Wednesday, 30 March 2011

फैलती जा रही है जापान में रेडियो धर्मिता

तमाम प्रयासों के बावजूद भी जापान के फुकूशिमा डायची नाभिकीय सयंत्रों से निकले  रेडियो आईसोटोप आस पास के वातावरण को दूषित कर रहे हैं -लोगों को दूर हटाया  जा रहा है -उत्तरी पश्चिमी भू भागों में खेती प्रतिबंधित कर दी गयी है .निकटवर्ती समुद्र से मछलियों के  पकड़ने पर भी रोक लगाई गयी है .यहाँ आयोडीन १३७ और सीजियम -१३१ ही मुख्य रूप से रेडियो धर्मिता के लिए जिम्मेवार हैं .लेकिन इनकी एक बड़ी मात्रा उठे विकिरण -गुबार के साथ प्रशांत महासागर में फ़ैल गयी है ...
 जापान में फैलती रेडियो धर्मिता: नेचर न्यूज पर डेक्लान  बटलर  की रिपोर्ट

फुकूशिमा प्लांट के ४० किमी के दायरे में रेडियो धर्मी आईसोटोप की मात्रा अधिक है जो ०.१२५ मिलिसीवर्ट प्रति घन्टे(mSv h−१) से अधिक है किन्तु ०.३mSv h−१  से कम ही है जो मनुष्य पर अधिक हानिकारक प्रभाव डालती है .मगर कुछ स्थानों पर एक वर्ष पहुँचते पहुंचते रेडियो धर्मिता १००० मिली सीवार्ट तक   जा पहुंचेगी जो घातक  प्रभाव ड़ाल सकती है. जैसे रक्त की श्वेत   कणिकाओं के कम हो जाने से शरीर की रोग निरोधक क्षमता का ह्रास आदि ..

सयंत्र के उत्तरी पश्चिमी  क्षेत्र में रेडियो धर्मिता बढ़ रही है और वहां से सम्पूर्ण आबादी का फौरी तौर पर हटाया  जाना अब तय हो गया है .इंटरनेशनल एटामिक इनर्जी एजेंसी (IAEA)ने इस आशय की चेतावनी  दी है .चारों सयंत्रों को अभी भी "शांत " करने में सफलता नहीं मिल पायी है जबकि दूसरा तो रेडियो धर्मिता की घातक मात्रा उत्सर्जित  करने के कगार पर है .

नाभिकीय ऊर्जा का यह अभिशाप हमें इस ऊर्जा स्रोत के पुनर्मूल्यांकन का सबक दे रहा है .