Wednesday, 15 April 2009

....और अब पाँव छूता पुरूष पर्यवेक्षण !

पाँव छूता पुरूष पर्यवेक्षण !
जैवीय विकास की गाथा में मनुष्य ही अकेला प्राणी है जिसके पूरे शरीर का भार उसके दोनों पांवों पर ही टिका है -जाहिर है मनुष्य के दोनों पाँव ही उसे संभाले रहने और संतुलित बनाये रखने की भूमिका में हैं ! चाहे हम पहाड़ की ऊंचाई चढ़ रहे हों या फिर सुरंग की गहराईयाँ नाप रहे हों यही पाँव हमें आगे पीछे ,दायें बाएँ लुढ़क जाने से भी बचाते हैं ! नहीं तो एक बेजान पुतले को ज़रा थोडा सा आगे पीछे और दायें बाएँ धकेलिए बस फर्क समझ में आ जायेगा ....ये दोनों पाँव ही हैं जो हमें संभाले रखते हैं ! !


महान चित्रकार अन्वेषी लियोनार्दो डा विंची ने मनुष्य के पाँव को उसकी इन्ही विशेषताओं के चलते अभियांत्रिकी का मास्टरपीस और कलात्मकता का अनुपम उदाहरण कहा था .मनुष्य का पाँव २६ हड्डियों ,११४ अस्थि बंधों (लिगामेंट ) और २० तरह की मांशपेशियों की मौजूदगी के कारण ही इस उत्कृष्टता को प्राप्त हुआ है ! लम्बी पदयात्राएं राजनीतिक लाभ के लिए ही नही स्वास्थ्य लाभ के लिए भी बड़ी मुफीद सिद्ध हुयी हैं ! यह पाया गया है कि ९० -१०० वर्ष के दीर्घ जीवी भी पदयात्राओं के मुरीद रहे हैं बल्कि नियमित तौर पर कई किलोमीटर लम्बी यात्राओं के शौकीन रहे हैं ! यह कूता गया है कि एक सामान्य स्वास्थ्य का मनुष्य जीवन भर में एक करोड़ से भी अधिक डग भर लेता है !


आप को यह जानकार हैरत होगी कि पाँव के अंगूठे और तलवे एक तरह के पाँव गंध छोड़ते रहते हैं और आज भी कई मूल आस्ट्रेलियाई कौमें परिजन और दोस्त दुश्मन की पहचान के लिए पदचिह्नों को सूंघने का उपक्रम करती हैं ठीक वैसे ही जैसे प्रशिक्षित कुत्ते मुलजिमों की आवाजाही को सूंघ कर भांप लेते हैं ! हाँ वे इस काम में काफी दक्ष हैं क्योंकि वे ऐसे लोगों के पैरों की गंध भी सूंघ लेते हैं जो अपने पैरों को मोजे और जूते से पूरी तरह ढंके रहते है !


तनाव के क्षणों में मनुष्य के तलवे से पर्याप्त स्राव निकलता है जो मोजे और जूते तक को भी नही बख्शता ! और जब जीवाणुओं की फौज उस स्राव या पसीने को विघटित करती है तो उनसे निकलने वाली दुर्गन्ध आस पास के लोगों को भी बेचैन करती है ! अब जिन लोगों के मोजे बहुत बदबू करते हैं तो जान लीजिये वह बन्दा तनाव में रहकर बड़ी मात्रा में पाँव गंध को निःसृत कर रहा है और मोजे की साफ़ सफाई के प्रति भी सचेष्ट नही है ! ऐसे लोगों को तो प्रति दिन अपने मोजे को साफ़ करते रहना चाहिए ताकि जीवाणुओं की छावनी वहाँ काबिज न हो जाय !


ऐसे तनाव के क्षणों में पसीने से लबरेज मोजे और जूतों के द्वारा छोड गए गंध को सहज ही इंगित कर लेना एक ब्लड हाऊंद कुत्ते के लिए तो बहुत ही आसान है !यह बहुत सम्भव है कि हमारे पुरखों में कुछ ऐसे भेदिये भी जरूर रहे होंगें जो दोस्त और दुश्मन के पदचिह्नों को सूंघ कर उनका अता पता रखते हों -कब कौन बस्ती में दबे पाँव आया और कौन निकल गया ! आज के सभ्य मानव में यह क्षमता तो क्षीण होती गयी है मगर यह एक नयी मुसीबत के रूप में हमारे सामने है -लोगों के मोजों से निकलने वाली असहनीय दुर्गन्ध के रूप में !