Wednesday, 14 January 2009

पुरूष पर्यवेक्षण : कभी न थकने वाले मेहनतकश हाथ !

मनुष्य के शरीर के सबसे व्यस्त ,मेहनतकश अंग हाथ हैं -मगर क्या कभी आपने किसी से भी अपने हाथों को थकने की शिकायत सुनी है ?जबकि पैरों के थकने के गिले शिकवे अक्सर सुनने को मिलते रहते हैं .अब देखिये न हाथों और उँगलियों की व्यस्तता के बाबत लिखते हुए मेरे हाथों की उंगलियाँ की बोर्ड पर थिरक कर अपनी व्यस्तता ख़ुद बयाँ कर रही हैं .एक आकलन के मुताबिक किसी भी सामान्य उम्र वाले आदमी की उंगलियाँ उसके जीवन काल में कम से कम पचीस करोड़ बार मुड़ती सिकुड़ती हैं !

बचपन से ही सक्रिय हो उठते हैं मानव शिशु के हाथ (चित्र सौजन्य -करेंट डाट काम )






हमारी जैवीय विरासत ने पुरुषों की मुट्ठियों की पकड़ को ज्यादा ताकतवर (पावर ग्रिप ) बनाया है .क्योंकि उन्हें शिकार आदि में शस्त्रों के संधान में मजबूत मुट्ठी की पकड़ की निरंतर जरूरत थी ! आज भी ऐसे कई कामों में जिनमें मुट्ठी की मजबूत पकड़ की जरूरत रहती है पुरुषों का दबदबा कायम है जैसे बढ़ईगीरी आदि के काम ! यह तो रही पावरग्रिप की बात ,इसके अलावा एक और हुनर जिसमें मनुष्य को समूचे पशु जगत में महारत हासिल है वह है -

प्रीसीसन ग्रिप -उँगलियों की बारीक महीन पकड़ ! पावर ग्रिप में तो समूचे अंगूठे और समूची पूरी उँगलियों का रोल होता है जो विपरीत दबाव डाल कर फौलादी पकड़ को अंजाम देती हैं मगर प्रीसीसन ग्रिप में बारीक नाजुक काम अंगूठे और उँगलियों के पोरों के योगदान से सम्भव होता है जिसमें नारियों को महारत हासिल है .आज भी सिलाई ,कढाई ,बुनाई और सजावटी-नक्काशी के महीन कामों का जो हुनर नारी हाथों का है उसकी बराबरी आम तौर पर पुरूष नही कर पाते !

कहते हैं कि कुम्हारों के चाक के वजूद में आने के पहले मिट्टी और सिरामिक के बर्तनों पर नक्काशी का सारा काम नारी के ही जिम्मे था -प्राचीन प्रस्तर काल में मिटी के बर्तनों -मृद्भांडों(पाटरी ) पर रंग रोशन और चित्रकारी ही प्रमुख कला कौशल था -सर्जनात्मक कलात्मकता बस इन्ही कामों में झलकती थी और ये काम मुख्य रूप से नारियों के ही हाथ में थे तो यह कहा जा सकता है कि मनुष्य की लम्बी विकास यात्रा में कलात्मकता का सूत्रपात नारी के ही करकमलों से ही हुआ ! यह एक ऐसा पहलू है जिसे प्रायः इतिहासकार और पुरातत्वविद भी अनदेखा करते जाते हैं -पर पुरूष पर्यवेक्षण में यह पहलू एक महत्वपूर्ण लैंगिक विभेद के रूप में उभरता है !
तो इस तरह यह तय पाया गया है कि पाषाण युग से ही नर नारी के संदर्भ में एक "हैण्ड बायस " बना रहा है -जिसमें ताकत (पावर ग्रिप ) तो पुरुषों की मुट्ठी में आ समाई है तो उँगलियों के महीन काम की सौगात कुदरत ने नारी को सौपी है !

तो फिर भला बताईये परस्पर पंजा लडाने के खेल में नर नारी में से कौन जीतेगा ? ( जारी ....)