Science could just be a fun and discourse of a very high intellectual order.Besides, it could be a savior of humanity as well by eradicating a lot of superstitious and superfluous things from our society which are hampering our march towards peace and prosperity. Let us join hands to move towards establishing a scientific culture........a brave new world.....!
Saturday, 29 March 2008
चाँद ही नहीं सूर्य भी `कलंकित´ !
अनुरोध :कृपया इस पोस्ट को जल्दीबाजी मे न पढ़ें ,इत्मीनान से कई एक सत्रों मे पढ़ सकते हैं -इसका मतलब आपसे भी हो सकता है .अस्तु ,
चाँद का `कलंक´ तो बच्चे बूढ़े किसी से भी छुपा नहीं, सदियों से लोग चाँद पर धब्बों को देखकर विस्मित होते आये हैं और इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाते रहे हैं। चन्द्र सतह की भौगोलिक रचनाओं- ज्वाला मुखियों, पहाड़ों, गहवरों को किस्से कहानियों में `सूत कातती बुढ़िया´ से लेकर गौतम ऋषि द्वारा क्रोध में मृगचर्म के प्रहार से उत्पन्न चोट के निशानों के रुप में देखा गया है। किन्तु सूर्य भी कलंकित है- दागदार है इसकी जानकारी आम लोगों को नहीं है क्योंकि सूर्य को नंगी आ¡खों से निहारने की हिम्मत किसे है? सूर्य पर धब्बों की मौजूदगी चीनी खगोल शास्त्रियों को ईसा के 24 वर्ष पहले ही हो चुकी थी।
`कलंकित´ सूरज के ग्यारह वर्षीय चक्र वाले सौर धब्बों [ ``सौर चक्र - 24´´ ] विगत् 4 जनवरी 08 से आरम्भ हो गया है, जिससे धरती पर पावर ग्रिड , संवेदी सैन्य संस्थानों, नागरिक एवं उड्डयन संचार, जी0पी0एस0 सिग्नल, मोबाइल फोन नेटवर्क और यहाँ तक कि ए0टी0एम0 से नगदी के लेन-देन जैसी रोजमर्रा की मानवीय गतिविधियों के भी सहसा ही ठप हो जाने के खतरे बढ़ गये हैं- मशहूर अमेरिकी संस्थान, `नेशनल ओसियनिक एण्ड एटमास्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन´-`नोआ´ ने सौर धब्बों के नये चक्र के शुरूआत की चेतावनी अभी हाल ही में जारी की है।
अभी फलित ज्योतिषियों को शायद सौर धब्बों के इस नये चक्र का पता नहीं है, अन्यथा अखबारों की सुर्खियों में राजा-प्रजा पर पड़ने वाले `कलंकित´ सूर्य के अनेक प्रभावों, दुष्प्रभावों की चर्चा भी जरुर हो चुकी होती। सूर्य के उत्तरी गोलार्द्ध में 4 जनवरी 08 से नये सौर धब्बों के दिखने के साथ ही २४ वां सौर धब्बा चक्र वजूद में आ गया है। फलत: उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र पर `ऑरोरा बोरियेलिस´ के नाम से विख्यात प्रकाश पुंजो की अद्भुत िझलमिलाहट भी उसी दिन देखी गयी। सौर वैज्ञानिकों का मानना है कि ये तो अभी आरिम्भक संकेत-शकुन भर हैं। `नोआ´ के `स्पेस वेदर प्रिडेक्शन सेन्टर´ के वैज्ञानिक डगलस बाइसेकर ने इस बार के सौर धब्बों के चक्र को उच्च सक्रियता वाला मानते हुए यह आशंका व्यक्त की है कि धरती पर इनका उत्पात 2011-12 के दौरान अपने चरम पर जा पहु¡चेगा। लेकिन भयावने सौर झंझावात - आंधियां धरती के वायु मंडल को अपने चपेट में कभी भी ले सकती हैं।
दिन ब दिन अन्तरिक्ष प्रौद्योगोकियों पर हमारी बढ़ती निर्भरता के लिहाज से इस नये सौर चक्र-24 को गम्भीरता से लिया जाना वाजिब है। मौसम के पूर्वानुमान और जी0पी0एस0 नैविगेशन के लिए उपयोग में लाये जा रहे सैटेलाइट सौर आँधियों के चपेट में आ सकते हैं, निष्क्रिय भी हो सकते हैं। यह चेतावनी `नासा´ की एक वेबसाइट के जरिये जारी की गयी है।
हवाई यात्रायें भी जोखिम भरी हो सकती हैं। क्योंकि प्रत्येक वर्ष अनेक अन्तर्महाद्वीपीय उड़ाने जो धरती के ध्रुवों से गुजरती हुई हजारों यात्रियों को गन्तव्य तक ले आ-जा रही हैं, सौर आँधियों के चपेट में आ सकती हैं। न्यूयार्क, टोक्यो, बीजिंग तथा शिकागों की उड़ाने `कम दूरी´ के उत्तर ध्रुवीय मार्ग को प्राथमिकता दे रही हैं। 1999 में `यूनाइटेड एअर लाइन्स´ द्वारा आर्कटिक के ऊपर से 12 उड़ानों का आवाजाही हुई थी जबकि 2005 तक यह तेजी से बढ़ती हुई 1, 402 तक जा पहु¡ची। सौर आँधियों की सक्रियता ध्रुवों पर ज्यादा ही होती है और इस लिहाज से ध्रुवीय रास्तों वाली इन उड़ानों को लेकर घबराहट शुरु हो गई है। `स्पेस वेदर प्रिडक्शन सेन्टर´ के खगोलविद स्टीवहिल कहते हैं- ``जब विमान ध्रुवों के ऊपर सौर आ¡धियों की चपेट में आयेंगे तो उनकी रेडियों संचार प्रणाली ठप पड़ सकती है। उनका मार्ग निर्देशन गडमड हो सकता है। ध्रुव क्षेत्रों को त्यागना ही कल्याणकारी हो सकता है। यद्यपि यह खर्चीला होगा´´
खगोलविद कहते हैं कि शुरूआती सौर चक्र-1 अपने चरम पर 1760 में था, यद्यपि उस समय और धब्बों की संख्या काफी कम थी। तब से जैसे अनवरत सौर चक्रों का दौर कायम रहा है, सौर चक्र 23 का उत्स 2001 में देखा गया था जो अब समाप्त प्राय:सा है, क्योंकि सौर चक्र-24 अब अंगड़ाइया¡ ले रहा है। यह 2011-12 में अपनी उच्चता पर जा पहुंचेगा । फिर बारी आयेगी सौर चक्र-25 की जिसके बारे मे अनुमान है कि वह बहुत न्यून गतिविधियों वाला होगा। यह अन्तरिक्ष यात्रियों के लिए सकून का समय होगा क्योंकि तब - 2022 में अन्तरिक्ष यात्राओं में सौर विकिरणों का खतरा कम होगा।
यह वह अवसर होगा जब अन्तरिक्ष अन्वेषण की गतिविधियाँ अपने उत्कर्ष पर होंगी और अन्तरिक्ष पर्यटक अन्तरिक्ष में उछल-कूद कर रहे होंगे, अन्तरिक्ष यात्री चन्द्र पड़ावों से मंगल अभियानों को उन्मुख होंगे।
खगोलशास्त्रियों ने विगत 400 वर्षो में सौर धब्बों में उतार-चढ़ाव की अच्छी खोज खबर ले रखी है। वर्ष 1645 और 1715 के मध्य सौर धब्बे लगभग नदारद ही थे- इस अवधि को `मौन्डर न्यून´ कहा जाता है। यह जानकारी सबसे पहले एडवर्ड डब्ल्यू मौन्डर (1851-1928) ने दी थी। उक्त 30 वर्षों में मात्र 50 सौर धब्बे ही देखे गये। यह अवधि एक `लघु हिम युग´ के नाम से जानी जाती है जब सारी दुनिया खासकर उत्तरी गोलार्ध के देशों ने जाड़े की भयंकर ठिठुरन झेली थी। इस अवधि में धरती तक आने वाले सौर विकिरणों में कमी से यहाँ , बेरीलियम आइसोटोपों (कार्बन-14, बेरीलियम-10) में भी कमी देखी गई थी।
खगोल शास्त्रियों का अनुमान है कि विगत् 8000 वर्षों में करीब 18 ``मौन्डर न्यून´´ अवधियों गुजर चुकी है।
सौर धब्बों की दिन प्रतिदिन गणना करने का एक सरल फार्मूला सबसे पहले जोहान रुडोल्फ वोल्फ ने दिया था जो स्विटजरलैण्ड के एक प्रसिद्ध खगोलविद् थे। ज्यूरिख़, वियेना और बर्लिन विश्वविद्यालयों में शिक्षा पाने वाले रुडोल्फ सौर धब्बों के अध्ययन में दीवानगी की सीमा तक मशगूल थे। वे 1844 में बर्न विश्वविद्यालय में खगोलशास्त्र के प्रोफेसर और 1847 में बर्न की वेधशाला के निदेशक भी बने। इन्होंने पहली बार गणना करके बताया था कि सौर धब्बों का चक्र 11 वर्ष का होता हैं सौर धब्बों की सही-सही गणना की उनकी बताई हुई विधि आज भी प्रचलन में है।
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