वियेतनाम के सेंट्रल होएन कियेम झील से जब २०० किलो के कच्छप महराज सेना की काफी जद्दोजहद के बाद निकाले गए तो तमाशायी भीड़ नतमस्तक हो गयी -उनका पालनकर्ता, विघ्नहर्ता सामने था!वियेतनामी इस कछुए को अपनी समस्याओं का तारणहार मानते हैं -कु रुआ नाम्नी पितामह का दर्जा प्राप्त यह कच्छप महराज कुछ अस्वस्थ हो गए थे ..किसी ने इनके शरीर पर घावों की पुष्टि की थी ..फिर तो इलाज लाजिमी था ....मामला सेना को सुपुर्द किया गया ....और अब काफी मशक्कत के बाद इलाज के लिए इन्हें झील से बाहर निकाल लिया गया है !
भारत में जैसे कच्छप को देवत्व प्राप्त है और विष्णु के एक अवतार होने का भी गौरव इन्हें मिला हुआ है वैसे ही वियेतनाम में ख़ास कु रुआ को ही दैवीय दर्जा दिया गया है .किंवदंती हैं कि यह इसी कछुए का पुण्य प्रताप था कि होंन कियेम की अतल गहराईयों से दंतकथाओं की स्वर्ण मंडित तलवार निकल आयी और पंद्रहवीं शती के वियेतनामी योद्धा ली लोई ने चीन के मिंग शासकों के अधिपत्य से वियेतनाम को मुक्त करा लिया ..
दावा है कि यह कछुआ करीब ६०० वर्ष का है और जादुई क्षमताएं रखता है -ऐसे विचार इन दुर्लभ हो रहे जंतुओं के संरक्षण के लिए अभयदान बन जाते हैं! रफेटस स्विनहोई वैज्ञानिक नाम(Rafetus swinhoei ) वाला यह कछुआ विश्व के दुर्लभतम कछुआ प्रजाति की नुमाईन्दगी करता है -कहते हैं यह प्रजाति केवल अब चार की संख्या में ही रह गयी है -एक यह ,दो चीन में और एक हनोई में ...यद्यपि वियेतनाम और चीन में कछुआ थाली का एक सुस्वादु व्यंजन 'बा बा ' है मगर कु रुआ के दैवीय स्टेटस के कारण इसे अभयदान मिला हुआ है! विश्व के दुर्लभतम २५ कच्छपों में से १७ यहीं एशिया के ही हैं .
कु रुआ के चाहने वाले उसके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं ....पर्यावरण विद कहते हैं कि उसकी दवा दारू वहीं उसके झील के पर्यावास में ही होनी चाहिए थी- मेरा भी यही मानना है और मैंने अपना मत भी टाईम पत्रिका की इस रिपोर्ट पर डाल दिया है ..आपका क्या विचार है?