Sunday 29 June 2008

जंह जंह चरण पड़े संतों के .......


जीनोग्राफिक परियोजना के तहत अभी तक सम्पन्न शोधों के आधार पर जिस मानव वंश बेलि की तस्वीर उभरती है, उससे यह निर्विवादत: स्पष्ट होता है कि मौजूदा सभी मानवों का उद्भव अफ्रीका में हुआ था। अन्यान्य प्रभावों के चलते अफ्रीका से उनका अनवरत पलायन विश्व के अनेक भागों तक होता रहा है। इस तरह स्पेन्सर मानव विकास के `बहुप्रान्तिक विकास मॉडल´ का खण्डन करते हुए, मानव की अफ्रीकन उत्पित्त का पुरजोर समर्थन करते हैं। वे जोर देकर कहते हैं कि मौजूदा मानव 60 हजार वर्ष पहले के अफ्रीका वासी एक खास पुरुष पुरातन का ही वंशज है।

विश्वभर में `जीनोग्राफी´ के अध्ययन को सुचारु रुप से संचालित करने के लिए कुल दस देशों में अध्ययन केन्द्रों की स्थापना की गयी हैं। ये देश हैं- अमेरिका, ब्राजील, फ्रांस, लेबनान, दक्षिणी अफ्रीका, ब्रिटेन, रुस, चीन, आिस्ट्रया और भारत। भारत में यह जिम्मा मदुराई कामराज विश्वविद्यालय तमिलनाडु को सौंपा गया है .इम्यूनोलाजी (शरीर प्रतिरक्षा) विभाग के मुखिया प्रोफेसर रामास्वामी पिचप्पन ने `जीनोग्राफी´ अध्ययन की कमान सभा¡ली है। उन्होंने अभी तक जो अध्ययन किया है उसमें तमिलनाडु के एक वर्ग और उड़ीसा के गोण्ड जनजातियों में आश्चर्यजनक समानतायें पाई गयी हैं।
भारत में `जीनोग्राफी´ की शुरुआत तो एक दशक पहले ही हो चुकी थी जब स्पेन्सर वेल्स ने स्वयं यहाँ आकर मदुराई के एक गावं ज्योतिमानिकम से वहाँ के मूल निवासियों के 700 से भी अधिक रक्त - नमूने लिए थे। स्पेन्सर ने तब कहा था कि उन मूल निवासियों के एकत्रित रक्त नमूनों की हर एक बूँद जीनों की भाषा में लिखे उनके वंश इतिहास को समेटे हुए है। सचमुच जब उन नमूनों की जांच का परिणाम मिला तो भारत में मानव के पदार्पण के अब तक के ज्ञात इतिहास की मानों चूलें ही हिल गयी।

जीनों की भाषा ने यह स्थापित कर दिया कि भारत में मानव के आदि पुरखों के चरण सबसे पहले दक्षिण भारत के पश्चिमी समुद्रतटीय प्रान्तों में पड़े थे, जहाँ से आगे बढ़ते हुए वे (रामसेतु से होते हुए? ) श्रीलंका और आस्ट्रेलिया तक जा पहुंचे .होंगे स्पेन्सर ने अपनी इस स्थापना के पक्ष में एकत्रित नमूनों के डीएनए में `पुनर्संयोजन रहित वाई गुण सूत्रों´ के एक खास चिन्ह (एम-130) का सहारा लिया, जो 60 हजार वर्ष पहले के अफ्रीकी नर जीवाश्मों और मौजूदा आस्ट्रेलियाई आदिवासियों में पाया गया है। इसी अध्ययन से ही वेल्स रातों रात मशहूर हुए और अमेरिका के प्रसिद्ध गेटवे कम्प्यूटर्स के संस्थापकों द्वारा स्थापित वैट्ट फैमिली फाउण्डेशन ने इस अध्ययन कार्य को बढ़ावा देने का फैसला कर लिया।

चार करोड़ डालर के अनुदान से यह वैिश्वक अध्ययन-अभियान अब अपने परवान पर है। जीनोग्रैफी परियोजना का मुख्य उद्देश्य अभी तक तीन विचार बिन्दुओं पर केिन्द्रत है।

1- मानव के उद्भव सम्बन्धी पुराजीवािश्मकी का अध्ययन।

2- आदि मानव के प्रवास/भ्रमण पथ की जानकारी,

3- मानव जनसंख्या के फैलाव/बिखराव और विविधता से जुड़े अध्ययन।

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए परियोजना के तहत अपनायी जाने वाली रणनीति में विश्व भर में फैले मैदानी अध्ययन केन्द्रों पर अनुसन्धान के साथ ही व्यापक जनसहभागिता के लिए जनजागरण अभियानों की शुरुआत की गयी है। साथ ही एक जीनोग्रैफी कोष की भी स्थापना की गयी है जिसमें कोई भी व्यक्ति नेशनल जियोग्राफिक की वेबसाइट पर जाकर `जीनोग्रैफिक´ किट खरीद कर भागीदारी कर सकता है। इस `किट´ का मूल्य 100 डालर (लगभग चार हजार रुपये) है तथा इसमें दानदाता के मु¡ह के अन्दरुनी भाग (गाल) के खुरचन से ही नमूने की जांच की मुकम्मल व्यवस्था की जाती है। नमूने कुछ खास उपस्करों-सूक्ष्म नलिकाओं में डालकर नेशनल जियोग्राफी के जा¡च केन्द्रों को भेज दिया जाता है। चन्द सप्ताहों में ही जा¡च परिणाम उपलबध करा दिया जाता है जिसे दिये गये एक `कोड´ के जरिये दानदाता वेबसाइट पर जा¡च परिणाम और उसकी विस्तृत व्याख्या से अवगत हो सकता है।

अभी तक की जा¡च परख से जेनेटिक चिन्हकों तथा मानव के आदि प्रवास पथो की जो जानकारी मिली है उससे ज्ञात इतिहास की कई अवधारणाओं को गहरा धक्का लगा है। आज की मौजूदा 90 से 95: गैर अफ्रीकी मानव की आबादी के मूल में अफ्रीका से तकरीबन 60 हजार वर्ष पहले पलायन करने वाले एम-130, एम-89, आदि चिन्हको वाले मनु वंशी पहचाने जा चुके हैं। कालान्तर में इनके अन्य शाखाओं के डीएनए में उत्परिवर्तनों से ऊपजे एम-9 चिन्हकों की मौजूदगी आज उत्तरी अमेरिकियों और पूर्वी एशियाई देशों के कबीलों में देखा जा रहा है। इन जेनेटिक चिन्हकों की विभिन्न देशज मानव आबादियों में पायी जा रही उपस्थिति से जो तस्वीर उभरती है उसके अनुसार अफ्रीकी महाद्वीप के केई पूर्वी प्रान्तों (इथोपिया, तंजानिया¡, केन्या आदि) से 60 हजार वर्ष पहले मानवों का पहला महाप्रवास आरम्भ हुआ था। इनके यायावरी दल नये शिकार स्थलों की खोज में उत्तर की ओर आगे और आगे बढ़ते हुए मध्य पूर्वी खाड़ी के देशों से अनातोलिया (अब टर्की ) होकर 30-40 हजार वर्ष पहले एक ओर तो ईरान, मध्य एशिया के अछूते चारागाहों-शिकार स्थलों तक जा पहु¡चा तो दूसरी ओर उन्ही यायावरों का एक दल (एम-9) यूरोपीय देशों तक जा पहु¡चा। इसी एम-9 से अलग हुई एक टोली यूरेशिया में हजारो वर्षों तक आबाद रही किन्तु इसके दक्षिण मध्य एशियाई देशों तक की यात्रा में विशाल पर्वत उपत्कायें बड़ी बाधा बन गई।

हिन्दूकुश, नियानशाह और हिमालय इनके मार्ग में अवरोध बन गये, लिहाजा इस यायावरी टोली के वंशधर अन्य दिशाओं की ओर आगे बढ़ चले। इन्हीं की एक शाखा (एम-49) हिन्दूकुश, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, दक्षिणी साइबेरिया तक भी आबाद हुई। एम-173 प्रशारवा ने यूरोपिआई देशों पर कब्जा जमाया और `होमोसेपियेन्स´ के भी पूर्वज नियेन्डर्थल मानवों का निर्ममता से सफाया कर डाला और अपना एक छत्र राज्य स्थापित किया। इनके वंशधर आज भी स्पेन, इटली में विद्यमान हैं ।
चित्र में राम सेतु है जिससे होकर म१३० मनु वंशी कभी गुजरे होंगे .........
अभी और भी है यह दास्ताने मनु -सतरूपा .......