बात उन्नीस सौ पच्चास -साठ के दौरान की है जब वाशिंगटन युनिवेर्सिटी, सेंट लुइस के विलियम मास्टर्स और विरजीनिया जान्हसन के सेक्स विषयक शोध परिणामों ने तहलका मचाया था . उन्होंने ख़ास तौर पर स्त्री यौनिकता पर कई ऐसे शोध परिणाम उजागर किये कि लोग सकते में आ गए और बहुत हो हल्ला मचा .सारी दुनियां में मास्टर्स और जान्हसन के दावे चर्चा का विषय बन गए . तमाम दीगर बातों में उनका यह भी रहस्योद्घाटन था कि स्त्रियाँ में चरमानन्द( )की अनुभूति मदन लहरियों(multiple orgasm) के रूप में होती है -मतलब पुरुष जहाँ स्खलन के साथ मात्र एक ही चरम आंनंद उठाता है, नारियां इस मामले में उनसे समृद्ध हैं।तब से आज तक पुरुष -नारी की यौनिकता पर अनेक अध्ययन हो चुके हैं ,मगर एक नये अध्ययन की चर्चा टाईम पत्रिका ने अपने हाल के अंक में(एशिया एडीशन, अक्तूबर 07, 2013) की है जो डॉ इडेन फ्रामबर्ग और नाओमी वोल्फ के शोध पर आधारित है.
उनके नए अध्ययन में मुझे तो कोई ख़ास बात नहीं नज़र आती मगर टाईम ने इसे बारह 'अचंभित करने वाले तथ्य' का शीर्षक दिया है . जबकि सच तो यह है कि इनमें सदमाकारी कुछ भी नहीं है . यह सच है कि ज्यादातर भारतीयों को उनकी सहचरियों/संगिनी को आर्गेज्म मिलाता है या नहीं इस के बारे में शायद ही पता हो . बहुतों को बस खुद से मतलब रहता है संगिनी की परवाह ही नहीं रहती . यह बहुत संभव भी हो सकता है क्योकि भारत में सेक्स एक टैब्बू ही बना रहा है और लोग इस मुद्दे पर ठीक से शिक्षित प्रशिक्षित नहीं होते -यह 'काम' पूरी तौर पर बस कुदरत के हवाले ही हो रहता है . अनेक यौन ग्रंथियां फलस्वरूप जीवन भर रह जाती हैं .
आईये नए अध्ययन की एक बानगी लेते हैं . नया अध्ययन भी स्त्री यौनिकता के कई पहलुओं पर से पर्दा उठाने की बात करता है . जैसे उसके अनुसार कभी बहुत पहले स्त्रियों के ऋतु धर्म का चक्र चन्द्रकलाओं से पूरा तारतम्य रखता था .अँधेरे पक्ष में ऋतुस्राव और पूर्णिमा को ही प्रायः अंड स्फुटन होता था . मगर सभ्यता की रोशनी ने यह चक्र बेतरतीब कर दिया .शयन कक्ष के लट्टुओं में उस आदिम प्रक्रिया की लय टूट ही गयी . हाँ कुछ नए प्रयोग चंद्रकला से फिर से जुड़ने के हैं जिसे 'ल्यूनासेप्शन' कहा जा रहा है . एक और खुलासा यह है कि संसर्ग के पांच से आठ दिन बाद तक भी कतिपय मामलों में शुक्राणु जीवित रह सकता है और गर्भ ठहर सकता है . शुक्राणु गर्भमुख के पास के योनि श्लेष्मा में सुरक्षित रह सकता है जबकि प्रायः शुक्राणु संसर्ग हो उठने के कुछ घंटे ही जीवित रहते हैं .
यह एक रोचक बात यह भी बताता है कि 'हाई हील' सैंडल नारी आर्गेज्म पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है . इससे श्रोणि मेखला की कुछ नर्व्स दबती हैं जो आर्गेज्म पर बुरा प्रभाव डालती हैं . सबसे महत्वपूर्ण खुलासा यह हुआ है कि आर्गेज्म लेने वाली स्त्रियाँ ज्यादा कर्मठ और सृजनशील होती है. और यह एक फीडबैक प्रक्रिया है -मतलब ज्यादा आर्गेज्म ज्यादा कर्मठता और सृजन और यह पुनः समुचित आर्गेज्म के लिए उकसाता है . यह भी कि गर्भ निरोध गोलियां कामोत्तेजना को घटाने वाली पाई गयीं हैं . एक रोचक बात यह भी उभरी कि कुछ ढंग की कुर्सियों पर बैठना प्यूदेंडल नर्व को संवेदित कर यौन उत्तेजन को उकसा सकती है . और देर तक बैठना उसे दबा भी सकती है . नहाने के बाद स्त्रियाँ बेहतर आर्गेज्म पाती हैं .
बाकी के शोध परिणाम बस पुराने शोध अध्ययनों के पिष्ट पेषण भर हैं जैसे नारी शरीर के कामोद्दीपक क्षेत्र -भगनासा ,कुचाग्र ,जी स्पाट ,गर्भ द्वार(opening of the cervix) हैं , चरम आनंद के समय होने वाली सिरहनों का कारण गर्भाशय का शुक्राणुओं के बटोरने में होने वाला संकुचन है . अध्ययन यह भी बताता है कि सभी नारियां चरम आनंद पा सकती हैं मगर यह कैसे मिले यह सभी को ठीक से पता नहीं होता .
उनके नए अध्ययन में मुझे तो कोई ख़ास बात नहीं नज़र आती मगर टाईम ने इसे बारह 'अचंभित करने वाले तथ्य' का शीर्षक दिया है . जबकि सच तो यह है कि इनमें सदमाकारी कुछ भी नहीं है . यह सच है कि ज्यादातर भारतीयों को उनकी सहचरियों/संगिनी को आर्गेज्म मिलाता है या नहीं इस के बारे में शायद ही पता हो . बहुतों को बस खुद से मतलब रहता है संगिनी की परवाह ही नहीं रहती . यह बहुत संभव भी हो सकता है क्योकि भारत में सेक्स एक टैब्बू ही बना रहा है और लोग इस मुद्दे पर ठीक से शिक्षित प्रशिक्षित नहीं होते -यह 'काम' पूरी तौर पर बस कुदरत के हवाले ही हो रहता है . अनेक यौन ग्रंथियां फलस्वरूप जीवन भर रह जाती हैं .
आईये नए अध्ययन की एक बानगी लेते हैं . नया अध्ययन भी स्त्री यौनिकता के कई पहलुओं पर से पर्दा उठाने की बात करता है . जैसे उसके अनुसार कभी बहुत पहले स्त्रियों के ऋतु धर्म का चक्र चन्द्रकलाओं से पूरा तारतम्य रखता था .अँधेरे पक्ष में ऋतुस्राव और पूर्णिमा को ही प्रायः अंड स्फुटन होता था . मगर सभ्यता की रोशनी ने यह चक्र बेतरतीब कर दिया .शयन कक्ष के लट्टुओं में उस आदिम प्रक्रिया की लय टूट ही गयी . हाँ कुछ नए प्रयोग चंद्रकला से फिर से जुड़ने के हैं जिसे 'ल्यूनासेप्शन' कहा जा रहा है . एक और खुलासा यह है कि संसर्ग के पांच से आठ दिन बाद तक भी कतिपय मामलों में शुक्राणु जीवित रह सकता है और गर्भ ठहर सकता है . शुक्राणु गर्भमुख के पास के योनि श्लेष्मा में सुरक्षित रह सकता है जबकि प्रायः शुक्राणु संसर्ग हो उठने के कुछ घंटे ही जीवित रहते हैं .
यह एक रोचक बात यह भी बताता है कि 'हाई हील' सैंडल नारी आर्गेज्म पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है . इससे श्रोणि मेखला की कुछ नर्व्स दबती हैं जो आर्गेज्म पर बुरा प्रभाव डालती हैं . सबसे महत्वपूर्ण खुलासा यह हुआ है कि आर्गेज्म लेने वाली स्त्रियाँ ज्यादा कर्मठ और सृजनशील होती है. और यह एक फीडबैक प्रक्रिया है -मतलब ज्यादा आर्गेज्म ज्यादा कर्मठता और सृजन और यह पुनः समुचित आर्गेज्म के लिए उकसाता है . यह भी कि गर्भ निरोध गोलियां कामोत्तेजना को घटाने वाली पाई गयीं हैं . एक रोचक बात यह भी उभरी कि कुछ ढंग की कुर्सियों पर बैठना प्यूदेंडल नर्व को संवेदित कर यौन उत्तेजन को उकसा सकती है . और देर तक बैठना उसे दबा भी सकती है . नहाने के बाद स्त्रियाँ बेहतर आर्गेज्म पाती हैं .
बाकी के शोध परिणाम बस पुराने शोध अध्ययनों के पिष्ट पेषण भर हैं जैसे नारी शरीर के कामोद्दीपक क्षेत्र -भगनासा ,कुचाग्र ,जी स्पाट ,गर्भ द्वार(opening of the cervix) हैं , चरम आनंद के समय होने वाली सिरहनों का कारण गर्भाशय का शुक्राणुओं के बटोरने में होने वाला संकुचन है . अध्ययन यह भी बताता है कि सभी नारियां चरम आनंद पा सकती हैं मगर यह कैसे मिले यह सभी को ठीक से पता नहीं होता .