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चाँद की छत्र छाया धरती पर ..........इस चित्र के जीवंत रूप को यहाँ जरूर देखें !
कल यहीं हमने चर्चा की थी हमारे साक्षात देवता सूर्य के ग्रहण के कुछ मिथकीय पहलुओं की ! फिर से याद दिला दूँ कि राहु -केतु नामक एक ही दैत्य के सर और धड को सूर्यग्रहण -चंद्रग्रहण के लिए उत्तरदायी माना गया है- यह कितना रोचक है कि ईसा के हजारो साल पहले ही भारतीय ज्योतिषियों को पता था कि आकाश (खगोल पथ ) पर सूर्य के आभासी भ्रमण पथ को प्रत्येक माह चन्द्रमा भी दो बार काटता है एक उत्तर की ओर से और फिर दक्षिण की ओर से -यही कटान के दोनों बिन्दु -ल्यूनर नोड -चन्द्र बिन्दु -राहू केतु कहे गए और इसी कटान की ही कुछ विशेष कोण की स्थितियों में ग्रहण लग जाता है मतलब सूरज पर चाँद की चकती कुछ ऐसा फिट बैठती है कि चन्द्र्छाया धरती पर सूर्यग्रहण का भान करती है ! इस पर्यवेक्षण के बाद ही राहू केतु के मिथक ने जन्म लिया होगा और पुराण शैली में जन मानस को यह कथा बतायी गयी होगी जिससे लोगों का बहुधा यह सवाल कि सूर्य और चन्द्रमा को यह क्या हो जाता है का एक संतोषप्रद उत्तर मिल जाय ! मगर दुखद है कि आज भी जनता उसी दैत्य राहु के कोप से आक्रान्त अपने प्यारे सूरज के दुःख दर्द के निवारण हेतु उपवास व्रत रखती है -पवित्र नदियों में डुबकियां लगाती है ! फलित ज्योतिषी इस माहौल में -बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं -इस वैज्ञानिक युग में भी वही सदियों पुरानी कहानी को जिन्दा बनाये हुए हैं -अफ़सोस !
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एक फलित ज्योतिषी का बनाया चित्र जो सूर्य और चन्द्रमा के भ्रमण पथों के कटान को राहु केतु मानता है ! ( आधुनिक ज्योतिर्विज्ञान सूर्य को स्थिर मानता है और यही सच है मगर हमें आसमान में सूर्य ही चलता दिखता है जैसा कि इस चित्र में दर्शित है -चित्र को कृपया क्लिक कर बड़ा कर लें )
अमावस्या यानि न्यू मून डे को चन्द्रमा की एक ऐसी स्थिति हो जाती है जब वह सूर्य और धरती के बीच ऐसी सांयोगिक स्थिति में आ जाता है कि सूर्य का प्रकाश अवरुद्ध हो जाता है -सांयोगिक इस लिए कि सूर्य की चकती चन्द्र चकती से ४०० गुना बड़ी है और अद्भुत संयोग यह कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी भी पृथ्वी -चद्र दूरी का ४०० गुना ही है जुलाई माह में जब चन्द्रमा अपने अंडाकार पथ पर धरती से बहुत करीब होता है चन्द्र चकती सूर्य की चकती पर बिल्कुल फिट बैठ जाती है -लिहाजा सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण लग जाता है -नीचे के चित्र में यह साफ़ दृष्टिगत है -
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अब २२ जुलाई का सूर्यग्रहण इस शती का सबसे बड़ी अवधि का ग्रहण है -ऐसा कोई ग्रहण २११४ में ही दिखेगा .यहअलग अलग जगहों से कुछ कुछ मिनटों के लिए खग्रास /सम्पूर्ण दिखेगा -भारत में सूरत ,बडोदरा ,इंदौर ,भोपाल ,जबलपुर ,इलाहाबाद ,वाराणसी .पटना और सिलीगुडी की भौगोलिक पट्टी पर पूरा दिखेगा -प्रातः ६ बज कर २१ मिनट से चन्द्रमा की छाया की केन्द्रीय रेखा भारत के पश्चिम तट से आरम्भ होगी और सूर्य को चपेट में ले लेगी -अपने आरम्भिक समय में ही यह पूर्ण सूर्यग्रहण का पथ २०५ किलोमीटर चौडा होगा ! सूरत में सम्पूर्ण सूर्यग्रहण ३ मिनट १४ सेकेण्ड (क्षितिज से सूर्य की ऊँचाई महज ३ डिग्री ) ,इंदौर में तीन मिनट पाँच सेकेण्ड ,भोपाल में ३ मिनट ९ सेकेण्ड ,वाराणसी में ३ मिनट ७ सेकेण्ड तथा पटना में तो ३ मिनट ४७ सेकेन्ड पूर्ण ग्रहण दिखेगा ! पटना के निकटवर्ती क्षेत्रों से सूर्य की ऊँचाई १३-१४ डिग्री ऊपर हो जाने से यह ग्रहण वहाँ से बहुत अच्छादिखेगा -मगर यह जुलाई का महीना भले ही वर्षा कम हो रही हो बादलों से आच्छादित है -आज भी पूरी तरह से आसमान को बादलों ने ढँक रखा है -इसलिए मैं तो पहले से ही अपने उत्साह को अनुशासित कर रहा हूँ जबकि मेरे एक मित्र की खगोलप्रेमी मित्र वायुयान से यह नजारा देखने आज हीयहाँ दिल्ली से पहुँच रही हैं -सनक भी अजब होती है ! एक ब्लॉगर मित्र कानपूर से आने वाले थे -उनका कन्फर्मिंग फोन फिर से अभी आया नही है !
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वह अम्ब्रा पट्टी जिस पर सम्पूर्ण ग्रहण दिखेगा !
पूर्ण सूर्यग्रहण सबसे अधिक समय तक दोपहर में जापान के रुऊक्यू द्वीप से ६ मिनट ३९ सेकेण्ड तक दिखेगा !सम्पूर्ण ग्रहण की स्थिति में आसमान में बुध ,शुक्र और मंगल तथा बृहस्पति को देखा जा सकता है -हाँ क्षितिज पर नीचा होने के कारण पूर्व में बुध और पशिम में बृहस्पति को देखने में थोड़ा मुश्किल हो सकती है !
चित्र विकीपीडिया एवं कुछ अन्य वेब स्रोतों से