प्रेम पर इधर कुछ गंभीर चिंतन मनन शुरू हुआ है जिसे आप यहाँ ,यहाँ और यहाँ देख सकते हैं ! मंशा है कि इसी को थोड़ा और विस्तार दिया जाय ! हो सकता है कुछ लोग रूचि लें ! कबीर तो कह गए कि ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय -मगर यह 'ढाई आखर' है क्या और कोई इसे चाहे तो कैसे आजमा पाये जबकि अगरचे जुमला यह भी है कि प्यार किया नही जाता बल्कि हो जाता है !प्रेम का हो जाना तो एक बात है अन्यथा प्रेम करने का आह्वान एक अशिष्ट आग्रह की ओर संकेत भी करता है !
पहले तो हम यह बात साफ़ कर देना चाहते हैं कि प्रेम एक छतनुमा / छतरी -शब्द है इसके अधीन कई कई भाव पनाह पाते हैं ! प्रेम का भाव बहुत व्यापक है -भक्त -ईश्वर का प्रेम ,पिता- पुत्री /पुत्र ,माँ -बेटे /बेटी ,पति -पत्नी /प्रेयसी ,प्रेमी -प्रेमिका आदि आदि और इन सभी के प्रतिलोम (रेसीप्रोकल ) सम्बन्ध और यहाँ तक कि आत्मरति भी हमें प्रेमाकर्षण के विविध आयामों का नजारा कराते हैं !
हम यहाँ प्रेम के बहु चर्चित ,गुह्यित रूप को ही ले रहे हैं जो दो विपरीत लिंगियों के बीच ही आ धमकता है और कई तरह का गुल खिलाता जाता है और अंततः रति सम्बन्धों की राह प्रशस्त कर देता है ! आईये यही से आज की चर्चा शुरू करते हैं ! जब आप किसी के प्रति आकृष्ट होते हैं तो उसके प्रति एक भावातीत कोमलता अनुभूत होती है -एक उदात्त सी प्रशांति और पुरस्कृत होने की अनुभूति सारे वजूद पर तारी हो जाती है और यह अनुभूति देश काल और ज्यादातर परिस्थितियों के परे होती है -मतलब पूरे मानव योनि में इकतार -कहीं कोई भेद भाव नहीं -न गोरे काले का और न अमीर गरीब का !
इस अनुभूति के चलते आप कई सीमा रेखाएं भी तोड़ने को उद्यत हो जाते हैं -बस प्रिय जन की एक झलक पाने को बेताब आप, बस चले तो धरती के एक सिरे से दूसरे तक का चक्कर भी लगा सकते हैं -आसमान से तारे तोड़ लेने की बात यूं ही नहीं कही जाती ! कैसी और क्यूं है यह कशिश ?रुटगर्स विश्विद्यालय के न्रिशाश्त्री हेलन फिशर कहते हैं - लोग प्रेम के लिए जीते हैं मरते हैं मारते हैं ..यां जीने की इच्छा से भी अधिक प्रगाढ़ इच्छा प्रेम करने की हो सकती है !
सच है प्यार की वैज्ञानिक समझ अभी भी सीमित ही है मगर कुछ वैज्ञनिक अध्ययन हुए हैं जो हमें इस विषय पर एक दृष्टि देते हैं जैसे मनुष्य के 'जोड़ा बनाने ' की प्रवृत्ति ! प्रेम को कई तरीकों से प्रेक्षित और परीक्षित किया जा रहा है -चाक्षुष ,श्रव्य ,घ्राण ,स्पार्शिक और तांत्रिक -रासायनिक विश्लेषणों में विज्ञानी दिन रात जुटे हैं प्रेम की इसी गुत्थी को सुलझाने ! क्या महज प्रजनन ही प्रेम के मूल में है ?
आभासी दुनिया की बात छोडे तो फेरोमोन भी कमाल का रसायन लगता है जो एक सुगंध है जो अवचेतन में ही विपरीत लिंगी को पास आकर्षित कर लेता है -पर सवाल यह की किसी ख़ास -खास में ही फेरोमोन असर क्यों करता है ? समूह को क्यों नहीं आकर्षित कर लेता ! मगर एक हालिया अध्ययन चौकाने वाला है -मंचीय प्रदर्शन करने वाली निर्वसनाएं (स्ट्रिपर्स ) जब अंडोत्सर्जन (ओव्यूल्युशन ) कर रही होती हैं तो प्रति घंटे औसतन ७० डालर कमाती हैं , माहवारी की स्थिति में महज ३५ डालर और जो इन दोनों स्थितियों में नहीं होती हैं औसतन ५० डालर कमाती है -निष्कर्ष यह की ओव्यूल्यूशन के दौर में फेरोमोन का स्रावित होना उच्चता की दशा में होता है और वह पुरुषों की मति फेर देता है -फेरोमोन एक प्रेम रसायन है यह बात पुष्टि की जा चुकी है !
एक और अध्ययन के मुताबिक जब औरते ओव्यूलेट कर रही होती हैं तो उनके सहचर उनके प्रति ज्यादा आकृष्ट रहते हैं और पास फटकते पुरुषों से अधिक सावधान ! वैज्ञानिकों की माने तो प्रेम सुगंध केवल यह भान ही नहीं कराता की कौन सी नारी गर्भ धारण को बिलकुल तैयार है बल्कि यह इतना स्पेसिफिक भी होता है की एक सफल (जैवीय दृष्टि से -गर्भाधान की योग्यता और शिशु लालन पालन के उत्तरदायित्व की क्षमता ) जोड़े को ही करीब लाता है !
वैज्ञानिकों ने एक मेजर हिस्टो काम्पैबिलटी फैक्टर (एम् एच सी ) की खोज की है जो दरअसल एक जीन समूह है जो अगर नर नारी में सामान हो जाय तो गर्भ पतन की संभावनाएं अधिक हो जाती हैं -ऐसे जोड़े प्रेम सुगंधों से आकर्षित नहीं होते ! इस शोध की पुष्टि कई बार हो चुकी है -एक सरल से प्रयोग में पाया गया की कुछ वालंटियर महिलाओं को अज्ञात लोगों की बनियाने सूघने को दी गयीं और बार बार उन्हें वही बनियाने सूघने में पसंद आयीं जिनके स्वामी विपरीत एम् एच सी फैक्टर वाले थे !
अभी प्रेम सुगंध का स्रवन जारी है .....