Sunday, 8 June 2008

वे भी कुछ कम नहीं !

डेज़ी-एक प्यारी कुतिया
जीन और मानव समाज का मुद्दा सारी दुनिया में विवाद ग्रस्त है ,इसलिए इन पोस्टों पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिल रहीं है -सभी का स्वागत है .मैं विज्ञान का अध्येता रहा हूँ अतः फतवों में मेरा विश्वास नही हैं -सार्थक बहस अच्छी लगती है .वादे वादे जायते तत्वबोधः।
आज इस छोटी पोस्ट में मैं उन नवीनतम शोधों का जिक्र करना चाहता हूँ जो यह संकेत करती हैं कि कई जीव जंतुओं में भावनाओं का जज्बा भी है .जंतुओं में भावनाओं के बारे में विशद अध्ययन चार्ल्स डार्विन ने किया था .उन्होंने अपनी पुस्तक ,'द इक्स्प्रेसंस ऑफ़ द इमोसंस इन एनिमल्स एंड मैन' में अपने कुत्ते के इमोशनल व्यवहार पर लिखा था .मेरी अपनी एक कुतिया -पाम्रेनियन ब्रीड की है जिसमें मैंने डार्विन के प्रेक्षनों के अनुरूप ही इमोशनल व्यवहार पाया है -एक नए पिल्ले के आने पर उसका व्यवहार बदल गया और वह हम लोगों से कट कर रहने लगी जैसे उसे आभास हो गया हो कि उसकी उपेक्षा हो रही है .नौबत यहाँ तक जा पहुँची कि उस पिल्ले को किसी और को देना पड़ गया .यह सौतिया डाह था या कुछ और ,विवेचना का विषय है .क्या डेजी ,मेरी कुतिया उसे मिल रहे हमारे अटेंशन के बटवारे से अवसादग्रस्त हो गयी थी ?
हाथी अपने दल के साथी के घायल होने पर दुखी हो जाने जैसा व्यवहार प्रदर्शित करते हैं .गैंडे अपने शावक के मरने पर उसे घेर कर और मृतक का सिर बारी बारी से सूंघ कर एक विचित्र कर्मकांड करते देखे गए हैं .हमारी जानी पहचानी गायक चिडिया दहगल भी ऐसा कुछ व्यवहार दिखाती है .चिपांज़ी झरनों के देखते ही नाचने लगते हैं मानो खुशी का सामूहिक इजहार कर रहें हों .स्पर्म व्हेलें जब भी बड़े जालों से छुडाकर मुक्त की जाती हैं बार बार छुडाने वालों के पास आती हैं मानों कृतज्ञता ज्ञापित कर रही हों .क्या ये उदाहरण पर्याप्त नहीं जो ये बताते हैं कि जानवरों में भी भावनाएँ हैं ?