Sunday 24 January 2010

आखिर ये बला है क्या - डिस्कामगूगोलेशन!



इस रिपोर्ट के बाद तो यह एक पुनरावृत्ति ही कही जायेगी मगर बात चूंकि गम्भीर है इसलिए यह पुनरावृत्ति भी सही लगती है .आपको फुरसत मिले तो अंतर्जाल पर उपलब्ध इन रपटों को इत्मीनान से पढ़िए -इसे  और इसे ..इन दोनों रपटों में तफसील से  है कि   अंतर्जाल कैसे तेजी से एक  दुर्व्यसन  बनता जा रहा है और इसने भुक्तभोगियों के लिए कैसे एक नई लाक्षणिक बीमारी को जन्मा है -डिस्कामगूगोलेशन  नाम है इस नई बीमारी का जिसमें अंतर्जाल का व्यसनी अगर देर तक अंतर्जाल से दूर होता है तो उसे अजब सी अधीरता और बेचैनी आ घेरती है ,वह असहज हो उठता है .यह कुछ व्यसन की दीगर आदतों जैसा ही है .रिपोर्ट बाकायदा अध्ययन   के आंकड़ो पर आधारित है.

पिछले  वर्ष एक आन लाईन सर्वे किया गया  था ऐ ओ एल द्वारा और पाया गया था कि अमेरिका के कई शहरों  में लोगों को क्षण क्षण में अपना ई मेल देखे चैन नहीं रहता भले ही वे बिस्तर में हो या हमबिस्तर हों ,बाथरूम में हों या फिर ड्राईविंग कर रहे हों .मीटिंग में या डेटिंग में ....केवल दो तीन साल में ही ई मेल का ऐसा व्यसन १५ से ४६ फीसदी तक पहुँच  गया .अब ब्रितानी वासियों के नए अध्ययन में तो स्थिति और भी विस्फोटक पाई गयी है ..यहाँ तो लोगबाग जब कुछ ही देर के लिए सही अंतर्जाल से जुड़ नहीं पाते तो अकुला पड़ते हैं -बात बात पर चिडचिडाते   और आक्रोशित होते हैं -डिस्कामगूगोलेशन से त्रस्त हो उठते हैं -

यह शब्द दो शब्दों के मेल से बना है -डिसकाम्बोबुलेट और गूगल को मिला कर (वैसे इसमें गूगल  को लपेटना कोई जरूरी नहीं था ).इस शब्द के जनक ब्रितानी मनोविग्यानिओ की नजर में यह बीमारी " अंतर्जाल की तात्कालिक पहुँच न बना पाने से उपजे तनाव  और आक्रोश को इंगित करती है ".अध्ययन में पाया गया कि ७६ प्रतिशत ब्रितानी अंतर्जाल के बिना बेचैन हो जाते हैं .वे अंतर्जाल के पक्के व्यसनी हो चुके है और अंतर्जाल से ही चिपके रहना चाहते हैं .वे अंतर्जाल के इस कदर दीवाने हैं कि एक पल के लिए भी वहां से हटना  उन्हें भारी लगता है -बस अंतर्जाल के पन्ने दर पन्ने उलटते जाते है और नौबत यहाँ तक पहुंच गयी  है कि-

  • ८७ प्रतिशत अपनी जानकारियों के स्रोत के रूप में अंतर्जाल पर निर्भर हो गए हैं .
  • ४७ प्रतिशत को अंतर्जाल उनके धर्म से भी ज्यादा पसंद आ  गया है .
  • ४३ प्रतिशत अंतर्जाल के बिना निराशाग्रस्त और संभ्रमित हो जाते हैं 
  • २६ प्रतिशत को लगता है कि इसके बिना वे आखिर करेगें क्या और रह कैसे पायेगें .
  • १९ प्रतिशत अपने परिवार से ज्यादा समय अंतर्जाल पर बिताने लगे हैं


यह अध्ययन अगर सही हैं तो यह भारतीयों के लिए भी चेतने की  चेतावनी है -खासकर ब्लागरों के लिए जिन्हें अपनी पोस्ट लिखे और टिप्पणियाँ देखे रात की  नीद और दिन का चैन गायब हो गया लगता है . हमें यह लगता है कि अपने सुविधानुसार कोई एक दिन हमें  चुन लेना चाहिए जब  बिना किसी अति आवश्यकता के हम अंतर्जाल से दूर रहें .मुझे भी लगता है कि हममे में से अधिकाँश इस लत के दुर्व्यसनी हो चले है -कम से कम इन अध्ययनों की जाँच के लिए ही हम इस एक दिनी अंतर्जाल व्रत को आजमा कर देख तो लें. खुद यह भी आकलन कर लेगें कि हम बिना अंतर्जाल के रह कर कैसा अनुभव करते हैं . बीमारी से रोकथाम सदैव बेहतर है न !


 पुनश्च:   मैं अपने लिए चुनता हूँ मंगलवार.