b>साईंस ब्लागिंग का उद्येश्य क्या है ? </b><br />
उत्तर -विज्ञान का संचार और आम लोगों तक विज्ञान को सहज सरल तरीके से ले जाना और लोगों में वैज्ञानिक नजरिया उत्पन्न करना ,विज्ञान की अभिरूचि के साथ विज्ञान विषयों के प्रति जागरण ही साईंस ब्लागिंग का मुख्य उद्येश्य है . <br />
<b>इस समय विज्ञान के प्रति छात्रों में गिरती अभिरुचि को भी इससे पुनर्जीवित किया जा सकता है </b>. बच्चों को विभिन्न सरकारें मुफ्त में लैपटाप दे रही हैं जो विज्ञान ब्लागिंग की ओर उन्हें सहज ही उन्मुख कर सकता है . <br />
प्रश्न -<b>एक विज्ञान ब्लॉगर से विज्ञान की जानकारी के अलावा और क्या अपेक्षित है ?</b><br />
उत्तर : उसे अंतर्जाल पर कार्य करने का आरम्भिक अनुभव होना चाहिए . और कम्प्यूटर अप्लिकेशन्स /इस्तेमाल करने की मूलभूत बातें पता होनी चाहिए . यह जल्दी सीखा जा सकता है . <br />
प्रश्न -<b>ब्लॉग क्या है ? </b><br />
उत्तर -यह आनलाईन डायरी है -वेब और लाग का संक्षिप्त रूप है ब्लॉग! <br />
प्रश्न -<b>कैसे बनाए जाते हैं ब्लाग ? </b><br />
उत्तर -गूगल में<a href="http://www.youtube.com/watch?v=tFqtlImXqVY"> </a><b><a href="http://www.youtube.com/watch?v=tFqtlImXqVY">हाऊ टू मेक अ ब्लॉग</a> </b>लिख कर सर्च करें और बताये लिंक पर जाएँ जहाँ ब्लॉग मिनटों में बनाने की साईट उपलब्ध हैं -हाँ किसी ब्लॉग को तकनीकी दृष्टि से समृद्ध करने के कई उपाय हैं जिन्हें तकनीकी विशेषज्ञों से सीखा जा सकता है .इस लिहाज से राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद ,नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित की जाने वाली कार्यशालाएं बहुत लाभकारी हैं . <br />
प्रश्न -<b>साईंस ब्लॉग का कंटेंट क्या हो ?</b><br />
उत्तर -यह साईंस ब्लॉगर के ऊपर निर्भर है -यदि वह विज्ञान पत्रकार है तो विज्ञान से जुड़े समाचारों को कवर करेगा -रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा ....और यदि पर्यावरण से जुडा कोई सक्रियक हुआ तो वह पर्यावरण से जुड़े मसलों को उठा सकता है -जन जागरण कर सकता है , व्हिसिल ब्लोवर की भूमिका भी निभा सकता है . एक विज्ञान शोधकर्ता वैज्ञानिक अपने शोध की समस्याओं को समान लोगों से साझा कर सकता है ,चर्चा कर सकता है ! <br />
<b>एक सूचना</b> है कि राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद ,नई दिल्ली और तस्लीम के संयुक्त तत्वावधान की <a href="http://www.scientificworld.in/2013/05/science-blogging-workshop.html"><b>आगामी कार्यशाला रायबरेली</b></a> में हैं जिसके लिए आप तस्लीम के संयोजक डॉ जाकिर अली रजनीश( <span style="color: #555555; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span style="line-height: 20px;">zakirlko@gmail.com) </span></span>से सम्पर्क कर सकते हैं . </div>
</div>
<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-48021453399602703642013-03-17T08:23:00.004-07:002013-03-17T08:52:38.534-07:00पैनस्टार्स ने तो निराश किया अब इसान से ही आशा! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;">आकाश में एक
हप्ते से आँखें गड़ाए रखने के बावजूद भी जब पैनस्टार्स धूमकेतु</span> <span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;">नहीं दिखा तो आज मैंने हार मान ही ली .वैसे
दो एक दिन तो बादलों की</span><span lang="AR-SA"> </span><span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;">धमाचौकड़ी ने खेल बिगाड़ा मगर यह अब साफ़ हो चला है कि यह
नंगीं आँखों से नहीं</span><span lang="AR-SA"> </span><span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;">दिखने वाला . अब तो इसकी सूरज के आँगन से वापसी भी
शुरू हो चुकी है </span>, <span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;">मैंने अपने
</span>7 <span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;">गुणे पचास की क्षमता वाले
बायिनाक्यूलर से भी काफी प्रयास</span><span lang="AR-SA"> </span><span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;">किया मगर इस धूमकेतु को नहीं दिखना</span> <span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;">था तो नहीं दिखा . <a href="http://www.blogger.com/profile/00350808140545937113">दिनेशराय द्विवेदी जी</a></span><a href="http://www.blogger.com/profile/00350808140545937113"><span lang="AR-SA"> </span></a><span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;"> भी कोटा से
इसे देखने के प्रयास में अपनी कई शामें छत पर गुजार चुके</span><span lang="AR-SA"> </span><span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;">हैं और कल इसके लिए एक विशेष प्रयास पर
निकलने वाले हैं -उन्हें</span><span lang="AR-SA"> </span><span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;">शुभकामनाएं! मगर</span> इस
धूमकेतु ने निराश किया है , वह धूमकेतु या पुच्छल तारा ही क्या जो सब
लोगों को नंगीं आँखों से न दिख जाय और सभी को अपनी लम्बी पूँछ से रोमांचित
कर दे। </div>
<div style="text-align: justify;">
कहने को तो यह धूमकेतुओं का वर्ष है मगर अब तक सूरज
के पास आये लेम्मन और पैनस्टार्स धूमकेतुओं ने निराश किया है ,अब सारी आशा
केवल इसान से है जो इस साल के आखीर में आसमान में जलवा फरोश होगा।
उम्मीद है यह नंगीं आँखों से खूब दिखेगा। आईये एक नजर फिर इस वर्ष के
धूमकेतुओं पर डालते चलें . </div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivhonuQOcohYs5uHuEWxYUY7bECMYVoaya2_x0YztCxjm7hUbY0uINuWXogPiGCgVObFjVk3-EmewSClHx6w40oOWbd8p7_AVmazdT5q1ynISJyc4YqaVGfRg7mTPRL7G0vSEf-zq7Gb4/s1600/460px-Comet-Hale-Bopp-29-03-1997_hires_adj.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><br /> <img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivhonuQOcohYs5uHuEWxYUY7bECMYVoaya2_x0YztCxjm7hUbY0uINuWXogPiGCgVObFjVk3-EmewSClHx6w40oOWbd8p7_AVmazdT5q1ynISJyc4YqaVGfRg7mTPRL7G0vSEf-zq7Gb4/s320/460px-Comet-Hale-Bopp-29-03-1997_hires_adj.jpg" width="245" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><b> </b></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><b> </b></span><br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivhonuQOcohYs5uHuEWxYUY7bECMYVoaya2_x0YztCxjm7hUbY0uINuWXogPiGCgVObFjVk3-EmewSClHx6w40oOWbd8p7_AVmazdT5q1ynISJyc4YqaVGfRg7mTPRL7G0vSEf-zq7Gb4/s1600/460px-Comet-Hale-Bopp-29-03-1997_hires_adj.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">हेलबाप्प (1997) के बाद कोई भी धूमकेतु भारत में जन आकर्षण का केंद्र नहीं बना </a></div>
<div style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><b>लेम्मन</b></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">इस वर्ष</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><b><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पैनस्टार्स (</span>PANSTARRS
,C/2011 L4)</b> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">और
<b>इसान</b></span><b> (ISON ,C/2012 S1)</b> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">की</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">बड़ी चर्चा है जो नंगी आखों से
सीधे देखे जा सकेगें</span> . दुर्भाग्य से <span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"></span><b><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पैनस्टार्स</span></b> ने निराश किया है . <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">एक और अन्तरिक्षीय</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">घुमक्कड़ भी माह फरवरी में ही</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">सहसा दिखाई पडा जिसका
नाम है -<b>लेम्मन (</b></span><b> Lemmon ,C/2012 F6) </b> .<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">इसे माउंट</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">लेम्मन एरिज़ोना के</span> <b><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">अलेक्स</span></b><b><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span></b><b><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">गिब्ब्स</span></b><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"> ने मार्च</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span>2012 <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">में ही</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">ढूंढ निकाला था। तब यह सूर्य की पृथ्वी से दूरी के
भी</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पांच
गुना अधिक दूर था</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span>,
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">मगर विगत फरवरी
माह (</span>2013) <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">में यह सौर सीमा के काफी भीतर तक आ गया और</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">धरती से दूरबीन के सहारे दिखने लग गया था। मगर
दक्षिणी गोलार्ध में ही बाईनाकुलर</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">से दिख पाया।और इसकी चमक(कान्तिमान)</span>
6.2 <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">से</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span>6.5 <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">के बीच रही-मतलब नंगी आँखों से
ठीक ठीक न दिख पाने की</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">स्थिति। यह सूरज के सबसे
करीब मार्च</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span>24,
2013 <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">को आया और यह
दूरी</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">धरती की</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">सौर</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">कक्षा से तनिक कम थी . यह मई</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span>2013 <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">में</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">सूर्य सामीप्य से अपनी</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">वापसी के दौरान</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">फिर टेलीस्कोप के जरिये दिख
सकेगा .</span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<b><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पैनस्टार्स</span></b></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<br />
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">लेम्मन की सूर्य
से मुलाकात कर वापसी</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">अभी हुयी ही थी कि एक और
धूमकेतु आ धमका</span> -<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पैनस्टार्स -यह नामकरण इसे ढूँढने वाले टेलीस्कोप</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">के नाम (</span>Pan-STARRS)
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पर पड़ा।</span>
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">मार्च माह में यह
कुछ कुछ शुक्र ग्रह के कान्तिमान</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">का हो गया था . पांच</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">मार्च</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span>2013 <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">को यह अपने भ्रमण पथ पर</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">धरती के</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">सबसे नजदीक</span> (1.10
Astronomical Units, AU) <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">आ पहुंचा था। एक ऐ यू धरती</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">से
सूर्य की दूरी का सममान है . मतलब यह धूमकेतु</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">धरती से सूरज की दूरी से भी</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">अधिक
दूरी से हमसे दूर ही रहा और अब तो और भी दूर होता जा रहा है!</span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पैनस्टार्स</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">विगत</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span>10 <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">मार्च को सूर्य के संबसे करीब था
-इतना अधिक पास जैसे</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">सूर्य और</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">बुध</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">के बीच का फासला हो (</span>0.30
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">ऐ यू ) यानी</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">साढ़े चार करोड़ किलोमीटर।
यही वह समय था जब</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">इसकी चमक तेज</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">हुयी</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">थी</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">और पूछ का निर्माण भी</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">अस्तित्व में आ चुका</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">था .यह मार्च माह में
सूर्यास्त के पश्चात</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पश्चिम दिशा में कई देशों से क्षितिज
पर</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">दिखता
रहा . मार्च</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span>12
,13 <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">और</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span>14 <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">को यह चंद्रमा</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">के पास दिखा .फिर उत्तर की ओर</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">धीरे धीरे क्षितिज के और ऊपर
होता गया।</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"></span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">इसकी पूछ और खुद इसे बाईनाक्युलर</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">से ही ठीक तरह से देखा
जा सकता है</span> . <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पैनस्टार्स एक अन -आवधिक</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पुच्छल तारा है -मतलब यह पिछली बार कब आया</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">था और आगे कब आएगा इसका कोई
निश्चित समय काल ज्ञात नहीं है . यानि</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">यह "वंस इन अ लाईफ
टाईम" का मौका</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">अपने दर्शकों को दे चुका</span>
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">है।</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<b><span lang="AR-SA" style="font-family: Mangal;"> इंतज़ार है एक धुंधकारी धूमकेतु</span> इसान का </b></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">अगली सर्दियों तक एक धुंधकारी
धूमकेतु धरतीवासियों के</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;">
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">लिए</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">कौतूहल का विषय बनने</span> <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">वाला है और कहते हैं कि
अब तक के धूमकेतुओं</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">में वह सबसे भव्य और
चमकदार होगा . किन्तु कई खगोलविद यह भी कहते हैं कि कोई</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">धूमकेतु कैसा दिखेगा यह शर्तिया तौर पर पहले से नहीं
कहा जा सकता -क्योकि पिछले</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;">
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">हेली और
केहुतेक पुच्छल तारों का प्रदर्शन</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;">
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">निराशाजनक
रहा था .नए ढूंढें</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">पुच्छल तारे के इसान</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> (</span><span style="color: #333333; font-family: Georgia; font-size: 10.5pt;">ISON</span>) <span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">के बारे में भी कुछ ऐसे ही उहापोह हैं</span><span style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> -</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">किन्तु इसके खोजी शौकिया खगोलविदों <b>आरटीओम
नोविचोनोक (बेलरस</b></span><b> ) </b><b><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">और विटाली नेवेस्की(रूस)</span></b><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"> का मानना है</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">कि यह एक भव्य प्रदर्शनकारी
धूमकेतु बनेगा! बोले तो पूरा धुंधकारी . इसे इसलिए ही</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">अंतर्जाल पर ड्रीम कमेट कहा जा रहा है .यानी
धूमकेतुओं के चहेतों के कितने ही सपनो को साकार</span><span lang="HI" style="mso-bidi-font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">कर
जायेगा ईसान!</span> </div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
</div>
</div>
<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-41122815659583931762013-02-16T05:20:00.000-08:002013-02-16T06:01:42.496-08:00किसी पिंड ने पिंड छोड़ा तो कोई और आ धमका! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
पहले से ही अंतर्जाल पर अफवाहें जोर पर थी कि एक क्षुद्र ग्रह धरती से आ टकराने वाला है -और वह भी प्रेम दिवस के आस पास । जबकि वैज्ञानिक ऐसे अफवाहबाजों को पानी पी पीकर कोस रहे थे और पूरी दुनिया को आश्वस्त कर रहे थे कि <a href="http://indianscifiarvind.blogspot.in/2013/02/blog-post.html">कुछ भी अनहोनी नहीं होगी </a>.मगर यह तो संयोगों का संयोग हो गया -लगभग उसी समय रूस के कई शहरों में एक भयानक उल्कापात हुआ -सहसा तो सारी दुनिया के विज्ञान संचारक भी चौक पड़े कि आखिर यह क्या हो गया -मैंने देखा कि मशहूर विज्ञान संचारक और बैड एस्ट्रोनामी के (कु)-विख्यात <a href="https://www.facebook.com/pages/Phil-Plait/251070648641?ref=ts&fref=ts">ब्लोगर फिल प्लेट</a> ने 15 फरवरी की सुबह ही अपने फेसबुक अपडेट में यह खबर बहुत अनिश्चित से मूड में दे दी कि उन्होंने रूस में एक उल्का गिरने की खबर सुनी है मगर वे दरियाफ्त कर रहे हैं -मैं उनके ब्लॉग अपडेट पर भी नज़र गडाए रहा और मामला आखिर साफ़ हो गया -सचमुच रूस में 15 तारीख यानी शुक्रवार की सुबह सुबह सूरज उगते ही एक और आग का गोला,उतना ही चमकता हुआ अचानक दिखा . भयानक आवाज हुयी .इसकी विस्फोटक शक्ति पृथ्वी के वायुमडल में प्रवेश करते समय 300 किलोटन से अधिक थी। एक आकलन है कि आसमान में हुए इस विस्फोट की क्षमता सन् 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम के विस्फोट की तुलना में कई गुना अधिक(300 kilotons of TNT) थी । यह उल्का सन् 1908 में गिरी तुंगुस्का उल्का के बाद पृथ्वी पर गिरनेवाला सबसे बड़ा खगोलीय पिंड है। गनीमत रही कि यह आसमान में ही विस्फोटित हो गया और एक महा विनाश टल गया हालांकि तब भी 1200 से ऊपर ही लोग घायल हुए हैं जिनमें से 50 से अधिक घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
अब अंतर्जाल पर अफवाह उड़ाने वालों की बन आयी थी -देखा न, हमने तो पहले ही कह रखा था ..... :-) मगर भाई यह वह पिंड नहीं था जिसके गिरने की बात वे बड़े जोरशोर से उड़ा रहे थे -वह तो क्षुद्रग्रह 2912 डी ऐ 14 धरती के करीब आया और चुपके से चल भी दिया . यह बात कल ही स्पष्ट हो गयी थी कि 2912 डी ऐ 14 रूस में नहीं गिर। नासा ने साफ़ कर दिया कि जो उल्का गिरी वह तो कोई अनजान राहों का भटका अन्तरिक्षी राही था जो अचानक धरती पर आ टपका -यह उल्कापिंड विपरीत दिशा यानी सूरज के बाईं ओर -उत्तर से दक्षिण की ओर आयी मगर 2912 डी ऐ 14 तो दक्षिण से उत्तर की ओर गतिमान था . फिल प्लेट <b>जी प्लस की हैंग आउट वीडियो चैटिंग</b> पर लाईव बने हुए थे। <br />
यह एक बड़ी खगोलीय घटना थी ,भारतीय लोगों को छोडिये -कितने ही बन्दे यहाँ अज्ञानता के आनंद में गोते लगा रहे हैं मगर मैं तो इस घटना से काफी उद्वेलित हूँ . इसके कई कारण हैं -क्या धरती पर सचमुच किसी ऐसे ही उल्का पात /वृष्टि से प्रलय दबे पाँव सहसा आ जायेगी? यद्यपि इस घटना के बाद मची खलबली के बीच एक दावा यह आया कि रूस ने समय रहते ही एक मिसाईल इस फ़ुटबाल के मैदान के बराबर की उल्का पर साध दिया था और जिसके चलते वह खंड खंड हो गयी और आसमान में ही भस्म हो गयी? मगर क्या सचमुच? वैज्ञानिक नहीं मानते -उनके मुताबिक़ यह वैसी ही स्थिति है कि कोई क्रिकेट का फील्डर बिलकुल असावधान सा बाउंड्री पर हो और अचानक बल्लेबाज का अप्रत्याशित छक्का उसकी सहज पहुँच सीमा के कुछ आगे गिरने को बढ़ चला हो तो क्या वह उसे कैच कर पायेगा? यही स्थिति लगभग इन उल्काओं की है -इनमें से कोई अचानक ही मंगल और और वृहस्पति के बीच की खगोलीय पिंड के मलबा पट्टी से धरती की ओर आ टपकता है और इतना कम समय बचता है कि उसे नष्ट करना अभी तक तो असंभव ही रहा है . फिर भी रूस के इसे मिसाईल से मार देने के दावे तो विज्ञान कथाओं में खूब वर्णित है . रूस में अभी भी लोगों में दहशत है -एक राजनेता ने दावा किया किया है कि दरअसल यह अमेरिका का कोई था परीक्षण था .</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://www.slate.com/content/dam/slate/blogs/bad_astronomy/2013/02/14/russia_meteor_dashcam11341900348.jpg/_jcr_content/renditions/original" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="176" src="http://www.slate.com/content/dam/slate/blogs/bad_astronomy/2013/02/14/russia_meteor_dashcam11341900348.jpg/_jcr_content/renditions/original" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
अमेरिका और रूस में स्पेस -अदावत की जड़ें काफी पुरानी हैं। हाँ एक यह बात हैरत में डालती है और यह बात <a href="http://in.groups.yahoo.com/group/indiansciencefiction/message/4252">याहू इन्डियन साईंस फिक्शन समूह</a> पर भी चर्चा में आयी कि रूस के उल्कापात की जद में क्या कोई विमान नहीं आया जबकि इसने कई प्रदेशों को आच्छादित किया है . 2912 डी ऐ 14 ने भी क्या किसी भी संचार उपग्रह को डिस्टर्ब नहीं किया? <br />
हम विज्ञान संचारक ऐसे मौको का भी एक सकारात्मक उपयोग करते हैं -आपको इस विषय पर थोड़ी जानकारी देने का मौका हम नहीं छोड़ते -क्या आपको कुछ और पूछना है तो स्वागत है! <br />
<b>बहरहाल चैन की नीद सोईये,खतरा फिलहाल टल गया है। </b><br />
<b>पुनश्च:<a href="http://lightyears.blogs.cnn.com/2013/02/15/asteroid-and-meteor-connected/?hpt=hp_c2">कुछ परिभाषाएं यहाँ देखें </a></b></div>
</div>
<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-53734528825258576072013-02-11T19:52:00.003-08:002013-02-11T19:52:52.367-08:00टल जायेगी यह आसमानी बला भी ......!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
धरती का एक निकटवर्ती क्षुद्रग्रह -2012 DA14 हमारे काफी पास से 15
फरवरी(2013) को गुजर जाने वाला है जो किसी आसमानी बला से कम नहीं है . मगर प्रेम दिवस आराम से मनाकर आराम फरमाएं ,कोई
खतरा नहीं है। नभ वैज्ञानिकों ने जोड़ घटा कर देख लिया है कि यह धरती से
टकराने वाला नहीं है हालांकि यह धरती से चंद्रमा की कक्षा से भी कम दूरी
(27,680किमी ) तक आएगा . यहाँ तक की यह हमारे तमाम भूस्थिर कृत्रिम
संचार उपग्रहों (communications satellites) की परिधि के भी भीतर .तक आ जाएगा ,यही नहीं यह अब तक धरती के इतने पास से बिना नुकसान पहुंचाए गुजर जाने वाला सबसे बड़ा क्षुद्र ग्रह है . <br />
यह क्षुद्र ग्रह खुली आँखों से तो नहीं दिखेगा मगर इसे अंतर्जाल पर दिखाने
के इंतजाम किये गए हैं . तो क्या होगा जब यह धरती के सबसे करीब से गुजर
जाएगा? उत्तर है कुछ नहीं :-) कम से कम इस बार तो घबराने की कोई बात नहीं है . यह इतने कम गुरुत्व का है कि इसके चलते न तो कोई ज्वार उठेगा और न ही ज्वालामुखी भभक उठेगें . हाँ लगता है अपने टीवी चैनेल और भारत के फलित ज्योतिषी अभी तक इससे बेखबर हैं नहीं तो अब तक हो हल्ला मच गया होता .
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://en.es-static.us/upl/2012/03/2012_DA14.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="319" src="http://en.es-static.us/upl/2012/03/2012_DA14.jpeg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
क्षुद्र ग्रह का भ्रमण पथ (साभार ,<a href="http://earthsky.org/space/asteroid-2012-da14-will-pass-very-close-to-earth-in-2013">अर्थस्काई</a> ) </div>
<div style="text-align: justify;">
हाँ क्षुद्र ग्रहों /ग्रहिकाओं और धूमकेतुओं के धरती से टकराने की संभावनाओं से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता -बहुत से लोग मानते हैं कि धरती पर प्रलय
के कई कारणों में से एक ये भी हो सकते हैं . कोई छह करोड़ पहले ऐसे ही एक
टकराव से डायनासोर के लुप्त हो जाने के कयास हैं . साईबेरिया के तुंगुस्का
क्षेत्र में पिछली शती(1908) भी ऐसे ही एक महा विस्फोट में बहुत विनाश हुआ
था . अब जैसे यही गृह है -पूरा 45 मीटर लम्बा और करीब एक लाख तीस हजार
मेट्रिक टन भारी है -धरती से इसके टकराने का मतलब है एक साथ अनेक परमाणु /हाईड्रोजन बमों का फूट पड़ना-अर्थात महाविनाश! प्रलय! खुदा न खास्ता ऐसा कोई क्षुद्र ग्रह धरती से टकरा जाय तो 2,4 मेगाटन टी एन टी ऊर्जा निकलेगी -ऐसा
ही एक छोटा पुच्छल तारा या क्षुद्र ग्रह जब तुंगुस्का से टकराया था तो
सारे रेनडियर जानवर मारे गए थे और पूरा वन क्षेत्र विनष्ट हो गया था
हालांकि कोई विशाल गड्ढा नहीं पाया गया है . भारत की लोनार झील के भी किसी क्षद्र ग्रह के टकराने से वजूद में आने की बात कही जाती है . पुष्कर का विशाल जलाशय भी ऐसी ही बना होगा क्योंकि वहां की जन श्रुतियों में आसमान से एक विशाल ब्रह्म कमल के आ टकराने का जिक्र है . तो ऐसे क्षुद्र ग्रह समूची धरती को तो तबाह नहीं कर सकते मगर हाँ एक भरे पूरे शहर का तो सफाया कर ही सकते हैं। <br />
नक्षत्र विज्ञानी इस पर चौबीसों नज़र रखे हुए हैं कोई फ़िक्र की बात नहीं है . सूरज का इसका परिभ्रमण पथ धरती
सरीखा है और यह निरंतर अपने भ्रमण पथ पर धरती से दूर पास आता जाता रहा है
-कहते हैं यह 2020 में फिर करीब से गुजरेगा मगर तब भी टकराहट की संभावना
नहीं है ! </div>
</div>
<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-61749912320645387162012-12-25T19:46:00.000-08:002012-12-25T19:46:40.632-08:00नए वर्ष में आ धमकने वाला है एक धुंधकारी धूमकेतु! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
हाँ ,खगोलविदों का तो अनुमान फिलहाल ऐसा ही है .अगली सर्दियों तक एक धुंधकारी धूमकेतु धरतीवासियों के लिए कौतूहल का विषय बनने वाला है और कहते हैं कि अब तक के धूमकेतुओं में वह सबसे भव्य और चमकदार होगा . किन्तु कई खगोलविद यह भी कहते हैं कि कोई धूमकेतु कैसा दिखेगा यह शर्तिया तौर पर पहले से नहीं कहा जा सकता -क्योकि पिछले हेली और केहुतेक पुच्छल तारों का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा था .नए ढूंढें पुच्छल तारे के इशान (<span style="color: #333333; font-family: Georgia, serif; font-size: 14px; line-height: 22px;">ISON</span>) के बारे में भी कुछ ऐसे ही उहापोह हैं -किन्तु इसके खोजी शौकिया खगोलविदों आरटीओम नोविचोनोक (बेलरस ) और विटाली नेवेस्की(रूस) का मानना है कि यह एक भव्य प्रदर्शनकारी धूमकेतु बनेगा! बोले तो पूरा धुंधकारी . इसे इसलिए ही अंतर्जाल पर ड्रीम कमेट कहा जा रहा है . यानी धूमकेतुओं के कितने ही सपनो को साकार कर जायेगा ईशान! </div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxznxUX2i9IVzfwk8xzdJvS6cQVpqbtBE1ZUenLx9wec9jnEkFVNIHJtvLpIPwxTxG6mYhE91xlRlXSwh1iXJGAEaAjK0HCY0ZAZw1vG66X6l1rYkNyh9KpYU0nx1eitMuDukcq5Hexxo/s1600/great_comet_1881.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxznxUX2i9IVzfwk8xzdJvS6cQVpqbtBE1ZUenLx9wec9jnEkFVNIHJtvLpIPwxTxG6mYhE91xlRlXSwh1iXJGAEaAjK0HCY0ZAZw1vG66X6l1rYkNyh9KpYU0nx1eitMuDukcq5Hexxo/s320/great_comet_1881.jpg" width="241" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<b>क्या ग्रेट कमेट (1860) यानि ऊपर जैसा ही दिखेगा इसान? </b></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
ईशान का नामकरण <b>इंटरनेशनल सायिनटीफिक ओप्टिकल नेटवर्क</b> का संक्षिप्त रूप है जिसके सदस्य इसके शौकिया खोजकर्ता हैं . यह तब देखा गया जबकि यह सूरज से लगभग 97 करोड़ किलोमीटर दूर था . दरअसल नेपच्यून के भी आगे इन धूमकेतुओं की एक मांद है जिसे ऊर्ट क्लाउड कहते हैं -वहीं से कभी कभार कोई गन्दा सा बर्फ का गोला (डरटी आईस/स्नो बाल ) सूरज के गुरुत्व क्षेत्र में आ टपकता है और फिर सूर्य की प्रदक्षिणा एक बहुत ही दीर्घ परिक्रमा पथ पर करने लगता है -ज्यों ज्यों वह सूर्य के निकट आता जाता है बर्फ के पिघलने से उसका प्रभा मंडल बनता(हालो ) बनता है और सौर हवाए पिघलते हिम धूल को सूर्य के विपरीत बहा ले चलती हैं जिनसे इनकी ख़ास पूंछ का निर्माण होता है -भारत में प्रायः इसे पुच्छल तारे के नाम से जानते हैं जबकि संस्कृत के ग्रंथों में इसे केतु कहा गया है ,यहाँ पुच्छल तारों को अशुभ माना जाता है . किन्तु ये संरचनाएं अन्य खगोलीय घटनाओं की तरह सामान्य घटनाएं ही हैं -हाँ खतरा तब हो सकता है जब कोई धूमकेतु पथभ्रष्ट होकर कहीं धरती के परिक्रमा पथ पर आकर धरती से भीड़ न जाय .</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
यदि अनुमान सच साबित हुए तो यह धूमकेतु आगामी दिसम्बर माह में दिन में भी चन्द्रमा जैसा दिख सकता है .मतलब यह परिमाप में काफी बड़ा लग रहा है . ऐसा भी समझा जा रहा है कि <b>इसान</b> बहुत कुछ </div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="http://en.wikipedia.org/wiki/Great_Comet_of_1680">''<b>ग्रेट कमेट आफ 1680"</b> </a>सरीखा है और वैसा ही उसका भ्रमण पथ है . अगले अगस्त माह तक इसान धरती से लगभग 32 करोड़ किमी तक आ पहुंचेगा और इसका आभा मंडल बनना शुरू हो जायेगा। और तभी सही अंदाजा भी हो जायेगा कि यह कैसा दिखेगा . तब तक की आतुर प्रतीक्षा खगोल प्रेमियों को करनी होगी . </div>
</div>
<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-48489314126843960082012-09-21T19:56:00.002-07:002012-09-21T19:58:54.852-07:00महिलाओं को यौन कर्म घृणित लगता है,जिम्मेदार पुरुष ही होते हैं!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">तनिक सोचिये, सहवास (सेक्स) एक तरह से असहज कार्य नहीं है? -पसीना और उसकी दुर्गन्ध,लार,वीर्य -द्रव तथा और भी असहज स्थितियां ! एक सर्वे के मुताबिक़ बहुत से लोगों ख़ास कर आधी दुनिया के नुमायिन्दों को यह बहुत अनकुस(खराब) लगता है मगर वे फिर भी इसके लिए तैयार हो जाती हैं .आखिर क्यों? नीदरलैंड में इस विषय पर शोध किया गया है और एक रिपोर्ट </span><b style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">टाईम पत्रिका </b><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">ने </span><a href="http://healthland.time.com/2012/09/14/why-sex-doesnt-gross-you-out-when-youre-aroused/?xid=newsletter-asia-weekly" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">प्रकाशित की है</a><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"> !</span></div>
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शोधार्थियों का अध्ययन बताता है कि सामान्यतः महिलायें अगर उत्तेजित न की जायं तो उन्हें सहवास में कोई रूचि नहीं होती बल्कि वे इसे एक जुगुप्सा भरा कार्य मानती हैं . <b>उनकी उत्तेजित अवस्था ही उनके जुगुप्सा प्रतिक्रिया को शमित करती है</b> और वे सहवास की उन क्रियाओं -क्रीडाओं में सहयोग करने ;लगती हैं जिन्हें अन्यथा वे पसंद नहीं करतीं . ग्रोनिंजन विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने ९० महिलाओं पर अपने इस प्रेक्षण को प्रमाणित करने के लिए प्रयोग किये . उन्हें तीन समूहों में बांटा. एक समूह को कामोद्दीपक वीडियो दिखाए गए . दूसरे समूह को ऐसे रोमांचक वीडियो दिखाए गए जिनसे शरीर में ऐडरेलिन का प्रवाह बढ़ता हो जैसे रीवर राफ्टिंग और स्काई डाईविंग -इनमें भी वे उद्वेलित हुईं मगर वह कामोत्तेजना से पृथक का उद्वेलन था . तीसरे समूह को कोई सामान्य सा वीडियो दिखाया गया . </div>
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<a href="http://timewellness.files.wordpress.com/2012/09/97539829.jpg?w=360&h=240&crop=1" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="133" src="http://timewellness.files.wordpress.com/2012/09/97539829.jpg?w=360&h=240&crop=1" width="200" /></a></div>
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तदनंतर उन्हें कुछ बहुत अप्रिय से ,अनकुस से काम करने को दिए गए जैसे किसी गिलास में कीड़ा (नकली ) पड़े द्रव को पीना,पहले से ही इस्तेमाल हुए टिश्यू पेपर से हाथ साफ़ करना ,ऐसे बिस्किट खाना जो कीड़े के समूह जैसे दिख रहे थे या फिर इस्तेमाल हुए कंडोम के भीतर उंगली डालना. पाया गया कि जिस समूह ने कामोत्तेजक वीडियो देखा था उसने इंगित कामों को करने में अपेक्षाकृत काफी कम असहजता दिखाई. यह साफ़ था कि उनके कामोद्वेलन ने उनकी कई जुगुप्सात्मक प्रवृत्तियों को तिरोहित कर रखा था .</div>
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उक्त अनुसन्धान के जरिये शोधार्थियों ने यह प्रमाणित करना चाहा कि सहवास जैसी गतिविधि के असहज होते हुए भी लोग उसमें इसलिए संलिप्त हो जाते हैं क्योकि वे कामोत्तेजित हो उठते हैं या कर दिए जाते हैं -काम -क्रिया विशेषज्ञ भी महिलाओं के सहवास पूर्व काम -उद्वेलन के पहलू पर पर ज्यादा जोर देते हैं . इस अध्ययन का एक प्रबल पक्ष यह है कि इसके परिणामों के मद्दे नज़र उन महिलाओं जिनका यौन जीवन असामान्य है या जो सेक्स को जुगुप्सा मानती हैं के लिए कारगर सेक्स थिरेपी इजाद हो सकती है . आज भी ऐसे कई मामले सामने आते हैं जिनमें महिलायें सहवास के बाद अपनी अत्यधिक साफ़ सफाई ,बार बार नहाने सरीखे कार्यों में लग जाती हैं . पुरुषों के लिए भी यह अध्ययन महत्वपूर्ण है जिन पर यौन क्रिया के पूर्व यौन -सहकर्मी को पूर्णतया कामोद्वेलित करने का दायित्व होता है .अन्यथा सहवास केवल एकतरफा आनंद बन कर रह जाता है -सहकर्मी के लिए केवल एक त्रासद अनुभव! यही कारण है कि महिलाओं में सेक्स के प्रति एक विराक्ति भाव घर कर जाता है और जोड़ों का यौन जीवन असहज और असामान्य हो उठता है जिसके ज्यादातर जिम्मेदार पुरुष ही होते हैं! </div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-70038149104265238382012-08-17T07:34:00.001-07:002012-08-17T07:34:58.343-07:00खटमलों की वापसी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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खबर अमेरिका से है ...मगर आज के इस आवागमन युग में इनका आतंक दुनिया में कहीं से कहीं तक भी फ़ैल सकता है . <span style="line-height: 1.8;">कहते हैं ये नन्हे वैम्पायर हैं जो मानव खून के प्यासे हैं . </span><span style="line-height: 1.8;">वैसे तो खटमल (बेड बग्स ) मनुष्य के साथ उसके गुफा जीवन से ही जुड़े हैं मगर सभ्यता और साफ़ सफाई से इनका आतंक कमतर होता गया. १९४० के बाद से विकसित देशों में खटमलों का सफाया कीटनाशी रसायनों के चलते पूरी तरह हो गया .मगर अब इन देशों में कीट नाशी भी ज्यादा इस्तेमाल में नहीं हैं . लोग पूरी दुनिया में घूम रहे हैं और खटमलों को भी सूटकेस और सामानों के साथ ले आ जा रहे हैं .. </span></div>
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<span style="line-height: 1.8;">अब अमेरिका में तो इन नन्हे दैत्यों ने ख़ासा उत्पात मचा रखा है . वे होटलों ,घरों ,नर्सिंग होम ,शयन कक्षों .कार्यालयों और सिनेमा घरों में डेरा जमाये बैठे हैं . सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये मौसम के भारी अंतरों -तेज गर्मी और ठंड में ,सूखे और सीलन में अपने को बचाए रखने में सक्षम हैं. ज्यादा ठंडक में ये शीत निष्क्रियता में चले जाते हैं . अनुकूल मौसम आते ही सक्रिय हो उठते हैं ..बिना खाए वर्ष पर्यंत जिन्दा रह सकते हैं ...एक बेडरूम में हजारो की संख्या में हो सकते हैं . ये गद्देदार आसनों के मुरीद हैं ..कुशन और बिस्तरों को बहुत पसंद करते हैं .गद्दे के पोरों में और इलेक्ट्रिक साकेट में भी पनाह ले लेते हैं . ये रात में आपके खून के प्यासे हो उठते हैं और आपके सांस की गर्मी से सक्रिय हो उठते हैं -इनके ऊष्मा संवेदी अंग -एंटीना आपकी मौजूदगी को सहज ही भांप लेते हैं . </span></div>
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<a href="http://en.es-static.us/upl/2012/02/bed_bugs_450-300x197.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="419" src="http://en.es-static.us/upl/2012/02/bed_bugs_450-300x197.jpg" width="640" /></a></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px; text-align: center;">
<span style="background-color: rgba(0, 0, 0, 0.496094); color: #eeeeee; font-family: 'Lucida Grande', 'Lucida Sans', HelveticaNeue, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 10px; line-height: 12px; text-align: right;">Photo credit: </span><a href="http://health.utah.gov/epi/diseases/bedbugs/index.html" style="background-color: rgba(0, 0, 0, 0.496094); color: white; font-family: 'Lucida Grande', 'Lucida Sans', HelveticaNeue, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 10px; line-height: 12px; text-align: right; text-decoration: none;" target="_blank">Utah Department of Health</a>
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<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px; text-align: justify;">
<span style="line-height: 1.8;">अगर सुबह उठने पर आपके शरीर पर लाल रैशेज -चकत्ते दिखें तो वे खटमल के काटे हुए निशान भी हो सकते हैं ....बिस्तर पर लाल धब्बे आपके खून के हो सकते हैं ...अमेरिका में यह सब जानकारी इसलिए दी जा रही है कि वहां कई पीढ़ियों तक लोगों ने खटमल देखा भी नहीं है -मगर भारत की नयी पीढी हो सकता है इनके बारे में न जानती हो मगर पुन्नी पीढियां जो आज बाप दादों की क़तर में हैं इनसे परिचित हैं ....अगर अमेरिकी प्रवासी आपके यहाँ आने वाले हैं तो होशियार रहिये और उन्हें अलग कमरा ,बेड आदि देकर पहले खटमल -निरोधन की व्यवस्था करिए ....नहीं तो ये अनचाहे विदेशी मेहमान आपके घर में आ घुसेगें और आपको पता भी नहीं लगेगा . </span></div>
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<div class="blogger-post-footer">To take science to the common masses is a mission which is yet not fully accomplished in India as yet .Let us join hands to achieve this goal in order to make our country a truly S&T awakened nation.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com5