


घड़ियाल गंगा नदी प्रणाली का एक देशज प्रतिनिधि है ,इसके लंबे थूथन के अन्तिम छोर पर एक मिटटी की घरिया [अर्थेन पोट ] नुमा रचना होती है जिसके कारण इसे घड़ियाल कहा जाता है .यह अपने संबन्धी मगरमच्छ की तुलना मे बहुत कम खतरनाक होता है मुख्य रुप से मछली खाकर ही अपना जीवन यापन करता है -गंगा प्रणाली मे ही पाई जाने वाली यह प्रजाति-Gavialis gangetica सबसे संकट ग्रस्त जंतुओं की सूची मे है -आख़िर इनके इस तरह से मरने का क्या रहस्य हो सकता है ?क्या इनका मुख्याहार -मछलियाँ तो संदूषित तो नही हैं ?या फिर एक बात मुझे यह भी कौंधती है कि कही गिद्धों के लगभग लुप्त हो जाने के बाद चम्बल नदी के आसपास मरे हुए पशु -ढोर जिन्हें गीध पलक झपकते चट कर जाते थे अब इन कुदरती सफायीकर्मिओं के न रहने पर भारी मात्रा मे चम्बल मे फेंके जा रहे होंगे और इन मृत अनिस्तारित पशुओं के शरीर मे डिक्लोफेनिक दवा के अंश घरियालों के शरीर मे जमा होकर ठीक उसी भाति इनके गुर्दों को नाकाम कर रहा है जैसे इसी दवा ने गिद्धों का लगभग खात्मा ही कर दिया .हम जानते है कि डिक्लोफेनिक एक दर्द निवारक प्रतिबंधित दवा है फिर भी पशुपालक इनका अब भी प्रयोग कर रहे हैं ।
जो भी हो घडियालों की इन बेसाख्ता मौतों पर जल्दी ही कुछ करना होगा -पर किसे ???