Friday 22 May 2015

भारतीय भूकम्पों का यहाँ छुपा है राज!

नेपाल के भूकम्प ने वैज्ञानिकों में भारतीय महाद्वीप के खिसकने में एक नयी नई अभिरुचि उत्पन्न कर दी है। भूवैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा अभी 4 मई 2015 के जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक अध्ययन में भारत के महाद्वीप के 8 करोड़ साल पहले यूरेशिया की ओर इतनी तेजी से चले जाने एक विवरण दिया गया है. 


इस  चित्रकार -कृति में दुनिया १४ करोड़ वर्ष पहले कैसी थी यह दर्शाया गया है जब भारत एक विशाल भूभाग गोंडवाना का हिस्सा था-दाहिनी ओर आज की दुनिया है। आभार: अर्थस्काई 

14 करोड़ से भी अधिक वर्ष पहले, भारत दक्षिणी गोलार्ध के गोंडवाना नामक एक विशाल महाद्वीप का हिस्सा था। लगभग 12 करोड़ साल पहले भारत का इंगित हिस्सा अलग हो गया और प्रति वर्ष लगभग पांच सेंटीमीटर की रफ़्तार से उत्तर की ओर पलायन करना शुरू कर दिया। फिर, 8 करोड़ साल पहले, इसने अचानक प्रति वर्ष लगभग 15 सेंटीमीटर की रफ़्तार पकड़ी और  5 करोड़ साल पहले यूरेशिया से आ टकराया  जिसने हिमालय को जन्म दिया। 


भूवैज्ञानिकों ने इस तीव्र रफ़्तार की व्याख्या की पेशकश की है जिसके अनुसार भारत दो सबडक्शन जोन के संयोजन के खिंचाव से उत्तर की ओर खींच लिया गया था - यह टेक्टोनिक प्लेटों  पर दुहरे खिंचाव के कारण हुआ । भूवैज्ञानिकों ने इस नए मॉडल में हिमालय से प्राप्त मापों को भी शामिल किया है जिससे एक "डबल सबडक्शन" प्रणाली के होने का पुष्ट प्रमाण मिला है जिससे यही कोई 8 करोड़ साल पहले भारतीय भूभाग के यूरेशिया की ओर उच्च गति पर बहाव का आधार मिल गया।

भूगर्भिक रिकार्ड के आधार पर, इस खिंचाव से भारत गोंडवाना से अलग हो 12 करोड़ वर्ष पहले टूटना शुरू हुआ. फलतः भारत टेथिस महासागर में भटकते हुए ऊपर उठता गया । 8 करोड़ साल पहले, यह अचानक प्रति वर्ष 150 मिलीमीटर की दर से ऊपर उठा और यूरेशिया से टकरा गया. अफ्रीका मेडागास्कर और ऑस्ट्रेलिया से अलग होने के बाद भारत बहुत तेजी से ऊपर बढ़ा था .. यूरेशिया की ओर!

अभी यह खिसकाव चल ही  रहा है ! मतलब भूकम्पों का अाना अभी थमेगा नहीं!

Wednesday 6 May 2015

बेकरारी से इंतज़ार है उस आदिम गंध की!

आस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी कॉमनवेल्थ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल आर्गनाइजेशन (CSIRO) ने कई अविष्कार अपने खाते में दर्ज किये हैं.जिसमें वाई फाई भी एक है। और एक "पेट्रिकोर" भी है -यह नाम पहले कभी सुना? आईये हम आपका ज्ञानार्जन करते हैं. आपने बरसात की बूंदों के साथ ही धरती से निकलती एक आदि गंध का अहसास किया है न? आखिर कौन इस ख़ास गंध से अपरिचित होगा? वह भीनी भीनी सी गंध जो बरसात होते ही नथुनो में आ समाती है और तन मन को एक आंनददायक अनुभूति से भर देती है। यही पेट्रीचोर है. जी हाँ इस गंध का यही नामकरण वैज्ञानिकों ने किया है।

दरअसल यह एक तैलीय गंध है जो तप्त धरती से बरसात की पहली आर्द्रता से जन्मती है। और इसके निकलने के ठीक बाद भरपूर वर्षा शुरू हो जाती है. मनुष्य में इस आदिम गंध के प्रति एक गहन लगाव है जो उसे उसके पूर्वजों से जैवीय विरासत के रूप में मिली है। वर्षा पर आजीविका- निर्भर हमारे पूर्वज के लिए यह गंध किसी जीवनदान से कम नहीं थी। शब्द पेट्रीचोर यूनानी भाषा के पेट्रा (पत्थर) और एचोर (मिथकीय देवों का रक्त ) से मिलकर बना है। मगर "पत्थरों में देवों के रक्त" की इस यूनानी कथा का वैज्ञानिक पक्ष क्या है?

सबसे पहले आस्ट्रेलिया की उक्त एजेंसी के वैज्ञानिक इसाबेल ज्वाय बीयर और रिचर्ड थॉमस थॉमस ने ७ मार्च 1964 को "Nature of Argillaceous Odour" शीर्षक से नेचर में छपे अपने शोध पत्र में इसकी चर्चा की थी। यह ख़ास और मनभावन गंध तो पहले से ही लोगों को पता थी मगर इसके उत्पन्न होने की क्रियाविधि क्या थी लोग अनभिज्ञ थे। यह "प्रथम वर्षा की गंध" थी या फिर मिट्टी की गंध, कयास लगाये जाते थे।

 ज्वाय बीयर के साथ रिचर्ड थॉमस -पेट्रीकोर पर चर्चा
 आपको ताज्जुब होगा यह जानकर कि भारत के इत्र व्यवसाय को इसकी अच्छी खासी खोज खबर थी। यही नहीं यहाँ "मिट्टी का अतर" इत्र के शौकीनों में मुंहमांगे दामों पर बिकता था. मगर इसके विज्ञान से लोग अपरिचित थे। हमारी इत्र इंडस्ट्री इसका संघनन कैसे करती रही होगी इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है।हाँ उनके द्वारा इस गंध को चन्दन के तेल में जज्ब कराकर रखा जाता था। और अब भी यह इत्र भारत में मिलता है जानकारी नहीं हो पा रही है। हो सकता है आपमें से किसी को पता हो! अगर है तो कृपया बतायें जरूर!

प्रसन्नता की बात है कि कॉमनवेल्थ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल आर्गनाइजेशन ऑस्ट्रेलिया ने अब प्रयोगशाला में तैयार सफलता पाई है। गर्म तप्त चट्टान के टुकड़ों के आसवन से एक पीले तैलीय पदार्थ को प्राप्त किया गया और यही पेट्रीकोर है और यही इस ख़ास गंध का स्रोत है. बेहद तप्त चट्टानें जब मौसम की आर्द्रता अवशोषित करती हैं तभी यह तैलीय पदार्थ संघनित होने लगता है और गंध वातावरण में तिर उठती है। यह वर्षा की सूचक है.

इस तेल के उदगम में आइरन आक्साईड की भूमिका है। अन्य विवरण यहाँ देख सकते हैं!