Wednesday, 28 January 2009

धरती पर कुल कितने जीव जंतु हैं ? (डार्विन द्विशती )

आकर चार लाख चौरासी ?
कभी आपके मन में यह सवाल कौंधा है कि इस धरती पर कुल कितने जीव जंतु हैं ? यह सवाल हमारे पूर्वजों के मन को भी मथता रहा है । बाबा तुलसी ने रामचरितमानस में इसे यूँ कूता -

आकर चार लाख चौरासी ,जाति जीव जल थल नभ वासी -मतलब चौरासी लाख जीव जंतु जमीन ,वायु और पानी में निवास करते हैं ! इस मामले में वैज्ञानिक किसी निश्चित संख्या तक नही पहुँच पाए हैं बल्कि ये मानते हैं कि इस ग्रह पर जीव जन्तुओं की संख्या पाँच लाख से १० करोड़ तक कुछ भी हो सकती है मगर अभी तक पहचाने गए जीवों की संख्या १५ लाख नवासी हजार तीन सौ इकसठ है -मतलब अभी तक तुलसी दास द्वारा आकलित संख्या तक जीवों की पहचान नही हो पायी है नित नए जीव खोजे जा रहे हैं .

जो जीव अभी तक पहचाने गए हैं उनमें अकेले कीट पतंगों की ही प्रजाति संख्या ९ लाख पचास हजार है .५ हजार चार सौ सोलह स्तनधारी हैं , 9,956 चिडियां हैं , 8,240 रेंगने वाले जीव यानि सरीसृप हैं , 6,१९९ मेढक सरीखे जल और थल दोनों जगह रहने वाले जीव हैं .ये तो रहे रीढ़ वाले प्राणि .अब बिना रीढ़ वाली प्रजातियाँ जो जानी जा सकी हैं 1,203,375 हैं ! 297,326 पेड़ पौधों की प्रजातियाँ हैं - कुछ अन्य जातियों में लायिकेन दस हजार ,मशरूम सोलह हजार .और भूरे शैवाल दो हजार आठ सौ उनचास है .कुल 1,589,361 !

अब हम फिर अपने पुराने सवाल पर लौटते हैं क्या इन सभी प्रकार के जीवों को ब्रह्मा या अल्लाह मियाँ या गाड ने फुरसत से अलग अलग गढा है ? जैसे कुम्भार अपनी चाक पर मिट्टी के तरह तरह खिलौने और बर्तन बनाता है ? एक वैज्ञानिक हुए हैं कैरोलस लीनियस (१७०७-१७७८) उन्होंने जीवों की इस अपार विविधता को समझने बूझने में बड़ा मन लगाया और उनकी पहचान की एक द्विनामी पद्धति लागू की जो आज भी प्रचलन में है .अब जैसे उसी द्विनामी पद्धति में मनुष्य यानी हम सब का दुहरा नाम है -होमो सैपिएंस जिसमें होमो शब्द हमारे बृहद गण को बताता है जिसमें केवल हमारी ही प्रजाति अब धरती पर है शेष की हालत है कि रहा न कुल कोऊ रोवन हारा -होमो इरेक्टस ,होमो हैबिलिस आदि जातियाँ कब की काल के गल में समां चुंकी ! होमो नियेनडरथेलेंसिस काफी करीबी रिश्ते में था पर वह भी धरा से मिट गया -हमारे आगे वह भी टिक नही पाया ! आज होमो गण की अकेली सैपिएंस प्रजाति यानि हम सब समूची धरा पर अकेले काबिज है ! पर कब तक ??
तो क्या हमारी प्रजाति और दीगर जीव जंतुओं में कोई संबध भी है या अलाह मियाँ ने मनुष्य और दीगर जीवों को अलग अलग बनाया है ? ऐरिस्टाटिल (३८४-३२२ ईसा पूर्व ) कुछ कुछ अवतारवाद की ही तर्ज पर माना कि जीव रूपाकार बदल कर दूसरे तरह तरह के जीवों में बदलते जाते हैं .उन्होंने यह माना कि पदार्थ जीवों में बदलते हैं जिसे अंडे के भीतर के पदार्थ का मुर्गे /मुर्गी में रूपांतरण हो जाता है ! मगर फिर यह सवाल आया कि पहले कौन पैदा हुआ मुर्गी या अंडा ? यह सवाल अभी भी हंसी मजाक में लोग बाग़ पूंछते हैं मगर जवाब देने वाला गंभीर हो जाता है ।
इस कड़ी की अगली पोस्ट तक आप भी इस मुद्दे पर थोडा विचार कर लें कि पहले अंडा आया या मुर्गी ? अगर अंडा तो वह कहाँ से आया ? और अगर मुर्गी तो वह बिना अंडे से कहां से धमक पडी ?