Wednesday 17 June 2009

मानव एक नंगा कपि है ! (डार्विन द्विशती ,विशेष चिट्ठामाला -3)

प्रमाण ही प्रमाण
ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि मानव की वैकासिक प्रक्रिया का केन्द्र स्थल अफ्रीका था। वहाँ के विराट जंगलों में विकास की एक विराट यात्रा चुपचाप सम्पन्न हो रही थी। आज के विकासविद् अफ्रीका को मानव विकास का पालना मानते हैं। आज के लगभग 7 करोड़ वर्ष पूर्व, आधुनिक लीमर व टार्सियस के संयुक्त पूर्वज `प्रासिमियन्स´ के क्रमानुक्रमिक विकास से जहाँ अफ्रीकी जंगलों में एक ओर बन्दरों का विकास हुआ तो वहीं इनसे ही कालान्तर में कपि सदृश प्राणी `एजिप्टोपिथेकस´ का विकास हुआ। इसी कपि सदृश प्राणी ने आज के वर्तमान कपियों व मानव के संयुक्त पूर्वज ``ड्रायोपिथेकस´´को विकसित किया। `ड्रायोपिथेकस´ पूरा `चौपाया´ ही नहीं था बल्कि उसके दोनों अगि्रम हाथ कभी-कभी स्वतंत्र कार्य कर लेते थे, तब वह दो पैरों पर ही खड़ा हो चल भी लेता था।


प्राणी विकास की दूसरी महान घटना का सूत्रपात `डायोपिथेकस´ के दोनों अगि्रम हाथों के स्वतन्त्र हो जाने से हो गया था। एजिप्टोपिथेकस , ड्रायोपिथेकस व अन्य वानर पूर्वजों के जीवाश्म उत्खननों के दौरान प्राप्त हुए हैं , जीवश्मों के अध्ययन से यह पता चलता है कि `ड्रायोपिथेकस´ की एक शाखा से लगभग 2 करोड़ वर्ष पूर्व कपियों या वनमानुषों का वंशक्रम चला- जिससे आज के गोरिल्ला, चिम्पान्जी, गिब्बन व ओरंगउटान विकसित हुए। ये सब झुककर चलते थे, मुँह सामने न होकर नीचे की ओर झुका सा रहता था। इसका कारण यह था कि इनमें रीढ़ की हड्डी सीधी न होकर झुकी अवस्था में थी।

मानव के आदि स्वरूप, `रामापिथेकस´ का जन्म :
`ड्रायोपिथेकस´ की दूसरी शाखा से पहली मानव आकृत उभरी-`रामापिथेकस´ के रूप में। `रामापिथेकस´ के जीवाश्म अवशेष भारत की शिवालिक पहाड़ियों (चण्डीगढ़) में भी मिले हैं। मानव का आदि स्वरूप लगभग एक करोड़ वर्ष पूर्व अवतरित हुआ था। यह अपेक्षाकृत सीधा खड़ा हो सकता था। अग्रपाद पूर्णतया स्वतंत्र होकर `हाथों का स्वरूप ले चुके थे। यह अपनी `टांगों पर सुगमता से चल सकता था, भाग दौड़ कर सकता था। मस्तिष्क अच्छी तरह विकसित हो गया था। मस्तिष्क जो सोचता था, हाथ उसे क्रियािन्वत रूप देने का प्रयास करते थे। मस्तिष्क और स्वतंत्र हाथों के इस संयोजन ने इसे एक अद्भुत क्षमता प्रदान कर दी थी, जिसने विकास प्रक्रिया को आधुनिक मानव तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त किया।





वनमानुष से आदमी तक का सफर




समय बीतता गया। `रामापिथेकस´ का तन-मन और विकसित तथा अनुकूलित होता गया। इसका ही विकसित स्वरुप `आस्ट्रैलोपिथेकस´ कहलाया। आस्ट्रैलोपिथेकस ने ही आगे चलकर आधुनिक मानवों के सीधे पूर्वजों (होमो इरेक्टस ) को जन्म दिया। `होमो इरेक्टस´ (सीधा मानव ) एक तरह से पूरा मानव बन चुका था। यह पूरी तरह से सीधा होकर चलता था, दौड़ता था, झुण्डों में जंगली पशु-पक्षियों को आखेट करता था। नयेन्डर्थल घाटी में इनके वंशजों को जीवाश्म मिले हैं जो `नियेन्डर्थल मानव´ के नाम से जाने जाते हैं। होमोइरेक्टस का ही एक पूर्ण विकसित स्वरूप `क्रोमैगनान मानव´´ कहलाया। क्रोमैगनान मानव आज के मानवों (होमो सेपियेंस- बुद्धिमान मानव) के स्वरूप में अपना भविष्य सुरक्षित करके विलुप्त हो गया।

आधुनिक मानव का विकास अभी भी हो ही रहा है- उसके आगामी स्वरूपों का निर्धारण भविष्य करेगा। परन्तु विकास की दृष्टि में, भविष्य, अतीत पर ही अवलिम्बत होता है, स्वतंत्र निर्णय की क्षमता उसके वश की बात नहीं।

जारी