Saturday, 12 March 2011

सुनामी का सितम :सवाल और सबक

जापान में सुनामी के महाविध्वंस ने एक बार फिर जता  दिया है कि कुदरत के कहर के आगे मनुष्य कितना बौना और बेबस है .वैसे तो जापान भूकंप का देश ही कहा जाता है और इस लिहाज से वहां रोजाना की इस आपदा से जूझने को लोग तैयार रहते हैं मगर इस बार रिक्टर  स्केल पर ८.९ की तीव्रता के भूकंप के फ़ौरन बाद आयी विकराल सुनामी  ने मुझे फिल्म २०१२ के प्रलय -दृश्यों की याद दिला दी -फिल्म के कई दृश्य तो ऐसे हैं कि मानो फिल्म  निर्देशक ने जापान की इसी सुनामी को ही अपनी दिव्य दृष्टि से देख लिया हो ....किन्तु क्षोभ की बात यह है कि मानव मनीषा द्वारा  भविष्य का पूर्वाभास कर लेने के बाद भी इनसे निपटने की पुख्ता तैयारी  नहीं होती  और एक महाविनाश अपने दंश से मानवता को कराहता छोड़ जाता है ....काश भविष्य की  विभीषिकाओं का खाका खीचने वाली विज्ञान कथा फिल्मों से ही कुछ सबक लिया गया होता ...
 साई फाई फिल्म २०१२ का एक खंड प्रलय सा दृश्य 

कितना अभागा और अभिशप्त देश है जापान जिस बिचारे की मानों ऐसे ही हादसों से गुजरते रहने की नियति बन गयी है -दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाभकीय बमों ने दो शहरों-नागासाकी  और  हिरोशिमा  का लगभग खात्मा ही कर दिया था -आये दिन भूकंप वहां आते ही रहते हैं -फिर भी जापान वासियों का जज्बा तो देखिये वे फिर उठ बैठते हैं और  सीना ताने सिर उठाये खड़े ही नहीं हो जाते सारी दुनिया की एक बड़ी आर्थिक शक्ति भी बन जाते हैं ..जापान  विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति है ....मानवीय जिजीविषा की यह एक मिसाल है .इस बार तो जापान के बीस से ज्यादा शहरों  में सुनामी से कहर बरपा दिया -कई शहर तो नेस्तनाबूद हो गए हैं ! चलती ट्रेनें ,जहाज तक को लहरों ने लील लिया है ..लहर लहर शमशान का नजारा है   ....नाभिकीय आपात काल भी घोषित कर दिया गया है क्योकि  परमाणु रियेक्टरों को भारी क्षति पहुँची है .  परमाणुवीय  विकिरण का खतरा उत्पन्न हो गया है और इसके क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं इसे भला जापान से बेहतर कौन समझ सकता है जहाँ नागासाकी हिरोशिमा में आज भी विकिरण जनित जन्मजात विकलांगता अभिशाप बनी हुयी है .
 जापान में महासुनामी के  विध्वंस का एक दृश्य : १०-११  मार्च २०११

सबसे  हैरानी  वाली बात  यह है कि क्या जापान के भविष्य- नियोजकों ने इतने बड़े खतरे का कोई आकलन नहीं किया था? और यदि किया था तो क्या इसके लिए पर्याप्त तैयारियां नहीं की गयीं? कोई भी कह सकता है कि  भला कुदरत के आगे किसकी चल पाती है? मगर इस मुद्दे को ऐसे ही चलताऊ जवाब से नहीं टरकाया जा सकता ....हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी की किस प्रगति पर इतना गुमान करते हैं -मतलब साफ़ है प्रकृति की विनाश लीलाओं से निपटने के लिए अभी भी हमारे उपाय और तैयारियां नाकाफी है -हमारे जोखिम बचाव के इंतजाम  बचकाने हैं और आपदा प्रबंध शोचनीय!  अगर जापान जैसे देश में जोखिम पूर्वाभास ,हादसा मूल्यांकन और आपदा प्रबंध की यह स्थति है तो जरा सोचिये अपने भारत में अगर खुदा न खास्ता ऐसी बड़ी सुनामी आ  जाए तो क्या होगा? कुछ महानगरों का वजूद ही नक़्शे से मिट जाएगा .

भारत का एक बड़ा हिस्सा (पेनिस्युला ) समुद्र से घिरा है हमारे कई महानगर भी लबे तट हैं ..मुम्बई ,कोलकाता ,कोचीन गुजरात गोवा और द्वीपों की एक बड़ी श्रृखला सब सागर सहारे ही हैं ...हमें फ़ौरन जापान की इस महा काल सुनामी से सबक लेने होंगें -एक दूरगामी रणनीति बनानी होगी ..भगवान् भरोसे रहने की मानसिकता से उबरना होगा और तमाम अनुत्पादक परियोजनाओं ,कामों से ध्यान हटाकर एक ठोस परियोजना को मूर्त रूप देकर अपने बंदरगाहों और तटीय शहरों को यथासंभव सुनामी -प्रूफ करना होगा ...भारत की एक सुनामी हमें पहले ही चेतावनी दे चुकी है ...लेकिन हम अभी भी बेखबर है -यहाँ जोखिम और आपदा प्रबंध को लेकर कोई गंभीर सोच अभी भी नीति नियोजकों में नहीं है -और सबसे बढ़कर हमारी राजनीतिक इच्छाशक्ति को तो मानों काठ मार गया है  ...यह देश बड़े से बड़े घोटालों के लिए उर्वर बनता जा रहा है ...माननीय सासंदों के लिए निर्माण कार्यों का बजट २ करोड़ से पांच करोड़ करने का चिंतन तो यहाँ है मगर भारत के भविष्य के अनेक मुद्दों पर हमारी दृष्टि धुंधलाई सी हो गयी है ....यह स्थिति  कतई उचित नहीं कही जा सकती ..आईये हम इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठायें या फिर एक जापान  सरीखी किसी नियति के लिए तैयार रहें ...