Wednesday, 23 April 2008

लोक मात्स्यिकी -एक नया अनुभव

[डायस का एक दृश्य,मैं बिल्कुल दाहिनी ओर ]
विगत ११-१२ अप्रैल को मैं रांची ,झारखंड् मे मछुआरा केंद्रित मत्स्य संसाधनों के प्रबंध पर आयोजित सम्मेलन मे शरीक हुआ । यह मछुआ समुदाय के विकास की दशा, दिशा पर एक सार्थक पहल थी ।
मैने लोक्मात्स्यिकी पर एक शोध आलेख प्रस्तुत किया ।इसमे मछ्लियों के बारे मे पारम्परिक जांकारियों को वैज्ञानिक मापडंडो के आधार पर परखने की वकालत की गयी है ।
अब जैसे बुला नामक मछली जाल मे आने पर भी फेक दी जाती है क्योंकि कई मछुओं द्वारा यह माना जाता रहा है कि उसके खाने से लैंगिक विकास रुक जाता है ।
अब एक मछली ऐसी है जिसके सिर मे एक पत्थर -मीन मुक्ता निकाला जाता है , जिसे अंगूठी मे पहना जा सकता है -यह प्रथा इलाहाबाद के कुछ परम्परागत रीत रिवाज़ मानने वालों मछुओं मे है.यह मीन मुक्ता एक आभूषण तो है ही कुछ लोगों के लिए मानसिक प्रशान्ति का मनोवैज्ञानिक कारण भी है .इसका व्यावसायिक प्रमोशन हो सकता है .ऐसे ही कई अन्य विषय भी चर्चा मे आए जिनसे मछुओं का सामाजिक आर्थिक विकास हो सकता है ।

कई मछलियों के पारंपरिक रूप से ज्ञात औषधीय गुणों को आधुनिक प्रयोग -परीक्षणों के आधार पर मानकीकृत कर उनके व्यावसायिक प्रमोशन से स्थानीय मचुआ समुदाय को लाभान्वित कराने की भी पहल की जा सकती है .वाराणसी के स्थानीय मछुआरों मे बुल्ला[ग्लासोगोबिअस ] नामक मछली को खाने की मनाही है ,कहते हैं "इसके सेवन से दाढी मूंछ नही निकलती "-इससे इस मछली मे जैवीय बंध्यता के कारक तत्व होने की इन्गिति होती है .इसका परीक्षण जरूरी है .
इसी तरह अन्य कई मछलियों के मांस के गुण दोषों का समृद्ध ज्ञान मानकी करण की बाट जोह रहा है . व्यावसायिक मत्स्य पालन मे मत्स्य व्यवहार पर कई जानकारी पौराणिक ग्रंथों मे उपलब्ध है ,जैसे रामचरित मानस मे वर्षा के पहले जल [माजी ]से मछलियों को व्याकुल होना बताया गया है .
पत्थर चट्टा मछली [सीयेना कोइटर ]के ओटोलिथ पत्थर को मीन मुकता के रूप मे व्यावसायिक प्रमोशन की संभावनाएं हैं ।यह आयोजन केंद्रीय मत्स्य संस्थान मुम्बई ,बिरसा एग्रीकल्च्रल विश्व विद्यालय और झार खंड मत्स्य विभाग के के सौजन्य से संपन्न हुआ .विषय की संकल्पना केंद्रीय मत्स्य संस्थान मुम्बई के स्वनामधन्य निदेशक डाक्टर दिलीप कुमार की थी ऑर इसे मूर्त रूप देने मे मेरे मत्स्य[मानव ]मित्र आर पी रमन जी ऑर मित्रों ने रात दिन एक कर दिया .रांची प्रवास भी सुखद रहा .[चित्र सौजन्य -डॉ आर पी रमन ]