Saturday, 19 July 2008

अब बारी है सुराहीदार गरदन की ....

साभार :थाईलैंड लाइफ
नायक की तुलना में नायिका की सुराहीदार गरदन अधिक लम्बी और लचीली होती है। यहाँ तक कि लम्बे अभ्यास के बावजूद भी बैले नर्तक अपनी गरदनें सहनर्तकियों के समान लम्बी नहीं कर पाते। दरअसल नारी के ग्रीवा के नीचे का अंग `थोरैक्स´ पुरुष की तुलना में छोटा होता है। एक चित्रकार/कार्टूनिस्ट की नजर में नारी की ग्रीवा का भी अपना विशेष स्थान है। जहाँ उसे नारी अंगों को उभारने की आवश्यकता होती है वह गरदन को भी बड़ी करने से नहीं चूकता। नारीत्व की एक पहचान के रूप में गरदन लम्बी करने की ऐसी होड़ विश्व की कुछ संस्कृतियों में देखने को मिलती है जो वस्तुत: क्रूरता की सीमा लांघती हैं।

बर्मा की जिराफ ग्रीवा नारियों, की व्यथा कथा कुछ इसी तरह की है। यहाँ करने जनजाति के पडांग शाखा की लड़कियों को बचपन से ही पाँच पीतल के छल्ले गरदन में डाल देते है। उम्र के बढ़ने के साथ ही छल्लों की संख्या भी बढ़ने लगती हैं ,यहाँ तक कि यौवन की दहलीज लाघते-लाघते 22 से 24 छल्ले उनकी गरदन की लम्बाई के 15 इंच से भी उपर तक जा पहुँचती हैं ।यदि इस दशा में इनकी गरदन से पीतल के छल्ले निकाल दिये जाय तो सिर एक ओर लुढ़क जायेगा। नारी की लम्बी ग्रीवा सिर की कई तरह की भाव-भंगिमाओं को प्रदर्शित करने में भी मददगार है।

सिर के कुछ प्रमुख अभिप्राय पूर्ण संकेतों में जैसे सिर का आगे पीछे हिलाना (हामी भरना) सिर झुकाना (समर्पण), सिर का आगे पीछे हिलाना (इन्कार) आदि गरदन की मदद से सम्भव होता है। शायद यही कारण है कि रसिक जनों को नारी ग्रीवा सहज ही आकर्षित करती रहती है।