Tuesday, 17 February 2009

पापी पेट का पर्यवेक्षण !

ये तोंदू पहलवान क्या कर हैं -पेट पर्यवेक्षण तो नहीं ?
कहते हैं की मानवता केसामने सबसे बड़ा सवाल पापी पेट का ही है -यह पापी इसलिए कि इसे भरने की जुगाड़ में जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं -कर्म कुकर्म करने पड़ते है ! पीठ पर लात तो फिर भी सहन की जा सकती है पेट पर लात न मारने की नैतिक दुहाई दी जाती है -! बिना पेट पूजा के देवता भी प्रसन्न नही होते -लोक मंगलकारी और विघ्न विनाशक गणेश जी पेट से भी भारी हैं ! आईये पेट पर एक नजर डालें !
काफी पहले तक पुरूष का उभरा पेट -सही शब्द तोंद समृद्धि,खुशहाली का प्रतीक होता था .तोंद वाले खाए पिए अभिजात्य वर्ग की प्रतीति कराते थे ! लेकिन आजकल तोंद खुदगर्जी ,आलस्य और खराब सेहत का संकेत है .हलवाई ,सेठ - साहूकारों की तोंद अब उनके प्रति हिकारत का भाव पैदा करती है -नई पीढी के जागरूक सेठ साहूकार इसलिए अपने स्टेरीओटाईप इमेज को बदल रहे हैं ! मगर जापान में तो आज भी तोंद को एक पेशे में सम्मानजनक ओहदा मिला हुआ है -वहाँ के पहलवान आज भी लंबे चौडे पेट -तोंद के स्वामी हैं .इससे उनके शरीर का गुरुत्व मध्य ( सेंटर आफ ग्रैविटी ) थोडा और नीचे खिसक आता है और उन्हें पीठ दिखाना टेढी खीर हो रहता है .इसलिए वे अपनी पेट पूजा को लेकर काफी सचेष्ट रहते -वे ऐसा ही भोजन करते हैं जिससे उनकी तोंद और भी भारी भरकम बन सके ! अब जैसे उनकी एक डाईट नुस्खा है -( स्ट्यू -चांको नैबे ) : मछली ,पोल्ट्री ,मीट ,अंडे ,सब्जियाँ ,चीनी और सोयासास का मिश्रण जिसमें १२ बड़े कटोरे चावल और ६ पिंट बीयर भी मिला कर ये रोजाना लेते हैं और अपनी तोंद को धन्य करते हैं !
पेट को परिभाषित करें तो यह शरीर का वह अधो अंग है जो वक्ष की नीचे और जननांगों के ऊपर स्थित है .चिकित्सीय संदर्भ में यह ऐबडामेन कहलाता है ।
जारी ........