यह कहावत तो सभी ने सुनी होगी कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा? मतलब जो समृद्धता ,ख्याति ,प्रदर्शन प्रत्यक्ष न हो उसके होने न होने से फर्क ही क्या पड़ता है ....मगर जमाना अब बदल गया है अब जंगल में नहीं मोर शहर में नाच रहे हैं ....हाथ कंगन को आरसी क्या ? आप खुद इस वीडियो में देख लीजिये! मगर यह अनहोनी हुयी तो क्यों ? क्या मोर यह ताने सुनते सुनते थक गया कि उसका जंगल में नाचना मनुष्यों को रास नहीं आ रहा और उसने शहर की राह पकड़ ली ...मगर गीदड़ की मौत वाले रास्ते पर नहीं बल्कि लोगों को अपने मनभावन नृत्य से लुभाने के अभियान पर ..यह मोर इन दिनों बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के समीप शहर में ही लोगों को अपने नृत्य से लुभा रहा है ...अब तो नर नारियां ही उसकी संगिनियाँ हैं जिन्हें देखते ही इस पक्षी का भी मन मयूर मानो नाच हो उठता है और वह झूम उठता है.
पशु पक्षियों के प्राकृतिक रहवास -पर्यावास को मनुष्य ने तहस नहस कर डाला है ...यहाँ तक कि उनका पलायन शहरों की ओर हो चला है ..कितने पक्षी अब शहरों को ही अपना प्राकृतिक वास बनाने में लग गए हैं -मोर भी ऐसा ही एक बेसहारा बिचारा पक्षी है जो मनाव आबादी के निकट रहने की चाह में शहर की सड़कों पर चहलकदमी करने आ पहुंचा है ....कहते हैं इनके नवजातों के दिमाग में मनुष्यों की छवियों की ऐसी इमप्रिन्टिंग हो रही है कि वे इन्हे अपने जोड़े के रूप में भी देख रहे हैं -लिहाजा उनका सामीप्य पाने को अपना मशहूर कोर्टशिप प्रदर्शन भी करने से नहीं चूक रहे -क्या जाने किसी 'मनुष्य मोरिनी' का दिल आ ही जाय इन अदाओं पर :)
अपने राष्ट्रीय पक्षी की इस अदा पर मेरा दिल तो आ गया अब आपकी बारी है- (वीडिओ सौजन्य:प्रशांत शुक्ला )