मानव की धार्मिक मान्यतायें :
अपने विकास के दौरान जब मानव ने पहले-पहल `चिन्तन´ शुरू किया तो उसके मन में यह प्रश्न विशेष रूप से कौंधा कि आखिर वह कौन है और कहाँ से आया है? अपने जिज्ञासु मन की तुष्टि के लिए ही मानव ने अपने उद्भव के सन्दर्भ में कई रोचक कल्पनायें भी कीं। देवी-देवताओं जैसी `अलौकिक सत्ताओं´´ की उसने स्वत: खोज कर डाली और उनसे अपने उद्भव, अस्तित्व आदि को संयुक्त कर दिया। उसकी अज्ञानतावश ही कई अन्धविश्वासों को भी बल मिला।
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कृपया चित्र को बड़ा करके देखें (साभार :इंसायिक्लोपीडिया ब्रिटैनिका ,स्टुडेंट संस्करण )
उसने धार्मिक मान्यताओं का भी सृजन किया, अपने सुख-शान्ति और तमाम अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर के लिए। इन्हीं धार्मिक मान्यताओं ने उसे उसके जन्म, मृत्यु सम्बन्धी सभी गूढ़ समझे जाने वाले प्रश्नों का यथासम्भव उत्तर दिया है, जिनका अभी तक स्पष्टत: कोई वैज्ञानिक आधार नहीं मिल पाया है। लिहाजा अब मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति बहुत कुछ `शान्त´ हो चली थी--वह संतुष्ट हो चला था। अभी पिछली शताब्दी के मध्यकाल तक ऐसा निर्विवाद माना जाता था कि मानव का अलौकिक सृजन हुआ है और पृथ्वी के अन्य पशु-पक्षियों से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। विश्व के लगभग सभी पौराणिक साहित्य में, मानव के उद्भव को लेकर रोचक कथायें हैं। हमारी प्रसिद्ध पौराणिक मान्यता यही है कि आज का मानव मनु और श्रद्धा दो महामानवों का वंशज है। यह दम्पित्त पुराणोक्त महाप्रलय में भी बच गया था और तदनन्तर इसी ने नयी सृष्टि का संचार किया।
प्रसिद्ध ईसाई ग्रन्थ बाइबिल भी मानव उत्पित्त के पीछे इसी भँति साक्ष्य देता है और आदम तथा हौव्वा को आज के मानवों का जनक बताता है। वैसे आज भी विश्व की अधिकांश धर्मभीरु जनता भ्रमवश इन्हीं मान्यताओं में विश्वास रखती है- परन्तु मानवोत्पित्त को लेकर अब की वैज्ञानिक विचारधारा यह है कि वह अन्य पशुओं से ही विकसित एक समुन्नत सामाजिक पशु ही है।
जारी .......