नासा -नॅशनल एरोनाटिक्स एंड स्पेस एडमिनीस्ट्रेशन अपने जन्म की अर्धशती मना रहा है .जुलाई 29, 1958, को इसे गठित किया गया था .जब रूसी स्पुतनिक ने १९५७ में अन्तरिक्ष की ओर छलांग लगाई थी तो अमेरिका ने इसे एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा था .नासा उसी चुनौती का एक माकूल जवाब था .और तभी से अन्तरिक्ष को लेकर एक ऐसी होड़ मची जो अब मानव को चाँद और मंगल की देहरी तक ले जा पहुँची है .अन्तरिक्ष पर्यटन का युग भी देखते देखते आ पहुंचा है और लोग अन्तरिक्ष की भारहीनता में भी हनीमून और 'फ्री ग्रेविटी ,फ्री सेक्स ' के मनसूबे बना रहे हैं .नासा के इस जश्न के क्षणों को आप यहाँ के खूबसूरत चित्रों के साथ साझा कर सकते हैं ।
नासा से मेरा भी एक संवेदना का रिश्ता रहा है .अन्तरिक्ष यानों में रोगाणुओं का यात्रियों पर क्या असर पड़ सकता है इस अभियान में मेरे सगे चाचा जी डॉ .सरोज कुमार मिश्रा का भी योगदान रहा .उनका यह साझा शोध पत्र पेटेंट के लिए भी संस्तुत हुआ .नासा ने गोपनीय कारणों से एक ,करग नेशनॅशनल का गठन किया और उसी के जरिये कई शोध कार्य कराये जिसमे डॉ सरोज कुमार मिश्रा का उद्धृत शोध पत्र ,उसी के सौजन्य से था .अब चाचा जी नासा में नही हैं -उन्होंने वहाँ से त्याग पत्र दे दिया -पर क्यों ,मुझे यह उन्होंने गोपनीय रखने को कहा है .और मैं विवश हूँ -भले ही असहज महसूस कर रहा हूँ ।
जो कुछ भी हो नासा की उपलब्धियों से मैं प्रभावित हूँ और इस जश्ने अन्तरिक्ष में मैं भी शामिल होता हूँ -थ्री चीयर्स के साथ .....