सोम के लिए नयी दावेदारी -यार -त्सा - गम्बू [yar-tsa-gambu] एक फन्फूद [कवक] और एक किस्म के मोथ [पतंगे] का मिश्रित रुप है.तिब्बती बोल चाल मे यार त्सा गम्बू का मतलब है 'जाड़े मे कीडा और गर्मी मे पौधा 'यह एक रोचक मामला है. होता यह है कि एक मोथ [पतंगा ]गर्मियों मे पहाडों पर अंडे देता है जिससे निकले भुनगे तरह तरह की वनस्पतियों की नरम जड़ों से अपना पोषण लेते हैं .इतनी ऊंचाई पर और कोई शरण न होने के कारण जाड़े से बचाव के उपक्रम मे ये भूमिगत हो जाते हैं और तभी इनमे से कुछ हतभाग्य एक मशरूम प्रजाति की चपेट मे आ जाते है जो अब इन भुनगों से अपना पोषण लेते हैं .जाड़े भर यह परजीवी मशरूम और अब तक मृत भुनगा जमीन के भीतर पड़े रहते हैं और मई माह तक बर्फ पिघलने के साथ ही मशरूम की नयी कोपल मृत भुनगे के सिर से फूटती है -यह विचित्र जीव -वनस्पति समन्वय ही स्थानीय लोगो के लिए यार सा गम्बू है .इससे अब् व्यापारिक स्तर पर एक रसायन -कर्डीसेप्तिन का उत्पादन शुरू हो गया है जो बल-ओज ,पुरुसत्त्व और खिलाडियों की स्टेमिना बढाने मे कारगर है - इसकी कीमत प्रति किलो १.५ लाख है .यह तिब्बत और उत्तरांचल की पहाडियों खास कर पिथौरागढ़ मे मिल रहा है और अब तो इसकी कालाबाजारी भी हो रही है .कहीं यही तो सोम नही है ?यदि सोम की प्रमाणिकता साबित हो जाती है और भारत अपनी बौद्धिक दावेदारी इस चमत्कारी
वनस्पति पर साबित कर लेता है तो बस पौ बारह समझिए .