व्यवहार वैज्ञानिकों की नजर में नारी सौन्दर्य
नारी सौन्दर्य-नख से शिख तक एक मनोरम यात्रा
नारी सौन्दर्य-नख से शिख तक एक मनोरम यात्रा
नारी के नख-शिख सौन्दर्य पर भारतीय कवियों-साहित्यकारो ने खूब लेखनी चलायी है। महाकवि कालिदास की सौन्दर्य परक रचनाओं से लेकर रीतिकालीन कवि बिहारी लाल के श्रृंगारिक ``दोहों´´ में नारी सौन्दर्य की भारतीय अवधारणा अपने विविध रूपों में बिखरी दिखाई देती है। नायिका भेद से लेकर नारी के अंग प्रत्यंगों पर भी श्रृंगार/सौन्दर्य प्रेमी कविजनों की नज़रे उठी हैं। किसी ने प्राकृतिक सुन्दरता के विविध रूपों को अपनी नायिका/प्रेयसी में निहारा है तो कोई नायिका विशेष की सुन्दरता को ही प्रकृति में बिखरा हुआ पाता है- तभी तो कविवर सुमित्रानन्द पन्त कह पड़ते हैं - छोड़ द्रुमों की मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया बाले तेरे बाल जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन।
कविवर बिहारी लाल का नायक चित्रकार नायिका के नख शिख सौन्दर्य को अपनी तूलिका से उकेरने में खुद को असफल पाता है, क्योंकि वह लक्षित सौन्दर्य को क्षण-क्षण में बदलता हुआ पाता है। नारी सौन्दर्य के वर्णन में वैज्ञानिक के पीछे नहीं है। व्यवहार वैज्ञानिकों (इथोलाजिस्ट) ने भी नारी सौन्दर्य का बड़ा ही रस सिक्त वर्णन किया है। मगर उनके अध्ययन-मनन का एक सिलसिलेवार तरीका है और इसलिए उन्होंने भी चुना है वही नख से शिख तक का क्रमवार अध्ययन। मशहूर ब्रितानी व्यवहार विद डिज्माण्ड मोरिस कहते हैं कि उन्होंने पूरे नारी तन को एक निराले लैण्डस्केप के रूप में निहारा है, जैसे कोई पर्यटक किसी अनजानी किन्तु मनचाही जगह पर अपनी नजरें दौड़ाता है और फिर उस अनजाने प्रदेश के हिस्से दर हिस्से को उसकी सम्पूर्णता में निरखता परखता है। गरज यह कि नारी की केश राशि से शुरु होकर यह मनोरम यात्रा पावों के अंगूठे पर जा विराम पाती है, रास्ते के यही कोई बीसेक पड़ावों पर मौजमस्ती करते, ठहरते-सुस्ताते। तो आइये, डिज्माण्ड मोरिस तथा कुछ दूसरे व्यवहार बिदों के साथ ही हम भी नारी सौन्दर्य की इस पुनरान्वेषण यात्रा पर निकल चलें ...........
यह मनोरम यात्रा शिमला की खिलौना ट्रेन के तरह अपने गंतव्य पर पहुंचेगी .हौले हौले स्टेशनों पर रुकते सुस्ताते ......हाँ कभी कुछ खटक जाय या शब्द नागवार गुजरें तो जरूर टोकें ....वैसे मेरी कोशिश रहेगी कि अपनी संस्कृति ऑर सोच के मुताबिक ही शब्द ऑर अभिव्यक्ति को विस्तार मिले ......
4 comments:
नारी प्रकृति का सुन्दरतम, अनुपम और श्रेष्ठतम कृति है। आप के आगामी आलेखों की प्रतीक्षा रहेगी।
सच में नारी शरीर पूर्णता का प्रतीक है।
संपूर्ण सत्य..शब्द ऑर अभिव्यक्ति को सही विस्तार मिल रहा है.अगली कड़ियों का इन्तजार है.
Saundarya sambandhi ye post rochak haur aam aadmi kee vigyan men ruchi jagaane men bhi madadgaar hogi. Aasha hai ise aur vistaar denge.
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