Friday 22 August 2008

जीन डोपिंग का आया ज़माना ......

क्या जमैका वासी जन्मजात धावक हैं ?
खेल प्रतिस्पर्धाओं के लिए डोपिंग एक गंदा शब्द है .चीन में ओलम्पिक प्रतिस्पर्धाएं परवान पर हैं .डोपिंग को लेकर एक आशंका हमेशा ऐसे माहौल पर तारी रहती है .स्टेरायड डोपिंग का ज़माना लगता है लद गया है अब जीन डोपिंग की चर्चाएँ जोर पकड़ रही हैं !क्या है ये जीन डोपिंग ?
आईये इसे समझने का प्रयास करें ।
जीन डोपिंग जैवप्रौद्योगिकी की ऐसी नयी प्राविधि है जिसमें उन जीनों को शरीर में प्रविष्ट कराया जा सकता हैजिनसे शारीरिक क्षमता में अभूतपूर्व और अविश्वसनीय परिवर्तन आ जाय .ऐसे जीन शरीर की लाल रक्त कणिकाओं को बढ़ा देने वाले हो सकतेहैं जिससे एथेलीट को अपने परफार्मेंस के दौरान अधिक से अधिक आक्सीजन मिल सके और वह थके नहीं -इसी तरह एक जीन ऐसा खोजा गया है जो पैरों की एक मांसपेशी को काफी मजबूती दे सकता है और दौडों को जीतने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है .दरसल ये खोंजे चिकित्साविज्ञान की वे खोजें हैं जिनसे पीड़ित मानवता को राहत मिल सकती है -रक्ताल्पता का उपचार हो सकता है ,पेशियों के ढीलापन वाले रोगी ठीक हो सकते है -पर इनके खेलों -खास कर विश्व स्पर्धाओं में दुरूपयोग की संभावनाओं का डर बढ़ता ही जा रहा है -मुश्किल है कि कई प्रचलित डोपिंग के तरीकों जिन्हें पहचाना जा सकता है के ठीक विपरीत इनकी पकड़ अभी तक मुश्किल है -क्योंकि जीन कुदरती प्रणाली का हिस्सा बन जाते हैं और पहचान में नही आ पाते ।
एक सनसनी खेज बात बतायी है कोस्मो ने अपने ब्लॉग पर -उनके अनुसार ७० फीसदी जमैका वासियों में एक जीन है जो Actinen A नामक मांस पेशी को मजबूती देता है -मतलब ? जमैका वासी दौडों में कुदरतीतौर पर मजबूत हैं .इन सारे विषयों को न्यू साईंटिस्ट पत्रिका ने ओलम्पिक के अवसर पर कवर किया है -आप की रूचि हो तो यहाँ देख सकते हैं ।
मैं यह सोच रहा हूँ कि आख़िर भारतीयों को कुदरत ने ऐसे कोई गुण क्यों नही दिए जहाँ एकाध ओलम्पिक रिकार्ड मिल जाने को ही लोग झ्न्खते रहते हैं .ऐसे लोगों को ढूंढ कर उन्हें रिजर्वेशन देने का वक्त आ गया है ! क्यों ?