Sunday 1 June 2008

मछली के मुह मे चिडिया ने दाना डाला !

विषय की अकादमिक चर्चा शुरू करने के पहले आईये कुछ हल्की फुल्की बातें हो जायं .कल ज्ञान जी ने एक टिप्पणी की थी कि उनमें बस कुछ इन्नेट इथोलोजी व्यवहार -क्रोध आदि ही शेष रह गए हैं -सही फरमाया था उन्होंने .मानव में बहुत कुछ सीखा हुआ व्यवहार ही होता है -लेकिन कई इन्नेट व्यवहार से वह भी मुक्त नही है .
मगर यह इन्नेट व्यवहार क्या है ?हम सभी में कई ऐसे व्यवहार होते हैं जो जन्मजात ही आते हैं वे इन्स्तिन्क्टिव -यानि सहज बोध होते हैं .
पहले हम सहज बोध को समझ लें.
सद्यजात बछड़े को माँ[गाय] के थन तक कौन ले जाता है ?उसका सहज बोध .बहुत से प्रवासी पक्षी सहज बोध के चलते ही हजारो किमी यात्रा कर डालते हैं .जब वे उड़ने लायक होते हैं उनके माँ बाप पहले ही दूर देश की यात्रा पर उड़ के जा चुके रहते हैं -लेकिन आश्चर्यों का आश्चर्य कि वे बिना बताये ,बिना मार्ग दर्शन के लगभग उन्ही स्थलों पर जा पहुचते हैं जहाँ उनके माँ बाप डेरा जमाये रहते हैं .कौन उन्हें एक लम्बी और दुर्धर्ष यात्रा को प्रेरित करता है ?सहज बोध !
प्राणी जगत में सहज बोध के अनेक उदाहरण मिल जाएगें -यह विषय आज भी व्यव्हारविदों का पसंदीदा विषय है .यह व्यवहार बुद्धि से इतना पैदल होता है और अकस्मात घटित हो जाता है कि देखने वाले को हैरानी में डाल देता है -अब जैसे घोसले में बच्चों को दाना चुगाती चिडिया को बस एक बड़ी सी खुली चोंच दिखनी चाहिए वह तुरत फुरत उसी में चुग्गा डाल देगी .एक बार तो हद की सीमा तब पार हो गयी जब मुह मे दाना लिए आ रही एक चिडिया ने रास्ते की नदी में एक मछली के खुले मुह में ही अपना चारा डाल दिया. वह मछली सतह पर अचानक आकर खुली हवा से आक्सीजन गटक रही थी .ये सब सहज बोध के उदाहरण हैं .
हमारे नवजात बच्चे आँख जैसी ड्राईंग को देख कर मुस्करा पड़ते हैं -यह उनका केयर सोलिसितिंग रिस्पांस है .सहज बोध है . किसी सद्यजात बच्चे को निहार कर देखिये बह बरबस ही आपकी आंखों को देखकर मुस्करा देगा .
यह सहज बोध की कुछ बानगी है -आगे और कुछ !