इन दिनों इलाहाबाद के संगम और वाराणसी में गंगा में हजारो की संख्या में प्रवासी पक्षी घोमरा (Larus brunicephalus ) डेरा डाले हुए हैं और इन्हें पर्यटक चारा भी खिलाने में मशगूल दिख रहे हैं .बल्कि सैलानियों के लिए ये आकर्षण का केंद्र बन गए हैं -आवाज देने पर झुण्ड के झुण्ड बिल्कुल पास आकर चारा झपट लेते हैं -हवाई करतब दिखाते हुए या फिर पानी की सतह पर झपट्टा मारकर .इनकी बोली काफी तेज, कर्कश है .पर्यटकों को चारे के रूप में लाई ,सस्ती नमकीन बेंचकर कुछ्का अच्छा धंधा भी चल पडा है .
मगर आश्चर्य यह है कि अखबारों में इनकी चित्ताकर्षक फोटो तो छप रही है ,ये वी आई पीज के लिए कौतुहल के विषय भी बन रहे हैं (सामान्य जानकारी से जो जितना ही रहित है भारत में वही सबसे बड़ा वी आई पी है :) ) मगर इनकी सही पहचान के बजाय तरह तरह के कयास ही लगाए जा रहे हैं -कोई कहता है कि ये साईबेरिया से आये फला पक्षी हैं तो कोई और कुछ ...दरअसल ये 'गल' की एक प्रजाति है -ब्राउन हेडेड गल यानि सफ़ेद सिरी गल -हिन्दी में धोमरा या घोमरा .अब इसे शुभ्र सफ़ेद सिर के बजाय ब्राउन हेडेड क्यों कहते हैं कोई भाषा विद अच्छी तरह बता सकता है -शायद अंगरेजी में ब्राउन और सफ़ेद बालों का कोई भाषाई फर्क न हो!
गल की यह प्रजाति वैसे तो समुद्र के तटों ,बंदरगाहों पर मछलीमार बड़ी नौकायों के पीछे दिखती है मगर बड़ी नदियों में भी इनकी अच्छी खासी तादाद जाड़ों में दिखती है .ये प्रवासी पक्षी हैं ,जाड़ों में अक्टोबर माह तक लद्दाख और तिब्बत ,मानसरोवर और आसपास के झीलों जहां ये घोसला बनाती हैं उड़कर भरात की तमाम नदियों और समुद्र तटों तक आ पहुँचती हैं -इनकी एक काले सिरों वाली प्रजाति भी है जो इधर इक्का दुक्का ही दिखती है .सालिम अली जहाँ इनका मूल आवास तिब्बत और आस पास बताते हैं एक दूसरे पक्षीविद सुरेश सिंह ने अपनी पुस्तक भारतीय पक्षी में इन्हें यूरोपीय देशों का मूलवासी बताया है -यह खोज का विषय है -लगता तो यह है कि इनकी दो तीन नसले हैं जिन्होंने तिब्बत और यूरोपीय देशों में बसेरा कर रखा है.
देखने में मनोहारी इन पक्षियों की आँखें सबसे खूबसूरत हैं और बड़े मासूम से दिखते हैं ये .अभी कल ही जब हम गंगा में नौकायन कर रहे थे-नाविक ने हाथ से ही एक को धर लिया -मैंने भी थोड़ी देर इन्हें दुलारा,पुचकारा फिर मुक्त कर दिया .जां की अमान पाते ही यह एक लम्बी उडान भरती हुई सुदूर क्षितिज में विलीन हो गयी .नाविक ने बताया कि यह जल्दी ही फिर अपने झुण्ड मेंआ मिलगी ..उसे तब शायद अपने मानव मुठभेड़ की याद भी न रहे ...चिड़ियों की याददाश्त भला ज्यादा थोड़े ही होती होगी -यह तो मनुष्यों की थाती है जो अच्छी बुरी घटनाओं के पुलिंदे सहेज कर रखती है - दूसरों की कृतघ्नताएँ हम भूल पाते हैं भला !पक्षी ही भले हैं इस मामले में .
बहरहाल कुछ चित्र और यदि लोड हो सका तो एक वीडियो भी देखिये इन मासूम पक्षियों से मेरी मुलाकात का और हाँ अब इन्हें पहचाने की भूल मत करिएगा !