कैसी है यह नाक ?
एक अनुरोध : इस ब्लॉग पोस्ट के कतिपय अंश कुछ लोगों को आपत्तिजनक लग सकते हैं -यहाँ वर्णित तथ्यों से लेखकीय सहमति भी हो यह अनिवार्यतः आवश्यक नही है .आप की रुचि यदि मानव समाज जैविकी ,व्यवहार शास्त्र या फिर जैविकी में हो तो यह पोस्ट आपके लिए ही है .सामाजिक सरोकारों के पैरवीकारों का भी स्वागत है बशर्ते वे अपने आग्रहों से मुक्त होकर यहाँ आयें !
सवाल नाक का है !
जीवन मरण का प्रश्न बन जाती है पुरुष की नाक ,यह हम जानते ही हैं .मगर पास्कल (PASCAL) की यह उक्ति अक्सर उधृत की जाती है कि "क्लियोपेट्रा की नाक ने समूची दुनिया का नक्शा ही बदल डाला था .अपने ही यहाँ देखें सूर्पनखा की नाक ने एक भयानक युद्ध ही करा डाला-ऐसा पुराणों में वर्णित है .मगर इन कथित घटनाओं के काफी बाद अपनी इस जानी पहचानी दुनिया में ही चार्ल्स डार्विन की नाक ने तकरीबन २०० वर्ष पहले १८३१ में विश्व के वैचारिक इतिहास के चहरे की नाक में ही फेरबदल कर डाला -जबकि एच एम् एस बीगल में अपनी विश्व यात्रा के लिए निकलनें में डार्विन की नाक ने अड़चन डाल दी थी .समुद्री जहाज के कैप्टन फित्ज्राय ने डार्विन की नाक देखते ही उन्हें यात्रा में साथ ले जाने को मना कर दिया था -क्योंकि उसके मुताबिक डार्विन के नाक का आकार ऐसा था कि वे न तो मान्सिक्म रूप से परिपक्व लग रहे थे और न ही परिश्रमी !इतिहास गवाह है कि फित्ज्राय ग़लत थे ...डार्विन ने विकास वाद को सिद्धांत का जामा पहनाया और विज्ञान की नाक बचा ली .....
व्यवहार विज्ञानियों की राय में पुरुष की नाक उसके चहरे के जोक रीजन -मनोविनोद के रूप में जानी जाती है.कैसी कैसी नाके बनायी हैं विधाता ने -गोली ,चपटी .फैली .पिचकी ,सुतवां ,लम्बी .मोटी ,नाटी -अनेक आकार प्रकार की -कुछ की तोते की चोंच के आकार की नाक है तो कोई चहरे पर एक छोटा मोटा बैगन लिए घूम रहा है .यानी जितने लोग उतनी नाकें .....व्यवहार विज्ञानी कहते हैं कि नाक तो वही सौन्दर्यपरक है जिसमें किसी फीचर की प्रतीति न हो .अर्थात वह फीचर लेस हो ....जहाँ नाक ने कोई फीचर अंगीकृत किया वह सुन्दरता के पैमाने से खिसकी..मानव शिशु की नाक इस मामले में सुन्दरता का आदर्श मानी गयी है .यह सुघड़ छोटी और फीचर लेस है पर बरबस ही आकर्षित करती है -क्यूट है !पर किशोरावस्था पार होते होते यह ज्यादातर मामलों में कोई फीचर ग्रहण करने लगती है और इसके अनकुस से दिखने की संभावना बढ़ने लगती है.इसलिए सुन्दरता के पैमाने पर मानव शिशु की नाक ही आदर्श बन गयी है -जिस पुरुष(और नारियों की भी !) नाक शिशु की जैसी आनुपातिक सीमा में छोटी और फीचर्लेस हो वह सुंदर मानी जाती है -विश्व के अनेक भागों में -भारत के बारे में यह अभी भी शोध का विषय हो सकता है ।
मगर पुरुष की बड़ी नाक पौरुष की निशानी मानी गयी है .नेपोलियन बोनापार्ट को लंबे नाक वाले लोग पसंद थे .विश्व के कई भागों में पुरुष की नाक और उसके अंग विशेष साम्य की भी चर्चा है -मगर वास्तविकता तो यह है कि किसी मनुष्य की नाक के सायिज़ और उसके अंग विशेष के बीच कोई साम्य सम्बन्ध नही है -जैव विदों ने यह नाप जोख कर तय पाया है.मगर एक बात तो है -पुरुष के शारीरिक मध्य रेखा पर ये दोनों ही अंग विराजमान है - और दोनों के तापक्रम साम्य तथा कुछ दूसरे अद्भुत साम्य तो प्रमाणित हैं ........जारी !