यहाँ हम जमीन पर बैठे टिपिया रहे हैं कोई आकाश -अन्तरिक्ष के पार से चिट्ठे लिख रहा है -और यह हैं अन्तरिक्ष यात्री सांद्रा मैग्नस जो अन्तरिक्ष से एक ब्लॉग लिखती हैं -स्पेस बुक ! वे बस अगले कुछ दिनों में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आई एस एस ) से धरती पर लौटने वाली हैं ! मेरे एक पसंदीदा ब्लॉग -बैड अस्ट्रोनोमी के ब्लागर फिल प्लैट लिखते हैं कि सांद्रा मैग्नस एकमात्र वह शख्श हैं जो अन्तरिक्ष से ब्लागिंग करती हैं ! डिस्कवरी यान से सांद्रा आई एस एस तक पहुँची थीं ! फिल प्लैट ने सांद्रा के अन्तरिक्ष यात्रा के अनुभव पर लिखे ब्लॉग को भी लिंक किया है ! मैंने जब अन्तरिक्ष से की गयी इस चिट्ठाकारिता को देखा तो आप से भी इस अलौकिक अनुभव को बाटने के लिए व्यग्र हो गया ! मैं यहाँ सांद्रा के चिट्ठे के कुछ अंशों के उद्धरण देने का लोभ रोक नही पा रहा -
"...मुझे सही सही तो नही पता कि मैं अन्तरिक्ष में कहाँ थी मगर रात हो चुकी थी और मैंने एक कक्ष की खिड़की के निकट अपने को संभाला .....मैं कोशिश करूंगी कि जो कुछ मैंने देखा उसे शब्द चित्रों में प्रस्तुत करुँ ....यह घोर निबिड़ रात्रि है ..अब अफ्रीका के ऊपर तूफ़ान के चलते बिजलियाँ कौंध सी रही हैं ऐसा लग रहा है कि आतिशबाजी हो रही हो ! लगता है कोई बड़ा तूफ़ान है जो फैलता जा रहा है ! .....यद्यपि कि धरती का क्षितिज अलक्षित है ,बादलों की बिजलियों और शहरों की चमक में धरती और अन्तरिक्ष का फर्क साफ तौर पर देखा जा सकता है ! रात्रि कालीन उत्तरी धरती के क्षितिज को काली रोशनाई के मानिंद आकाश से सहज ही अलग कर देखा जा सकता है .धरती के पार्श्व के एक छोर से निकलती सी लग रही आकाश गंगा (मिल्की वे ) मानो अपनी ओर यात्रा के लिए पुकार सी रही है .....यह सब मुझे विस्मित सा कर रहा है... ओह कितना सुंदर !
कभी कभार कोई जलबुझ करती लाल रोशनी भी रह रह कर दिख जाती है जो दरअसल सैटेलाईट हैं ..ये तेजी से गुजर जाते हैं ! चमचमाते तारे भी अद्भुत लग रहे हैं ...इस समय आई एस एस रात्रि भ्रमण कर रहा है अंधेरे की कारस्तानी का दर्शक बन रहा है ....अभी नीचे तो अँधेरा ही है मगर तारों से जगमगाती यामिनी अब विदा ले रही है क्योंकि सूर्यदेव की चमक अंधेरे के वजूद को मिटाने पर आमादा है ! मगर धरती पर सूर्योदय के ठीक पहले एक दम से कृष्णता फैल गयी है और कुछ भी दिख नही रहा है जैसे न तो धरती और न ही आसमान का कोई वजूद है ! बस जैसे मैं ही अस्तित्व में हूँ और अन्धता के एक महासागर में खो सी गयी हूँ और जहाँ सूरज बस खिलखिलाने वाला है और लो धरती तक सूरज की किरने जा पहुँचीं और वह एक बार फिर से सहसा ही प्रगट हो गयी है ...तारे सहसा ही छुप गए हैं यद्यपि वे वही हैं जहाँ थे ......."
यह वह कविता है जिसे अन्तरिक्ष से लिखे ब्लॉग पर डाला गया है ! इस महिला को भला कौन नही आदर देगा ! सांद्रा को सलाम !