Saturday, 17 November 2007

ईश्वर को प्रिय है ज्ञान मार्ग

क्या सचमुच मनुष्य दैवीय सृजन का प्रतिफल है ?या फिर जैवीय विकास के फलस्वरूप वह निम्न प्राणियों से ही धरती पर अवतरित हुआ है -चार्ल्स डार्विन ने इस मसले को पर्याप्त प्रमाणों के आधार पर अपनी युगान्तरकारी पुस्तक 'डिसेंट ऑफ़ मैन' [1871] मे हल कर दिया था, जिसमे बहुत ही प्रभावशाली तरीके से समझाया गया था कि मनुष्य भी दीगर जीवों की तरह एक लम्बी वैकासिक प्रक्रिया का प्रतिफलन है और वह नर-वानर कुल का ही वंशज है -उसके आदि पुरखे कभी वानरों सदृश ही रहे होंगे . मतलब की आज के गोरिल्ला ,चिम्पांजी तथा मानव किसी एक वंश कड़ी की ही उपज हैं .मतलब यह कि मनुष्य किसी दैवीय उत्पाद का हकदार नही है , ईश्वर ने उसे सृजित नही किया बल्कि वह नीची विरासत का अवतरित प्राणी हैयह धर्म के नाम पर रोजी रोटी कमाने वालों के मुह पर एक करारा तमाचा था .डार्विन की बड़ी खिल्लियाँ उडाई गयी ,चर्च ने बड़ा हो हल्ला मचाया -मगर वैज्ञानिक पद्धति से निष्कर्षित तथ्यों के आगे उनकी आवाज थमती गयी .लेकिन आश्चर्य तो यह है कि अभी भी ऐसे लोग है जो बडे ही प्रायोजित तरीके से सृजनवाद के प्रचार प्रसार मे लगे हैं .आख़िर अज्ञान के प्रसार से उन्हें क्या मिलेगा ?.जबकि कई धर्मों की मान्यता यही है कि खुद भगवान को भी ज्ञान मार्ग ही सबसे प्रिय है -'प्यारे भक्तों' को वे भी दूसरे दर्जे पर रखते हैं .