Sunday, 24 August 2008

पुरूष पर्यवेक्षण -भौहें !











मनुष्य में बालदार भौहें हैं मगर चिम्पांजी में नदारद



नर वानर कुल में महज मनुष्य ही भौहों वाला प्राणी है -चिम्पांजी जो हमारा करीबी जैवीय रिश्तेदार है भौहों से वंचित है .भौहें भाव संप्रेषण में काफी सशक्त हैं .भौहों की भाव भंगिमा का कुछ ऐसा रंग चढ़ा कि उनमें देवत्व का आरोपण तक हो गया .परब्रह्म के भ्रिकूटिविलास से ब्रह्माण्ड तक झंकृत होने लग गया . जहाँ चिम्पांजी की भौहें बालों से पूरी तरह रहित होती है मनुष्य की भौहें बालों से लदी फदी !इनमें भाव संप्रेषण की अद्भुत क्षमता होती है .ईर्ष्या द्वेष ,पसंद नापसंद ,प्यार या गुस्सा ,खीझ आदि अनेक भावों की अभिव्यक्ति भौहें बखूबी कर लेती हैं ।
आईये भौंह विलास के कुछ नमूने देखें -
-भौहें चढाना -त्योरी चढाना ,या त्योरी बदलना या फिर तेवर बदलना आदि अभिव्यक्तियाँ बस इन भौहों का विलास ही तो है -ये सभी अप्रसन्नता द्योतक है -मगर मजेदार यह है कि इसमें भौहें ऊपर चढाने के बजाय नीचे की जाती हैं ।इसमें भौहें नीचे तो होती ही हैं वे थोडा आपस में करीब भी हो जाती हैं .यह गुस्से का इजहार है ।
-भौहें उठाना -यह भंगिमा भौहों को ऊपर उठाने की है पर इससे माथे पर भी बल पड़ जाता है .और चिंता की लकीरे स्पष्ट हो उठती हैं ।अन्य सन्दर्भों में यही भंगिमा आश्चर्य ,मुग्धता ,शंका ,अज्ञानता या फिर नक्चढ़ेपन का भाव संप्रेषण करती है .आँखे खोलना -आई ओपनर का भावार्थ भी इसी भंगिमान में छुपा है .सही भी है क्योंकि भौहों को उठाने पर आँखे पूरी खुल जाती है और सामने का दृश्य क्षेत्र काफी विस्तित हो जाता है .
-एक कलाबाजी या कसरत यह भी -एक आँख की भौहे ऊपर ,दूसरी की नीचे -आपने यह पौरुष अदा कभी देखी ?इसका अभिप्राय है किसी बात पर शंकालु हो उठाना यह भाव प्रश्नवाचक भी है ।
जारी ........