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Saturday, 4 April 2015

रक्तिम चन्द्रग्रहण चौकड़ी का तीसरा चाँद

जब सिलसिलेवार चार खग्रास चंद्रग्रहण यानि पूर्ण चंद्रग्रहण का अवसर आता है तो इसे चन्द्र चौकड़ी के नाम से जाना जाता है। पिछले वर्ष माह अप्रैल में पूर्ण चंद्रग्रहणों की चौकड़ी का आरम्भ हुआ था ,फिर सितम्बर माह और अब आज कड़ी का तीसरा चंद्रग्रहण दिखा जो इस सदी का सबसे अल्प अवधि का पूर्ण चन्द्र ग्रहण है। अगला पूर्ण चंद्रग्रहण आगामी सितम्बर माह में दिखेगा। इस बार बस पाँच मिनट की पूर्णता और कुछ ही समय में मोक्ष भी.

                                         ऑस्ट्रेलिया  में ऐसा दिखा रक्त चन्द्र


हालांकि भारत में यह अरुणांचल प्रदेश में अच्छी तरह दिखा लेकिन भारत के शेष पूर्वी और कुछ पश्चिमी भागों में भी यह आंशिक ही दिख पाया। दरअसल चंद्रोदय के समय ही यह आंशिक ग्रहण लिए दिखा। ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के पश्चिमी प्रांतों में पूर्ण ग्रहण दिखा है।अमेरिका के पश्चिमी प्रांतों में यह तड़के सूर्योदय के पहले और ऑस्ट्रेलिया,न्यूजीलैंड और पूर्वी एशियाई देशों -भारत सहित शाम को चंद्रोदय ही ग्रहण के साथ हुआ हालांकि यह आंशिक विमोचन की अवस्था का ग्रहण था।

                जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथ्वी आती है तो होता है सम्पूर्ण चंद्रग्रहण 
जब पूर्ण चंद्रग्रहण होता है तो सूरज की रोशनी का रक्तिम अंश ही धरती के वातावरण जो चौतरफा 80 किमी की ऊंचाई लिए होता है से छन और परावर्तित होकर चन्द्रमा तक पहुचती है और इसलिए चाँद ताम्बई लालिमा लिए दीखता है. इसे ब्लड मून का नामकरण पादरियों ने दिया है जो इसे किसी बड़ी घटना की आशंका मानते हैं जबकि खगोलविद इसे एक सामान्य खगोलीय घटना ही मानते हैं! 

ग्रहणों से कई तरह के अन्धविश्वास जुड़े हुए हैं जैसे ग्रहण दो दैत्यों द्वारा राहु केतु द्वारा सूर्य और चन्द्रमा का भक्षण कर लेने के कारण होता है।  इस अवधि में कुछ खाना पीना नहीं चाहिए।  मगर ऊपर का चित्र यह स्पष्ट करता है की ग्रहण एक सामान्य खगोलीय घटना है बस!  
चित्र आभार:अर्थस्काई  

Saturday, 15 November 2014

अरबों किमी दूर धूमकेतु पर मानव की विजय पताका -मानव इतिहास का एक महान पल!



तमाम अनिश्चितताओं को लेकर जब यूरोपीय अंतरिक्ष मिशन का रोसेटा( Rosetta) अभियान दस वर्ष पहले दिक्काल की अंनंत गहराईयों में उतरा था तो किसे पता था कि यह मानव इतिहास की इबारत में एक महान पल जोड़ेगा। रोसेटा एक परिक्रमा स्पेसक्राफ्ट और एक लैंडर मॉड्यूल Philae दोनों के साथ धूमकेतु 67P / Churyumov-Gerasimenko (67P) का एक विस्तृत अध्ययन करने के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा बनाया गया एक रोबोट अंतरिक्ष यान है।रोसेटा धूमकेतु की कक्षा के परिभ्रमण लिए पहला अंतरिक्ष यान का उपक्रम है जो एक एरियन -5 रॉकेट पर 2 मार्च 2004 को शुरू किया गया था।

यह एक धूमकेतु के सबसे विस्तृत अध्ययन के लिए डिज़ाइन किया गया है जो जर्मनी में यूरोपीय अंतरिक्ष संचालन केन्द्र (ESOC) से नियंत्रित किया जाता है। यह अंतरिक्ष यान धूमकेतु और आरंभिक सौर प्रणाली की बेहतर समझ विकसित करेगा ऐसी आशा की जाती है।अंतरिक्ष यान पहले 2007 में मंगल ग्रह के गुरुत्व से झटका खाकर ( स्विंग से - flyby) अंतरिक्ष की अनंत गहराई में छलांग लगा बैठा था और अपने रास्ते के दो क्षुद्र ग्रहों के गुरुत्व से निकलते ( flyby ) हुए आगे बढ़ा.. पुनः 2867 सितंबर में क्षुद्रग्रह स्टीनस ,पुनः 2008 और जुलाई 2010 में ल्यूटेटिया से गुजरा। 20 जनवरी 2014 को 31 महीने की हाइबरनेशन मोड से बाहर ले जाया गया था। इस अभियान में 2,000 लोगों ने में मिशन में सहायता प्रदान की है। 
 
 Philae लैंडर का अवतरण 

रोसेट्टा के Philae लैंडर यानि अवतरण मॉड्यूल सफलतापूर्वक १२ नवंबर 2014 को धूमकेतु 67P, के नाभिक पर उत्तर गया हालांकि यह पूर्व निश्चित स्थल से दूर उतरा और उतरने में दो बार उछाल (बाउंस) लिया और एक ऊंची पहाड़ी के पीछे जाकर स्थिर हुआ। जिससे इसका सोलर पैनल पहाड़ी की चोटी की छाया में आ गया और बैटरी रिचार्ज में दिक्कत आ गयी है। मगर तबतक इसने जरूरी आंकड़े धरती तक भेज दिए हैं जिनका विश्लेषण हो रहा है। खगोलविद एलिजाबेथ पियर्सन के अनुसार Philae लैंडर का भविष्य अनिश्चित है, मगर परिक्रमा कर रहा मिशन यान सक्रिय रहेगा।

चार अरब किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक इस मानव निर्मित अंतरिक्ष का जा पहुंचना और अपने मिशन में कामयाब होना मानवता की एक बड़ी सफलता है। अगले वर्ष जिस धूमकेतु पर अवतरण हुआ है वह हमारे सौर मंडल में नजदीक आ जाएगा। विज्ञान कथाओं में धूमकेतुओं को अंतरिक्ष के उड़न खटोलों की संज्ञा दी गयी है जो बिना खर्चे ही सौर मंडल के आख़िरी छोर तक आगामी समानव अंतरिक्ष भ्रमण का मार्ग सुझायेगें।

Tuesday, 18 June 2013

23 जून को निकलेगा बड़का चाँद,देखना मत भूलियेगा!

आगामी 23 जून की पूर्णिमा को एक नयनाभिराम आकाशीय नज़ारा देखने को तैयार रहिये .इस दिन इस वर्ष का बडका चाँद निकलेगा बोले तो सुपर डुपर मून . आसन्न पूर्णिमा को चाँद धरती के सबसे निकट (perigee )  रहेगा और इसलिए इस वर्ष  दिखने वाले सबसे बड़े चाँद का खिताब हासिल करेगा . धरती के इतना करीब चाँद फिर एक साल के इंतज़ार के बाद अगस्त 2014 में ही दिखेगा . वैसे तो सारे देश में मासूम सक्रिय   हो गया है और बादल छाये  की संभावना ज्यादा है मगर हो सकता है कुछ लोगों के बादलों से लुकाछिपी  चाँद नज़र आ ही जाय . पिछली बार जब मार्च 19, 2011 को धरती के सबसे निकट यानी 'पेरिगी'  का चाँद दिखा था तो इसे सुपर मून का नामकरण दे दिया गया था। अभी पिछले महीने 24-25 मई  का चाँद भी एक छोटा सुपर मून ही था .इस नामकरण का भी एक रोचक मसला  है.

मजे की  बात है कि सुपर मून का नामकरण किसी आधुनिक ज्योतिर्विद (एस्ट्रोनामिस्ट )  द्वारा न देकर एक फलित ज्योतिषी द्वारा दिया गया है मगर अब इसे सब ओर  मान्यता मिल गयी है . फलित ज्योतिषी रिचर्ड नोले ने अपने अपने वेब साईट astropro.com पर 1979 में यह नामकरण किया था . जिसके  अनुसार सूर्य ,पृथ्वी और चन्द्रमा के एक सीध में आने पर और चन्द्रमा के धरती के सबसे निकट आने की अवस्था में सुपरमून का वजूद होता है और ऐसी स्थिति वर्ष में  चार -छह बार आ सकती है . इस २3  जून 2013 को धरती से चाँद की  दूरी बस केवल 356,991 किलोमीटर  रहेगी! इसके दो सप्ताह बाद सात जुलाई को ही चाँद अपनी कक्षा  में धरती से सबसे दूर चला जाएगा जिसे एपोजी (apogee)  कहते हैं और तब चाँद धरती से 406,490 किमी दूर होगा .

 इस चित्र  से पूर्ण चन्द्र और बडके चंद्र का फर्क समझा सकता है (सौजन्य:अर्थस्काई

खगोलविदों की गड़ना के अनुसार नवम्बर 2016 का बड़का चाँद धरती के इतने निकट होगा कि उतना निकट फिर नवम्बर 25, 2034 को आयेगा . अर्थस्काई वेबसाईट ने विगत सुपरमूनों (2011-2016)  का एक विवरण  दिया है। दो पूर्णिमा  के बीच का वक्त एक चान्द्रमास  कहलाता  है यानी  29.53059 दिन का औसत समय. सुपर मून साल भर में के चौदह चान्द्र्मासों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज  करते हैं .क्या इस बार के सुपर मून से धरती पर और भी  प्रबल ज्वार भाटे आयेगें ? इस बड़के चाँद से तो और भी बड़े ज्वार आने की संभावना है .अगर इसके साथ मौसमी तूफ़ान का भी संयोग हो गया तो बड़े ज्वार की संभावना बनेगी . समुद्र तट के किनारे बसे लोगों को थोडा चौकस सहना चाहिए
























 

Sunday, 17 March 2013

पैनस्टार्स ने तो निराश किया अब इसान से ही आशा!

आकाश में एक हप्ते से आँखें गड़ाए रखने के बावजूद भी जब पैनस्टार्स धूमकेतु   नहीं दिखा तो आज मैंने हार मान ही ली .वैसे दो एक दिन तो बादलों की धमाचौकड़ी ने खेल बिगाड़ा मगर यह अब साफ़ हो चला है कि यह नंगीं आँखों से नहीं दिखने वाला . अब तो इसकी सूरज के आँगन से वापसी भी शुरू हो चुकी है , मैंने अपने 7 गुणे पचास की क्षमता वाले बायिनाक्यूलर से भी काफी प्रयास किया मगर इस धूमकेतु को नहीं दिखना था तो नहीं दिखा . दिनेशराय द्विवेदी जी  भी कोटा से इसे देखने के प्रयास में अपनी कई शामें छत पर गुजार चुके हैं और कल इसके लिए एक विशेष प्रयास पर निकलने वाले हैं -उन्हें शुभकामनाएं! मगर इस धूमकेतु ने निराश किया  है , वह धूमकेतु या पुच्छल तारा ही क्या जो सब लोगों को नंगीं आँखों से न  दिख जाय और सभी को अपनी लम्बी पूँछ से रोमांचित कर दे।
कहने को तो  यह धूमकेतुओं का वर्ष है  मगर अब तक सूरज के पास  आये लेम्मन और पैनस्टार्स धूमकेतुओं ने निराश किया है ,अब सारी आशा केवल इसान से है जो इस साल के आखीर में आसमान में जलवा फरोश  होगा। उम्मीद है यह नंगीं आँखों से खूब दिखेगा। आईये एक नजर फिर इस वर्ष के धूमकेतुओं पर डालते चलें .

लेम्मन
इस वर्ष पैनस्टार्स (PANSTARRS ,C/2011 L4) और इसान (ISON ,C/2012 S1) की  बड़ी चर्चा है जो नंगी आखों से सीधे देखे जा सकेगें  . दुर्भाग्य से पैनस्टार्स ने निराश किया है . एक और  अन्तरिक्षीय घुमक्कड़ भी माह फरवरी में ही सहसा दिखाई पडा जिसका नाम है -लेम्मन ( Lemmon ,C/2012 F6)  .इसे माउंट लेम्मन एरिज़ोना के  अलेक्स गिब्ब्स ने मार्च 2012 में ही ढूंढ निकाला था। तब यह सूर्य की पृथ्वी से दूरी के भी पांच गुना अधिक दूर था , मगर विगत फरवरी माह (2013) में यह सौर सीमा के काफी भीतर तक आ गया और धरती से दूरबीन के सहारे दिखने लग गया था। मगर दक्षिणी गोलार्ध में ही बाईनाकुलर से दिख पाया।और इसकी चमक(कान्तिमान)  6.2 से 6.5 के बीच रही-मतलब नंगी आँखों से ठीक ठीक न दिख पाने की स्थिति। यह सूरज के सबसे करीब मार्च 24, 2013 को आया और यह दूरी  धरती की सौर कक्षा से तनिक कम थी . यह मई 2013 में  सूर्य सामीप्य से अपनी वापसी के दौरान फिर टेलीस्कोप के जरिये दिख सकेगा .
 पैनस्टार्स

लेम्मन की सूर्य से मुलाकात कर वापसी अभी हुयी ही थी कि एक और धूमकेतु आ धमका -पैनस्टार्स -यह नामकरण इसे ढूँढने वाले टेलीस्कोप के नाम (Pan-STARRS)  पर पड़ा।  मार्च माह में यह कुछ कुछ शुक्र ग्रह के कान्तिमान का हो गया था . पांच मार्च 2013 को यह अपने भ्रमण पथ पर धरती के सबसे नजदीक (1.10 Astronomical Units, AU) आ पहुंचा था। एक ऐ यू धरती से सूर्य की दूरी का सममान है . मतलब यह धूमकेतु  धरती से सूरज की दूरी से भी अधिक दूरी से हमसे दूर ही रहा और अब तो और भी दूर होता जा रहा है!
पैनस्टार्स विगत 10 मार्च को सूर्य के संबसे करीब था -इतना अधिक पास जैसे सूर्य और बुध के बीच का फासला हो (0.30 ऐ यू ) यानी  साढ़े चार करोड़ किलोमीटर। यही वह समय था जब इसकी चमक तेज हुयी  थी और पूछ का निर्माण भी अस्तित्व में आ चुका था .यह मार्च माह में सूर्यास्त के पश्चात पश्चिम दिशा में कई देशों से क्षितिज पर दिखता रहा . मार्च 12 ,13 और 14 को यह चंद्रमा के पास दिखा .फिर उत्तर की ओर धीरे धीरे क्षितिज के और ऊपर होता गया।  इसकी पूछ और खुद इसे बाईनाक्युलर से ही ठीक तरह से देखा जा सकता है  . पैनस्टार्स एक अन -आवधिक पुच्छल तारा है -मतलब यह पिछली बार कब आया था और आगे कब आएगा इसका कोई निश्चित समय काल ज्ञात नहीं है . यानि  यह "वंस इन अ लाईफ टाईम" का मौका अपने दर्शकों को दे चुका  है।
 इंतज़ार है एक धुंधकारी धूमकेतु   इसान का 
 अगली सर्दियों तक एक धुंधकारी धूमकेतु धरतीवासियों के लिए कौतूहल का विषय बनने  वाला है और कहते हैं कि अब तक के धूमकेतुओं में वह सबसे भव्य और चमकदार होगा . किन्तु कई खगोलविद यह भी कहते हैं कि कोई धूमकेतु कैसा दिखेगा यह शर्तिया तौर पर पहले से नहीं कहा जा सकता -क्योकि पिछले हेली और केहुतेक पुच्छल तारों का प्रदर्शन  निराशाजनक रहा था .नए ढूंढें पुच्छल तारे के इसान  (ISON) के बारे में भी कुछ ऐसे ही उहापोह हैं -किन्तु इसके खोजी शौकिया खगोलविदों आरटीओम नोविचोनोक (बेलरस ) और विटाली नेवेस्की(रूस) का  मानना है कि यह एक भव्य प्रदर्शनकारी धूमकेतु बनेगा! बोले तो पूरा धुंधकारी . इसे इसलिए ही अंतर्जाल पर ड्रीम कमेट कहा जा रहा है .यानी धूमकेतुओं के चहेतों के कितने ही सपनो को साकार कर जायेगा ईसान! 

    

Saturday, 16 February 2013

किसी पिंड ने पिंड छोड़ा तो कोई और आ धमका!

पहले से ही अंतर्जाल पर अफवाहें जोर पर थी  कि एक क्षुद्र ग्रह धरती से आ टकराने वाला है -और वह भी प्रेम दिवस के आस पास । जबकि वैज्ञानिक ऐसे अफवाहबाजों को पानी पी पीकर कोस रहे थे और पूरी दुनिया को आश्वस्त कर रहे थे कि कुछ भी अनहोनी नहीं होगी .मगर यह तो संयोगों का संयोग हो गया -लगभग उसी समय रूस के कई शहरों में एक भयानक उल्कापात हुआ -सहसा तो सारी दुनिया के विज्ञान संचारक भी चौक पड़े कि आखिर यह क्या हो गया -मैंने देखा कि  मशहूर विज्ञान संचारक और बैड एस्ट्रोनामी के (कु)-विख्यात ब्लोगर फिल प्लेट ने 15 फरवरी की सुबह ही अपने फेसबुक अपडेट में यह खबर बहुत अनिश्चित से मूड में दे दी कि उन्होंने रूस में एक उल्का गिरने की खबर सुनी है मगर वे दरियाफ्त कर रहे हैं -मैं उनके ब्लॉग अपडेट पर भी नज़र गडाए रहा और मामला आखिर साफ़ हो गया -सचमुच रूस में 15 तारीख यानी शुक्रवार की सुबह सुबह सूरज उगते ही एक और आग का गोला,उतना ही चमकता हुआ अचानक दिखा . भयानक आवाज  हुयी .इसकी विस्फोटक शक्ति पृथ्वी के वायुमडल में प्रवेश करते समय 300 किलोटन से अधिक थी। एक आकलन है कि आसमान में हुए इस विस्फोट की क्षमता सन् 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम के विस्फोट की तुलना में कई गुना अधिक(300 kilotons of TNT) थी । यह उल्का सन् 1908 में गिरी तुंगुस्का उल्का के बाद पृथ्वी पर गिरनेवाला सबसे बड़ा खगोलीय पिंड है। गनीमत रही कि यह आसमान में ही विस्फोटित हो गया और एक महा विनाश टल गया हालांकि तब भी 1200 से ऊपर ही लोग घायल हुए हैं जिनमें से 50 से अधिक घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

अब अंतर्जाल पर अफवाह उड़ाने वालों की बन आयी थी -देखा न, हमने तो पहले ही कह रखा था ..... :-) मगर भाई यह वह पिंड  नहीं था  जिसके गिरने की बात वे बड़े जोरशोर से उड़ा रहे थे -वह तो क्षुद्रग्रह 2912 डी ऐ 14 धरती के करीब आया और चुपके से चल भी दिया . यह बात कल ही स्पष्ट हो गयी थी कि 2912 डी ऐ 14 रूस में नहीं गिर। नासा ने साफ़ कर दिया कि जो उल्का गिरी वह तो कोई अनजान राहों का भटका अन्तरिक्षी राही था जो अचानक धरती पर आ टपका -यह उल्कापिंड विपरीत दिशा यानी सूरज के बाईं ओर -उत्तर से दक्षिण की ओर आयी मगर 2912 डी ऐ 14 तो दक्षिण से उत्तर की ओर गतिमान था . फिल प्लेट जी प्लस की हैंग आउट वीडियो चैटिंग पर लाईव बने हुए थे।
यह एक बड़ी खगोलीय घटना थी ,भारतीय लोगों को छोडिये -कितने ही बन्दे यहाँ अज्ञानता के आनंद में गोते लगा रहे हैं मगर मैं तो इस घटना से काफी उद्वेलित  हूँ . इसके कई कारण हैं -क्या धरती पर सचमुच किसी ऐसे ही उल्का पात /वृष्टि से प्रलय दबे पाँव सहसा आ जायेगी? यद्यपि इस घटना के बाद मची खलबली के बीच एक दावा यह आया कि रूस ने समय रहते ही एक मिसाईल इस फ़ुटबाल के मैदान के बराबर की उल्का पर साध दिया था और जिसके चलते वह खंड खंड हो गयी और आसमान में ही भस्म हो गयी? मगर क्या सचमुच? वैज्ञानिक नहीं मानते -उनके मुताबिक़ यह वैसी ही स्थिति है कि कोई क्रिकेट का फील्डर बिलकुल असावधान सा  बाउंड्री पर हो और अचानक बल्लेबाज का अप्रत्याशित छक्का उसकी सहज पहुँच सीमा के कुछ आगे गिरने को बढ़ चला हो तो क्या वह उसे कैच कर पायेगा? यही स्थिति लगभग इन उल्काओं की है -इनमें से कोई अचानक ही मंगल और और वृहस्पति के बीच की खगोलीय पिंड के मलबा पट्टी से धरती की ओर आ टपकता है और इतना कम समय बचता है कि उसे नष्ट करना अभी तक तो असंभव ही रहा है . फिर भी रूस के इसे मिसाईल से मार देने के दावे तो विज्ञान कथाओं में खूब वर्णित है . रूस में अभी भी लोगों में दहशत है -एक राजनेता ने दावा किया किया है कि दरअसल यह अमेरिका का कोई था परीक्षण था .

अमेरिका और रूस में स्पेस -अदावत की जड़ें काफी पुरानी हैं। हाँ एक यह बात हैरत में डालती है और यह बात याहू  इन्डियन साईंस फिक्शन समूह पर भी चर्चा में आयी कि रूस के उल्कापात की जद में क्या कोई विमान नहीं आया जबकि इसने कई प्रदेशों को आच्छादित किया है . 2912 डी ऐ 14 ने भी क्या किसी भी संचार उपग्रह को डिस्टर्ब नहीं किया?
हम विज्ञान संचारक ऐसे मौको का भी एक सकारात्मक उपयोग करते हैं -आपको इस विषय पर थोड़ी जानकारी देने का मौका हम नहीं छोड़ते -क्या आपको कुछ और पूछना है तो स्वागत है!
बहरहाल चैन की नीद सोईये,खतरा फिलहाल टल गया है। 
पुनश्च:कुछ परिभाषाएं यहाँ देखें  

Tuesday, 25 December 2012

नए वर्ष में आ धमकने वाला है एक धुंधकारी धूमकेतु!

हाँ ,खगोलविदों का तो अनुमान फिलहाल ऐसा ही है .अगली सर्दियों तक एक धुंधकारी धूमकेतु धरतीवासियों के लिए कौतूहल का विषय बनने  वाला है और कहते हैं कि अब तक के धूमकेतुओं में वह सबसे भव्य और चमकदार होगा . किन्तु कई खगोलविद यह भी कहते हैं कि कोई धूमकेतु कैसा दिखेगा यह शर्तिया तौर पर पहले से नहीं कहा जा सकता -क्योकि पिछले हेली और केहुतेक पुच्छल तारों का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा था .नए ढूंढें पुच्छल तारे के इशान (ISON) के बारे में भी कुछ ऐसे ही उहापोह हैं -किन्तु इसके खोजी शौकिया खगोलविदों आरटीओम नोविचोनोक (बेलरस ) और विटाली नेवेस्की(रूस) का  मानना है कि यह एक भव्य प्रदर्शनकारी धूमकेतु बनेगा! बोले तो पूरा धुंधकारी . इसे इसलिए ही अंतर्जाल पर ड्रीम कमेट कहा जा रहा है . यानी धूमकेतुओं के कितने ही सपनो को साकार कर जायेगा ईशान! 
क्या ग्रेट कमेट (1860) यानि ऊपर जैसा ही दिखेगा इसान? 

ईशान का नामकरण इंटरनेशनल सायिनटीफिक ओप्टिकल नेटवर्क का संक्षिप्त रूप है जिसके सदस्य इसके शौकिया खोजकर्ता हैं . यह तब देखा गया जबकि यह सूरज से लगभग 97 करोड़ किलोमीटर दूर था . दरअसल नेपच्यून के भी आगे इन धूमकेतुओं की एक मांद है जिसे ऊर्ट क्लाउड कहते हैं -वहीं से कभी कभार कोई गन्दा सा बर्फ का गोला (डरटी  आईस/स्नो  बाल ) सूरज के गुरुत्व क्षेत्र में आ टपकता है और फिर सूर्य की प्रदक्षिणा एक बहुत ही दीर्घ परिक्रमा पथ पर करने लगता है -ज्यों ज्यों वह सूर्य के निकट आता जाता है बर्फ के पिघलने से उसका प्रभा मंडल बनता(हालो )  बनता है और सौर हवाए पिघलते हिम धूल को सूर्य के विपरीत बहा ले चलती हैं जिनसे इनकी ख़ास पूंछ का निर्माण होता है -भारत में प्रायः इसे पुच्छल तारे के नाम से जानते हैं जबकि संस्कृत के ग्रंथों में इसे केतु कहा गया है ,यहाँ पुच्छल तारों को अशुभ माना जाता है . किन्तु ये संरचनाएं अन्य खगोलीय घटनाओं की तरह सामान्य घटनाएं ही हैं -हाँ खतरा तब हो सकता है जब कोई धूमकेतु पथभ्रष्ट होकर कहीं धरती के परिक्रमा पथ पर आकर धरती से भीड़ न जाय .

यदि अनुमान सच साबित हुए तो यह धूमकेतु आगामी दिसम्बर माह में दिन में भी चन्द्रमा जैसा दिख सकता है .मतलब यह परिमाप में काफी बड़ा लग रहा है . ऐसा भी समझा जा रहा है कि इसान बहुत कुछ 
''ग्रेट कमेट आफ 1680" सरीखा है और वैसा ही उसका भ्रमण  पथ है . अगले अगस्त माह तक इसान धरती से लगभग 32 करोड़ किमी तक आ पहुंचेगा और इसका आभा मंडल बनना शुरू हो जायेगा। और तभी सही अंदाजा भी हो जायेगा कि यह कैसा दिखेगा .  तब तक की आतुर प्रतीक्षा खगोल प्रेमियों को करनी होगी . 

Monday, 4 June 2012

सूर्य पर शुक्र की चहलकदमी


जी हाँ आप भारत के किसी भी हिस्से से कल सुबह उठते ही एक बहुत दुर्लभ अद्भुत आकाशीय नज़ारा देख सकेगें जिसे शुक्र का पारगमन कहा जाता है .दरअसल यह सूर्य पर शुक्र का ग्रहण है .ठीक वैसे ही जैसे सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण वैसे ही शुक्र ग्रहण ..मतलब सूर्य और धरती के बीच अपने परिक्रमा पथ पर शुक्र का आ टपकना..अब जब चंद्रमा सूर्य और धरती के बीच होता है तो चंद्रमा की पूरी चकती सूर्य को ढक लेती है- कारण यह कि नजदीक होने से चंद्रमा की चकती सूर्य की चकती के बराबर ही लगती है ..मगर शुक्र तो दूर होने से काफी छोटा लगता है और इसलिए यह सूर्य की बड़ी चकती पर बस चहलकदमी करता नज़र आता है ...कहने भर को ग्रहण होना चरितार्थ करता है ....और यह पूरा तमाशा सात घंटे चलेगा और इस बीच शुक्र सूर्य की चकती के इस पार से उस पार हो जाएगा -बस यही तो है शुक्र पारगमन जिसे लेकर इतना हौवा मचा हुआ है .
मगर यह एक दुर्लभ दृश्य इसलिए है कि जल्दी जल्दी नहीं घटता .अगला शुक्र पारगमन ११ दिसम्बर २११७ को घटित होगा और तब हम आप इस दुनिया में नहीं होंगे ....जाहिर है इस शताब्दी में यह अंतिम अवसर है इस आकाशीय नज़ारे को देखने का .....पिछली बार यह जून ८ ,२००४ को घटित हुआ था . दरअसल प्रत्येक २४३ वर्षों  में यह घटना जोड़ों में घटती है -इस शती में २००४ और २०१२ में यह घटना घटी है -इसके पहले जोड़े में आठ वर्षों के अंतराल पर १८७४ और १८८२ में घटी थी . इस नयनाभिराम दृश्य को सीधे नहीं देखा जा सकता .बल्कि ख़ास चश्मों से या रिवर्स इमेज तकनीक के सहारे जिसमें दूरबीन को सूर्य की ओर  बिना देखे फोकस कर रिवर्स तस्वीर कागज़ पर ली जाती है और घटना की प्रगति देखी जाती है . ऐसी तस्वीरो में सूर्य की चमकदार चकती पर शुक्र का काला धब्बा आगे बढ़ता हुआ दिखता जाता है .इस बार यह लगभग सात घंटे का मजमा है .

 भारत में कई वेधशालाएं इस दृश्य को आम लोगों को दिखाने का जतन   कर रही हैं .आप अपने शहर में ऐसे किसी अस्ट्रोनोमी क्लब ,या वेधशाला तक पहुँच कर इस दृश्य का लुत्फ़ उठा सकते हैं .या फिर इस मकसद हेतु ख़ास तौर पर बनाए काले चश्मों से सीधे भी देख सकते हैं या फिर वेबकैम के जरिये कम्प्युटर पर भी देख सकते हैं -कोई जुगाड़ न हो पाया तो परेशान न हो इस  वेबसाईट पर जाकर इस घटना क्रम के पल पल की जानकारी और दृश्य देख सकते हैं . टी वी भी इस दृश्य को फोकस करेगें ही ....हाँ इतना जरुर गाँठ बाँध लें कि दुर्लभ होने के बावजूद भी यह एक सामान्य खगोलीय  घटना ही है और मनुष्य के ऊपर इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं पढने वाला है . अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से इस बार इस घटना को कैमरे में कैद करने की तैयारी है .यह वीडियो  देखिये -




Sunday, 13 March 2011

चाँद : चाहे रहो दूर चाहे रहो पास : फर्क न पड़ेगा कुछ खास

अंतर्जाल पर एक गपोडिये ने यह अफवाह  क्या उड़ा दी कि सुपरमून और सुनामी का रिश्ता है -हिन्दी के कई टी वी चैनेल इसी मुद्दे को लेकर चिचियाना शुरू कर चुके हैं .अब दिन रात यह चिल्ल पों मची हुयी है कि आगामी १९ मार्च को चाँद के धरती से निकटस्थ होने (पेरिगी ) के चलते ही जापान की सुनामी आयी है . दावे हैं कि जब जब भी अतीत में चाँद धरती के सबसे निकट रहा है ऐसी ही आपदाएं ,प्रलयंकारी दृश्य धरती पर दिखे हैं ....आईये मामले की तह में जाते हैं .लेकिन यह पहले ही बताकर कि यह केवल एक बकवास है और चाँद का जापान में आयी सुनामी से कुछ लेना देना नहीं है .और सबसे पहले तो  इस बेसिर पैर  की खबर को  एक  फलित ज्योतिषी ने उडाई थी -उसने एक नया नाम दे दिया -सुपरमून!  जो और कुछ नहीं धरती के सबसे निकट होने पर दिखने वाला  चाँद है जो नया(प्रथमा )  या पूर्णिमा का हो सकता है !

चाँद धरती की परिक्रमा एक अंडाकार पथ में करता है और इस लिहाज से कभी वह धरती के काफी पास और कभी काफी दूर होता है -जब वह बहुत पास होता है तो उस अवस्था को ' perigee '  और दूरस्थ अवस्था को 'apogee ' कहते हैं -पेरिगी पर यह धरती से  354000 किमी और ऐपोजी के समय 410000 किमी दूर हो जाता है ...चूंकि चाँद धरती की परिक्रमा प्रत्येक माह में कर लेता है यह हर पखवारे में इन निकटस्थ और दूरस्थ स्थितियों से गुजरता है ..मगर जब जापान में भूकंप और सुनामी आयी तो चाँद धरती के निकटस्थ कहाँ था? ११ मार्च को तो यह लगभग ४ लाख किमी दूरी पर था मतलब दूरस्थ स्थिति के लगभग करीब -यह तो  आगामी १९ मार्च को यह धरती के सबसे निकट होगा ...फिर दूर के चाँद के गुरुत्व से भला जापान की सुनामी कैसे आयी होगी? 
 चाँद : चाहे रहो दूर चाहे रहो पास : फर्क न पड़ेगा कुछ खास 
बाईं ओर का चाँद धरती के निकटस्थ होने और दायीं ओर का दूरस्थ  होने का अंतर दिखाता है


यह सही है कि चाँद के धरती से सन्निकट होने पर समुद्रों में ज्वार भाटे आते हैं मगर यह स्थति सबसे प्रभावपूर्ण तब होती है जब अन्तरिक्ष में सूर्य ,पृथ्वी और चाँद एक  सीध में आते हैं -इस स्थिति में धरती पर इन आकाशीय पिंडों के गुरुत्व का बल ज्यादा लगता है ....बड़े ज्वार और बड़े भाटे (जल उतार ) आते हैं ....ऐसी स्थितियां नए चन्द्र (प्रथमा /एक्कम ) और पूर्ण चाँद (पूर्णिमा ) के समय होती हैं ...और जब ऐसी स्थितियां चन्द्र -पेरिगी के समय होती हैं तो गुरुत्व का बल धरती पर ज्यादा असरकारी हो जाता है ....मगर इतना  भी नहीं कि सुनामी सी आफत आ जाय ....बस केवल थोडा बड़े ज्वार और भांटे आते हैं जिनसे खौफ खाने की जरुरत नहीं है .

फिल प्लेट जो मेरे पसंदीदा ब्लागर हैं ने इस मामले को अपने ब्लॉग बैड अस्ट्रोनोमी  पर उठाया है और अच्छी तरह से यह समझाया है कि धरती पर चाँद का गुरुत्व इतना अधिक नहीं होता की यहाँ बड़े मौसमी बदलाव आ जाएँ ,भूकम्प और सुनामी आये  या ज्वालामुखियों में विस्फोट हो जाय!तो आगामी १९ मार्च को भी कम से कम चाँद के कारण कुछ नहीं होने वाला है ....हाँ इतनी बड़ी दुनिया में कहीं न कहीं भूकंप भी आएगा और ज्वालामुखी भी फूटेगा मगर यह तो केवल संयोग ही है -चाँद का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है -खुद अपनी धरती  के विकार और मनुष्य की करतूतें इसका कारण भले ही हों ....

Saturday, 12 March 2011

सुनामी का सितम :सवाल और सबक

जापान में सुनामी के महाविध्वंस ने एक बार फिर जता  दिया है कि कुदरत के कहर के आगे मनुष्य कितना बौना और बेबस है .वैसे तो जापान भूकंप का देश ही कहा जाता है और इस लिहाज से वहां रोजाना की इस आपदा से जूझने को लोग तैयार रहते हैं मगर इस बार रिक्टर  स्केल पर ८.९ की तीव्रता के भूकंप के फ़ौरन बाद आयी विकराल सुनामी  ने मुझे फिल्म २०१२ के प्रलय -दृश्यों की याद दिला दी -फिल्म के कई दृश्य तो ऐसे हैं कि मानो फिल्म  निर्देशक ने जापान की इसी सुनामी को ही अपनी दिव्य दृष्टि से देख लिया हो ....किन्तु क्षोभ की बात यह है कि मानव मनीषा द्वारा  भविष्य का पूर्वाभास कर लेने के बाद भी इनसे निपटने की पुख्ता तैयारी  नहीं होती  और एक महाविनाश अपने दंश से मानवता को कराहता छोड़ जाता है ....काश भविष्य की  विभीषिकाओं का खाका खीचने वाली विज्ञान कथा फिल्मों से ही कुछ सबक लिया गया होता ...
 साई फाई फिल्म २०१२ का एक खंड प्रलय सा दृश्य 

कितना अभागा और अभिशप्त देश है जापान जिस बिचारे की मानों ऐसे ही हादसों से गुजरते रहने की नियति बन गयी है -दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाभकीय बमों ने दो शहरों-नागासाकी  और  हिरोशिमा  का लगभग खात्मा ही कर दिया था -आये दिन भूकंप वहां आते ही रहते हैं -फिर भी जापान वासियों का जज्बा तो देखिये वे फिर उठ बैठते हैं और  सीना ताने सिर उठाये खड़े ही नहीं हो जाते सारी दुनिया की एक बड़ी आर्थिक शक्ति भी बन जाते हैं ..जापान  विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति है ....मानवीय जिजीविषा की यह एक मिसाल है .इस बार तो जापान के बीस से ज्यादा शहरों  में सुनामी से कहर बरपा दिया -कई शहर तो नेस्तनाबूद हो गए हैं ! चलती ट्रेनें ,जहाज तक को लहरों ने लील लिया है ..लहर लहर शमशान का नजारा है   ....नाभिकीय आपात काल भी घोषित कर दिया गया है क्योकि  परमाणु रियेक्टरों को भारी क्षति पहुँची है .  परमाणुवीय  विकिरण का खतरा उत्पन्न हो गया है और इसके क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं इसे भला जापान से बेहतर कौन समझ सकता है जहाँ नागासाकी हिरोशिमा में आज भी विकिरण जनित जन्मजात विकलांगता अभिशाप बनी हुयी है .
 जापान में महासुनामी के  विध्वंस का एक दृश्य : १०-११  मार्च २०११

सबसे  हैरानी  वाली बात  यह है कि क्या जापान के भविष्य- नियोजकों ने इतने बड़े खतरे का कोई आकलन नहीं किया था? और यदि किया था तो क्या इसके लिए पर्याप्त तैयारियां नहीं की गयीं? कोई भी कह सकता है कि  भला कुदरत के आगे किसकी चल पाती है? मगर इस मुद्दे को ऐसे ही चलताऊ जवाब से नहीं टरकाया जा सकता ....हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी की किस प्रगति पर इतना गुमान करते हैं -मतलब साफ़ है प्रकृति की विनाश लीलाओं से निपटने के लिए अभी भी हमारे उपाय और तैयारियां नाकाफी है -हमारे जोखिम बचाव के इंतजाम  बचकाने हैं और आपदा प्रबंध शोचनीय!  अगर जापान जैसे देश में जोखिम पूर्वाभास ,हादसा मूल्यांकन और आपदा प्रबंध की यह स्थति है तो जरा सोचिये अपने भारत में अगर खुदा न खास्ता ऐसी बड़ी सुनामी आ  जाए तो क्या होगा? कुछ महानगरों का वजूद ही नक़्शे से मिट जाएगा .

भारत का एक बड़ा हिस्सा (पेनिस्युला ) समुद्र से घिरा है हमारे कई महानगर भी लबे तट हैं ..मुम्बई ,कोलकाता ,कोचीन गुजरात गोवा और द्वीपों की एक बड़ी श्रृखला सब सागर सहारे ही हैं ...हमें फ़ौरन जापान की इस महा काल सुनामी से सबक लेने होंगें -एक दूरगामी रणनीति बनानी होगी ..भगवान् भरोसे रहने की मानसिकता से उबरना होगा और तमाम अनुत्पादक परियोजनाओं ,कामों से ध्यान हटाकर एक ठोस परियोजना को मूर्त रूप देकर अपने बंदरगाहों और तटीय शहरों को यथासंभव सुनामी -प्रूफ करना होगा ...भारत की एक सुनामी हमें पहले ही चेतावनी दे चुकी है ...लेकिन हम अभी भी बेखबर है -यहाँ जोखिम और आपदा प्रबंध को लेकर कोई गंभीर सोच अभी भी नीति नियोजकों में नहीं है -और सबसे बढ़कर हमारी राजनीतिक इच्छाशक्ति को तो मानों काठ मार गया है  ...यह देश बड़े से बड़े घोटालों के लिए उर्वर बनता जा रहा है ...माननीय सासंदों के लिए निर्माण कार्यों का बजट २ करोड़ से पांच करोड़ करने का चिंतन तो यहाँ है मगर भारत के भविष्य के अनेक मुद्दों पर हमारी दृष्टि धुंधलाई सी हो गयी है ....यह स्थिति  कतई उचित नहीं कही जा सकती ..आईये हम इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठायें या फिर एक जापान  सरीखी किसी नियति के लिए तैयार रहें ...

Wednesday, 23 February 2011

सौर सुनामी चुपके से आयी और चली भी गयी.....

सारी दुनिया जब वैलेंटाईन समारोहों में मुब्तिला थी एक सौर लपट उठी और धरती को अपने आगोश में लेने चल पडी -मानो यह एक अन्तरिक्षीय वैलेंटाईन का नजारा हो!बहरहाल वैज्ञानिकों ने अब राहत की सांस ली है की इस सौर ज्वाला  ने धरती पर ज्यादा क़यामत नहीं ढाई ....जैसा कि २००३ में दुनिया के कई देशों में सौर ज्वालाओं के चलते ब्लैक  आउट की नौबत आ गयी थी -रेडिओ सिग्नल और विद्युत् आपूर्ति तक लडखडा गयी थी ..विगत  14 फरवरी  को सौर  ज्वालाओं का तूफान  पिछले अनेक सौर लपटों की तुलना में कम शक्तिशाली था , लेकिन इसने डरा  तो दिया ही था ....

 इक सौर लपट जो  उठी है अभी 
 
दरअसल सौर लपटें सूरज के सतह पर उसकी आंतरिक विद्युत चुम्बकीय गतिविधियों से निकली अपार ऊर्जा है जो कभी कभी सूरज की समस्त ऊर्जा के दस फीसदी तक भी जा पहुँचती है -यह अन्तरिक्ष में बेलगाम दौड़ पड़ती है ...और धरती तक भी दो चक्रों में आ पहुँचती है -जिसमें पहले चक्र में तो इसका प्रकाश है जो विद्युत् चुम्बकीय चमक के रूप में धरती तक बस मिनटों में आ पहुँचता है जो विगत १३ तारीख की ही रात में आ पहुंचा था और वैलेंटाईन की पूर्व संध्या पर ही धरती का संस्पर्श कर चुका था -दूसरा उप परमाणवी कणों का भभूका है जिसे धरती का चुम्बकीय कवच रोकने में सफल होगा ,हाँ  संचार प्रणालियां अस्त-व्यस्त जरुर हो सकती हैं और उपग्रहों और अंतरिक्षयात्रियों के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है।मगर लगता है संकट टल गया है .

दरअसल सौर गतिविधियों का एक ११ वर्षीय चक्र है जिसका नया दौर बस शुरू ही हुआ है .. और सौर ज्वालाओं जैसी गतिविधि की सक्रियता एक आम बात है -जिसे वैज्ञानिकों की भाषा में कोरोनल मॉस इजेक्शन भी      कहते हैं .कुछ लोगों ने इसका एक और रोचक नामकरण किया है -सौर सुनामी! फिलहाल यह समझ लीजिये कि एक सौर सुनामी चुपके से आयी और चली भी गयी है ..हाँ चुम्बकीय कणों ने ध्रुवों पर इन्द्रधनुषी आभा जरुर बिखेरी!आप स्पेस वेदर  डाट काम पर इन सौर लप्यों की ताजा तरीन जानकारी पर नजर रख सकते हैं!यूनिवर्स टुडे पर भी नजरें गडाई जा सकती हैं .





Friday, 12 March 2010

क्या सचमुच महिलायें एक बेहतर अन्तरिक्ष यात्री बन सकती हैं?

सांद्रा  मैग्नस जो एक महिला अन्तरिक्ष यात्री रही हैं के अंतिरक्ष से की गयी ब्लागिंग पर हमने कुछ समय पहले लिखा था .एक खबर चीन से है जिसने महिला अन्तरिक्ष यात्री के चुनाव की घोषणा की है .चीन के समानव अन्तरिक्ष अभियान के डिप्टी कमांडर झेंन  जियांगी ने ने एक साक्षात्कार में बताया है कि "हमने चयन में नारी और पुरुष अन्तरिक्ष यात्रियों के लिए समान ही मानदंड रखे ,बस केवल अंतर रहा कि हमने विवाहित महिला अन्तरिक्ष यात्री को प्राथमिकता दी है क्योंकि हम जानते हैं कि विवाहितायें शारीरिक और मानसिक तौर  पर ज्यादा सुदृढ़ होती हैं " उन्होंने आगे जोड़ा कि " सहन क्षमता और चौकसी में भी महिला अन्तरिक्ष यात्री ज्यादा सफल होंगी!"  क्या वाकई ?

 सबसे पहली अन्तरिक्ष यात्री थीं रूस की वैलेन्ताइना टेरेस्कोवा (१९६३)-अमेरिकी महिला अन्तरिक्ष यात्रिओं का सिलसिला १९८३ से शुरू हुआ और अब तक कई अमेरिकी महिलाएं अन्तरिक्ष यात्री बन चुकी हैं -यह आशंका हमेशा रही है कि अन्तरिक्ष के   विकिरण प्रजनन प्रणाली पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं  इसलिए विवाहिता के ही अन्तरिक्ष यात्रा  के लिए चयनित करने पर सहमति रही है यद्यपि अन्तरिक्ष यात्राओं के बाद भी कई महिला अन्तरिक्ष यात्री स्वस्थ बच्चों को जन्म दे चुकी हैं .अभी चीन ने दो भावी महिला अन्तरिक्ष यात्रिओं का चयन तो  किया है मगर उनका नाम पता गुप्त रखा है .

इंग्लैण्ड का गार्जियन अखबार अपने ऑनलाइन संस्करण में इन दिनों एक रायशुमारी करा रहा है कि क्या सचमुच महिलायें एक बेहतर अन्तरिक्ष यात्री बन सकती हैं,क्योंकि माना जा रहा है कि वे बेहतर संचार की कुशलता और अकेलेपन से निपटने की क्षमता भी रखती हैं.जहाँ २७.१ प्रतिशत लोगों ने यह कहा है कि सचमुच ऐसा ही है जबकि ७२.९ प्रतिशत लोगों के विचार है कि "जेंडर मेक्स नो डिफ़रेंस !" आपका का क्या ख्याल है ?

Monday, 7 September 2009

......और गायब हो गए शनि के सभी छल्ले !


इन दिनों जबकि हिन्दी ब्लॉग जगत कन्या राशि ( जो सौभाग्य या दुर्भाग्य से मेरी भी है ) पर आगामी ९ सितम्बर से शनि की साढे साती के आरूढ़ हो जाने का विवेचन कर रहा है शनि देव से ही जुडी एक विलक्षण खगोली घटना अभी पिछले ४ सितम्बर को घटित हुयी है -और देखा गया की शनि के सभी वलय /छल्ले ही गायब हो चुके हैं !

नहीं नहीं घबराने की कोई बात नही है -प्रत्येक १५ -१६ साल पर सूर्य के चक्कर लगाने के चक्कर में शनि महराज धरती से कुछ ऐसे कोण में आ जाते हैं की उनके छल्ले ही नही दीखते ! ४ सितम्बर को यही हुआ और तभी से शनि के छल्ले ही नही दिख रहे हैं जो अगले माह से ही दिखना आरम्भ करेगें !

आप इस साईट पर जाकर रोंगटे खडी कर देने वाली और भी विस्तृत जानकारी और वीडियो देख सकते हैं !

राहत है कि मेरी राशि वालों पर शनि आरूढ़ होगें तो छल्ले अदृश्य होगें ,इसे हम शुभ मान रहे हैं ! यानि हम शनि के घेरों से मुक्त हो घनचक्कर नही बनेगें -हा हा हा !

Tuesday, 11 August 2009

अन्तरिक्ष में आतिशबाजी !

पर्सिज तारामंडल को लोकेट करें -चित्र पर क्लिक्क करें
जी हाँ ,गूगल बाबा की पैनी निगाहें आगाह कर रही हैं कि अन्तरिक्ष में आज रात एक अद्भुत नजारा दिखेगा जिसे आधीरात के बाद उत्तरी पूर्वी क्षितिज में देखा जा सकेगा ! यह अद्भुत दृश्यावली पर्सिज उल्का वृष्टि (Perseid meteor shower) कहलाती है -आसमान में लुक्क -लुक्कारे छूटते हैं .आम आदमी को लगता है देवता लोग आतिशबाजी का लुत्फ़ उठा रहे हों ! वैसे भी बरसात का जिम्मा इन्द्रदेव ने इस बार संभाला ही नही है उन्हें फुरसत ही फुरसत है आतिशबाजी खेलने की ! मगर इस आकाशीय आतिशबाजी का कारण तो कुछ और ही है -होता यह है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए प्रत्येक वर्ष उस नियत स्थान पर जा पहुँचती है जो एक धूमकेतु स्विफ्टटटल का परिभ्रमण पथ है और जहाँ उससे उत्सर्जित मलबा /कचरा जमा है ! जब धरती के परिवेश से इस कचरे के धूल धक्कड़ टकराते है तो जल उठते हैं और हमें आसमानी आतिशबाजी का नजारा दिखता है !

अन्तरिक्ष में वह जगह जहाँ हमारी धरती स्विफ्ट टटल के परिभ्रमण पथ से गुजरती है पर्सिज तारामंडल (perseid constellation ) का पृष्ठभूमि लिए हुए दिखती है -इसलिए इस घटना को पर्सिज उल्का वृष्टि भी कहते हैं !यह प्रत्येक वर्ष १०-१२ अगस्त को अपने चरम पर होती है -आज यह नजारा अपने उरूज पर होगा ! आप अगर इन दिनों आसमान के तारों को गिन रहे हो या बादलों की खोज में निगाहें रात में भी आसमान की ओर बार बार उठ जा रही हों तो पक्का दिखेगा यह नजारा आपको -हाँ निगाहें उत्तरी पूर्वी क्षितिज की ओर रखियेगा -पानी की बूंदों की बौछार की बजाय इस बार उल्कों की बौछार /बरसात से ही दिल बहला लीजिये ! एक बार यह अनुभव भी सही!
यह वीडियो भी देख लीजिये !

Wednesday, 25 March 2009

एक अन्तरिक्ष यात्री का चिट्ठा ....!

सांद्रा मैग्नस
यहाँ हम जमीन पर बैठे टिपिया रहे हैं कोई आकाश -अन्तरिक्ष के पार से चिट्ठे लिख रहा है -और यह हैं अन्तरिक्ष यात्री सांद्रा मैग्नस जो अन्तरिक्ष से एक ब्लॉग लिखती हैं -स्पेस बुक ! वे बस अगले कुछ दिनों में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आई एस एस ) से धरती पर लौटने वाली हैं ! मेरे एक पसंदीदा ब्लॉग -बैड अस्ट्रोनोमी के ब्लागर फिल प्लैट लिखते हैं कि सांद्रा मैग्नस एकमात्र वह शख्श हैं जो अन्तरिक्ष से ब्लागिंग करती हैं ! डिस्कवरी यान से सांद्रा आई एस एस तक पहुँची थीं ! फिल प्लैट ने सांद्रा के अन्तरिक्ष यात्रा के अनुभव पर लिखे ब्लॉग को भी लिंक किया है ! मैंने जब अन्तरिक्ष से की गयी इस चिट्ठाकारिता को देखा तो आप से भी इस अलौकिक अनुभव को बाटने के लिए व्यग्र हो गया ! मैं यहाँ सांद्रा के चिट्ठे के कुछ अंशों के उद्धरण देने का लोभ रोक नही पा रहा -


"...मुझे सही सही तो नही पता कि मैं अन्तरिक्ष में कहाँ थी मगर रात हो चुकी थी और मैंने एक कक्ष की खिड़की के निकट अपने को संभाला .....मैं कोशिश करूंगी कि जो कुछ मैंने देखा उसे शब्द चित्रों में प्रस्तुत करुँ ....यह घोर निबिड़ रात्रि है ..अब अफ्रीका के ऊपर तूफ़ान के चलते बिजलियाँ कौंध सी रही हैं ऐसा लग रहा है कि आतिशबाजी हो रही हो ! लगता है कोई बड़ा तूफ़ान है जो फैलता जा रहा है ! .....यद्यपि कि धरती का क्षितिज अलक्षित है ,बादलों की बिजलियों और शहरों की चमक में धरती और अन्तरिक्ष का फर्क साफ तौर पर देखा जा सकता है ! रात्रि कालीन उत्तरी धरती के क्षितिज को काली रोशनाई के मानिंद आकाश से सहज ही अलग कर देखा जा सकता है .धरती के पार्श्व के एक छोर से निकलती सी लग रही आकाश गंगा (मिल्की वे ) मानो अपनी ओर यात्रा के लिए पुकार सी रही है .....यह सब मुझे विस्मित सा कर रहा है... ओह कितना सुंदर !

कभी कभार कोई जलबुझ करती लाल रोशनी भी रह रह कर दिख जाती है जो दरअसल सैटेलाईट हैं ..ये तेजी से गुजर जाते हैं ! चमचमाते तारे भी अद्भुत लग रहे हैं ...इस समय आई एस एस रात्रि भ्रमण कर रहा है अंधेरे की कारस्तानी का दर्शक बन रहा है ....अभी नीचे तो अँधेरा ही है मगर तारों से जगमगाती यामिनी अब विदा ले रही है क्योंकि सूर्यदेव की चमक अंधेरे के वजूद को मिटाने पर आमादा है ! मगर धरती पर सूर्योदय के ठीक पहले एक दम से कृष्णता फैल गयी है और कुछ भी दिख नही रहा है जैसे न तो धरती और न ही आसमान का कोई वजूद है ! बस जैसे मैं ही अस्तित्व में हूँ और अन्धता के एक महासागर में खो सी गयी हूँ और जहाँ सूरज बस खिलखिलाने वाला है और लो धरती तक सूरज की किरने जा पहुँचीं और वह एक बार फिर से सहसा ही प्रगट हो गयी है ...तारे सहसा ही छुप गए हैं यद्यपि वे वही हैं जहाँ थे ......."


यह वह कविता है जिसे अन्तरिक्ष से लिखे ब्लॉग पर डाला गया है ! इस महिला को भला कौन नही आदर देगा ! सांद्रा को सलाम !





Thursday, 5 March 2009

हवाई मौत जो सर्र से गुजर गयी !

यह तो इटोकावा है मगर जो गुजरी वह भी ऐसी ही मगर छोटी मौत थी ! सौजन्य :बी बी सी
पिछले सोमवार को जब हम ब्लागिंग स्लागिंग और जिन्दगी के दीगर लफड़ों में मुब्तिला थे तो एक मौत हवाई रास्ते सर्र से मानवता के सिर पर से गुजर गयी ! मौत क्या पूरी कयामत कहिये ! एक क्षुद्र ग्रहिका (एस्टरायड) आसमान में काफी नीचे तक ,करीब ७२००० किमी तक बिना नुक्सान पहुंचाए गुज़री ! इसका नाम २००९ ,डी डी ४५ था और यह ३०मीटर की परिधि की थी ! बताता चलूँ की यह दूरी चन्द्रमा की दूरी से पाँच गुना कम थी .यह क्षुद्र ग्रह थोडा और नीचे आ गया होता तो यहाँ साईबेरिया के तुंगुस्का क्षेत्र में सन १९०८ के दौरान हजारों परमाणु बमों को भी मात वाले विनाश सा मंजर दिखला जाता जो एक ऐसे ही क्षुद्र ग्रह के आ गिरने से हुआ था !

दरअसल मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच टूटे फूटे अनेक सौर्ग्रहीय अवशेष ,धूमकेतुओं के टुकड़े आदि एक पट्टी में सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं जहा से कभी कभी कभार ये पथभ्रष्ट होकर धरती का रूख भी कर लेते हैं ! धरती पर आसमान से दबे पाँव आने वाली इन मौतों का खतरा हमेशा मंडराता रहता है ।

अब नासा के जेट प्रोपोल्सन प्रयोगशाला से जारी ऐसे खतरनाक घुमंतू मौतों की सूची पर एक नजर डालें तो आज ही एक और क्षुद्र ग्रह धरती की ओर लपक रहा है ! पर इससे भी खतरे की कोई गुन्जायिश नही है -मगर ऐसे ही रहा तो बकरे की माँ कब तक खैर मनाएंगी ...एक दिन आसमानी रास्ते से दबे पाँव आयी मौत कहीं ....? कौन जाने ? मगर फिकर नाट वैज्ञानिक इन नटखट सौर उद्दंदों पर कड़ी और सतर्क नजर रखे हुए हैं जरूरत पडी तो जैसे को तैसा की रणनीति के तहत वे इन्हे परमाणु बमों से उड़ा देंगें या रास्ता बदल देने पर मजबूर कर देंगें !

सारी दुनिया की रक्षा का भार वैज्ञानिक उठाते आरहे हैं पर कितने अफ़सोस की बात है कि समाज उन्हें वह इज्जत नही देता ,उन्हें वैसा सर आंखों पर नहीं उठाता जितना वह नेताओं पर अभिनेताओं पर मर मिटने तक उतारू रहता है !

Sunday, 1 March 2009

चन्द्र -शुक्र युति का वह नजारा ! यह एस्ट्रोफोटो तो देखिये !!

पिछली २७ फरवरी को आसमान में सायंकाल चंद्रमा और शुक्र के करीब दिखने के इस दृश्य ने व्योम विहारियों को काफी रुझाया .गत्यात्मक ज्योतिष ने भी इसी अपने एजेंडे के तहत हायिलाईट करने का अवसर नहीं गवाया और इस सामान्य सी खगोलीय घटना को इस लहजे से प्रस्तुत किया कि मैंने उस दृश्य को न देखना ही मुनासिब समझा -दरअसल मैं फलित ज्योतिष को एक बकवास से कमतर नहीं मानता और अंधविश्वासों की श्रेणी में इसे सबसे ऊपर मानता हूँ ,और भोली भाली जनता को गुमराह कर धनार्जन का एक अधम,अनैतिक जरिया मानता हूँ ! उद्विग्न मन से मैंने उस पोस्ट पर यूं टिप्पणी दी -
"यह एक सामान्य खगोलीय घटना है पर उतना प्रामिनेंट दिखेगा भी नही जितना उभार कर आप उसे दिखा /प्रस्तुत कर रही हैं ! मैं एक सरकारी कर्मचारी हूँ और मुझे पता है कि मेरे सुख दुःख का इससे कोई रिश्ता नहीं है ! मैं आज्माऊंगा भी नहीं !
-मुझे आपके दिल दुखाने का अफ़सोस होता है -सारी मैम ,मगर मजबूर हूँ!"

मगर इस फैसले से मैं एक सुन्दरतम खगोलीय घटना के अवलोकन से चूक गया ! काश मैं गत्यात्मक जोतिष के फलितार्थों से उतना अलेर्जिक न हुआ होता तो इस दृश्य को अवश्य निहार कर धन्य होता !

मेरी बुकमार्क पसंदों में से एक बैड अस्ट्रोनोमी ने उस आकाशीय दृश्य से अभिभूत हो कर एक पूरी पोस्ट ही अपने ब्लॉग पर डाली -आप अवश्य जायं,पढ़ें भी और कुछ अद्भुत दृश्यावली -एस्ट्रो फोटोज का दीदार करें !

Monday, 23 February 2009

बनारस से तो नही दिख रहा लूलिन !

जी हाँ एक राउंड तो आकाश दर्शन हो गया -रात तीन बजे से ही दक्षिण -पश्चिम आकाश का कोना कोना छान मारा है और अब थक हार कर यह ब्लॉग पोस्ट लिखने लगा हूँ -हो सकता है शहर की बिजली की रोशनी की कौंध के कारण वह न दिख रहा हो -मैंने नंगी आंखों के अलावा अपने ७ गुणे ५० परिवर्धन के बायिनाक्युलर का भी सहारा लिया । पर सब बेकार ! मुझे याद है जब 1986 में हेली का धूमकेतु दिखा था तो उन दिनों मैं लखनऊ में था और इसी बायिनाक्यूलर से उसे खोज निकाला था -जबकि हेली भी उस वर्ष बहुत फीका दिखा था ! पर लुलिन का तो कोई अता पता ही नहीं चल रहा !
अब मैं आस लगाए बैठा हूँ कि रोजाना की ५ से ७ बजे वाली बिजली की कटौती हो जाय और शहर के अंधेरे में डूबने को एक वरदान के रूप में देखते हुए एक गहन प्रयास और किया जाय -मगर यह डर भी है कि आज चूंकि महाशिवरात्रि है और पूरी सम्भावना है कि बिजली ही न काटी जाय -तब तो फिर मैं गया काम से ! लूलिन दिखने से रहा ! जो भी हो अभी तो मैंने हार नही मानी है !

Sunday, 22 February 2009

लो आ गया लूलिन -मेरे साथ रतजगा करेंगें ?

ऐसा दिखेगा लूलिन -(सौजन्य -नासा )
जी हाँ यह नया धूमकेतू आ धमका है -नाम है लूलिन जो आज के मध्यरात्रि के बाद दक्षिणी -पश्चिमी आकाश में चमक बिखेरेगा ! इसे 2007 में चीनी और ताईवानी खगोलविदों ने संयुक्त रूप से खोजा था और औपचारिक रूप से इसे C/2007 N3 नामकरण दिया गया है !

जैसा कि आप जानते ही होंगे कि धूमकेतु सौर मंडल के स्थायी वासी तो होते नही -वे सौर्य मंडल के आखिरी छोर के अन्तरिक्षीय द्रव्यों की एक मांद / ऊर्ट क्लाऊड से सहसा सौर आँगन में आ टपकते हैं -इसलिए लोकमान्यताओं में तो धूमकेतुओं के लिए हमारे अंगने में तुम्हारा क्या काम वाला भाव ही रहता है -ये अशुभ माने जाते हैं !

दरअसल लूलिन की खोज का श्रेय ये(YE ) नामके एक किशोर को दिया जाता है जो चीन स्थित मौसम पूर्वानुमान विभाग सन याट सेन विश्विद्यालय का छात्र है जिसने एक ताईवानी खगोलविद चाई सेंग लिंग द्वारा लुलिन वेधशाला से गगन गगन चक्रमण (स्काई पेट्रोलिंग ) के दौरान खींचे चित्र में इसे अन्तरिक्ष के निस्सीम विस्तार में से खोज लिया था !

उसी वेधशाला के नाम पर नामकरण के पश्चात् यह हरित सौन्दर्य अब धरती के सबसे करीब आ पहुँचा है ! और २६ की अल सुबह यह हमारे सबसे करीब होगा ! यह विरला धूमकेतू है जो हरे रंग का है ! यह हरा रंग इस धूमकेतु के नाभिक से निकलने वाली जहरीली गैस सायानोजेन (CN) और द्वि परमाणुवीय कार्बन (
C2) के कारण है जो अन्तरिक्ष के निर्वात में सूर्य की रोशनी से हरीतिमा की चमक उत्पन्न करते हैं !

1910 में जब हैली धूमकेतु के सायनोजेन सनी पूँछ में से धरती गुजरने वाली थी बड़ा कुहराम मच गया था -लोगों को लगा था की कहीं उसकी पूँछ से गुजरना धरतीवासियों के लिए कालरात्रि न बन जाय ! मगर यह झूंठा भय निकला -धरती का घना वातावरण हैली की पूँछ के लिए अभेद्य बन गया ! और अगर कुछ सायनोजेन धरती के वातावरण में समाया भी होता तो उसकी सघनता इतनी नाम मात्र की होती कि किसी का बाल भी बांका नहीं होता !
लूलिन की हालत तो खासी पतली है -हैली के मुकाबले यह कहीं नहीं ठहरता ! यह धरती की निकटतम दूरी ३.८ करोड़ मील तक कल २६ फरवरी को ब्रह्म मूहूर्त में पहुँच रहा है !

कल तीन बजे भोर का अलार्म लगाईये और चढ़ जाईये अपनी छत पर या निकल जाईये किसी गाँव गिरावं के अपने संबंधी के यहाँ क्योंकि हो सकता है कि यह शहर के चका चौध में आपको न दिखे -मगर देखें तो बायिनाक्युलर से ही -पास न हो तो पडोसी से मांग लें या खरीद ही लें क्योंकि जीवन का यह एकबारगी मौका फिर हाथ आने वाला नहीं ! और वह भी सम्भव नहीं तो मेरे निवास पर आपका स्वागत है जहाँ इसके दर्शन के लिए रतजगा होने वाला है .
यह सूर्योदय के कुछ घंटे पहले ही उदित हो जाएगा और दक्षिणी आकाश में दिखेगा ! आपकी सुविधा के लिए आकाशीय चित्र और लूलिन की पोजीशन वाला चार्ट यह रहा ! चार्ट में यह शनि से बस कुछ ही अंश /कोण पर सिंह राशि में दिखेगा !

बायनाकुलर से आप आसानी से देख सकते हैं ! शनि को तो अपने देखा ही होगा बस उसी के इर्द गिर्द नजरे घुमाईये -भाग्य आजमाईये दिख गया तो बस बल्ले बल्ले ! और अगर यह हरित सौन्दर्य आपको बिस्तर से नहीं उठा सका तो आख़िर फिर आपको भगवान ही उठा पायेगा !(ईश्वर आपको लम्बी उम्र दें ! )






Tuesday, 29 July 2008

नासा के जन्मदिन की अर्धशती !

नासा -नॅशनल एरोनाटिक्स एंड स्पेस एडमिनीस्ट्रेशन अपने जन्म की अर्धशती मना रहा है .जुलाई 29, 1958, को इसे गठित किया गया था .जब रूसी स्पुतनिक ने १९५७ में अन्तरिक्ष की ओर छलांग लगाई थी तो अमेरिका ने इसे एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा था .नासा उसी चुनौती का एक माकूल जवाब था .और तभी से अन्तरिक्ष को लेकर एक ऐसी होड़ मची जो अब मानव को चाँद और मंगल की देहरी तक ले जा पहुँची है .अन्तरिक्ष पर्यटन का युग भी देखते देखते आ पहुंचा है और लोग अन्तरिक्ष की भारहीनता में भी हनीमून और 'फ्री ग्रेविटी ,फ्री सेक्स ' के मनसूबे बना रहे हैं .नासा के इस जश्न के क्षणों को आप यहाँ के खूबसूरत चित्रों के साथ साझा कर सकते हैं ।
नासा से मेरा भी एक संवेदना का रिश्ता रहा है .अन्तरिक्ष यानों में रोगाणुओं का यात्रियों पर क्या असर पड़ सकता है इस अभियान में मेरे सगे चाचा जी डॉ .सरोज कुमार मिश्रा का भी योगदान रहा .उनका यह साझा शोध पत्र पेटेंट के लिए भी संस्तुत हुआ .नासा ने गोपनीय कारणों से एक ,करग नेशनॅशनल का गठन किया और उसी के जरिये कई शोध कार्य कराये जिसमे डॉ सरोज कुमार मिश्रा का उद्धृत शोध पत्र ,उसी के सौजन्य से था .अब चाचा जी नासा में नही हैं -उन्होंने वहाँ से त्याग पत्र दे दिया -पर क्यों ,मुझे यह उन्होंने गोपनीय रखने को कहा है .और मैं विवश हूँ -भले ही असहज महसूस कर रहा हूँ ।
जो कुछ भी हो नासा की उपलब्धियों से मैं प्रभावित हूँ और इस जश्ने अन्तरिक्ष में मैं भी शामिल होता हूँ -थ्री चीयर्स के साथ .....

Thursday, 29 May 2008

क्योंकर स्वदेशी हुआ चंद्रयान अभियान ?

चित्रकार की नज़र में चंद्रयान -सौजन्य इसरो
चंद्रयान अभियान की सुधि है आपको ?इसे तो अभी तक चन्द्रमा की ऑर उड़ चलना था .जी हाँ ,अब जाकर तैयारियां जोर पकड़ रही हैं और अनुमान है कि सितम्बर के आस पास यह अभियान काफी धूम धडाके से अपनी राह पकड़ लेगा -मगर इतना विलम्ब क्यों ?
अरे भाई चुनाव करीब है और उसके जितना ही करीब यह शोबाजी होगी उतना ही वोटरों को रिझाने का मौका मिलेगा न !बहरहाल मैंने यह पोस्ट इस खातिर नियोजित की है कि आप भी ज़रा यह जायजा लें कि क्या यह विशुद्ध रुप से एक देशज अभियान ही है -आप निर्णय ख़ुद लें -
इस चंद्रयान -१,ल्युनर आर्बिटर की मशीनरी में आधे दर्जन से ज्यादा देश भागीदारी कर रहे हैं -इसमे एक तो C1xs है जिसे यूरोपियेन स्पेस एजेंसी ने प्रायोजित किया है और यह हेल्स्नकी युनिवेर्सिटी के सहयोग से तैयार किया गया है .अभी भी इसके एक्स रे सोलर मानीटर का इंतज़ार हो रहा है .यह चन्द्र सतह की रासायनिक जांचों मे मदद करेगा .इसी तरह एक औजार नासा का मून मिनेरोलोजी मैपर एम् ३ है जो एक १५ पौंड का स्पेक्ट्रोमीटर है जो चाँद के खनिज खादानों पर निगाह जमाएगा .यह एक खादान नक्शा भी तैयार कराने मे मददगार होगा .यह चाँद के गुफा गह्वरों में बर्फानी जल स्रोतों की भी खोज बीन करेगा .एक नन्हा सा बुल्गारियाई विकिरण मापी -राडोम भी इस अभियान का हिस्सा है जो वहाँ के वातावरण [?}में रेडियो धर्मिता की छान बीन करेगा .
यही नही जर्मनी के मैक्स प्लांक संस्थान द्वारा एक और खनिज खोजी -SIR 2, भी यान पर आरूढ़ हो चुका है जो खनिज भंडारों की बारीक पड़ताल करेगा .
जांस हापकिंस युनिवेर्सिटी के अप्लायिद भौतिकी के वैज्ञानिकों ने एक राडार मैपिंग इकाई भी भेजी है जो यान मे फिट हो चुकी है .यूरोपियेन स्पेस एजेंसी ने स्वीडेन ,जापान ,स्विट्जरलैंड के सहयोग से SARA नामक एक प्रोब भी भेजा है जो यान में जगह पाएगा और सौर हवाओं का ताप सहेगा .
और कई भारतीय उपकरण तो खैर है हीं .
इस तरह यह अभियान एकदम से स्वदेशी कैसे कहा जाय ?कुछ लोग कहेंगे कि यह वैश्विक स्पेस बिरादरी का सुंदर मेल है .या फिर सभी भारत के कंधे पर बंदूक लाद अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं .


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