Thursday, 4 March 2010

नर नारी समानता का दूसरा पाठ!

कल हमने बात की थी कि वयस्क पुरुष व्यवहार  जहाँ आज भी बचपन की मासूमियत और जोखिम उठाने की विशेषताये लिए हुए है वहीं वयस्क नारी आकृति  बाल्य साम्य अपनाए हुए है! नारी आकृति और पुरुष की आकृति में एक बड़ा फर्क प्राचीन वैकासिक काल से ही रहा है -प्राचीन काल के श्रम विभाजन ,जहां पुरुष एक कुशल आखेटक बन चुका था ,के चलते पुरुष को शरीर से ज्यादा मजबूत बनना था ,एथलीट माफिक जिससे उसे शिकार करने की दक्षता हासिल हो सके . नारी और पुरुष की आकृतियों का यह अंतर आज भी विद्यमान है .औसत  पुरुष के शरीर में जहां पेशियों का वजन २८ किलो होता है वहीं औसत नारी में पेशियाँ कुल १५ किग्रा ही होती हैं .टिपिकल पुरुष शरीर टिपिकल नारी शरीर से तीस फीसदी ज्यादा सशक्त,१० फीसदी ज्यादा भारी ,सात फीसदी ज्यादा उंचा होताहै .मगर नारी शरीर पर चूंकि गर्भ धारण का जिम्मा होता है अतः उसे भुखमरी की स्थितियों से बचाने के कुदरती उपाय के बतौर २५ फीसदी चर्बी  उसे अधिक मिली होती है जो पुरुष में मात्र १२.५ फीसदी ही होती है .
बस इसी चर्बी (puppy - fat ) की अधिकता के चलते नारी आकृति का बाल -साम्य लम्बे समय तक बना रहता है .चर्बीयुक्त  अपने गोलमटोल शरीर से बच्चे बड़े ही क्यूट लगते हैं -ऐसे बच्चों को देखते ही सहज ही उनकी ओर देखरेख और सुरक्षा के  लिए मन आकृष्ट  हो जाता है -व्यवहार शास्त्री इसे "केयर सालिसिटिंग व्यवहार" कहते हैं .कुदरत ने यही फीचर नारी आकृति में लम्बे समय तक रोके रखने की जुगत इसलिए लगाई ताकि वह नर साथी का सहज ही "केयर सालिसिटिंग रेस्पांस " प्राप्त करती रहे -आखिर संतति निर्वहन का बड़ा रोल तो उसी का था /है न ? अब देखिये कुदरत ने किस तरह गिन गिन कर नारी में दूसरे बाल्य फीचर भी लम्बे समय तक बनाए रखने की जुगत लगाई है -


नारी की आवाज की पिच पुरुष की तुलना में कहीं ज्यादा और  बच्चे जैसी है -गायिकाएं सहज ही बच्चे की आवाज  में पार्श्व ध्वनि दे देती हैं .भारी पुरुष-आवाजें जहां १३०-१४५ आवृत्ति प्रति सेकेण्ड हैं बहीं नारी का यह रेंज २३०-२५५ आवृत्ति प्रति सेकण्ड है .साफ़ है ,नारी आवाज विकास क्रम में अभी भी बाल सुलभता लिए हुए हैं .उनके चेहरे में भी आज भी वही बाल सुलभता दिखती है -जाहिर है पुरुष प्रथमतः सहज ही नारी की ओर किसी विपरीत सेक्स अपील की वजह से नहीं बल्कि अनजाने ही केयर सालिसिटिंग रेस्पांस के चलते आकृष्ट हो जाता है . जैसे किसी बाल मुखड़े को देख वह उसकी देखभाल और रक्षा की नैसर्गिक भावना और तद्जनित लाड- दुलार की भावना  के वशीभूत करता हो .नारी  की भौंहे ,ठुड्डी ,गाल और नाक सभी में बाल साम्यता आज भी दृष्टव्य है .

 इस चित्र को देखकर आपके मन में जो कुछ कुछ हो रहा है  वही है केयर सालिसिटिंग रिस्पांस
दरअसल मनुष्य आज भी एक नियोटेनस प्राणी है जो एक वह स्थति है जिसमें विकास के क्रम में जीव अपने लार्वल अवस्था में में ही प्रजननं करने लगते हैं -और यह लार्वावस्था एक स्थाई स्वरुप बन जाता है  -मनुष्य आज भी अपनी वयस्क अवस्था में भी लार्वल -बाल्य फीचर्स को अपनाए हुए है जिसके वैकासिक निहितार्थ हैं - ज्यादा बाल्य फीचर्स ज्यादा दुलार! .ज्यादा दुलार तो ज्यादा प्रजाति रक्षा और यह नारियों में पुरुष की तुलना में बहुत अधिक है -भले ही अभिभावक का ज्यादा दुलार बच्चों को कभी कभी बिगाड़ भी देता है मगर वह रक्षित तो रहता ही है -मगर अतिशय  दुलार प्रायः बच्चों की  शैतानियों को अनदेखा करता रहता है -मगर ऐसा नारियों के परिप्रेक्ष्य में तो नहीं लगता?क्यों ??