चान्द्र शीर्ष पुरूष -एक पर्यवेक्षण
केशव केशन अस करी जस अरिहू न कराहिं
चन्द्र मुखी मृगलोचनी बाबा कहि कहि जाहिं
महाकवि केशव की यह दृष्टि व्यवहार विज्ञान की कसौटी पर आज भी खरी है -क्योंकि कि पुरूष के बाल का सफ़ेद होना उसके वृद्धावस्था के आरम्भ के अनेक लक्षणों में से एक लक्षण तो हैं ही .राजा दशरथ ने अपने बालों की सफेदी देखकर राजपाट छोड़ने की तैयारी कर ली थी .
लेकिन पुरूष के लिए बालों की सफेदी से बढ़कर एक और चिंता का सबब है सर से बालों का इक सिरे से ही गायब होते जाने का -जो समाज में उसके हास परिहास का भी बायस बन जाता है-टकला,चान्दवाला आदि फब्तियां पुरूष के लिए 'मेरा दर्द न जाने कोय ' किस्मका दुखदर्द भी दे जाता है .खल्वाट खोपडी यानी टकले होते जाने का भी एक भरा पूरा विज्ञान है .
आईये पुरूष पर्यवेक्षण के इस पहले पड़ाव पर खोपडी पर बालों की इसी कारस्तानी का जायजा लेते चलें -
टकले होने के चार मुख्य पैटर्न मार्क किए गए हैं -बाकी इन चारों के मिलेजुले अनेक पैटर्न हैं .ये चार मार्क हैं -
१-द विंडोज पीक -इसमें सर के मध्य भाग में तो एक शिखा पट्टी बनी रहती है मगर अगल बगल से माल असबाब यानी बाल सफाचट होने लगते हैं .
२-द मांक पैच-यहाँ आगे के बाल तो सही सलामत रहते हैं मगर पीछे से इक चाँद उगने को बेताब नजर आता है .
और दिन ब दिन पूर्णिमा की ऑर अग्रसर होता है .
३-द डोम्द फोरहेड - सर के अगले भाग के लगभग आधे हिस्से से बालों का लोकार्पण हो उठता है और एक चंद्र सतह अनावृत्त हो उठती है .और
४-नेकेड क्राउन में सर के अगले भाग से शुरू होकर एक स्वेज नहर ख़ुद ब ख़ुद खुदती चली जाती है .मगर इस नहर के अगल बगल के तट बंधों पर बालों की एक फसल लहलहाती रहती है .यह ठीक विडोज पीक का उल्टा नजारा होता है .
ये तो रहे चार मुख्य पैटर्न -मगर ऐसे भी नर पुंगव हैं जिनमें ये चारो पैटर्न मिल जुल कर अठखेलियाँ खेलते हैं और तरह तरह के नजारे पेश करते हैं .
हे मेरे चंद्र्शीर्ष पुरूष मित्रों तुम कतई उदास न होना अगले अंक में आप के लिए एक जबरदस्त ख़बर है .कुदरत सबके सुखदुख का ख्याल रखती है -और हे चंद्र्मुखियाँ तुम केवल चन्द्र्सतह से मत भरमाना वह केवल एक भरम मात्र ही है .जी हाँ अगले अंक में होगा खुलासा !!
Science could just be a fun and discourse of a very high intellectual order.Besides, it could be a savior of humanity as well by eradicating a lot of superstitious and superfluous things from our society which are hampering our march towards peace and prosperity. Let us join hands to move towards establishing a scientific culture........a brave new world.....!
Friday, 15 August 2008
ब्लागरों के लिए एक खुशखबरी !
ब्लॉगर एट कीबोअर्ड
साईन्टिफिक अमेरिकन के अभी माह जून ०८ के अंक में ब्लागिंग के कई चिकित्सकीय पहलुओं का खुलासा हुआ है .ब्लागिंग तनाव के साथ ही ब्लॉगर के लिए कई दूसरे स्वास्थ्य लाभों का दरवाजा खोल देता है .जेस्सिका वैप्नेर अपने वैज्ञानिक लेख में बताती हैं कि चिट्ठाकारिता स्मरण शक्ति में इजाफे के साथ ही नीद पूरी होने की प्रक्रिया में भी मददगार है .यह ब्लॉगर की रोगरोधक क्षमता को भी बढ़ाने वाला पाया गया है .यहाँ तक कि इसे ऐड्स के रोगियों में वाईरल लोड को कम करने वाला पाया गया है .कई तंत्रिका विज्ञानियों का मानना है कि ब्लागिंग मस्तिष्क के कतिपय फायदे वाले रसायन -हारमोनों के स्त्रवन को उद्दीपित करता है .जिससे एक आनंद दायक मानसिक अनुभूति तो मिलती ही है -स्त्रवित रसायन शरीर की जैवरासायनिक क्रियाओं पर भी माकूल प्रभाव डालते हैं .
हारवर्ड विश्वविद्यालय के न्युरोविग्यानी अलायिस फल्हेर्टी ने हायीपर्ग्रैफिया -लिखने की कशिश वाले लोगों के मामलों का अध्ययन कर रही हैं .कुछ लिख कर अपने को अभिव्यक्त करने की अदम्य अकुलाहट जैसा ही एक नशा और होता है बात करने का .कुछ लोग बहुत बातूनी होते हैं .ब्लागिंग और बातूनीपन में एक साम्य पाया गया है कि ये दोनों गतिविधियाँ मस्तिस्क के लिम्बिक प्रणाली को उद्दीपित करती हैं .मस्तिष्क के मध्य भाग में पाया जाने वाली लिम्बिक प्रणाली कई अदम्य लालसाओं का केन्द्र बिन्दु होती है .मसलन भोजन करने ,कामोद्दीपन या किसी पहेली को हल करने में यही लिम्बिक प्रणाली निर्णायक भूमिका निभाती है. अब चूंकि ब्लाग्गिंग की गतिविधि से यह क्षेत्र उद्दीपित होता पाया गया है जिसमें डोपामाईन नामक रसायन स्रावित होता है .यह रसायन आनन्दानुभूति के लिए जाना जाता है .अमेरिका में कई हास्पिटलों में मरीजों द्वारा संचालित कई कम्युनटी ब्लागों का प्रचालन शुरू हुआ है .रोगियों में इसके पार्टी उत्साह देखा जा रहा है .कुछ लिंक्स आप भी देख सकते हैं -यहाँ ,यहाँ और यहाँ .
हारवर्ड विश्वविद्यालय के न्युरोविग्यानी अलायिस फल्हेर्टी ने हायीपर्ग्रैफिया -लिखने की कशिश वाले लोगों के मामलों का अध्ययन कर रही हैं .कुछ लिख कर अपने को अभिव्यक्त करने की अदम्य अकुलाहट जैसा ही एक नशा और होता है बात करने का .कुछ लोग बहुत बातूनी होते हैं .ब्लागिंग और बातूनीपन में एक साम्य पाया गया है कि ये दोनों गतिविधियाँ मस्तिस्क के लिम्बिक प्रणाली को उद्दीपित करती हैं .मस्तिष्क के मध्य भाग में पाया जाने वाली लिम्बिक प्रणाली कई अदम्य लालसाओं का केन्द्र बिन्दु होती है .मसलन भोजन करने ,कामोद्दीपन या किसी पहेली को हल करने में यही लिम्बिक प्रणाली निर्णायक भूमिका निभाती है. अब चूंकि ब्लाग्गिंग की गतिविधि से यह क्षेत्र उद्दीपित होता पाया गया है जिसमें डोपामाईन नामक रसायन स्रावित होता है .यह रसायन आनन्दानुभूति के लिए जाना जाता है .अमेरिका में कई हास्पिटलों में मरीजों द्वारा संचालित कई कम्युनटी ब्लागों का प्रचालन शुरू हुआ है .रोगियों में इसके पार्टी उत्साह देखा जा रहा है .कुछ लिंक्स आप भी देख सकते हैं -यहाँ ,यहाँ और यहाँ .
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