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बचो प्रणयी -कोई झपटने वाला है !
हाँ ,यहाँ एक नाजुक संतुलन की दरकार है -अगर प्रणयी प्राणी ज्यादा तड़क भड़क प्रर्दशित करता है तो वह अपनी मौत को भी आमंत्रित करता है और यह प्रदर्शन तनिक फीका रहा तो जीवन संगिनी का मिलना सम्भव नही और ख़ुद उसके वंश बेली का बढ़ना मुश्किल ! और इन दोनों ही स्थितियों में सम्बन्धित प्राजाति का विलोपन निश्चित है ।कुदरत ने इसलिए प्रजातियों को उनके नाजुक स्थिति /स्तर को देखकर प्रणय प्रदर्शन के अंग वस्त्रम /तौर तरीके सौंपे हैं .जो परभक्षियों के चपेट में नाहे हैं ऐसे पशु पक्षी काफी तड़क भड़क प्रणय प्रदर्शन कर लेते हैं जैसे जहरीले मेढक की प्रणय पुकार बहुत कर्कश होती है ,लंबे समय की होती है क्योंकि कोई परभक्षी उन्हें खाने की जुर्रत नही कर सकता .धोखे मेंपकड़ लिया तो सांप छछूदर की गति मिल जाती है .व्हेलें ज्यादा समय के लिए इसलिए ही गाती हैं की समुद्र में उनका कोई परभक्षी ही नही है -हाँ डालफिन कम देरी तक ही गा पाती है !
मगर जो प्राणी परभक्षियों से घिरे रहते हैं उनमें प्रणय प्रदर्शन ज्यादा तड़क भड़क लिए नही होता .और उनके जीवन संगी भी जल्दी ही रीझ जाते हैं.प्राणि जगत में कई नर बहुत ही तड़क भड़क तरीके से प्रणय संवाद करते हैं ! अब मोर को ही देखिये -यह कितना भव्य लगता है -औरअपने हरम की मादाओं को ही नही हमें भी रिझाता नहीं ? और क्या यही कारण नही है की मोरपंख की खातिर ही कितने मोरों को अपनी जान तक गवानी पड़ती है ! सच है प्रणय के राह में बड़े खतरे हैं -बच के भाई !
जारी.......