Wednesday, 22 July 2009

और सूर्य अंतर्ध्यान हो गए ...!


और अंतर्ध्यान हो गए सूर्य
एक्स रे फिल्टर से खीची फोटो में खग्रास सूर्य ग्रहण कुछ ऐसे दिखा
हम ५ बजे तक संतरविदास घाट पर पहुँच थे -अपने बायिनाकुलर और कार्ड बोर्ड आदि को सही सेटिंग देने में अभी बमुश्किल पल दो पल हुए होगें कि सूर्य देव बादलों के झुरमुट से सहसा प्रगट हो गए -रात में ,बल्कि ब्रहम बेला तक आसमान बिल्कुल साफ़ था -मगर बिल्कुल सूर्योदय के ठीक पहले तेज हवाओं के साथ बादलो के बड़े बड़े ढूहे -बगूले उठ उठ कर हमें डराने लगे -और फिर शुरू हुआ सूरज और बादलों की आँख मिचौली का खेल -और लो ग्रहण का स्पर्श हो गया -ठीक ५ बज कर तीस मिनट पर ! मेरे साथ बी एच यूं के अभिषेक मिश्र भी थे और मेरा पूरा परिवार -दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ . प्रसाद अपने शौकिया फोटोग्राफर बेटे के साथ खास तौर पर फ्लाईट से इसी घटना को देखने आयी थीं ! बादलो की आँख मिचौली से हमारा दिल धक् धक् कर रहा था -हमने बायिनाकुलर से प्रतिवर्तित फोटो सफ़ेद कार्डबोर्ड पर लेना शुरू कर दिया ! बगल के अस्सी घाट पर मीडिया का जमघट दिखायी दे रहा था !


मैं और अभिषेक बायिनाकुलर से परावर्तित चित्र के अध्ययन में जुटे रहे

ग्रहण के पूर्णता का आरम्भ ६ बज कर २४ मिनट और २३ सेकेण्ड से हुआ और चरम अवस्था ६ बज कर २५ मिनट ४४ सेकेण्ड पर आयी और कुल ३ मिनट सात सेकेण्ड तक सूर्य अंतर्ध्यान हो गए -अद्भुत नजारा था -जब सम्पूर्ण खग्रास हुआ अचानक धुंधलके बहुत गहरे हो गए -रात घिर आयी ! शुक्र ग्रह सिर के ठीक ऊपर चमक उठा -बनारस के सरे घाट बिजली के लट्टुओं से आलोकित हो गए ! एक अद्भुत सा रोमांच -हर्ष और भय सा महसूस हुआ !




और जब दिन में ही रात हो गयी !

और तभी वह डाईमंड रिंग सी रचना भी आसमान में आलोकित हो गयी यह चन्द्रमा के बिल्कुल समतल सतह न होने से विशाल दर्रों और गड्ढों से खग्रास सूर्य के समय निकल पड़ने वाले तीव्र प्रकाश पुंजहै -फोटोग्राफी का जिम्मा मेरे बेटे कौस्तुभ और बेटी प्रियेषा ने संभाल लिया था -मगर कैमरा साधारण ही था -मैं और अभिषेक बयिनाक्यूलर से आ रहे क्रमिक चित्रों का अध्ययन कर रहे थे -अभी तो बस इतना ही कुछ और यादगार बातें फिर !


और हीरक अंगूठी कुछ ऐसे बनी
थोडा एनलार्ज कर के देखें