विष्णु की नाभि से जन्मे हैं ब्रह्मा ( सौजन्य -द वैष्णव वायस )
पुरूष पेट के मानचित्र पर नाभि एक पूरा द्वीप ही है ! और एक खान्च्दार (डिप्रेसन ) रेखा भी नाभि से वक्ष के निचले हिस्से तक जाती है -मगर यह नाभि रेखा ( लीनिया अलवा ) तुंदियल लोगों में नही दिखती .छरहरे युवाओं में यह स्पष्ट और नाभि के नीचे तक भी दर्शनीय है .नाभि की अंतर्कथा बहुत रोचक है -पुराने समय के चित्रकारों के सामने -खासतौर पर ईसाई धर्म के अनुयायी के सामने यह संकट आन पड़ा कि आदम के चित्रों में नाभि दिखाएँ भी अथवा नहीं .क्योंकि आदम 'गर्भजात ' तो थे नहीं और जब "ईश्वर ने मनुष्य को अपनी ही इमेज में बनाया " है तो ईश्वर को भी नाभि तो होनी ही चाहिए ! यह उधेड़बुन चलती रही ! हिन्दू पुराण -दर्शन में कोई भ्रम नही रखा गया -क्षीर सागर में शयनरत विष्णु की नाभि तो दिखायी ही गयी उससे एक कमल नाल और कलमल पुष्प और उस पर विराजे ब्रह्मा को को भी दर्शित किया गया ।
सबसे रोचक मामला तो तुर्कों का है जिनकी एक दंतकथा के मुताबिक जब अल्लाह मियाँ ने पहला आदमी बनाया तो शैतान आग बबूला हो उठा और नवजात पर हिकारत से थूक बैठा और वह थूक नवजात के पेट के बीचों बीच आ गिरा -मगर अल्लाह के उस थूक के तुरंत हटाने की जल्दी में कि कहीं यह पूरे शरीर तक न फैल जाय एक गड्ढा सा बन गया जो नाभि(बोडरी) कहलाया ! बुद्ध दर्शन भी नाभि को बडी महत्ता देता है और उसे ब्रह्मांड का का केन्द्र तक मानता है !
नारी नाभि तो कामुकता के परिप्रेक्ष्य में ली जाती है मगर पुरूष नाभि इस अल्न्कारिकता से वंचित ही है -सब जानते हैं कि नाभि माँ के पेट में उससे प्लेसेंटा के जरिये जुड़ कर पोषण प्राप्त करने का माध्यम रही है इसलिए नाभि नाल सम्बन्ध को जीवन दाई सम्बन्ध के रूप में देखा जाता है !
पेट को गुदने गुदाने के परिक्षेत्र के रूप में भी बड़ा फोकस मिला है !
पेट पर्यवेक्षण के बाद हम अब कूल्हे तक आ पहुँचते हैं !
जारी ....