ये होठ हैं या पंखुडिया गुलाब की ....जी हाँ सौन्दर्य प्रेमियों ने नारी के होठों के लिए गुलाब की पंखुिड़यों, रसीले सन्तरे कीफांक जैसी कितनी ही उपमायें साहित्य जगत को सौपी हैं। मानव होंठो की रचना अन्य नर वानर कुल के सदस्यों से ठीक विपरीत है। यह बाहर की ओर लुढ़का हुआ है, यानि मानव होठ की म्यूकस िझल्ली बाहर भी दिखती है जबकि अन्य नर वानर कुल के सदस्यों में यह भीतर की ओर है। यही म्यूकस िझल्ली नारी होंठों को भी एक विशेष यौनाकर्षण प्रदान करती है। काम विह्वलता के दौरान यही होठ अतिरिक्त रक्त परिवहन के चलते फूल से जाते हैं, रक्ताभ उठते हैं। व्यवहार विज्ञानियों की राय में नारी होठ यौनेच्छा का `सिग्नल´ देते हैं।
यहा¡ डिज्माण्ड मोरिस की एक दलील तो बड़ी दिलचस्प है। वे कहते हैं कि चूंकि नारी के योनि ओष्ठों (वैजाइनल लैबिया) और उसके होठों के भ्रूणीय विकास का मूल एक ही है, अत: यौन उत्तेजना के क्षणों में ये दोनो ही अंग समान जैव प्रक्रियाओं से गुजरते हैं। उनकी प्रत्यक्ष लालिमा `योनि ओष्ठों´ की अप्रत्यक्ष लालिमा की भी प्रतीति कराती है। इन दोनों नारी अंगों के इस अद्भुत साम्य का कारण भी व्यवहार विज्ञानीय (इथोलाजिकल) है।
नर वानर कुल के प्राय: सभी सदस्यों में जिनमें सहवास पीछे से (मादा के पाश्र्व से) सम्पन्न होता है- मादा के यौनांग एवं पृष्ठ भाग (रम्प) प्रणय काल के दौरान रक्ताभ और अधिक उभरे हुए से लगते हैं जो नर साथियों को आकिर्षत करते हैं। किन्तु मानव जिसमें न तो कोई खास प्रणय काल (बारहों महीने प्रणय) होता है और सहवास की क्रिया भी आमने सामने से होती है, नर को आकिर्षत करते रहने का कोई विशेष अंग सामने की ओर दृष्टव्य नहीं होता। योनि ओष्ठ, वस्त्रावरणों के हटने के बावजूद भी प्रमुखता से नहीं दिखते। इन स्थितियों में प्रकृति ने नारियों के होठो को उनके वैकल्पिक रोल में अपने पुरुष सखाओं को रिझाने को जैवीय भूमिका प्रदान कर दी। यह प्राकृतिक व्यवस्था नारियों के हजारो वर्षों से अपने होठों को रंगते आने की आदत को भी बखूबी व्याख्यायित करती है।
यह भी गौरतलब है कि परम्परावादियों को नारियों के होठो की लाली फूटी आ¡ख भी नहीं सुहाती।
5 comments:
सटीक जानकारी!
पुरुष द्वारा इच्छित स्त्री को लाल गुलाब देने के पीछे भी यही आदी कारण हैं. ‘जिस प्रकार इस गुलाब की पंखुडिया खुल गई हैं तुम्हारी "पंखुडियों" को खोलने में मैं इन्टरेस्टेड हूं’ बताने का सांकेतिक तरीका, और स्त्री द्वारा गुलाब ले लेना उसकी सांकेतिक अनुमति होती थी.
(www.proflowers.com/flowerguide/rosemeanings/redrose-meanings.aspx)
...और याद आया -
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिये
पंखुडी इस गुलाब की सी है
- मीर तक़ी ‘मीर’
ईस्वामी मौकानुरुप शेर ले ही आये है तो हम भी वाह किये दे रहे हैं.
लाल गुलाबी लबो-रुख़सार का भेद खूब खोला आपने !
दिलचस्प और ज्ञानवर्धक पोस्ट ।
रोचक ईथॉलॉजिकल बात कह रहे हैं।
पर भारतीय त्वचा के रंग पर गहरे लाल लिपिस्टिक से रंगे होठ कभी कभी आकर्षण की बजाय उच्चाटन दिलाते हैं!
Aap to gazab dha rahe hain.
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