क्या कहते हैं गौतम बुद्ध के लंबे कान ?
युवाओं में भी कानों की बालियों का फैशन एक दशक से उभार पर है .शुरू शुरू में यह समझा जा रहा था की यह समलैंगिकों की पहचान एक पहचान भर है मगर नहीं ,यह तो सभी युवाओं में अब प्रचलन में आ गया है .कारण ? यह बुजुर्गों को चिढाने ,रूढियों के प्रतिकार का मानो एक नया तरीका हो ! यह एक विद्रोही ,व्यवस्था विरोधी युवा की पहचान है !नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि पश्चिमीं देशों के सिरफिरे युवाओं ने कान में ब्लेड की लड़ियों या बिजली के बल्बों जैसे सामान भी लटकाने शुरू कर दिए .
१०८० के दशक से फुटबाल प्रेमियों को भी यह फैशन रास आने लग गया .उनके मात्र एक कान हीरे की बालियों से दमकने लगे .भारत में भी इस फैशन की अनुगूंज आयी और यहाँ भी युवा कानों को अलंकृत करने लग गए हैं ।
कानों से जुड़े कई संकेत दुनियाँ के भिन्न भिन्न भागों में अलग अलग मतलब रखते हैं .खासकर कानों को हाथ से छूना अर्थपूर्ण है .कान चाहे तर्जनी से छुआ गया हो या फिर तर्जनी और अंगूठे से दबाया गया हो -यह संकेतभिन्न भिन्न देशों में अलग अलग मतलब रखता है -जैसे कहीं तो यह स्त्रैण होने का संकेत है तो कहीं यौन सम्बन्ध के लिए गुप्त आमंत्रण .भारत में भी कहीं कहीं कान में तर्जनी उंगली के संसर्ग से यौन संकेत प्रचलन में हैं .मगर इन कर्ण सकेतों को लेकर प्रायः भ्रम की स्थितियां भी दिखती हैं -अगर इच्छित संकेत के रूप में इन्हे नही समझा गया तो जान पर भी आफत देखी गयी है -कुछ देशों में कर्ण संकेत काफी बहूदे और अश्लील माने जाते हैं .इसलिए कोई भाई इन्हे आजमाने के पहले कई बार सोच लें !
गांधी जी का एक बन्दर तो दोनों हाथो से अपना कान ढके रहता है -इस संकेत से तो आप सभी बहली भाति परिचित है हीं । गांधी जी के भी थे लंबे कान मगर कुंडल से रहित
श्रोतम श्रुतैनैव न कुंडलेंन इति .......