कूल्हे मटकाना एक चर्चित मुहावरा है। इसका अर्थ चाहे जो कुछ भी हो इतना तो स्पष्ट है कि यह अपनी ओर ध्यान आकिर्षत करने की नारी की अनेक अदाओं में एक है। किसी रूप गर्विता का कूल्हे मटकाकर कहीं से निकलना कई रसिक जनों की दिल की धड़कनो को बढ़ा सकता है। पर जैवीय दृष्टि से नारी के `बड़े´ कूल्हें का फायदा शिशु के आसान प्रसव से जुड़ा है।
भारी भरकम कूल्हा नारी की उर्वर जनन क्षमता का प्रतीक है। नारी के कूल्हे जोरदार यौनाकर्षण के केन्द्र भी हैं अत: इन्हें साभिप्राय ``उभारकर´´ प्रदर्शित करने का प्रचलन भी रहा है। सौन्दर्य शिल्पकार अपनी नारी मूर्तियों के कूल्हों को खासों कोणों से उभार कर गढ़ते हैं। एक समय ब्रिटेन में कूल्हों की चौड़ाई सौन्दर्य का पैमाना मानी जाती थी। सबसे खूब सूरत लड़की वह होती थी जिसकी कमर की माप (इंचों में) ठीक उसके पिछले जन्म दिन की उम्र के बराबर होती थी। यानी जितनी पतली कमर होगी कूल्हे उतने ही चौड़े दिखेंगे।
कमर पतली रखने का कुछ ऐसा फैशन चला कि ब्रितानी महिलायें कुछ निचली पसलियों की शल्य क्रिया कराकर कमर की गोलाई कम करने में सफल हुईं .इस तरह कमर की सूक्ष्मतम माप 13 इंच तक जा पहुँची .अंग्रेज मेमों की पतली कमर देखकर ही शायद किसी शायर ने यह फिकरा कसा कि ``सुना है सनम को कमर ही नहीं है, खुदा जाने नाड़ा कहाँ बांधती हैं।´´
कमर की गोलाई को कम रखने की अनेक जुगतों ने कई समस्याओं को भी जन्म दिया। गर्भपातों की संख्या बढ़ने लगी श्वास रोगों में बढ़ोत्तरी हुई और यहाँ तक की आयु सीमा घटने लगी। चिकित्सकों ने कमर को पतला बनाने के अभियान का पुरजोर विरोध किया लेकिन विगत शती के पाँचवे दशक तक ऐसे पहनावों का बोलवाला रहा है, जो `पतली कमर´ को उभार कर प्रदर्शित करते हैं।
नारी की पतली कमर उसकी मासूमियत, कमसिन होने और अक्षत यौवना होने का भी प्रतीक रही हैं यदि किसी षोडशी के कमर की माप 22 इंच है, तो उसके मां बनने पर यह 28 से 30 इंच तक ``मोटी´´ हो सकती है। इसलिए धारणा यहा बनी कि कमर की माप जितनी कम होगी नारी की ``सेक्सुअल अपील´´ उतनी ही अधिक होगी। लेकिन अब सौन्दर्य बोध के प्रतिमान काफी बदल गये हैं।
विगत् वर्षों की भुवन सुन्दरियों की प्रति स्पर्धाओं में वक्ष कमर और कूल्हों का आदर्श अनुपात 36-24-36 का रहा है। इस जैव आंकडे में कमर और कूल्हों की माप के बड़े अन्तर को देखिए। कूल्हों को एक खास लय ताल में गति लेकर चहलकहदमी की आदत हालीवुड/बालीवुड की अफसराओं से लेकर आम नवयौवनाओं की भी रही है। कई नृत्य शैलियों में भी कूल्हों की विभिन्न गतियों को प्रमुखता मिली हुई है।
पुरुष नृत्यों में कूल्हों की गतियों पर वैसे तो काफी अंकुश रहा है किन्तु इधर हाल में इस प्रतिबन्ध के प्रति विद्रोह मुखरित हो रहा है, फिर भी कूल्हों को मटकाने का प्रकृति प्रदत्त अधिकार केवल महिलाओं को ही मिला हुआ है। इस मामले में तो वे निश्चित रूप से पुरुषों से बाजी मार ले गयीं हैं .