Saturday, 15 October 2011

झींगुरों का रुनझुन यौन जीवन ...सुन सुन ...कहीं कुछ हमसे तो नहीं कहता?

अब भला इन क्षुद्र प्राणियों के इस निजी जीवन में किसी की क्या रूचि हो सकती है ..मगर मानवों एक एक ऐसा जिज्ञासु तबका है जो यहाँ भी  ताक झाँक लगाये रहता है -मतलब कीट व्यवहार विज्ञानियों का और मजेदार यह है कि ये इन हेय  प्राणियों के व्यवहार के भी निहितार्थ उच्च प्राणियों-मनुष्य  के व्यवहार से जोड़ते हैं . अब एक ताजा अध्ययन को ही लें जो करेंट बायलाजी शोध जर्नल में छपा है और जिसके मुख्य शोध वैज्ञानिक -लेखक  डॉ.रोलैंडो राड्रिग मुनोज हैं -इन्होने झींगुरो के यौन जीवन पर शोध करके पूर्व प्रचलित कई जानकारियों का खंडन किया है ..ऐसा माना जाता था कि झींगुरों में नर के प्रणय निवेदन के बाद मांदा द्वारा सर्व समर्थ नर के चुनाव और यौन संसर्ग के पश्चात भी ताक लगाये कुछ दूसरे नरों की लह जाती थी और सबसे बाद के नर के गर्भाधान से वजूद में आये अंडे ही आगामी पीढी में ज्यादा योगदान करते हैं ...ऐसा  दूसरे दूसरे कीटों में में भले  है मगर झींगुरों की शोध के अधीन आयी प्रजाति (Gryllus campestris) में तो ऐसा नहीं पाया गया है ...

झींगुरो का यौन जीवन के अध्ययन की प्रजाति (Gryllus campestris)
लैंगिक चुनाव में मादा द्वारा एक वांछित नर से संसर्ग के बाद भी दूसरे नरों के साथ जुडनें में खुद मादा की सहमति/ सहभागिता/झुकाव  का मुद्दा बड़ा ही विचारणीय रहा है ....कुत्तों में भी यही बहु -आधान व्यवहार दिखता है ....जहाँ एक मादा कई कुत्तों के साथ संसर्ग करती है ..इस व्यवहार के जैवीय वैकासिक बिंदु पर वैज्ञानिकों का गहन चिंतन मनन चलता ही रहा है -जब एक नर से ही संतति वहन का नैसर्गिक उद्येश्य पूरा होता हो तो फिर दूसरे नरों से संसर्ग की भला क्या आवश्यकता ....प्रकृति के ऐसे गूढ़ रहस्यों पर अभी भी पर्दा पूरी तरह उठा नहीं है मगर इनके पीछे छुपे गुह्य कारणों को व्यवहार वैज्ञानिक (ईथोलोजिस्ट ) जैवीय विकास के परिप्रेक्ष्य में समझने बूझने का प्रयास करते हैं और सामान्यतः समझ में न आने वाली इन गुत्थियों के  हल का प्रयास करते हैं ....मजे की बात यह है कि मौजूदा झींगुर प्रजाति में मादा दूसरे नरों की अभिलाषा नहीं रखती .....

इन 'क्षुद्र' प्राणियों पर दिन रात फोकस  अपने दो लाख से ज्यादा वीडियो फुटेज के श्रमशील अध्ययन के बाद डॉ.रोलैंडो राड्रिग मुनोज और उनकी टीम इस प्रेक्षण को बिना संदेह बयाँ कर पायी कि यहाँ मात्र एक नर से ही संसर्ग के बाद संतुष्ट हो रहने वाली झींगुर की रक्षा में नर झींगुर बड़ा ही मुस्तैद  रहता है और भले ही किसी शिकारी पक्षी का वह  खुद शिकार हो जाय सद्य गर्भित मादा को अपनी मांद में घुस जाने तक वह आक्रान्ता को उलझाये रखता है ....और प्रायः खुद वीरगति को प्राप्त हो जाता है ...और इसी का इनाम है उसे कि आगामी पीढी /संतति /वंशधर खुद उसी के ही होते हैं किसी गैर के नहीं ....इस प्राणोत्सर्ग कर देने वाले प्यार के मंजर में फिर दूसरे नरों  का आखिर क्या काम?  अब इसके मानवी निहितार्थ पर भी तनिक चिंतन कर लीजिए...नारी के लिए हर लिहाज से एक ही समर्थ पुरुष /पति संतति वहन के लिए प्रयाप्त है ....न न ऐसा कोई अध्ययन मनुष्य के संदर्भ में हुआ हो तो मुझे नहीं पता मगर ऐसे विचार तो मन में आ ही सकते हैं ....प्राकृतिक विकास की प्रक्रिया में भी ऐसे ही नर का चयन ज्यादा संभावित है क्योकि वह अपनी ही सरीखी समर्थ संतति के  जन्म/वजूद को सुनिश्चित कर रहा है ..

जो भी हो , इस झींगुर प्रजाति में तो बहरहाल तांक झाँक और मौके की तलाश में लगे नरों के लिए निराशा ही निराशा है ..मादा की भी कोई ऐसी रुझान नहीं है ...क्योकि वह खुद भी और उसकी वंश बेलि ऐसे नर के सामीप्य -संरक्षण में सुरक्षित है ...जब अगली पीढी तक सुरक्षित हो जाय तो  और भला चाहिए भी क्या ..पूरी रिपोर्ट यहाँ है ....