यह तो इटोकावा है मगर जो गुजरी वह भी ऐसी ही मगर छोटी मौत थी ! सौजन्य :बी बी सी
पिछले सोमवार को जब हम ब्लागिंग स्लागिंग और जिन्दगी के दीगर लफड़ों में मुब्तिला थे तो एक मौत हवाई रास्ते सर्र से मानवता के सिर पर से गुजर गयी ! मौत क्या पूरी कयामत कहिये ! एक क्षुद्र ग्रहिका (एस्टरायड) आसमान में काफी नीचे तक ,करीब ७२००० किमी तक बिना नुक्सान पहुंचाए गुज़री ! इसका नाम २००९ ,डी डी ४५ था और यह ३०मीटर की परिधि की थी ! बताता चलूँ की यह दूरी चन्द्रमा की दूरी से पाँच गुना कम थी .यह क्षुद्र ग्रह थोडा और नीचे आ गया होता तो यहाँ साईबेरिया के तुंगुस्का क्षेत्र में सन १९०८ के दौरान हजारों परमाणु बमों को भी मात वाले विनाश सा मंजर दिखला जाता जो एक ऐसे ही क्षुद्र ग्रह के आ गिरने से हुआ था !
दरअसल मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच टूटे फूटे अनेक सौर्ग्रहीय अवशेष ,धूमकेतुओं के टुकड़े आदि एक पट्टी में सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं जहा से कभी कभी कभार ये पथभ्रष्ट होकर धरती का रूख भी कर लेते हैं ! धरती पर आसमान से दबे पाँव आने वाली इन मौतों का खतरा हमेशा मंडराता रहता है ।
अब नासा के जेट प्रोपोल्सन प्रयोगशाला से जारी ऐसे खतरनाक घुमंतू मौतों की सूची पर एक नजर डालें तो आज ही एक और क्षुद्र ग्रह धरती की ओर लपक रहा है ! पर इससे भी खतरे की कोई गुन्जायिश नही है -मगर ऐसे ही रहा तो बकरे की माँ कब तक खैर मनाएंगी ...एक दिन आसमानी रास्ते से दबे पाँव आयी मौत कहीं ....? कौन जाने ? मगर फिकर नाट वैज्ञानिक इन नटखट सौर उद्दंदों पर कड़ी और सतर्क नजर रखे हुए हैं जरूरत पडी तो जैसे को तैसा की रणनीति के तहत वे इन्हे परमाणु बमों से उड़ा देंगें या रास्ता बदल देने पर मजबूर कर देंगें !
सारी दुनिया की रक्षा का भार वैज्ञानिक उठाते आरहे हैं पर कितने अफ़सोस की बात है कि समाज उन्हें वह इज्जत नही देता ,उन्हें वैसा सर आंखों पर नहीं उठाता जितना वह नेताओं पर अभिनेताओं पर मर मिटने तक उतारू रहता है !
Science could just be a fun and discourse of a very high intellectual order.Besides, it could be a savior of humanity as well by eradicating a lot of superstitious and superfluous things from our society which are hampering our march towards peace and prosperity. Let us join hands to move towards establishing a scientific culture........a brave new world.....!
Thursday, 5 March 2009
सृजन नहीं बस विकास के हैं प्रमाण ! ( डार्विन द्विशती )
धरती पर अलौकिक सृजन और इसके पीछे किसी "इंटेलिजेंट डिजाइन " की भूमिका की सोच को जहाँ तर्कों के सहारे सिद्ध करने की चेष्ठाये हो रही हैं ,जीवों के विकास के कई पुख्ता प्रमाण मौजूद हैं ! कुछ को हम सिलसिलेवार आपके सामने लायेंगें ! बस थोड़े धीरज के साथ यहाँ आते रहिये और विकास की इस महागाथा में मेरे साथ बने रहिए !
यह है आर्कियोप्टरिक्स का फासिल
जीवाश्मिकी एक ऐसा ही अध्ययन का विषय है जो जमीन के नीचे दबे "गडे मुर्दों " की ही तर्ज पर अनेक जीव जंतुओं के अतीत का उत्खनन करता है ! मतलब जमीन में दफन सचाई जो विकास वाद के सिद्धांत को पुष्ट करती है ! इस धरा पर अब तक असंख्य जीव जंतु पादप जीवन व्यतीत कर काल कवलित हो उठे हैं ! उनमें से अपेक्षाकृत थोड़े ऐसे भी हैं कि धरती के गर्भ में मृत होकर भी अपने रूपाकार सरंक्षित किए हुए हैं -वे एक तरह से पत्थर सरीखे बन गए हैं जिन्हें जीवाश्म कहते हैं -यानी फासिल !
जीवाश्म दरअसल जैवीय अतीत की के वे स्मारक हैं जो विकास की गुत्थी सुलझाने में बडे मददगार हुए हैं ! इनमें परागकण ,स्पोर ,और सूक्ष्म जीवों की बहुतायत हैं जिनमें से अधिकाँश तो कई समुद्रों की पेंदी में मिले हैं ! कुदरत द्बारा इनको संरक्षित करने का काम बखूबी किया गया है जैसे वह ख़ुद विकासवाद के पक्ष में प्रमाणों की ओर इंगित कर रही हो ! कुदरत का ही एक तरीका ही जिसे पेट्रीफिकेशन या पत्थरीकरण कहते हैं जिसमें सम्बन्धित जीव समय के साथ पत्थर जैसी रचना में तब्दील होता जाता है ! ऐसे ही जीवाश्मों का एक बड़ा जखीरा एरिजोना प्रांत के बढ़ ग्रस्त इलाकों से मिला था ! वहाँ ज्वालामुखीय लावे में भी जीवों का रूप संरक्षण होता रहा है .
एक सबसे हैरतअंगेज जीवाश्म बावरिया क्षेत्र से मिला था जो रेंगने वाले जीवों यानि सरीसृपों और चिडियों के बीच की विकासावस्था का था -मुंह में दांत था , डैने विशाल थे !यह उडनेवाला डायनासोर सा लगता था . इसका नामकरण हुआ आर्कियोप्तेरिक्स !
कुछ ऐसा ही दीखता था आर्कियोप्टरिक्स
इसी तरह कनेक्टीकट घाटी में डायिनोसर के जीवाश्म पाये गये जिन्हें पहले तो
विशालकाय पक्षी समझ लिया गया था क्योंकि उनमे भी चिडियों के पैरों सदृश तीन उंगलियाँ ही थीं ! भारत में गुजरात और मध्यप्रदेश में भी डाईनोसोर के अनेक जीवाश्म पाये गये हैं !
यह है घोडे के विकास के क्रमिक चरण
घोडे और हांथीं के तो विकास के सभी चरणों के सिलसिलेवार जीवाश्म मिल चुके हैं जिन्हें देखते ही विकासवाद की कहानी मानों आंखों के सामने साकार हो उठती है !
और यह हाथी के पुरखे !
जारी ....
यह है आर्कियोप्टरिक्स का फासिल
जीवाश्मिकी एक ऐसा ही अध्ययन का विषय है जो जमीन के नीचे दबे "गडे मुर्दों " की ही तर्ज पर अनेक जीव जंतुओं के अतीत का उत्खनन करता है ! मतलब जमीन में दफन सचाई जो विकास वाद के सिद्धांत को पुष्ट करती है ! इस धरा पर अब तक असंख्य जीव जंतु पादप जीवन व्यतीत कर काल कवलित हो उठे हैं ! उनमें से अपेक्षाकृत थोड़े ऐसे भी हैं कि धरती के गर्भ में मृत होकर भी अपने रूपाकार सरंक्षित किए हुए हैं -वे एक तरह से पत्थर सरीखे बन गए हैं जिन्हें जीवाश्म कहते हैं -यानी फासिल !
जीवाश्म दरअसल जैवीय अतीत की के वे स्मारक हैं जो विकास की गुत्थी सुलझाने में बडे मददगार हुए हैं ! इनमें परागकण ,स्पोर ,और सूक्ष्म जीवों की बहुतायत हैं जिनमें से अधिकाँश तो कई समुद्रों की पेंदी में मिले हैं ! कुदरत द्बारा इनको संरक्षित करने का काम बखूबी किया गया है जैसे वह ख़ुद विकासवाद के पक्ष में प्रमाणों की ओर इंगित कर रही हो ! कुदरत का ही एक तरीका ही जिसे पेट्रीफिकेशन या पत्थरीकरण कहते हैं जिसमें सम्बन्धित जीव समय के साथ पत्थर जैसी रचना में तब्दील होता जाता है ! ऐसे ही जीवाश्मों का एक बड़ा जखीरा एरिजोना प्रांत के बढ़ ग्रस्त इलाकों से मिला था ! वहाँ ज्वालामुखीय लावे में भी जीवों का रूप संरक्षण होता रहा है .
एक सबसे हैरतअंगेज जीवाश्म बावरिया क्षेत्र से मिला था जो रेंगने वाले जीवों यानि सरीसृपों और चिडियों के बीच की विकासावस्था का था -मुंह में दांत था , डैने विशाल थे !यह उडनेवाला डायनासोर सा लगता था . इसका नामकरण हुआ आर्कियोप्तेरिक्स !
कुछ ऐसा ही दीखता था आर्कियोप्टरिक्स
इसी तरह कनेक्टीकट घाटी में डायिनोसर के जीवाश्म पाये गये जिन्हें पहले तो
विशालकाय पक्षी समझ लिया गया था क्योंकि उनमे भी चिडियों के पैरों सदृश तीन उंगलियाँ ही थीं ! भारत में गुजरात और मध्यप्रदेश में भी डाईनोसोर के अनेक जीवाश्म पाये गये हैं !
यह है घोडे के विकास के क्रमिक चरण
घोडे और हांथीं के तो विकास के सभी चरणों के सिलसिलेवार जीवाश्म मिल चुके हैं जिन्हें देखते ही विकासवाद की कहानी मानों आंखों के सामने साकार हो उठती है !
और यह हाथी के पुरखे !
जारी ....
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