Monday, 27 July 2009

एक स्वयम्बर यहाँ भी है - पशु पक्षियों के प्रणय सम्बन्ध (7)-(डार्विन द्विशती विशेष)


बर्ड आफ पैराडाईज का नर भी एक बहुगामी एरेना बर्ड है

इन दिनों एक सिने तारिका का रियलिटी -स्वयम्बर शो दूरदर्शन पर छाया हुआ है ! आईये हम आपको स्वयम्बर की प्रवृत्ति के उदगम के खोज यात्रा पर लिए चलते हैं चिडियों की मनमोहक दुनियां में ! यहाँ के स्वयम्बर के आगे बड़े बड़े स्वयम्बर भी फीके हैं ! वैसे तो चिडियों की 8700 प्रजातियों में से अधिकाँश में नर नारी का एकल जोड़ा ही सारी पैत्रिक /मातृत्व की जिम्मेदारियों का वहन करता है -मगर ८५ प्रजातियों में जो कुल के महज एक फीसदी हैं जोड़े नही बनते -इनमें नर बहुगामी होते हैं ,मतलब पालीगैमस ! मगर क्या मजाल किसी मादा से कोई जोर जबरदस्ती हो -यहाँ मादा ही एक विशाल स्वयम्बर में नर का वरण करती है -

इन चिडियों में कोई जोड़ा -बंध (पेयर बोंड) नही बनता .नर और मादा अल्प काल के लिए मिलते हैं -नर जीवन का सर्वोत्कृष्ट आकर्षक प्रदर्शन -प्रणय याचन करता है मादा वर माला डालती है -संसर्ग होता है और फिर मादा नर को छोड़ अलग चल देती है -नर अभी भी और मादाओं के लिए पलक पावडे ही बिछाए रहते हैं और अवसर का लाभ उठा कर एक से भी अधिक मादाओं से प्रणय सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं . इसके बाद नर मादा हमेशा के लिए बिछड़ जाते हैं -मादा घोसला बनाने ,अंडे सेने ,शिशुओं के लालन पालन का जिम्मा ख़ुद निभाती है, नर से कोई मतलंब नही रह जाता !

ये बहुगामी नर ,प्रणय लीला के सिवा बस उठल्लू के चूल्हा होते हैं ,कुछ करते धरते नहीं बस केवल प्रणय कला प्रवीण होते हैं और दिन रात कोई और काम धाम न करके अपने पौरुष प्रदर्शन में ही लगे रहते हैं -अपने डैनों ,पखों -परों को सजाना सवारना ही इनका मुख्य काम होता है ! चूकिं इनमें जोड़ा बाँधने की प्रवृत्ति नहीं होती अतः कई मादाओं से प्रणय बंध स्थापित करने में इन्हें कोई रोक टोक नहीं रहती .नरों में एक दूसरे से बढ़ चढ़ कर खूबसूरत दिखने की चाह और प्रतिस्पर्धा होती है -जो नर जितना ही स्फूर्त ,मुखर और चमक दमक लिए होता है वह मादाओं को उतना ही आकर्षित कर लेता है.

इन पक्षी प्रजातियों जिनमे मुख्य रूप से कई मुर्गों ,तीतर , बटेर ,रफ (नर)और रीव (मादा ) की पक्षी प्रजातियाँ आती हैं में एक विशाल स्वयम्बर का आगाज होता है -पहाडों की ऊंची एकांत निर्जन चोटियां सैकडों नरों से गुंजायमान हो कर "रंगभूमि "का नजारा पेश करती हैं ! इन पारम्परिक रंगभूमियों में आने वाले नर अपने पौरुष का बढ़ चढ़ कर प्रदर्शन शुरू कर देते हैं -मादाएं भी उसी रंगभूमि को चुनती हैं जहाँ ज्यादा नरों की भीड़ होती है -ताकि उनमे चुनाव के अधिक मौके मौजूद रहें ! मादाओं के आते ही एक साथ सारे नर प्रणय याचना शुरू कर देती है -मगर मादा ऐसा दिखाती है की जैसे कुछ हो ही नहीं रहा उसके सामने -प्रत्यक्षतः उदासीन सी वह नर लीलाओं का बस तटस्थ भाव से लेकिन बारीक निरीक्षण करती है -पक्षी प्रणय के इस रंगभूमि को अंग्रेजी में एरेना -arena या स्कैन्देनिविआयी भाषा में Leka मतलब "टू प्ले ' कहते हैं और यहाँ हो रहे प्रणय प्रदर्शन को 'एरेना डिस्प्ले '- इन पक्षियों का एरेना ही वह अभिसार स्थल है जो केवल प्रणय लीला का केंद्र है ,यहाँ घोसला बनाना ,शिशुओं का लालन पालन सभी वर्जित है -मादा नर से संसर्ग के बाद अन्यत्र घोसला बनाने और भावी पीढी के लालन पालन की तैयारियों की और चल देती है !

यह वर्णन अभी आगे भी है मगर अभी तो मुझे रामचरित मानस का वह प्रसंग याद हो आया -रंगभूमि जब सिय पगु धारी,देखि रूप मोहे नर नारी -मगर मनुष्य कितना विकसित हो गया है -यहाँ स्वयम्बर में राम को वरण करने के बाद सीता उनकी जीवन सगिनी बन जाती हैं मगर एरेना बर्ड्स में नर को मादा की परवाह कहाँ ?


अभी जारी रहेगा यह पक्षी प्रणय पुराण