पुराने जमाने में दाढी शक्ति ,सामर्थ्य और मर्दानगी की निशानी समझी जाती थी .जिसकी दाढी मूछ किसी भी कारण से मुड़वा उठती थी उसे काफी शर्मिन्दगी उठानी पड़ती थी .उस समय गुलामों ,दुश्मनों और बंदियों की दाढी मूछ मुड़वाने का चलन था .यह उनके लिए किसी अपमान से कम नही था .दाढी पर लोग सौगंध तक खा जाते थे और पब्लिक इस सौगंध पर भरोसा भी रखती थी .यहाँ तक की कई देवताओं तक को दाढी वाला माना जाता था .अपने आदि देव शंकर महराज ही लंबे जटा जूट वाले दिखाए जाते थे .प्राचीन मिस्र के धार्मिक अनुष्ठानों पर धर्मदूतों की लम्बी दाढी लोगों को आकर्षित करती थी .यह उनकी कुलीनता और बुद्धि के स्तर का प्रतीक थी ।
दाढी महात्म्य के चलते ही कई पुरानी सभ्यताओं -पर्सियन ,सुमेरियन ,असीरिया तथा बेबीलोन के शासक अपने दाढियों के साज सवार में काफी समय जाया करते थे .दाढी पर तरह तरह के रंग रोशन ,इत्र ,तेल फुलेल लगाए जाते थे .कहीं कहीं तो दाढी पर स्वर्ण कणों की फुहार भी होती थी ।
स्वैच्छिक तौर पर दाढी मूछ मुड़वाने की शुरुआत ईश्वरीय सत्ता के सामने दास्य भाव के प्रदर्शन से हुई लगती है .फिर प्राचीन ग्रीस और रोम की सेनाओं में दाढी को सफाचट रखने का फरमान जारी हुआ जिससे दुश्मनों से आमने सामने के टक्कर में कहीं सैनिक अपनी दाढी को नुचने से बचाने के ऊहापोह में मात न खा जायं .कहते हैं कि सिकन्दर महान ने अपनी सेना के लिए यह स्थायी आदेश दे दिया था कि कोई भी सैनिक दाढी मूंछ नहीं रखेगा .जिससे उसके सैनिक बेखौफ लड़ सकें .सेनापति को युद्ध के मैदान में इसतरह अपने युद्ध रत सैनिकों के पहचान में सुभीता हो गया .
इसतरह दो तरह के रिवाज शुरू गए -एक दाढीवाला दूसरा बिना दाढीवाला ! अब अपने अपने रोल माडल या मुखिया की तरह दाढी रखने या दाढी सफाचट रखने का फैशन शुरू हो गया .एक फ़्रांसीसी राजा ने अपने ठुड्डी के घाव को छुपाने के लिए दाढी उगा ली -फिर क्या था उसके अनेक अनुयायी भी ठीक उसी तरह दाढी रखने लगे -शायद फ्रेंच कट दाढी इसी के चलते फैशन में आयी .मगर इन ख़ास वर्गों के अलग लोग बाग़ दाढी रखने से परहेज करने लगे .मगर एलिजाबेथ के काल का एक समय ऐसा भी था कि दाढी रखने वालों पर टैक्स लगाया जाने लगा -जिसके चलते दाढी जहाँ आम आदमी के चेहरे से विलोपित होती गयी वही धनाढ्य वर्ग की पहचान भी बनती गयी जो टैक्स चुका कर भी दाढी रख रहे थे .भारत में भी ढोंगी संन्यासी भगवान् के नाम पर अपनी दाढी मूछ मुड़वाने लगे -मूछ मुडाई भये संन्यासी !
अभी कुछ और भी है .......