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अब दांतों से जुडी थोड़ी अंदरूनी बात हो जाय .हमारे वानर कपि बन्धुबांधवों की ही भाति मनुष्य का मुंह मूलतः खाद्य सामग्रियों की जांच पड़ताल और चबाने के उद्द्येश्य से बना है जिसमें दांतों की मुख्य भूमिका है .किसी बच्चे को देखिये वह हर चीज मुंह में डाल डाल कर माँ बाप को तंग किए रहता है .मगर उम्र बढ़ने के साथ ही अन्य पशुओं की तुलना में यह खाद्य जांच पड़ताल हाथों के जिम्मे हो जाती है ।यहाँ तक किमनुष्य में दांतों से किसी को काट खाने की जरूरत भी कम होने लगती है -मार पीट का जिम्मा भी हाथ ही संभालते है -अपवाद के तौर पर कटखने आदमी भी दीखते हैं मगर यह आत्मरक्षा का अन्तिम विकल्प ही है -जब हाथ लाचार हो जायं .बच्चे अक्सर काट लेते हैं .जैसे कि बड़े बन्दर तो दातों से अक्सर कटखना प्रहार करते हैं - मगर वयस्क मनुष्य में दांतों से रक्षा का यह काम हांथों द्वारा संभाल लिए जाने से उसके दांत दीगर जानवरों की तुलना में छोटे होते गए हैं .उसके हिंस्र कैनायिन दांत तो बहुत ही छोटे हैं .अब दांत खाना चबाने की ही सीमित भूमिका में रह गए हैं .या फिर जाडें में ठण्ड से कटकटानें या असह्य दर्द में भिंच जाने या फिर सोते समय किसी दमित क्रोध के प्रगटीकरण के लिए कटकटानें के ही काम आते हैं .यह हमारे उस कपि अतीत का ही एक अभिव्यक्ति शेष है जब हारता बनमानुष दातों के इस्तेमाल पर आ उतरता था ,अब जब भी किसी को आप सोते वक्त दांत किटकिटाते देंखे तो जान लें कि वह किसी दबंग से टकराहट में हार खाकर स्वप्न में उससे बदला ले रहा है ।
दांत का चमकता इनामेल मनुष्य के शरीर का कठोरतम हिस्सा है -मगर ज्यादा सूगर खाने वाले इसे लैक्टिक अम्ल के निर्माण के चलते सडा गला डालते हैं .भारत में तो गनीमत है मगर पशिमी देशों मे ज्यदातर जवान होकर अपनी बत्तीसी का बड़ा हिस्सा गवां चुके होते है -दंत सर्जरी के आभारी ऐसे लोग कृत्रिम दांतों का सेट लगा कर चिर युवा से लगते हैं .हमें दांत के दो सेट -बचपन के दूध के दांत और बाद वाले वयस्क दांत कुदरत से तोहफे में मिले हैं.काश शार्क मछली की तरह हमारे भी ऐसे दांत होते जो गिरने पर हमेशा नया उग आते हैं !
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