Wednesday, 3 March 2010

नर -नारी समान तो हैं ,मगर अलग से हैं!

पहले ही बोल देता हूँ -यह पोस्ट एक जैवविद के नजरिये से है. आपका मंतव्य अलग भी हो सकता है. इन दिनों मैंने खुद अपने आलोच्य विषयगत अल्प ज्ञान को अद्यतन करने के (नेक ) इरादे से वर्तमान वैश्विक साहित्य संदर्भों को टटोला और कई रोचक बाते सामने आई हैं जिन्हें आपसे साझा करना चाहता हूँ -जो साईब्लाग के पहले से पाठक रहे हैं उनका किंचित पुनश्चरण भी हो जायेगा -यह भी मंशा है (कठिन शब्दों का अर्थ कोई सुधी जन जानना चाहेगें तो दिया जा सकता है! ) .सबसे रोचक बात तो यह है कि आज भी वयस्क पुरुष जहां अपने व्यवहार में बाल्य सुलभता लिए हुए हैं वहीं युवा नारी आकृति की बाल्य साम्यता बरकरार है -आईये जानें कैसे -

पंद्रह वर्ष की अवस्था का किशोर - पुरुष नारी के मुकाबले १५ गुना ज्यादा दुर्घटना सहिष्णु होता है .ऐसा इसलिए है कि वह नारी की तुलना में इस उम्र तक भी बच्चों के खेल खेल में /के जोखिम उठाने की  ज्यादा प्रवृत्ति रखता है .यद्यपि उसकी यह वृत्ति उसे खतरों के ज्यादा निकट ले आती है मगर यह उन प्राचीन दिनों की अनुस्मृति शेष है जब नर झुंडों को शिकार की सफलता के लिए  अनेक जोखिम उठाने पड़ते थे. शिकारी झुंडों में अमूमन ६-७ पुरुष होते थे-नारियां शिकार झुण्ड में न सम्मिलित होकर घर की जिम्मेदारी उठाती थीं .पुरुषों का काम जोखिम उठाना ही था -और इसमें जन हानि की संभावना भी रहती थी -और इस उत्सर्ग के लिए पुरुष परिहार्य थे-उनके प्रजनक ह्रास के योगदान की उस शिकारी कुनबे के अन्य सदस्यों से प्रतिपूर्ति तो उतनी मुश्किल नहीं थी जितना किसी संतति वाहक  नारी का प्राणोत्सर्ग! इसलिए भी नारी  का  आखेट  में जाना अमूमन प्रतिबंधित था .रोचक बातयह है कि कुछ बड़े अपवादों को छोड़ दिया जाय तो कालांतर के युद्धों में भी नारियां नहीं जाती थीं -एक पौराणिक  संदर्भ राजा दशरथ का है जिहोने कैकेयी को युद्ध में साथ लिया था और कैकेयी ने अंततः उनकी प्राण रक्षा भी की थी. शिकार या युद्ध में नारियों का ह्रास सीधे आबादी के  प्रजननं दर के ह्रास का कारण  बन सकता था .हमें ध्यान में रखना होगा कि  प्राचीन काल (लाख वर्ष पहले ) में जहाँ आबादी बहुत  कम थी -प्रजनन दर का  ह्रास सचमुच जीवन मृत्यु का ही प्रश्न था .


अपने कबीलाई काल के केन्द्रीय रोल में नारियां आखेट का काम छोड़कर अन्य किसी काम में  खूब प्रवीण थीं -वे घर की देखभाल के साथ कई कामों को एक साथ करने में निपुण होती गयीं और उनकी यह क्षमता आज भी उनके  साथ है .वे उत्तरोत्तर एक मल्टी  टास्कर के रूप में दक्ष होती गयीं .एक साथ ही कई काम कर लेने की उनकी क्षमता आज भी स्पृहनीय है .उनकी वाचिक क्षमता (गांवों में कभी महिलाओं को झगड़ते देखा है ?) ,घ्राण क्षमता (पति के विवाहेतर सम्बन्धों को सूंघ लेने की क्षमता -हा हा ) ,स्पर्श ,और रंगों की संवेदनशीलता पुरुषों से अधिक विकसित है .वे एक कुशल सेवा सुश्रुषा करने वाली ,ज्यादा वात्सल्यमयी ,और  निरोगी(रोग प्रतिरोधी )   बनती गयी हैं .निरोगी होकर वे ज्यादा समर्थ माँ जो होती हैं -संतति वहन का भार उनके कन्धों पर ज्यादा ही है .इस तरह विकास के क्रम में पुरुषों के मस्तिष्क  ने बाल्यकाल के जोखिम उठाने के उनकी बाल सुलभ गतिविधियों को नारी के बालिका सुलभ गतिविधियों की तुलना में ज्यादा स्थायित्व दे दिया .
शिकार का जोखिम 

पुरुष जहाँ आज भी ज्यादा कल्पनाशील ,जोखिम उठाऊ और अड़ियल /दुराग्रही/जिद्दी /उद्दंड बना हुआ है नारियां ज्यादा समझदार और ध्यान देने वाली हैं .इन व्यवहारों का  साहचर्य एक दूसरे का परिपूरक बनता गया  और मनुष्य के विकास का झंडा लहराता आया है .
                                                             बहुधन्धी गृह कारज
नर नारी समान तो हैं मगर अलग से हैं -१(जारी... )